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Archive for अगस्त, 2009


व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमाउदधि आलिंगन
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन

जगती तेरा सम्मोहन,
युगयुग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकतीकाया,
सविता की आस पुरानी।

योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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मानवता , करुणा, आशा,
विश्वाश, भक्ति , अभिलाषा
अनुरक्ति, दया, सज्जनता,
चेरी है शान्ति , पिपासा

कलिकाल तमस का प्रहरी,
नित गहराता जाता है
मानव सदगुण को प्रतिपल,
कुछ क्षीण बना जाता है

आहुति का भाग्य अनल है,
है पूर्ण स्वयं जलने में
परहित उत्सर्ग अकिंचन,
अप्रति हटी गति जलने में

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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विश्व भोजपुरी सम्मलेन मारीशस में 29 अगस्त से 3 सितम्बर तक आयोजित हो रहा है जिसमें 16 देशों के भोजपुरी साहित्यकार , गायक ,लोक निर्तक हिस्सा लेंगेसम्मलेन के उद्घाटन सत्र में भोजपुरी टाईम्स का भी विमोचन किया जाएगाभारत से डॉक्टर आनंद तिवारी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल मारीशस रवाना हो चुका है

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है स्वतन्त्र जीव जगती का ,
बस स्वारथ से अनुशासित।
शाश्वत है सत्य यही है,
जीवन इससे अनुप्राणित

आहत है सभी दिशायें,
आहत धरती, जल, प्लावन
है व्योम इसी से आहत,
आहत है रवि शशि उडगन

शिशु अश्रु बेंचती है यह ,
ममता , विनाशती बंधन।
निर्धन का सब हर लेती,
करती अर्थी पर नर्तन

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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अभी हाल ही में (जून 2009 में) रूस के येकातेरिनबर्ग नामक शहर में ‘ब्रिक’ देशों का शिखर सम्मेलन हुआ। ‘ब्रिक’ का अर्थ है: ब्राजील, रूस, इण्डिया (भारत) और चीन। इन देशों के अंगे्रजी नामों के पहले अक्षरों को मिलाकर ब्रिक बनता है। इसके अलावा शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद ही शंघाई सहयोग समिति (एस0सी0सी0) की बैठक भी हुई। यह देशों का मिलाजुला संगठन हैं जिसमें रूस, चीन और भारत शामिल हैं।
उपर्युक्त सम्मेलन आज के विश्व और वैश्विक अर्थतंत्र में विकासमान देशों की बढ़ती भूमिका दर्शाते हैं। द्वितीय विश्व यु़द्ध के बाद साम्राज्यवादी संकट के फलस्वरूप अधिकतर पिछड़े देश आजाद होते चले गये। लेकिन इन नये आजाद देशों के सामने सबसे बड़ी समस्या थी आर्थिक पिछड़ेपन की, जो उन्हें राजनैतिक तौर पर भी स्थिर नहीं होने दे रही थी।
पिछड़े और विकासमान देशों की एक सम्पूर्ण श्रेणी ही उभर आई जिन्हें सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवाद से था। इन पिछड़े देशों के सामने कृषि, उद्योगों, भारी मशीनों, यातायात, बाजार, अर्थतंत्र इत्यादि के विकास की समस्याएं मँुंह बाए खड़ी थीं। संसाधन, स्रोत, धन एवं पूँजी तथा तकनीक कहाँ से आयेगी? ऐसे में समाजवादी देश सहायता को आगे आये। गुट निरपेक्ष आंदोलन का जन्म हुआ।
विकास की रणनीति:-
अपने अर्थतंत्रों का विकास करने के लिए पिछड़े देशों ने नई रणनीति अपनाई। इसलिए उन्हें विकासमान देश भी कहते हैं। कुल मिलाकर यह रणनीति समाजवादी देशों के साथ मिलकर अपने पैरों पर खड़े होने की अर्थात आत्मनिर्भरता की रणनीति थी। इसलिए यह साम्राज्यवाद विरोधी नीति थी और है। साम्राज्यवाद, खासकर अमरीकी साम्राज्यवाद, कभी भी नहीं चाहता है कि कोई भी विकासमान देश आर्थिक तौर पर मजबूत हो और आत्म निर्भर बने। इन विकासमान देशों में भारत भी शामिल है। उसकी आर्थिक और विदेश नीति हमेशा ही साम्राज्यवाद विरोध की रही है।
युद्धोत्तर काल में पिछले लगभग पाँच से छह दशकों में विकासमान देशों में भारी परिवर्तन आया है। यह गुणात्मक परिवर्तन है, बिल्कुल जमीन आसमान का। एक समय था जब इन पिछडे़ देशों को कर्जों और सहायता की भारी जरुरत हुआ करती थी। दुनिया में उनकी छवि सहायता माँगने वालों की थी। लोगों को विश्वास तक नहीं था कि वे कभी इस स्थिति से निकल भी पाएंगे।
बदलती भूमिका-
लेकिन आज समय बदला हुआ है। आज भी विकासमान देशों के सामने कई समस्याएँ हैं, लेकिन आज वे न सिर्फ सहायता पाते है बल्कि कई देशों को सहायता देने भी लगे है। आज विकासमान देश बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहे हैं जबकि कुछ ही समय पहले तक वे बड़े पैमाने पर आयात करते थे। आज वे न सिर्फ कच्चे मालों का बल्कि मशीनों तथा अन्य तैयार मालों का बड़े पैमाने पर निर्यात करने लगे हैं। भारत के कम्प्यूटर प्रोग्राम, कारें, मशीनें, कपड़े तथा अन्य सामान यूरोप और अमरीका के बाजारों में छाए हुए हैं, इसी प्रकार चीन के भी विकासमान देशों की पूँजी दूसरे देशों में लग रही है। विकासमान देश डब्लू0टी0ओ0 का महत्वपूर्ण गुट बनाते हुए अमरीका के विरूद्ध एकता कायम कर रहे हैं। इस कार्य में ब्राजील, भारत, चीन समेत कुल बीस देशों का गुट विश्व अर्थतंत्र में प्रभावी भूमिका अदा कर रहा है।
आज विकासमान देशों की विकास दर विकसित देशों से कही आगे निकल गई है। जहाँ विकसित देशों की दरें 2 प्रतिशत से 4 प्रतिशत के बीच हैं वहीं भारत चीन तथा कुछ अन्य विकासमान देश 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत की दर से विकास कर रहे हैं।
आज अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर विकासमान देश विश्व अथंतत्र में उचित कीमतों, बाजार तथा निर्यात में हिस्सेदारी उनके सामानों पर पाबंदियाँ हटाने और शुल्क कम करने इत्यादि और सामात्यतः भेद भाव समाप्त करने की माँग कर रहे है। आज विकासमान देश विश्व अर्थतंत्र में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनते जा रहे हैं।
विकासमान देशों का परस्पर सहयोग-
जी-20 और 8$5 के बाद ‘ब्रिक’ और शंघाई स0स0 महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं। ब्रिक ने माँग की? कि एक अधिक न्यायपूर्ण विश्व आर्थिक व्यवस्था कायम की जाये। सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा से लेकर अधिक विविध मुद्रा प्रणाली की माँग की गयी। विकासमान देशों तथा विश्व के इतिहास में यह एक नई घटना है। अब तक विश्व अर्थतंत्र अमरीकी, ब्रिटिश तथा अन्य उच्च औद्योगीकृत देशों की मुद्राओं से चल रहा था। लेकिन इन विकासमान देशों ने अपनी-अपनी मुद्राओं को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राएं बनाने की दिशा में कुछ कदम उठाना शुरू कर दिया है।
भारत समेत अन्य देशों ने ‘संरक्षणवाद’ का विरोध किया है अर्थात् साम्राज्यवाद के पक्ष में संरक्षण का। भारत एवं अन्य देशों के नेताओं ने विश्व आर्थिक मंदी के दौर में उचित कदम् उठाने की माँग की हैं। उन्होंने निर्णय लिया है कि संकट की इस घड़ी में वे एक दूसरे की मदद करेंगे। उन्होंने तय किया है कि वास्तविक अर्थतंत्र में परस्पर सहयोग बढ़ाया जाये। इस दिशा में सम्बद्ध देशों ने संयुक्त संगठन भी बना लिया है।
ब्राजील के नेता लूई इनासियों लूला का कहना है कि आज बदलते विश्व में उचित भूमिका अदा करना ‘ब्रिक’ राष्ट्रों के सामने बड़ी चुनौती है, उन्होंने ‘दोहा राउंड’ की समुचित समाप्ति की माँग की।
आज ‘ब्रिक’ देश विश्व अर्थतंत्र के विकास का 65 प्रतिशत पैदा करते हैं। दुनिया की लगभग आधी जनता इन देशों में रहती है ये देश विश्व का लगभग 40 प्रतिशत उत्पादन करते हैं।
उनके विकास की गति दुनिया में सबसे अधिक हैं, फलस्वरूप वे एशिया तथा विश्व के नये विकास इंजन हैं। अब ये देश कृषि प्रधान नहीं रह गये। वे अब अधिकाधिक औद्योगिक इलेक्ट्रानिक तथा अन्य आधुनिकतम क्षेत्रों में विकास कर रहें हैं।
विकासमान देशों में अब इतना आत्मविश्वास पैदा हो गया है कि वे ‘ब्रेटन वुड्स’ के जवाब में अपनी अलग मुद्रा व्यवस्था की बात कर रहे हैं। वास्तव में यह एक समानांतर व्यवस्था नहीं बल्कि बहु दिशावाद का विकास करके ‘ब्रिक’ तथा ऐसे अन्य देशों की मुद्राओं का विकसित देशों की अन्तराष्ट्रीय मुद्राओं के समकक्ष लाने तथा विश्व बाजार और मुद्रा व्यवस्था में अन्य के साथ कार्यशील मुद्रा विकसित करने का प्रयत्न हैं।
आज विकासशील देश बहुत बड़े परिवर्तन की कगार पर खड़े हैं।

-अनिल राजिमवाले
09868525812
लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित

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इसके विशाल पैरो में
मानव का आत्म समर्पण।
भावना विनाशी का क्रंदन
लघुतम जीवन का अर्पण ॥

घर काल जयी आडम्बर,
इस नील निलय के नीचे ।
भव विभव पराभव संचित,
लालसा कसक को भींचे ॥

निज का यह भ्रम विस्तृत है ,
है जन्म मरण के ऊपर।
यह महा शक्ति बांधे है,
युग कल्प और मनवंतर ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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युगयुग से प्यासे मन का , कुछ तो तुम प्यास बुझाते।
ह्रदयउपवन में एक बार ,प्रिय ! अब तो जाते॥

प्रतिक्षण रही निहार, अश्रुपूरित में आँखें राहें।
मधुर मिलन को लालायित ये विह्वल व्याकुल बाहें

दुःख भरी प्रेम की नगरी में, कुछ मधुर रागिनी गाते
ह्रदयउपवन में एक बार , प्रिय ! अब तो जाते

इस निर्जन उपवन में भी, करते कुछ रोज बसेरा
यहीं डाल देते प्रियवर ! मम उर में अपना डेरा॥

करते हम तनमन न्योछावर ,जीवनधनदान लुटाते
ह्रदयउपवन में, एक बार, प्रिय ! अब तो जाते।

सेज सजाकर तुम्हें सुलाते , निशदिन सेवा करते।
इक टक पलकें खोल, नयन भर तुमको देखा करते

निज व्यथित नयनवारिधि में, प्रिय ! स्नान कराते
ह्रदय उपवन में एक बार , प्रिय ! अबतो जाते

अब पलकपाँवडे राहो में , नयनो के बिछा दिए है।
पगपग पर हमने प्राणों के, दीपक भी जला दिए है॥

शून्यशिखर जीवनपथ हे, मंगलमय इसे बनाते
ह्रदयउपवन में एक बार, प्रिय! अब तो जाते

कट सकेंगी तुम बिन , जीवन की लम्बी राहें
रुक सकेंगी तुम बिन , दुःखदर्द भरी ये आहें॥

निर्जीव व्यथित मम उर में , आशा का दीप जलाते
ह्रदय उपवन में एक बार, प्रिय ! अब तो जाते॥

खुले रहेंगे सजल नयन , तृष्णा का अंत होगा।
मधुरमिलन जीवन , एक बार भी यदि होगा॥

विनती है यही तनमन की, श्वासों में बस जाते।
ह्रदयउपवन में एक बारप्रिय ! अब तो जाते॥

मोहम्मद जमील शास्त्री

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लालच की रक्तिम आँखें ,
भृकुटी छल बल से गहरी
असत रंगे दोनों कपोल ,

असीकाम पार्श्व में प्रहरी

मन में मालिन्य भरा है ,
स्वतक संसार है सीमित
संसृति विकास अवरोधी ,
कलि कलुष असार असीमित

सव रस छलना आँचल में ,
कल्पना तीत सम्मोहन
सम्बन्ध तिरोहित होते ,
क्रूरता करे आरोहन

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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यह कविता मह्जाल के श्री सुरेश चिपलूनकर साहब को सादर समर्पित


असहाय गरीब मरैं भूखे, राशन कै काला बाजारी
मौज करें प्रधान माफिया , कोटेदारों अधिकारी

भष्टाचारी अपराधिन से, कइसे देश महान बची
सरकारी गुंडन से बंधू, बोलो कैसे जान बची

जब गुंडे , अपराधी, हत्यारे, देश कै नेता बनी जई हैं
भष्टाचारी बेईमान घोटाले बाज विजेता बनी जई हैं

फिर विधान मंडल संसद, कै कइसे सम्मान बची
सरकारी गुंडन से बंधू, बोलो कैसे जान बची

अब देश के अन्दर महाराष्ट्र, यूपीबिहार कै भेदभाव
धूर्त स्वार्थी नेता करते, देशवासीयों में दुराव

कैसे फिर देश अखण्ड रही, कइसे राष्ट्रीय गान बची
सरकारी गुंडन से बंधू , बोलो कैसे जान बची

रक्षा कै जिन पर भार वही, अब भक्षक बटमार भये
का होई देश कै भइया अब, जब चोरै पहरेदार भये

कैसे बची अस्मिता जन की , कइसे आन मान बची
सरकारी गुंडन से बंधु , बोलो कैसे जान बची

देश कै न्यायधीशौ शामिल, हैं पी .एफ. घोटाले मा
नहा रहे हैं बड़ेबड़े अब, रिश्वत कै परनाले मा

जब संविधान कै रक्षक भटके, कइसै न्याय संविधान बची
सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची

साध्वी शंकराचार्य के, भेष में छिपे आतंकी
लेफ्टिनेंट कर्नल बनकर, विध्वंस कर रहे आतंकी

आतंकी सेना कै जवान ? फिर कैसे हिन्दुस्तान बची
सरकारी गुंडन से बन्धु ,बोलो कैसे जान बची

मठाधीश कै चोला पहिने, देश मा आग लगाय रहे
मानव समाज मा छिपे भेडिये , हिंसा कै पाठ पढाय रहे

नानक चिश्ती गौतम की धरती, कै कइसै पहचान बची
सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची

बलिदानी वीर जवानन कै, अब कइसै सच सपना होई
नेहरू गाँधी अशफाक सुभाष , कै कइसै पूर संकल्पना होई

नन्हे मुन्नों के होठन पर, फिर कैसे मुस्कान बची
सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची

मोहम्मद जमील शास्त्री

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‘22-23 जून 07 की रात जलालुद्दीहन उर्फ बाबू भाई के साथ मो0 अली अकबर हुसैन, अजीजुर्रहमान और शेख मुख्तार चारबाग लखनऊ, रेलवे स्टेशन किसी आतंकी वारदात को अजांम देने आए। बाबू भाई तीनों को वहींJustify Full रुकने के लिए कह, कहीं चला गया। 23 की सुबह चाय पीने के लिए जब वे तीनों बाहर आए तो टीवी पर चल रहे समाचार कि बाबू भाई गिरफ्तार, की खबर सुनने के बाद वे घबरा गए। इस आपा-धापी में उन लोगों ने रायबरेली जा रही एक जीप से पीजीआई के पास पहुंचे जहां टूटी हुई कोठरी की पिछली दीवार के पास गड्ढा खोद उसमें डेटोनेटर और हैंड गे्रनेड गाड़ दिया।’ थर्ड क्लास की जासूसी फिल्मों से ली गयी इस पुलिसिया पटकथा से पिछले दिनों तब पर्दा हटा जब पता चला कि अजीजुर्रहमान को 22 जून 07 को तिलजला कोलकाता में डकैती करने की साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर अलीपुर न्यायालय में पेश किया गया था। जहां न्यायालय ने उसे 26 जून 07 तक की पुलिस रिमांड में दे दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि जब अजीजुर्रहमान पुलिस की हिरासत में था तो वह कैसे तकरीबन हजार किलो मीटर की दूरी तय करके लखनऊ आ सकता था।
कहानी में आए इस नए मोड़ से यूपी एसटीएफ सकते में आ गयी है कि एक बार फिर से उसकी थुक्का-फजीहत होने जा रही है। यूपी के एडीजी बृजलाल इस पर कोई प्रतिक्रिया यह कहते हुए नहीं दे रहें हैं कि मामला कोर्ट में है। पुलिस की इस गैरजिम्मेदाराना हरकत पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एस आर दारापुरी कहते हैं कि इस तरह की फर्जी गिरफ्तारियां एसटीएफ की कार्यशैली बन गयी हैं। जिसके चलते सैकड़ों निर्दोष जेलों में सड़ने को मजबूर हैं। इसके पीछे वजह बताते हुए वे कहते हैं कि एसटीएफ को जिस तरह की खुली छूट मिली है, जो बहुत हद तक गैरकानूनी है, उससे ही इस तरह की स्थितियां उत्पन्न हुयी हैं। क्योंकि उनको इतने विशेषाधिकार मिले हैं कि उनके हौसले बुलंद हो गए हैं। ऐसे में वे पेशेवर अपराधियों की तरह लोगों को फर्जी मामलों में फसा रहे हैं या एनकाउंटर कर रहे हैं।
बहरहाल, सवाल यहां यह है कि इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक पुलिस को कहां से मुहैया हुआ। क्योंकि अजीजुर्रहमान कोई पहला शख्स नहीं है, इसके पहले आफताब आलम अंसारी जिसे हुजी का एरिया कमांडर और कचहरी धमाकों का मास्टर माइंड बताया गया था उसके पास से तो डेढ़ सौ कुंतल आरडीएक्स बरामदगी का दावा पुलिस ने शुरु में किया ; पुलिस से कोई कैसे जीते/1 अपै्रल 08 प्रथम प्रवक्ता द्ध। पर मात्र 22 दिनों में रिहाई के बाद यह सवाल गायब हो गया कि पुलिस को किस सरकारी या आतंकी संगठन से विस्फोटक मुहैया हुआ था।
दरअसल इस पूरी थ्योरी को गढ़ने के लिए यूपी पुलिस ने एक अभियान चलाया था। जिसका जिक्र उसने चार्जशीट में भी किया है। पर इस पुलिसिया अभियान का पर्दाफाश उसी समय हो गया था जब हरिद्वार से उठाए गए नासिर जिसकी गुमशुदुगी की रिपोर्ट और पेपरों में आयी खबरों से यह बात आ चुकी थी कि उसे एसटीएफ ने ही उठाया था। उसी नासिर को जब पुलिस ने 21 जून 07 के प्रेस कानफ्रेस में पेश किया तो पत्रकारों ने सवाल कर दिया कि क्या यह वही नासिर है जिसे ऋषिकेश से उठाया गया था। इस पर पुलिस सकते में आ गयी और तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए उसे वहां से हटा दिया और उस पर कुछ बोलने से इनकार कर दिया। ; आतंक, उत्पीड़न और वहशीपन यानी एसटीएफ! 16 जुलाई 08 प्रथम प्रवक्ता द्ध। बाद में आयी चार्जशीट में पुलिस ने उसे उसी दिन लखनऊ से गिरफतार करने का दावा किया।
हूजी के नाम पर पकड़े गए इन युवकों को पकड़ने के अभियान की कागजी शुरुवात 21 जून 07 से शुरु हुयी। जिसमें उसने नासिर को नाका से तो याकूब को हुसैनगंज थाना क्षेत्र लखनऊ से गिरफ्तार करने का दावा किया। नासिर की कहानी से ही मिलती जुलती याकूब की भी कहानी है। याकूब की पत्नी शमा बताती हैं कि 9 जून 07 को 2 बजे के तकरीबन याकूब अपने गांव तारापुर से नगीना के लिए गया, उसके बाद उसका कुछ अता-पता नहीं चला। वे बताती हैं कि 22 तारीख के अखबारों से उन लोगों को मालूम हुआ कि याकूब को पुलिस ने पकड़ लिया है।
पुलिसिया पटकथा के अनुसार नासिर और याकूब से पूछताछ में यह जानकारी हुयी कि जलालुद्दीन उर्फ बाबू भाई और नौशाद एक बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए लखनऊ में हैं। 22 जून 07 की रात के तकरीबन साढ़े ग्यारह बजे मुखबिर से सूचना मिली कि वे अमीनाबाद के किसी होटल में भारी मात्रा में विस्फोटक और हथियारों के साथ हैं और वे बस स्टैंड से कहीं बाहर निकलने की फिराक में हैं। इसके बाद क्या था, पुलिस ने सूचना के आधार पर इनकी घेरेबंदी की जिसमें पुलिस के साथ इनकी मुठभेड़ भी हुयी। जिसमें पुलिस अंततः सफल हुयी और रात के तकरीबन 2ः40 पर जलालुद्दीन और नौशाद को एके 47, पिस्टल और भारी मात्रा में विस्फोटक के साथ गिरफतार किया। इस गिरफ्तारी के बाद की घटना बड़ी दिलचस्प ह।ै पुलिस के अनुसार गिरफ्तारी के तत्काल बाद उन्होंने बताया ‘दो बांगलादेशी हमारे पीछे रिक्शे से आ रहे थे। शायद उन्होंने आपको देख लिया तो वे हमारे पीछे नहीं आए। वे हमारी मदद के लिए आज ही आए थे उनका नाम हम नहीं जानते, अजीज जानता है। क्योंकि वे लोग उसी के गुर्गे थे और हम सबको ट्रेनिंग के वक्त नाम नहीं बताया जाता।’ यहां गौर करने की बात है कि इन दोनों को अजीज का नाम मालूम था। दूसरी बात यह कि जिस जलालुद्दीन को हूजी का बहुत बड़ा मास्टर माइंड पुलिस ने बताया वह गिरफ्तारी के तुरंत बाद किसी रट्टू तोते की तरह सब कबूलने लगा। और उसका भरोसा करके पुलिस ने पीछे आ रहे दोनों लोगों का पीछा करने की कोशिश भी की। इतना ही नहीं इन लोगों ने अजीजुर्रहमान के बारे में यह भी बताया ‘अजीज और उसका भाई शहर से आरडीएक्स कमर के कहने पर हमारे साथ-साथ अन्य टेªनिंगशुदा लोगों को देते थे।’ यहां आरडीएक्स का ऐसे नाम लिया गया है जैसे वो किराने पर मिलने वाली कोई वस्तु हो। जलालुद्दीन का यहां एक और बयान कि अजीजुर्रहमान 22 जून 07 को ही लखनऊ से कोलकाता चला गया था, एक और अंर्तविरोध पैदा करता है। जो सुनवायी के दौरान ही प्रमाणित होगा कि वह पुलिस के दबाव में दिया गया बयान था कि खुद उसका।
इस पूरी घटना में अजीजुर्रहमान का इकबालिया बयान और उसके बयान पर उप अधिक्षक आर एन सिंह ने जो बरामदगी दिखायी वो काफी महत्वपूर्ण है। जिसमें उसने कहा कि जलालुद्दीन की गिरफ्तारी के बाद वह अपने साथियों के साथ विस्फोटक छुपाकर ‘इलाहाबाद होते हुए कलकत्ता चले गए थे, वहीं पकडे़ गए। लखनऊ की पुलिस हमें लखनऊ लाकर जेल में बंद कर दी।’ ये बयान स्पष्ट करता है कि यह अजीजुर्रहमान का नहीं बल्कि पुलिस का बयान है। दूसरा कि जिस तरह इसमें कहा गया कि उसे कोलकाता में पकड़ा गया वह स्पष्ट करता है कि अजीज के बारे में यूपी पुलिस उस तथ्य को कि वह अलीपुर में किसी दूसरे मुकदमें के तहत बंद है, नहीं बताना चाहती थी। क्योंकि इससे उसकी पूरी कहानी ही बिगड़ जाती क्योंकि एक ही व्यक्ति जो कोलकाता में पुलिस की अभिरक्षा में उसी दिन था वह कैसे लखनऊ पहुंच सकता था। आतंकवाद के नाम पर बंद कई निर्दोषों को छुड़ा चुके और कई बार अदालतों में सांप्रदायिक और लंपट वकीलों के शिकार बने वकील मो0 शोएब कहते हैं कि अजीजुर्रहमान ही नहीं ऐसे दर्जनों लड़के हैं जो पुलिस की अन्र्तविरोधी फर्जी पटकथाओं के शिकार हैं। ऐसे तमाम लोगों को वकील मिल जांए तो वे छूट सकते हैं पर एसटीएफ और पुलिस उनको वकील मिलने ही नहीं देते और अगर कोई उनका मुकदमा लड़ता है तो उन पर हमला करवाते हैं। वे कहते हैं कि अजीजुर्रहमान का मुकदमा उन्हें दिसंबर में मिला और मैंने सारी तफ्तीश कर जमानत अर्जी डाल दी है और वह बस चंद दिनों का सरकारी मेहमान है। बड़े अफसोस के साथ वे कहते हैं कि अजीज सिर्फ वकील न मिलने के चलते इतने दिनों तक जेल में बंद रहा उसके खिलाफ तो कोई सबूत ही नहीं बनता बल्कि उल्टे पुलिस के खिलाफ सबूत बन रहे हैं।
अजीजुर्रहमान ईंट भट्ठा मजदूर था। अजीज की पत्नी आरिफा बताती हैं कि इस घटना ने उनकी घर-गृहस्थी को बर्बाद कर दिया और वे दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं, क्योंकि अजीज ही एक कमाने वाला था। वे कहती हैं कि उनके पास तो वकील रखने तक का पैसा नहीं है। अजीज की बूढ़ी मां सफूरा बीवी पूछने पर कहती हैं कि खुदा के यहां देर है अंधेर नहीं, वह हमारे साथ न्याय करेगा।
पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ मानवाधिकार नेता चितरंजन सिंह कहते हैं कि पुलिस में जिस तरह फर्जी तरीके से लोगों को उठाने की प्रवृत्ति बढ़ी है उस पर अंकुश लगाने के लिए जरुरी है कि अगर कोई अभियुक्त छूटता है और पुलिस के चार्जसीट फर्जी निकलती है तो ऐसे में राज्य को ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और दंड देने की गारंटी करनी चाहिए। जो पुलिस वाले ऐसी घटनाओं में झूठी गवाही देते हैं उन पर फर्जी गवाही देने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

-राजीव यादव

लोकसंघर्ष पत्रिका में जल्द प्रकाशित

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