Archive for मई 2nd, 2009
लोकसंघर्ष पत्रिका के चुनावी विशेषांक का विमोचन
Posted in Uncategorized on मई 2, 2009| Leave a Comment »
बाजार बहुत है ..
Posted in Uncategorized on मई 2, 2009| Leave a Comment »
भाषा न भाव छंद तो फ़नकार बहुत है।
तुलसी– कबीर– सूर के आधार बहुत है।
तेरी खुदी को तेरा खुदा मिल ही जाएगा–
इन्सान बिकना चाहे तो बाजार बहुत है।
आंसू की न होती न मुस्कान की भाषा।
आँखों की दिलो की नेह पहचान की भाषा।
हिन्दी नही उर्दू नही वरन इंतना समझिये –
घर दिल में बना ले वह इन्सान की भाषा ।
चाह होगी तो कोशिशे होंगी ।
प्यार होगा तो रंजिशें होगी ।
स्वार्थ होगा दोस्ती होगी–
प्राण होंगे तो बंदिशे होंगी ।
पुण्य है ,पाप है , कर्म फल है यही
जन्म है, मृत्यु है , गम विजय है यही
आदमी का बुढापा बताता हमे –
स्वर्ग भी है यही नर्क भी है यहीं।।
–डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल‘ राही ‘
प्रजातंत्र पत्ता अ़स हालै…
Posted in Uncategorized on मई 2, 2009| Leave a Comment »
प्रजातंत्र पत्ता अ़स हालै,सत्ता बंटाधार;
देश का कोई न जिम्मेदार।
भूखन मरैं करैं हड़तालै , कोई न सुनै पुकार;
डंडा –लाठी –गोली, बरसे परै करारी मार;
अत्याचार अनाचारों का,होइगा गरम बाजार;
रोज बने कानून कायदा,नेतन कै भरमार ;
चोरी,डाका,कतल,राहजनी ,कोई न रोकनहार ;
दारु– पैसा बांटिक जीते,गुण्डे चला रहे सरकार;
चोर –ड़कैतन की रक्षा मा खड़े हैं ,थानेदार;
वकील–डॉक्टर–शिक्षक ,बालक जेल मा करें विहार;
देश का कोई न जिम्मेदार।
बृजेश भट्ट बृजेश
आजाद भारत में ब्राहमणवाद का कफस 1
Posted in Uncategorized on मई 2, 2009| Leave a Comment »
जिसे आजादी की लडाई कहा जाता है उसी के चलते डॉक्टर अम्बेडकर ने ये सवाल उठाया था की आजादी से पहले यानी अंग्रेजो के जाने से पहले दलितों को हिंदू वर्चस्व से आजादी मिल जानी चाहिए । आम्बेडकर यह जानते थे की अगर दलित पिछ्डे पहले ही आजाद नही हुए और अंग्रेज चले गए तो सत्ता ब्राहमणों के हाथ में ही आएगी और दलित कभी आजाद नही होंगे । 1932 में गाँधी ने अम्बेडकर पर यह दबाव आमरण अनसन करके बना दिया कि दलितों की आजादी का सावल न उठाया जाए। गाँधी का यह विचार था कि अगर दलित पिछ्डे हिंदू समाज से मुक्त हो गए तो हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएगा और सत्ता पर उसका कब्जा नही रह पायेगा । यह बात ध्यान देनी चाहिए कि गाँधी सत्ता पर ब्राहमणों और हिन्दुओ के कब्जे पर जोर देते थे । पूना पैक्ट हो जाने के बाद यही हुआ भी । एक मात्र पेरियार ऐसे थे जिन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दुओ को राज्य से सफलतापूर्वक दूर रखा ।
हालाँकि तमिलनाडु में पेरियार के शुद्र जाति में भी राग ब्राहमणों का ही था जैसे राज्यचारी। लेकिन पूरे देश में पेरियार की नही चली, गाँधी ही अंततः समूचे देश पर ब्राहमण का हिंदुत्व थोपने में सफल हो गए । लोग यह नही जानते या जानते है तो मानना नही चाहते कि आज हिंदुत्व का जो सांप्रदायिक उपकार हुआ है। उसकी वजह सिर्फ़ गाँधी है । गाँधी मुस्लिम पर अत्याचार नही चाहते थे लेकिन देश पर हिंदुत्व का वर्चश्व भी बनाये रखना चाहते थे । इसमे गाँधी सफल हो गए समूचे देश में सत्ता पर ब्राहमणवादी ही कब्जा बनाये रखने में सफल हुए। यह देखा जाना चाहिए कि जो राज्य जनज़ातीय लोगो के प्रभाव से बने जैसे झारखण्ड वहां भी सत्ता का संचालन ब्राहमणों के हाथ में आ गया। तमिल नाडू में आज भी राजनेताओं के मंदिरों में चढावा चढाना पड़ता है । समुची राजनीति लोकतान्त्रिक होने के बाद भी ऐसे हो गई है कि देश कि शिक्षा और संस्कृति पर पूरी तरह ब्रहामाणपंथी ही हावी है । आज देश में दो तिहाई आबादी अर्धशिक्षित या आशिक्षित है इसका कारण सिर्फ़ ब्राहमणवाद है क्योंकि ब्राहमण सबसे बड़ा शत्रु पढने लिखने और ज्ञान प्राप्त करने का होता है । वह ज्ञान और विचार का सबसे बड़ा शत्रु होता है और यह मानना है कि इस दिन देश में ठीक –ठीक शिक्षा का प्रचार प्रसार हो जाए उस दिन ब्राहमण वाद को सिरे से खारिज कर दिया जाएगा यह हैरानी कि बात नही है कि कम्युनिस्टो को छोड़ कर या वामपंथी या दूसरी राजनीति करने वाले सबसे ज्यादा अन्धविश्वाशी है कम्युनिस्ट भी बंगाल में दुर्गा नाम कि एक काल्पनिक सत्ता की जी भरकर उपासना करता है राम या कृष्ण के नाम पर सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी ही नही दूसरी पार्टिया भी अपनी संस्कृति का केन्द्र अन्धविश्वाश कि मूर्तियों को आस्था का केन्द्र बनाती है कुछ हिंदू धर्म ग्रंथो में शूद्र माने गए है वह भी राम और कृष्ण कि पूजा में गहरी रुचि लेते है । राम सेतु जैसी जहालत का विरोध इस वक्त कोई पार्टी नही करना चाहती वह ब्राहमणों का प्रभाव है देश में शिक्षा सम्बन्धी जितनी किताबें छपती है उन सभी किताबो में देवी देवता की ये जहालत जस की तस मिलेगी क्योंकि ये सारी किताबें ब्राहमण ही लिखते है इसलिए देश में तार्किकता की जड़ें इसी जहालत से खोद देते है । यही नही एक और बुरा काम ब्राहमण वाद करता है देश में शिक्षा देने के नए स्कूल क्यों फैलाने नही देता ?देश की आधी आबादी के पास शिक्षा का कोई साधन नही पहुँचने पाता, अगर वहां सरकारी दबाव में स्कूल खुल भी जाए तो उन स्कूलों को भूसा भंडार बना दिया जाता है या उनमें गायें पली जाती है ।
मुद्राराक्षस
क्रमश :