आप कहते हैं तो कहा करें! मैं अपने दोस्तों और अपनी बात जरूर करूंगा, अभी हाल ही में मेरे दोस्त सत्येन्द्र राय सपत्नीक मेरे घर आये और हम दोनों दम्पत्तियों के बीच बात शुरू हुई। मेरी पत्नी की तरह सत्येन्द्र राय की पत्नी कामकाजी महिला हैं। दोनों प्राप्त होने वाला अपना वेतन अपने घर पर खर्च करती हैं। यह बात मेरे साथ मेरे मित्र भी स्वीकार करते हैं। घर का खर्च उठाना ही नहीं बल्कि घर के कामकाज की भी जिम्मेदारी दोनों बखूबी संभालती हैं। यह तारीफ मैं अपनी और अपने मित्र की पत्नी को खुश करने के लिए नहीं कर रहा हूं बल्कि उनके सशक्तीकरण पर कुछ सवाल उठा रहा हूं।
हम दोनों मित्र अपनी पत्नियों को शायद ही कभी कुछ कहते हों सिवाय उनकी तारीफ के, क्योंकि वह तारीफ के लायक हैं। जब बात शुरू हुई तो हम दोनों ने खुले मन स्वीकार किया कि हम खुले मन से निःसंकोच महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं लेकिन अपने घर की महिलाओं की समर्पण की भावना को सहज रूप मेे स्वीकार कर लेते हैं और उनको जी-तोड़ मेहनत से बचाने का प्रयास नहीं करते। इसके पीछे हमारी सोच यह भी हो सकती है कि परिवार रूपी गाड़ी के दोनों पहिये सुगमता से चलते रहें तो गाड़ी रूकेगी नहीं। पति और पत्नी परिवार रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं जिन्हें मिलकर गाड़ी को खींचना होता है।
सच यह है कि परिवार रूपी गाड़ी को चलाने के लिए पहियों को दुरूस्त रखना जरूरी है बिल्कुल उस तरह से जैसे गाड़ी के पहियों को समय-समय पर तेल और ग्रीस देकर चिकना किया जाता है। परिवार की इस गाड़ी के पहियों को पति-पत्नी का पारस्परिक व्यवहार, एक दूसरे के प्रति प्रेम और एक-दूसरे पर भरोसा ही इन पहियों की रफ्तार में तीव्रता लाने के लिए चिकनाई का काम करता है। महिला सशक्तीकरण से आशय यह कभी नहीं लेना चाहिए कि महिला या पुरूष प्राकृतिक नियम को बदल देंगे। प्रकृति ने नर और नारी दोनों को अलग-अलग बनाया ही है इसलिए कि दोनों प्राकृतिक नियमों के अनुसार अपना-अपना काम करेंगे, लेकिन यह आवश्यक है कि दोनों में पारस्परिक सहयोग बना रहे। दोनों में से कोई एक-दूसरे को हेय दृष्टि से न देखें और न ही वह एक-दूसरे को अपमानित करें। दोनों के लिए एक-दूसरे का सम्मान आवश्यक है लेकिन यह सम्मान प्रेमपूर्ण होना चाहिए।
अक्सर यह देखा गया है कि शादी से पूर्व नर और नारी में एक-दूसरे के प्रति प्रेम होता है और वह प्रेम कभी-कभी इतना परवान चढ़ता है कि दोनों एक दूसरे से शादी कर लेते हैं शादी से पहले लड़का लड़की के लिए आसमान से तारे तोड़कर लाने के लिए तैयार रहता है और लड़की भी लड़के पर अपनी जान न्योछावर करने को तत्पर दिखती है। शादी से पूर्व के इस प्रेम में एक-दूसरे के प्रति समर्पण की भावना होती है लेकिन अक्सर ऐसी शादियों में कटुता आते हुये भी देखा है। ऐसा केवल इसलिए कि पुरूष प्रधान इस समाज में शादी के बाद पति मर्द बन जाता है और वह अपनी पत्नी पर अपनी प्रधानता कायम करने का प्रयास करता है, जिसे पत्नी बर्दाशत नहीं कर पाती और परिवार रूपी इस गाड़ी के पहियों की चिकनाई यानी पारस्परिक प्रेम, एक-दूसरे के प्रति समर्पण की भावना और एक-दूसरे के प्रति विश्वास समाप्त हो जाता है। पत्नी की यह आकांक्षा कि शादी से पहले जैसा व्यवहार उसका पति करता था, शादी के बाद भी करता रहेगा, पूरी नहीं होती और इस प्रकार निराश होकर वह या तो दुखी होकर साथ निभाती है या फिर साथ छोड़ देती है और परिवार टूट जाता है। परिवार टूटने का एक कारण और भी हो सकता है कि पति धन का लोभी हो और दहेज न मिलने के कारण वह दामपत्य जीवन से अलग हो जाता है। दहेज भी हमारे समाज की एक बढ़ी बीमारी है और सिर्फ बीमारी नहीं बल्कि संक्रामक बीमारी है। जो भारतीय समाज के हर पंथ में जड़ें मजबूत करती जा रही है। इसका समूल नाश होना चाहिए लेकिन इसका नाश करने के लिए अब तक कोई एन्टीबायटिक दवा नहीं तैयार हो पायी है। इसकी एक ही एन्टीबायटिक दवा है, इसको समाप्त करने की हमारे मन में तीव्र इच्छा पैदा हो। मां-बाप दहेज के बिना अपने बच्चों की शादी करने का संकल्प लें, लड़के दहेज रूपी भीख लेने से बचें और लड़कियां ऐसे परिवार में शादी करने से मना कर दें जहां दहेज की मांग की जाती हो। दहेज की इसी लानत ने हमारे देश के समाज को 1400 वर्ष पूर्व अरब देश के समाज सक बद्तर बना दिया है। 1400 साल पहले अरब देशों में लड़कियों को पैदा होते ही जिन्दा गाड़ दिया जाता था ताकि उनके मां-बाप को किसी के सामने गिड़गिड़ाना न पड़े या सिर न झुकाना पड़े। आज हमारे देश के समाज ने गर्भ में ही लड़कियों को मार दिया जाता है और इस अपराध में नर-नारी बराबर के दोषी हैं। यह काम केवल इसलिए किया जाता है कि लड़की पैदा होने पर उनके सिर पर दहेज का भार पड़ेगा और लड़की के बाप को अपनी पगड़ी लड़के और उसके बात के चरणों में रखना होगा। कहां हैं वो महिला सशक्तीकरण की बात करने वाले लोग जो इस संक्रामक रोग को समूल नष्ट करने के लिए तैयार हों और सिर्फ तैयार न हों बल्कि इसके विरोध में लड़ाई का बिगुल फूंक दें। अन्यथा एक दिन वो आयेगा जब समाज में लड़कियों का संकट होगा और यह समाज पतन की और बढ़ेगा।
नारी सशक्तीकरण आन्दोलन चलाने वाले लोग यह बात भूल जायें कि नारी सशक्तीकरण का अर्थ पुरूष प्रधान समाज को समाप्त कर नारी प्रधान समाज स्थापित करना है। उन्हें हमेशा यह बात याद रखनी होगी कि समाज न पुरूष प्रधान हो और न नारी प्रधान बल्कि समाज ऐसा हो जिसमें नर-नारी सामंजस्य बना रहे और न तो नर नारी के सिर पर पैर रखकर चले और न ही नारी नर को कुचलने के लिए प्रयासरत हो, इसी में समाज की भलाई है और यही है नारी सशक्तीकरण का मूलमंत्र है।
मुहम्मद शुऐब एडवोकेट
मोबाइल- 09415012666
loksangharsha.blogspot.com
आर्थिक आत्मनिर्भरता, असली समानता की राह के मूल में है…
बेहतर आलेख…
Mein Hindi mein type karna chahati hoon par nahin janti kaise. Is liye English mein tippani kar rahi hoon. Beautiful views.
Please pay attention to the changing face of dowry. These days people are claiming they have not taken any dowry rather they force the bride’s family to spend lakhs on the decorations of the marriage venue, welcome gifts, food and drinks. That way they force conspicuous consumption that is neither useful to the new couple, in particular for the bride as she has nothing to hold on to in times of need.
Unless we try to check our need to keep up with the Jones and
APKA LKH ACCHA LAGA
bahut achhe,,,,,,,,
koi pti ko pit ta hai to uske khilaf kya krva hi ki ja skti hai
[…] नारी सशक्तीकरण का मूलमंत्र November 2009 5 comments 3 […]
jab koi dustachar kisi ashay nari per atyachar karta hai to aise dust vyakti k sath wohi karna cahiye jo usne ek ashay pe kiya.
मुहम्मद शुऐब एडवोकेट
ke vicharo se sahmat hu.
आप की लेख बहुत अच्छा है
ghghhfhfhfhfghfghfghfggff
vichar hon to eise jo behla de ankhon mein pani aur dil mein jwala
be brave