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Archive for सितम्बर 27th, 2009


“उनका पूरा कर्मयोग सरकारी स्कीमों की फिलॉसफी पर टिका था । मुर्गीपालन के लिए ग्रांट मिलने का नियम बना तो उन्होंने मुर्गियां पालने का एलान कर दिया । एक दिन उन्होंने कहा कि जाती-पाँति बिलकुल बेकार की चीज है और हर बाभन और चमार एक है । यह उन्होंने इसलिए कहा की चमड़ा उद्योग की ग्रांट मिलनेवाली थी। चमार देखते ही रह गए और उन्होंने चमड़ा कमाने की ग्रांट लेकर अपने चमड़े को ज्यादा चिकना बनाने में खर्च भी कर डाली…उनका ज्ञान विशद था । ग्रांट या कर्ज देनेवाली किसी नई स्कीम के बारे में योजना आयोग के सोचने भर की देरी थी, वे उसके बारे में सब कुछ जान जाते ।”

श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी से

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अरी ! युक्ति तू शाश्वत ,
मोहिनी रूप फिर धर ले ।
अमृत देवो को देकर,
मोहित असुरो को कर ले॥

बुद्धि कभी, चातुर्य कभी,
विधि तू कौशल्य निपुणता।
युग-तपन शांत करने को,
है कैसी आज विवशता ॥

कल्याणी शक्ति अमर ते ,
निज आशा वि्स्तृत कर दो,
वातायन स्वस्ति विखेरे ,
महिमामय करुणा वर दो॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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