उम्र की
सीढिया चढ़ते हुए,
जाने कब
किस सीढ़ी पर
छूट गया बचपन।
मन पर
बङ्प्पन के खोल चढाकर
चला आया हूँ मैं
इतनी दूर
फिर भी क्यों टीस उठती है
बार–बार,
उस बिछङे हुए बच्चे की याद?
बीते हुए बचपन में
फिर फिर लौट जाने की
क्यों होती है चाह?
अकेले में,
जब कभी आईने के सामने,
खुशी में त्यौहार में,
कभी –कभी भीड़ के सामने,
कहाँ से प्रकट हो जाता है वह?
पलके झपकते,
मुहँ चिढाते ,
बच्चो के साथ
फिर से बच्चा बना देता है मुझे।
जब भी कोई खुशी असह्य दुःख गहरा,
उतार देता है बङप्पन का नकाब
पल दो पल के लिए
बाहर निकल आता है बचपन
लेकिन बाकी सारे समय,
दिल के किसी अंधेरे कोने में
किसके डर से छिपा रहता है वह?
छटपटाता ,कसमसाता रहता है बचपन। –अनूप गोयल
छूट गया बचपन
मई 12, 2009 Loksangharsha द्वारा
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