लालच की रक्तिम आँखें ,
भृकुटी छल बल से गहरी।
असत रंगे दोनों कपोल ,
भृकुटी छल बल से गहरी।
असत रंगे दोनों कपोल ,
असी–काम पार्श्व में प्रहरी ॥
मन में मालिन्य भरा है ,
‘स्व‘ तक संसार है सीमित ।
संसृति विकास अवरोधी ,
कलि कलुष असार असीमित ॥
सव रस छलना आँचल में ,
कल्पना तीत सम्मोहन।
सम्बन्ध तिरोहित होते ,
क्रूरता करे आरोहन
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही“
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