( चित्र : चर्चा हिन्दी चिट्ठो की से साभार )
असत्य पर सत्य की विजय का त्यौहार दीपावली एक महत्वपूर्ण सामाजिक पर्व है । बाराबंकी में इस वर्ष सरकार की लापरवाही से दो बार घाघरा नदी में कृतिम बाढ़ आ चुकी है । सितम्बर माह में भारत नेपाल सीमा पर बनकशा बाँध का पानी घाघरा नदी में छोड़ दिया गया जिससे लखीमपुर, सीतापुर व बाराबंकी में नदियों का पानी लाखो घरो के अन्दर दो-दो तीन-तीन फ़ुट भर गया । नदियों के किनारे के गावों में दस-दस फीट पानी आ गया और सब कुछ नष्ट हो गया । अब अक्टूबर माह में जो बची-खुची फसलें थी । फिर बनकशा बाँध ने पानी छोड़ा वो बाराबंकी में घाघरा नदी पर बने एल्गिन ब्रिज पर बने खतरे के निशान से 100 सेंटीमीटर अधिक पानी बहना शुरू कर दिया जहाँ कभी भी नदी का पानी नही पहुँचता था वहां भी धान की तैयार फसल उरद, गन्ना सहित सभी फसलें नष्ट हो गई है हजारो गावों में सांप बिच्छी जैसे खतरनाक जानवरों का राज्य हो गया है। काफ़ी लोग सांप काटने से मर रहे है । सड़क मार्ग गोंडा बहराइच रोड कई दिन तक बंद रही हैं । प्रशासन की तरफ़ से माचिस और नमक या थोड़ा अनाज दोनों बार देकर इतिश्री कर ली गई है प्रशासन की ह्रदय हीनता इस बात का प्रतीक है की वह हर साल इस तरह की प्राकृतिक आपदा का इन्तजार करता रहता है और इस तरह की आपदाओ में भी प्रशासन और दलाल लाखो रुपयों का वारा न्यारा करते है इस तरह की बाढ़ के पश्चात नदी के किनारे तटबंधो के बनने की बात उठती है करोडो और अरबो रुपयों के पत्थर कागजो पर आकार तटबंध बन जातें है ,केन्द्र सरकार व प्रदेश सरकार इस समस्या की तरफ़ स्थायी समाधान करने का प्रयाश नही करती है प्राकृतिक बाढ़ का मुकाबला नही किया जा सकता है किंतु कृतिम बाढ़ को रोका जा सकता है लेकिन शासन और प्रशासन की कमी का एक मद ख़तम हो जाएगा इसलिए लाखो करोडो लोगो की जिंदगियों से खेलकर इसका स्थायी समाधान नही किया जाता है । महंगाई के इस दौर में इन क्षेत्रो के लोगो के पास न फसलें बची है और न ही रुपया । भूख की ज्वाला कैसे शांत हो यह यक्ष प्रश्न है जानवरों व पक्षियों के भी खाने के लाले है । अच्छा यह होता की ज्योति पर्व हर साल यहाँ हो तो इसका स्थायी समाधान करना होगा अन्यथा यह यक्ष प्रश्न बना रहेगा की कैसे दीपावली हो ।
सुमन
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