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Archive for सितम्बर 4th, 2009

मानव का इतिहास यही,
मानस की इतनी गाथा
आँखें खुलते रो लेना ,
फिर झँपने की अभिलाषा

जग का क्रम आनाजाना,
उत्थान पतन की सीमा
दुःखवारिद , आंसूबूँदें ,
रोदन का गर्जन धीमा

उठान देखा जिसने,
क्या पतन समझ पायेगा
निर्माण नही हो जिसका,
अवसान कहाँ आयेगा

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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आशा का सम्बल सुंदर,
या सुंदर केवल आशा
विभ्रमित विश्व में पलपल ,
लघु जीवन की प्रत्याशा

रंग मंच का मर्म कर्म है,
कहीं यवनिका पतन नही
अभिनय है सीमा रेखा,
कहीं विमोहित नयन नही

सत् भी विश्व असत भी है,
पाप पुण्य ही हेतु बना
कर्म मुक्ति पाथेय यहाँ,
स्वर्ग नर्क का सेतु बना

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेलराही

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कृपया फोटो पर क्लिक करने का कष्ट करें…….

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