
निर्मम नर्तन है गति का ,
है व्यर्थ आस ऋतुपति की ।
छलना भी मोहमयी है,
यह रीती–नीति जगपति की॥
है व्यर्थ आस ऋतुपति की ।
छलना भी मोहमयी है,
यह रीती–नीति जगपति की॥
आंसू का क्रम ही क्रम है,
यह सत्य शेष सब भ्रम है ।
वेदना बनी चिर संगिनी,
सुख का तो चलता क्रम है॥
उद्वेलित जीवन मग में,
बढ़ चलना धीरे–धीरे ।
प्रणय, मधुर, मुस्कान, मिलन,
भर लेना मोती–हीरे ॥
–डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही‘
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