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Archive for जून 21st, 2009


लघु स्मृति की प्राचीरों ने,
कारा निर्मित कर डाला ।
बिठला छवि रम्य अलौकिक
प्रहरी मुझको कर डाला ॥

पाटल-सुगंधी उपवन में,
ज्यों चपला चमके घन में।
वह चपल चंचला मूरत
विस्थापित है अब मन में॥

परिधान बीच सुषमा सी,
संध्या अम्बर के टुकड़े ।
छुटपुट तारों की रेखा
हो लाल-नील में जकडे॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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ले प्रेम लेखनी कर में
मन मानस के पृष्ठों में।
अनुबंध लिखा था तुमने
उच्छवासो की भाषा में॥

अनुबंध ह्रदय से छवि का
है लहर तटों की भाषा।
जब दृश्य देख लेती है
तब भटकती प्रत्याशा॥

उन्मीलित नयनो में अब
छवि घूम रही है ऐसे।
भू मंडल के संग घूमे,
रवि,दिवस,प्रात तम जैसे॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ”राही”

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श्रम के बलु ते भरी जाँय जहाँ गगरी -गागर ,बखरी बखरा ।
खरिहान के बीच म ऐसु लगे जस स्वर्ग जमीन प है उतरा ।
ढेबरी के उजेरे मा पंडित जी जहँ बांची रहे पतरी पन्तर।
पहिचानौ हमार है गांव उहै जहाँ द्वारे धरे छ्परी – छपरा॥

निमिया के तरे बड़वार कुआँ दरवज्जे पे बैल मुंडेरी पे लौकी।
रस गन्ना म डारा जमावा मिलै तरकारी मिली कडू तेल मा छौंकी ।
पटवारी के हाथ म खेतु बंधे परधान के हाथ म थाना व चौकी ।
बुढऊ कै मजाल कि नाही करैं जब ज्यावें का आवे बुलावे क नौकी॥
अउर पंचो! हमरे गाव के प्रेम सदभाव कै पाक झलक दे्खयो-

अजिया केरे नाम लिखाये गए संस्कार के गीत व किस्सा कहानी ।
हिलिकई मिलिकै सब साथ रहैं बस मुखिया एक पचास परानी।
हियाँ दंगा -फसाद न दयाखा कबो समुहै सुकुल समुहै किरमानी।
अठिलाये कई पाँव हुवें ठिठुकई जहाँ खैंचत गौरी गडारी से पानी॥

हियाँ दूध मा पानी परे न कबो सब खाय-मोटे बने धमधूसर ।
भुइयां है पसीना से सिंची परी अब ढूंढें न पैहो कहूं तुम उसर।
नजरें कहूँ और निशाना कहूँ मुल गाली से जात न मुसर।
मुखडा भवजाई क ऐसा लगे जस चाँद जमीन पै दुसर ॥

-अम्बरीष चन्द्र वर्मा ”अम्बर”

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