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Archive for मई 14th, 2009

तीसरा रास्ता: तीसरे मोर्चे की मृग मरीचिका और सीपीआईएम

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इस संघर्ष के युग में हर किसी को गिरोहबंदी की सूझती है। जो गिरोह बना सकता है,वह जीवन के हर एक विभाग में सफल है,जो नही बना सकता ,उसकी कहीं पूँछ नही -कहीं मान नही। हम अपने स्वार्थ के लिए अपने जात और अपने प्रान्त की दुहाई देते है । अगर हम बंगाली है,और हमने दवाओ की दुकान खोली है ,तो हम हरेक बंगाली से आशा रखते है की वह हमारा ग्राहक हो जाए ,हम बंगालियों को देख कर उनसे अपनापन का नाता जोड़ते है और अपने स्वार्थ के लिए प्रांतीय भावना की शरण लेते है । अगर हम हिंदू है और हमने स्वदेशी कपड़ो की दुकान खोली है ,तो हम अपने हिंदुत्व का शोर मचाते है और हिन्दुवो की साम्प्रदायिकता को जगाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते है । अगर इसमें सफलता न मिली ,तो अपनी जाती विशेष की हांक लगते है । इस तरह प्रांतीयता और साम्प्रदायिकता की जड़ भी कितनी ही बुरइयो की भांति हमारी आर्थिक परिस्तिथि से पोषक रस खींच कर फलती फूलती रहती है। हम अपने ग्राहकों को विशेष सुविधा देकर अपना ग्राहक नही बनते , सम्भव है उसमें हमारी हानि हो , इसलिए जातीय भेद की पूँछ पकड़कर बैतरणी के पास पहुँच जाते है ।

-प्रेमचंद, 19 फरवरी 1934

(आतंकवाद का सच से साभार )

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जितना बढ़ चढ़ के आइना जाने॥
हुस्न क्या शै है कोई क्या जाने॥

किस की जुल्फों को छूके आई है
महकी
महकी हुई हवा जाने

मौत किसको मिली हयात किसे-

तुझसे बेहतर तेरी अदा जाने

ऐश वालो से पूछते क्या हो
लज्जत गम तो ये गदा जाने

यु तो रहते हो साथ साथ मगर
कब
बिछड जाए वो खुदा जाने

किस कदर तुमसे प्यार है भगवन
ये
मेरी अपनी आत्मा जाने

मैं वोराहीहूँ जो फजले खुदा
रास्ता
सिर्फ़ प्यार का जाने

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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