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Archive for नवम्बर 15th, 2009

आतंकी घटनाओं के संबंध में विभिन्न जगहों से गिरफ्तार आरोपियों पर दर्ज मुकदमे

 

नाम

अहमदाबाद

ै सूरत

दिल्ली

मुबंई

जयपुर

अन्य

योग

सदिक षेख

20

 

15

 

5

 

1

 

 

हैदराबाद कोलकाता

 

54

 

आरिफ बदर

 

20

 

15

 

5

 

1

 

 

 

41

 

मंसूर असगर

 

20

 

15

 

5

 

1

 

 

 

41

 

मो सैफ

 

20

 

15

 

5

 

 

5

 

 

45

 

मुफ्ती अबुल बषर

 

21

 

15

 

 

 

 

बेलगाम, हैदराबाद

 

40

 

ैं सैफुर रहमान

 

20

 

15

 

 

 

6

 

 

40

 

कयामुद्दीन कपाड़िया

 

21

 

15

 

5

 

 

 

इंदौर

 

40

 

जावेद अहमद सागीर अहमद

 

21

 

15

 

 

 

 

 

36

 

गयासुद्दीन

 

21

 

15

 

 

 

 

 

36

 

र्


र् जाकिर षेख

 

 

20

 

15

 

 

1

 

 

 

36

 

ैुंसाकिब निसार

 

20

 

15

 

5

 

 

 

 

40

 

र्


र् जीषान

 

 

20

 

15

 

5

 

 

 

 

40

 

 

पुलिस ने उनकी चार्जषीट को भी तोड़मरोड़ कर पेष किया। अहमदाबाद व सूरत के 35 मामलों में पुलिस ने 60 हजार पेजों की आरोप पत्र पेष किया। मुबंई अपराध ब्यूरो ने 18 हजार पेजों का आरोप पत्र पेष किया। इसी प्रकार जयपुर विस्फोट के मामले में 12 हजार पेजों का आरोप पत्र पेष किया गया। सभी आरोप पत्र हिंदी, मराठी व गुजराती में हैं यदि यह मामले सुप्रीम कोर्ट तक जाते हैं तो आरोप पत्रों को अंग्रेजी में अनुवाद करने में और ज्यादा परिश्रम व समय की जरूरत होगी।

 

 

विभिन्न मामलों में दर्ज मुकदमे व आरोप पत्र

षहर

केसों की संख्या

आरोपी

गिरफ्तार

आरोप पत्र के पेज

अहमदाबाद व सूरत

 

36

 

102

 

52

 

60ए000

 

मुंबई

 

1

 

26

 

21

 

18009

 

जयपुर

 

8

 

11

 

4

 

12ए000

 

दिल्ली

 

7

 

28

 

16

 

10ए000

 

 

अभियोजन पक्ष इन सभी मामलों में चष्मदीदों की भीड़ भी जुटा चुका है। हर केस में 50-250 चष्मदीद गवाह हैं। अहमदाबाद व सूरत केस में तो कई दोशी विस्फोट के पहले से ही जेलों में हैं। उदाहरण के लिए सफदर नागौरी, षिब्ली, हाफिज, आमील परवेज सहित 13 अन्य को 27 मार्च 2008 को ही मध्य प्रदेष से गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हें अहमदाबाद व सूरत मामले का मुख्य आरोपी बताया गया। इसी तरह राजुद्दीन नासिर, अल्ला बक्ष और मिर्जा अहमद जून 2008 से कर्नाटक पुलिस की हिरासत में थे, लेकिन उन्हें भी अहमदाबाद व सूरत मामलों का दोशी बताया गया।

एडवोकेट षाहिद आजमी कहते हैं कि साजिष रचने का आरोप एक हथियार की तरह है जिसे पुलिस कभी भी किसी भी मामले में प्रयोग कर सकती है। आफकार-ए-मिल्ली से बातचीत में वह कहते हैं कि अफजल मुतालिब उस्मानी जिसे 24 सितम्बर को मुंबई से गिरफ्तार दिखाया गया, उसे वास्तव में 27 अगस्त को लोकमान्य टर्मिनल से पकड़ा गया था। वह अपने घर वह अपने घर से गोदान एक्सप्रेस पकड़ मुंबई पहुंचा था। हमने संबंधित अधिकारियों को तुरंत टेलीग्राम से इसकी सूचना दी लेकिन उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। 28 अगस्त को उसे मेट्ोपोलिटीन मजिस्टे्ट के सामने पेष किया गया। लेकिन मुंबई अपराध ब्यूरो के अनुरोध पर मजिस्टे्ट ने उसकी गिरफ्तारी और रिमांड को रजिस्ट्र में दर्ज नहीं किया। इसी तरह सादिक षेख को 17 अगस्त को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उसे 24 अगस्त को विस्फोटक, हथियारों व पांच अन्य के साथ गिरफ्तार दिखाया गया। विषेशों के अनुसार पकड़े गए आरोपियों के किसी भी मुकदमें का निस्तारण दो साल से कम समय में नहीं होगा। अलग-अलग मामलों में अलग-अलग जगहों से पकड़े गए आरोपियों के केस और लंबे खिचेंगे।

सवाल उठता है कि एक बूढ़ा पिता अपने बेटे को छुड़ाने के लिए कब तक लड़ेगा। गिरफ्तारी के एक साल बाद भी न तो आरोपियों पर आरोप तय हो सके हैं न ही मुकदमे षुरू हो सके हैं। उन्हें खुद को निर्दोश्ज्ञ साबित करने में और कितना समय लगेगा? न्याय की धीमी गति को देखकर लगता है कि वह केस का अंत देख सकेंगे? यह सादिक षेख, अबुल बषर, मंसूर असगर, आरिफ बद्र या सैफुर रहमान के ही सवाल नहीं बल्कि उन 200 युवकों के सवाल भी हैं जो पिछले एक साल से जेलों में सड़ रहे हैं।

 

अनुवाद व प्रस्तुति- विजय प्रताप

 

लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित

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