चितिमय निखिल चराचर की,
विभूति ,मैंने अपना ली।
अंतस के तल में मैंने
विरहा की ज्योति जला ली॥
जो अग्नि प्रज्ज़वलित कर दी,
वह शांत अश्रु करते है॥
अब आंसू के जीवन में –
हम तिरते ही रहते है।
जीवन से लगन नही है,
इति से भी मिलन नही है ॥
अब कौन लोक है मेरा ?
चिंतन का विषय नही है॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ”राही”