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Archive for जून 1st, 2009


ऐसे बीती जिंदगी किसी के प्यार के बिना।
जैसे नदिया बहती जाए इन्तजार के बिना ॥

कोरे सपने रंग को तरसे
तरुबाई तरसे मधुबन को –
रूप चांदिनी को मन तरसे
सुधि तरसे आलिंगन को-

ऐसे योवन का बसंत है बहार के बिना।
जैसे कोई प्रेम सुहागिनी हो श्रींगार के बिना॥

खुली पलक आमरण रूप का
नित नूतन करता रहता है –
आकुल मन तस्वीर बनाकर
रंग नए भरता रहता है-

ऐसे खूब कुछ सूना है किसी की मनुहार के बिना।
जैसे सपनो का महल हो आधार के बिना॥

साकी प्याले पीने वाले
मदहोशी की भीड़ लगी है
जीवन की इस मधुशाला में
दर्द अकेला प्रीत ठगी है

ऐसे साँसों की सरगम है झंकार के बिना।
जैसे बरखा की घटाएं हो फुहार के बिना॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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