श्रीमान जी ,
मेरा उद्देश्य किसी जाति को अपमानित करने का नही है । भारतीय समाज में जाति एक महत्वपूर्ण कारक है और जाति के आधार पर लोगो को अपमानित करने का कार्य हुआ है और हो रहा है राहुल सांस्कृतायन जी कीमहत्वपूर्ण किताब वोल्गा से गंगा है जिसमें मानव सभ्यता के विकास के क्रम को अच्छे तरीके से समझाया गया है मानव सभ्यता के विकास के क्रम में कर्मफल का सिद्धांत भी आया है और मानव ने कब क्या और किस तरीके से मानव के शोषण के औजार किए है वह महत्वपूर्ण है श्री भगौतीचरण वर्मा जी नेचित्रलेखा में पाप और पुण्य क्या है उसको चित्रित किया है उसके ऊपर भी गहनता के साथ विचार करने कीआवश्यकता है । श्री मुद्रराक्षास ने धर्म का पुर्नपाठ विषयक पुस्तक में ब्रहामणवाद के उदगम स्थल से ले के आजतक मानव के शोषण के विभिन्न स्वरूपों की चर्चा की है जिसके ऊपर भी विचार करने की आवश्यकता है ।
क्या यह सच नही है की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिन ब्राहमणों ने खेती करनी शुरू कर दी और हल का मूठ पकड़ कर खेत जोते उन्हें जाति से निकल दिया गया और वह त्यागी कहलाये पूर्वी उत्तर प्रदेश में जिन ब्राहमणों ने श्रम करना सीखा और खेती करने लगे वो भी जाति बहिस्कृत किए गए और वह भूमिहार कहलाये । यह संकेत क्या बतलाते है ?
डॉक्टर राम विलाश शर्मा ने निराला की साहित्य साधना में कान्य कुब्ज़ ब्राहमणों के सम्बन्ध में काफी विस्तार से लिखा है निराला जी भी स्वयं उससे प्रताडित हुए है ।
गाँधी जी का इस देश के अन्दर स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान है हम उनके किन्ही विचारो से सहमत नही है या आप मेरे विचारो से सहमत नही है तो क्या मेरी हत्या कर दी जायेगी और गाँधी की हत्या जिन तत्वों ने की थी वह विचारो से क्या थे ? 1925 में विजयदशमी के दिन एक संगठन का जन्म हुआ थाजो हिटलर ,मुसोलिनी के नाजी विचारो से प्रभावित था और उसकी प्रेरणा श्रोत्र का आधार जर्मन नाजी विचार थे । इस संगठन का कोई भी योगदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नही था कोई भी सदस्य आजादी की लडाई में जेल नही गया था हद तो यहाँ तक हो गई की ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए उक्त संगठन के लोग कार्य करते थे । हिंदू धर्मअलग है । हिन्दुवत्व एक राजनैतिक विचारधारा है । हिन्दुवत्व शब्द का प्रयोग पहली बार इसी संगठन ने कियाथा । रात ज्यादा हो गई है बातें जारी रहेंगी स्नेह बनाये रखियेगा ।
सादर ,
सुमन
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क्षमा करें विप्रवर ‘हिंदुत्व’ महज विचारधारा नहीं बल्कि जीवन शैली है…जो सिखाती आई है समरसता और अंगीकरण… जिसका बीज मंत्र है “वसुधैव कुटुम्बकम” |
प्रत्येक विचार स्वयं से श्रेष्ठ की सदैव अपेक्षा रखता है…नए और श्रेष्ठ विचार आने पर पुराना विचार मलिन पड़ जाता है और धीरे-धीरे समय की गर्द में खो जाता है, विलीन हो जाता है |
लेकिन जीवन सदैव से रहा है और इसी कारण बिना किसी प्रलय से प्रभावित हुए बिना हिन्दुत्त्व आज भी प्रवाहमान है…लेकिन आपको आश्चर्य होगा की इस धर्मं को मानने वाले आज थोड़े ही हैं या कहें अल्पसंख्यक हैं लेकिन हैं जरूर…लेकिन मैं जिस हिन्दुत्त्व की बात कर रहा हूँ वो किसी गोत्र या वर्ण-व्यवस्था या जाति-व्यवस्था से बद्ध नहीं है…स्वच्छंद है पवित्र है मुक्त है…
और इस धर्मं को मानने वाला हिन्दू के लिए प्रकृति उसकी स्वार्थ-तुष्टि का साधन मात्र नहीं अपितु प्रथम उसकी माता है…”माता भूमिः पुत्रोSहम् पृथिव्या”(अर्थात् ये भूमि मेरी माता है और मैं इस पृथ्वी का पुत्र हूँ) |
श्रीमान आपने कभी गंगा को कानपुर में देखा है या कभी यमुना को दिल्ली में देखा है..???
अगर देखेंगे तोह आप शायद कहें की अरे विश्वास नहीं होता ये तो कोई गन्दा नाला है..
आप बस पहचान नहीं पायेंगे…वही हाल इस समय सनातन हिन्दू धर्मं से निकले तथाकथित उस हिन्दू धर्मं का हाल है जिसे आपने राजनीतिक विचारधारा का नाम दिया है…यहाँ ये ध्यान रखने योग्य है की प्रायः “विचारधाराओं” ने सबसे बड़ा योगदान लोगों को बाटते हुए सीमायें खीचने में में दिया है…जबकि जिस हिन्दुत्त्व की मैंने बात की है उसने कभी बाटने की बात की ही नहीं सिर्फ सभी को अंगीकार कर लेना चाहा, समरस कर देना चाहा…|
लेकिन मनुष्य तो मनुष्य है समरसता इसे रास नहीं आती इसके इन्द्रधनुषी सपने इन समरसता की बातो से संतुष्ट नहीं होते उसकी सत्ता लिप्सा शांत नहीं होती…
बहरहाल…मेरा उद्देश्य किसी धर्म का महिमा मंडन नहीं अपितु सत्य का निरूपण करना था
और इतना कहना था की आप जैसे विद्द्वज्जन जब ऐसी गलतियां करते हैं तोह हम सामान्य जनता से क्या अपेक्षा रक्खें की वो समरसता का मतलब समझेगी..
वस्तुतः दोष स्वयं के भीतर ही है..और दूसरों को दोष देकर हम प्रायः अपने दोषों को ढँक का प्रयत्न करते हैं…पर क्या कभी हम साहस जुटा पायेंगे अपनी गलतियों पे पर्दा न डालकर बल्कि उनपे शर्मिंदगी व्यक्त करने की …???
जिस दिन ऐसा हुआ उसी दिन से “हिन्दुत्त्व” के ऊपर से “संकटग्रस्त” होने का ठप्पा हट जाएगा और लोग इसे फिर से जियेंगे ….किसी विचारधारा का नाम देकर भटकाव नहीं पैदा करेंगे..||
sriman ji ,
hindu dharm aur hinduvatv mein aakash aur pataal ka antar hai .hinduvatv rashtriy svayam sevak sangh dvara khoja gaya rajnitik shabd hai jiske madhyam se rashtriy svayam sevak sangh any dharmo ko manne vale logo ko apmanit karne ka kary karta hai hinduvatv shabd hindu matalambiyo mein jaati ke adhaar par bhi apmanit karta hai bandhu bade adab k sath likh raha hoon jara sa aap apne agal bagal dhyan se dekhiye to yah sabhi baatein aap ko dikhai dengi.hinduvatv shabd ki vichardhara k karan bhartriy samaj mein maryada purshottam Sri Ram chandr ji ko bhi aaj ki istithiyo mein apmanit hona pad raha hai unko bhi hinduvatv ko manne vale logo ne rajniti ka hathiyaar bana liya hai vah kaun log hai Ram bhartiy samaj mein jan jan ki chetna k prateek bhi the anyaay k khilaaf ladne vaale ek mahan yodha the kintu aaj ram hote to ravan ko baad mein marte lekin sabse pehle apne samarthak hinduvatv ko manne vale logo ka vinaash jaroor karte . ek nai deepawali hoti .
suman
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