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Archive for मई 10th, 2009

जरा, यह भी आईने में देखें

1857 में उत्तर भारत के अन्य रियासतों के साथ ही जोधपुर रियासत में भी क्रांति का बिगुल बजा था
यहाँ एरिनापुर छावनी में अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों ने सर्वप्रथम विद्रोह का झंडा बुलंद किया। आउवा के सामंत कुशल सिंह ने सिपाहियों को नेतृत्व प्रदान किया है । क्रांतिकारियों ने चलो दिल्ली मारो फिरंगी का नारा लगते हुए दिल्ली की और कूच कर दिया। क्रांतिकारियों ने जोधपुर में नियुक्त अंग्रेजो के पोलिटिकल एजेंट मोंक मेसन का सर कलम कर दिया। यह घटना आज भी जोधपुर के लोकगीतों में कुछ इस तरीके से दर्ज है -” ढोल बाजे चंग बाजे,भालो बाजे बांकियो। एजेंट को मार कर दरवाजे पर टाकियों । ” उस समय यहाँ के महाराजा तख्त सिंह ने क्रांतिकारियों का साथ देने के बजाये उन्हें रोकने के लिए अंग्रेजो को दस हजार सेना 12 तोपों की सहायता प्रदान कीभीषण संघर्ष में क्रांतिकारियों के नेता कुशल सिंह को जान गावानी पड़ी । हजारो क्रांतिकारी मारे गए और राजपरिवार की गद्दारी के चलते आन्दोलन दबा दिया गया। जोधपुर की तरह ही कोटा में भी विद्रोह की ज्वाला भड़की थी। यहाँ क्रांतिकारियों ने महाराजा राम सिंह द्वितीय को 6 महीने तक उन्ही के महल में कैद रखा। अंग्रेजो के पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर उसके सर को पूरे शहर में घुमाया गया। अलवर और धौलपुर में भी प्रथम स्वाधीनता संग्राम के सिपाहियों ने अंग्रेजो व गद्दार राजाओ के छक्के छुडा दिए थे। धौलपुर में क्रांतिकारियों ने पूरे दो महीने तक वहां के महाराजा भगवंत सिंह के महल पर कब्जा किया रखाउस समय धौलपुर के राजा अंग्रेजो से अपनी वफादारी की मिसाल के लिए आगरा के किले में क्रांतिकारियों से घिरे अंग्रेजो को बचाने के लिए अपनी सेना भेजी लेकिन क्रांतिकारियों ने इस सेना को अछनेरा से पहले ही ढेर कर दिया । कुछ ऐसा ही इतिहास डूंगरपुर ,जयपुर व मेवाड़ आदि रियासतों में भी रहा। कही भी राजा ने इस जनविद्रोह का साथ नही दिया। अंतत: विद्रोह दबा दिया गया।
आजादी मिलने के बाद यहाँ के कई रियासतदार ने एक बार फिर अपनी गद्दारी का सुबूत पेश किया और भारत में रहने के बजाये ख़ुद को स्वतन्त्र रखना चाहाराजाओ ने देखा की लोकतंत्र में उनकी दाल नही गलने वाली तो अपनी सौ वर्षो की चापलूसी व वफादारी के एवज में अंग्रेजो से ख़ुद को स्वतन्त्र रखने का अधिकार प्राप्त कर लिया । आज जो राजघराने भारत की सेवा करने को राजनैतिक मैदान में है वही कभी ख़ुद को भारत से अलग रखना चाहते थे । जोधपुर के महारजा तो एक कदम आगे जाते हुए जनाआकांक्षाओ के विपरीत अपनी रियासत को पकिस्तान में विलय करने को राजी हो गए थे। इसमें भोपाल नरेश हमीदुल्ला खा व धौलपुर के महाराजा ने उसका साथ दिया । इन राजाओ ने हनुवंत सिंह की मोहम्मद अली जिन्ना से मुलाकात कराई। जब इसकी भनक कांग्रेस के नेताओं को लगी तो सरदार पटेल ने वी पी मेनन को जोधपुर की भारत में विलय की जिम्मेदारी सौपी । हनुवंत सिंह को कई तरह का लालच देकर भारत में विलय को राजी करा लिया। वायसराय के सामने विलय पत्र पर दस्तखत के बाद हनुवंत सिंह को लगा की उसे ठग लिया गया है तो उसने मेनन पर पेन पिस्टल तान दी । हनुवंत सिंह ने विलय पत्र पर दस्तखत भी पेन पिस्टल से ही किए थे । अलवर,भरतपुर व धौलपुर के रजा हिंदू महासभा के ज्यादा करीबी थे। अलवर के महाराजा ने आजादी के बाद डॉक्टर बी एन खरे को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया । खरे महात्मा गाँधी की हत्या के षड़यंत्र में भी शामिल था । उसकी इस भूमिका के चलते ही भारत सरकार को अलवर में हस्तक्षेप का मौका मिला और उसे हटाकर वी एन वेंकटाचार्य को यहाँ का प्रशासक नियुक्त किया गया । उधर भरतपुर का राजा संघ का ज्यादा करीबी था। उसने 15 अगुस्त को भरतपुर में खुशियां न मनाने का ऐलान किया। भारत सरकार से हुई संधि का उल्लंघन करते उसने भरतपुर में बड़े पैमाने पर अस्त्र- शस्त्र के कारखाने शुरू किए और वहां निर्मित हथियारों का प्रयोग जाटो व संघ कार्यकर्ताओं के मध्यम से मुसलमान विरोधी दंगो में किया गया।
राजस्थान के राजाओ की गद्दारी का यह केवल नमूना भर हैइस चुनाव में राजस्थान की जनता ऐसे राजघरानों के हाथो में अपनी बागडोर सौपेगी जिनका पूरा इतिहास ही जनविरोधी रहा है

विजय प्रताप
स्वतन्त्र पत्रकार
510, शास्त्री नगर
दादाबाडी , कोटा
राजस्थान
मो.नो.09982664458

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‘भारत माता की जय सुनिश्चित करें!” -आडवाणी

भारत का निर्माण करें ,विभाजन की शक्तियों को पराजित करें– आडवाणी

हिंदू हितों की पोषक बने राजनीती ,हिंदू अस्मिता की रक्षा करने वाली सत्ता बने !” – R.S.S

चुनाव अब अपने अन्तिम चरणों में प्रवेश कर रहे है । मतदान क्षेत्रो के एक और हिस्से में वोट डाले जायेंगे। मतदाता अपनी -अपनी पार्टिया चुनने में लगे हुए है ।
लेकिन इन सारी गतिविधियों के बीच एक पार्टी ऐसी भी है जो तय नही कर पा रही है कि आखिर वोटरों से क्या कहा जाए! अब तक मीडिया और अखबारों में साम्प्रदायिकता के जहरीले प्रचार और व्यक्तिगत चरित्र हनन ,वह भी अत्यन्त ही निम्न स्तर पर उतरकर, के अलावा भाजपा वोटरों से कुछ भी नही कह पाई है ।
ऊपर उल्लिखित नारों से पता चलता है कि भाजपा और उसका निर्देशक R.S.S अनिश्चितता और भयंकर दुविधा के दौर से गुजर रहे हैये दिलचस्प नारे और्गेनाइज़र और पांचजन्य के 12 और 19 अप्रैल के अंको में प्रकाशित किए गए है
आखिर ये नारे क्या दर्शाते है ?जब भाजपा ने अपना चुनाव शोषण पत्र जारी किया था और कई व्यक्तव्यप्रसारित किए थे तो उसे इस बात का कतई अंदाज नही था कि लोग इतनी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करेंगे औरउसकी साम्प्रदायिकता का इतने बड़े पैमाने पर विरोध होगा ,खास कर समझदार ,संतुलित और पढ़े लिखे लोगो द्वारा । भाजपा और संघ परिवार को लगा कि सांप्रदायिक विभाजन के उनके अभियान के समर्थन में लोग उमडे चले आयेंगे । लेकिन सच्चाई यह है कि ख़ुद वरुण गाँधी को सुप्रीम कोर्ट के सामने यह आश्वाशन देना पड़ा कि वे ”गैर जिम्मेदाराना ” तरीके से सार्वजनिक व्यक्तव्य नही देंगे जिससे कि सांप्रदायिक भावनाएं भड़के । तो कम से कम सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से सारे देश में साम्प्रदायिकता का जो कचरा फैलाया जा रहा था उस पर कुछ तो अंकुश लगाया जा सका है हालाँकि अन्य छद्म तारीको से ऐसा प्रचार जारी है ।
वरुण ने कहा कि उनके टेप फर्जी है और वे नही जानते कि उन्हें किसने बनाया (!) और वे भाषण देने के 12 दिनों बाद दिखाए जा रहे है। लेकिन यह सारा कुछ ग़लत बयानी है । इन विङीयो को तुंरत ही राष्ट्रिय टीवी नेटवर्को पर दिखाया गया ,और उनमें जो कुछ वरुण ने कहा है वह बिल्कुल ही असभ्य भाषा में ज़हरीली साम्प्रदायिकता उगली गई है।
वरुण ने अभी तक यह स्पष्ट नही किया है कि टेपों में प्रकट किए गए विचारों से वे सहमत है या नही और यही है मुख्य प्रश्न है । ओर्गेनाइज़र जैसे अखबारों ने बड़े ही हास्यास्पद तरीके से टेपों में वरुण कि लाइनों का अपना अर्थ पेश किया है यह दिखाते हुए कि उनके कहने का अर्थ ”यह नही वह था” ! टेपों के बाद दिए गए कई व्यक्तव्यों और भाषणों में वे अपने सांप्रदायिक विचारों कि पुष्टि करते है जिनसे साबित होता है कि उनके और उनकी पार्टी के यही विचार है ।

-अनिल राजिमवाले

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