अंत में,
बंगलुरु स्टेडियम के बाहर हुए बम ब्लास्ट के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए मेरठ के इमरान, काशिम तथा बिजनौर के सुनील मामूली अटैची चोर निकले ।
सुमन
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Archive for अप्रैल, 2010
साइबर का सबसे बड़ा घोटाला
Posted in loksangharsha on अप्रैल 23, 2010| Leave a Comment »
प्रधानमंत्री की दोस्ती
Posted in loksangharsha on अप्रैल 22, 2010| Leave a Comment »
अभी ताज़ा बयान है हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह कि उनकी दोस्ती ईरान के साथ है और ये दोस्ती अक्षुण रखने के लिए वह हर हाल में ईरान के साथ हैं। ऐसा ही दावा भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व0 चन्द्रशेखर ने भी इराक के साथ किया था और इराक के साथ दोस्ती बनाये रखने का दम भरते रहते थे। आज से नहीं सदैव से भारत फिलिस्तीन के साथ रहा है और फिलिस्तीन की हर सम्भव सहायता करने का दम भरता रहा है। कुछ ऐसा ही चरित्र अमेरिका का फिलिस्तीन के साथ रहा है और वह बराबर कहता रहा है कि फिलिस्तीन को वह इजराइल के हाथों बर्बाद नहीं होने देगा; लेकिन नतीजा सबका सामने है।
जिस वक्त इजराइल फिलिस्तीन बर्बरतापूर्ण हमले करता है, आम नागरिकों का संहार करता है, अस्पतालों और नागरिक क्षेत्रों पर हमले करके बेगुनाह और जिन्दगी से जूझ रहे बीमारों का संहार करता है, कुल मिलाकर खून की होली खेलता है। ऐसे वक्त पर अमेरिका बोल उठता है कि इजराइल गलत कर रहा है और वह उसे ऐसा नहीं करने देगा, लेकिन मामला ज्यों का त्यों बना रहता है। इजराइल की बर्बता बढ़ने पर अमेरिका भाषा बदली हुई है और वह फिलिस्तीन को इंसाफ दिलाने की बात कर रहा है।
अब देखिये भारत सरकार का व्यवहार, कथनी और करनी का अन्तर। दोस्ती फिलिस्तीन के साथ है लेकिन मदद इजराइल की। फिलिस्तीन कमजोर पड़ता है इसलिए मदद इजराइल से। भारत सरकार इधर काफी दिनों से फिलिस्तीन के साथ दोस्ती समाप्त करके इजराइल के साथ दोस्ती बढ़ाए हुए है। सुरक्षा हथियारों की खरीदारी देश के लिए घातक टेक्नोलाॅजी (चाहे वह किसी क्षेत्र में ही क्यों न हो), इजराइल की खूफिया एजेन्सी मोसाद की मदद, उससे प्रशिक्षण, सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करना भी भारत सरकार के एजेण्डे में है लेकिन दोस्ती और हमदर्दी फिलिस्तीन के साथ ही है।
देखा है भारत सरकार की दोस्ती इराक के साथ भी। भारत के प्रधानमंत्री कहते नहीं थकते थे कि भारत पूरी तरह इराक के साथ है। एक तरफ अमेरिका इराक की ताकत की जांच रासयनिक हथियारों की जांच के बहाने करके तत्कालीन इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के बड़बोलेपन की हकीकत जानना चाहता था और एशिया में अपना एक ठिकाना बनाने के लिए प्रयासरत था। इसमें वह कामयाब हुआ और हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री बराबर यह कहने के बावजूद कि वह अमेरिका की सैन्य सहायता नहीं करेंगे, वह चाहे किसी भी प्रकार की क्यों न हो अमेरिकी लड़ाका विमानों को ईंधन देते रहे, इसे क्या कहा जाए, अमेरिका के दबाव में काम करना या और कुछ!
अब परखना है अपने वर्तमान प्रधानमंत्री के दावे को, मनमोहन सिंह जी ने अभी कहा है कि वह पूरी तरह ईरान के साथ हैं और ईरान के साथ किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाने के खिलाफ हैं। अभी बार-बार डेविड कोलमैन हेडली को अपनी कस्टडी में लेने का उनका दावा सफल नहीं हो सका है, अमेरिका के बुलावे पर वह हाजिरी देकर वापस आ गये हैं, अपनी बात मनवाने का दम उनके अन्दर नहीं है (हां, अमेरिका की हर बात मानने को वह तत्पर रहते हैं)। अमेरिका के साथ यह दोस्ती, दोस्ती तो नहीं कही जा सकती, उसे तावेदारी का नाम अवश्य दिया जा सकता है। एक तावेदार अपनी दोस्ती उस देश के कब तक कायम रख सकता है जबकि वह जिसके साथ दोस्ती का दम भरता है उस देश का दुश्मन नम्बर एक है, जिसका कि भारत के प्रधानमंत्री तावेदार हैं। मेरी नेक सलाह है कि प्रधानमंत्री जी ईरान के साथ दोस्ती का दावा करने के बजाय अपने देश की सम्प्रभुता बचाये रखें। यही देश के प्रति वफादारी है और दोस्ती भी।
मोहम्मद शुऐब एडवोकेट
ब्लॉग उत्सव 2010
Posted in loksangharsha on अप्रैल 22, 2010| Leave a Comment »
सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,
जब तक 1000 पोस्ट न लिख ली जाए, किसी ब्लॉगर को सफलता असफलता के बारे में सोचना नहीं चाहिए. रवि रतलामी
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/1000.html
अंतरजाल पर कविता की दुनिया कविता का बाजार :अरविन्द श्रीवास्तव
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_21.html
डॉ॰ कविता वाचक्नवी की दो कविताएं
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_6873.html
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_4878.html
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_4610.html
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_2784.html
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_4674.html
हमें गर्व है हिंदी के इस प्रहरी
http://shabd.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_21.html
अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।
-सुमन
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केक को खा के सिवइयों का मजा भूल गये
Posted in loksangharsha on अप्रैल 21, 2010| Leave a Comment »
हम ने सुना है कि यात्रियों केा गिरहकट एक दूसरे के हाथ बेच लिया करते थे, बोलियाँ लगवाकर नीलाम करते थे, बेचारे मुसाफिर को खबर तक न होती थी। अब क्रिकेट प्रेमियों की भी जेब किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कटती है। आप कहेंगे कि हम यह नहीं मानते, न मानिये, यह तो मानेंगे कि आई0पी0एल0 (इण्डियन प्रीमियर लीग) जो बी0सी0सी0आई0 की एक उप समिति है, ने बड़ी बड़ी बोलियों पर मैचों की नीलामी की है। अब आप खुद सोचिये कि नीलामी छुड़ाने वाले घाटे का सौदा तो करेंगे नहीं, जितना खर्च करेंगे, उससे ज्यादा कहीं न कहीं से प्राप्त करेंगे।
इतनी सी बात से आप यह सूत्र पा गये होंगे कि आई0पी0एल0 के कमिश्नर ललित मोदी और विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर के बीच झगड़ा किस बात का था और सुनंदा पुष्कर का क्या किस्सा है। सभी अपनी अपनी बचत में एक दूसरे की पोल खोल रहे थे और यह जनता है कि सब जानती है।
इस संक्षेप को अगर विस्तार दिया जाय तो कहानी लम्बी हो जायेगी काफी खुलासा हो चुका है।
बात पूछोगे तो बढ़ जायगी फिर बात बहुत।
बस थोड़ा और स्पष्ट कर दूं।
टवेंटी-20 मैंचेों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आई0पी0एल0 को मिला। तीन वर्ष पहले जब आई0पी0एल0 की आठ टीमों की नीलामी हुई, क्रिकेट जगत के साथ साथ कार्पोरेट जगत में भी हलचल मची। नई दो टीमों पुणे और कोच्चि की नीलामी पिछली आठ से भी अधिक थी।
अब थुरूर के विदेश राज्यमंत्री पद से जब इस्तीफा ले लिया गया तो मोदी के आरोपों का और भी खुलासा हो गया। सुनन्दा ने भी रेंदेयु से इस्तीफा दिया तथा यह भी सच्चाई सामने आ गई कि थुरूर ही के कारण उन्हें 19 प्रतिशत भागीदारी तथा 70 करोड़ की धनराशि मिली थी। जब आई0पी0एल0 की ब्राण्ड वैल्यू 4 अरब डालर से अधिक बढ़ी तो इससे ऐसे ऐसे राजनेताओं ने दिलचस्पी ली, जिनको क्रिकेट का ककहरा तक ज्ञात नहीं है। आई0पी0एल0 की फ्रेंचाइजी टीमों ने पूँजी बाजार का रूख किया और सट्टेबाजी भी खूब की, क्रिकेट व्यापार बन गया और क्रिकेट प्रेमियों के क्रेज़ को भुनाया गया।
सरकार ने इस्तीफ़ा लेने से पूर्व अपनी एजेन्सियों द्वारा सरकारी पता करा लिया, बी0 सी0 आई0 पर भी दाग़ देखे गये, अब वह भी जाँच के घेरे में है।
अब इसका दूसरा पहलू भी देखियों, क्रिकेट प्रेमी होना भी ‘स्टेट्स सिम्बल’ बन चुका है, इनके कई वर्ग हैं, एक वर्ग उन बडे़ आदमियों या अभिजात्य वर्ग के युवाओं का है जो विलासिताओं के लिये अपने बड़ों द्वारा अर्जित धन को लुटाने के बहाने ढूढ़ते रहते हैं, दूसरा वर्ग उन छुटभैय्ये युवाओं का है जो धनी युवाओं की चाटुकारिता हेतु अपनी छोटी सम्पत्तियों का वारा न्यारा करके अपने को धनियों जैसा दिखाना चाहते हैं और उन्हीं की बगल में बैठना चाहते हैं। तीसरा वर्ग उन बेरोजागार ग्रामीण तथा शहरी युवाओं का है जो अपनी देशी बातों पर गर्व के बजाय हीनता का भाव रखता है। तथा विदेशी चीजों का दीवाना है। वह कबड्डी के बजाय अपने का क्रिकेट प्रेमी दिखाना पसन्द करता है। अकबर इलाहाबादी के सुपुत्र जब इंगलैण्ड पढ़ने गये तो उनमें यही भावना आ गई थी, अतः अकबर ने कविता रूप में एक पत्र भेज, जिसकी एक पंक्ति इस समय मुझे याद आ गई-
यदि मुझे दकियानूसी न समझे तो क्या मैं यह कहने की हिम्मत करूं कि भारतीय गरीब बच्चों के लिये तो इस झूठे क्रेज से बेहतर तो मुंशी प्रेम चन्द का गुल्ली डण्डा था, जिसमें खर्च भी नहीं था और खुली हवा भी मिलती, अब तो बच्चे बंद कमरों में टी0वी0 से चिपके रहते हैं, स्वास्थ्य बनने के बजाय बिगड़ता है, तथा पढ़ाई लिखाई एवं घर के कामकाज भी कई कई दिन तक प्रभावित होते हैं सरकार खिलौना पकड़ा देती है या यूं कहिये कि नशे की गोली दे देती है जिससे वह मस्त होकर अपनी समस्याये भूल जाते हैं वे ऐसे आलसी बनते हैं कि न तो काम करते हैं, न ही सड़क पर निकल कर सरकार से काम मांगते हैं उल्टे सरकार की जय जय कार करते हैं क्रिकेट प्रेमी कृपाया मुझे क्षमा करें।
डॉक्टर एस.एम हैदर
पाकिस्तान की हठधर्मी
Posted in loksangharsha on अप्रैल 20, 2010| 1 Comment »
26.11.2008 को हमला हुआ भारत के शहर मुम्बई में कई स्थानों पर। पुलिस द्वारा एक आतंकी अज़मल आमिर कस्साब को जिन्दा गिरफ्तार करने का दावा किया गया। यह जांच करना कि अज़मल आमिर कसाब कौन है, कहां से और कैसे आया, सम्बन्धित मुकदमे के विवेचक का काम था जो उन्होंने किया। उसकी संलिप्तता पर निर्णय न्यायालय को देना है जिससे मुझे कोई मतलब नहीं, इसलिए कि उसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। इसी मुकदमे में दो और लोगों को अभियुक्त बनाया गया जिनके नाम क्रमशः फहीम अरशद अन्सारी और सबाउद्दीन हैं। सबाउद्दीन को उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 ने 10.02.2008 को लखनऊ से और फहीम अरशद अन्सारी को 10.02.2008 को रामपुर से गिरफ्तार करने का दावा उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 द्वारा किया गया, जो गिरफ्तारी के बाद लखनऊ व बरेली जेल में रखे गये और बराबर मुम्बई पर हुए हमले की तारीख तक उन्हीं जेलों में रहे, फिर भी उन्हें मुम्बई हमलों का अभियुक्त बताकर उनके विरूद्ध मुकदमे कायम किये गये और उन मुकदमों का परीक्षण मुम्बई की विशेष न्यायालय में हुआ। परीक्षण पूरा हो चुका है, बहस समाप्त हो चुकी है, निर्णय शेष है लेकिन यह सब होते हुए भी पाकिस्तान ने रट लगा रखी है कि अज़मल आमिर कस्साब और फहीम अन्सारी को उसके सुपुर्द किया जाए। घटना घटित होती है भारत में अभियुक्तों पर अभियोग है भारत की आतंकी घटना में शामिल रहने का, इन अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तान भूभाग में कोई अपराध कारित करने का आरोप नहीं है और पाकिस्तान में अपराध न कारित होने के कारण इन अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तान की अदालत में कोई मुकदमा नहीं कायम किया जा सकता, फिर भी हठधर्मी है पाकिस्तान की, कि इन अभियुक्तों को उसके सुपुर्द किया जाए।
मुम्बई की आतंकी घटना में संलिप्तता बतायी जाती है डेविड कोलमैन हेडली की जो इस समय अमेरिका की गिरफ्त में है। यह वही डेविड कोलमैन हेडली है जिसके सम्बन्ध सी0आई0ए0 से बताए गये हैं। इस डेविड कोलमैन हेडली को भारत द्वारा अमेरिका से दबी जुबान में मांगा गया है, कभी अमेरिका ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर उसे भारत को दिया जा सकता है और कभी बिल्कुल इसका उल्टा कहा गया है। अगर डेविड कोलमैन हेडली की संलिप्तता मुम्बई के 26.11.2008 की आतंकवादी घटना में पायी जाती है तो उसके प्रत्यावर्तन के लिए भारत द्वारा प्रयास किया जाना आवश्यक है क्योंकि वह भारत का अपराधी है। अगर पाकिस्तान भारत के अपराधी अज़मल आमिर कस्साब और फहीम अरशद अन्सारी को मांगता है तो उसकी ये हठधर्मिता डेविड कोलमैन हेडली के लिए अमेरिका के प्रति क्यों नहीं दिखाई देती? इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान अमेरिका के सामने घुटने टेक कर रहता है और उसी की शह पर वो भारत के सामने सीना तानकर हठधर्मी करता है।
अपराधिक घटना भारत भूभाग पर घटित होती है, संलिप्तता पाकिस्तानी नागरिक और एक समय में सी0आई0ए0 के एजेन्ट रहे व्यक्ति की पायी जाती है, ऐसी स्थिति में विवेचना का अधिकार केवल हमारे देश को है। संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ का अधिकार हमारे देश की विवेचना करने वाली विवेचना एजेन्सी को है और यदि किसी विदेशी राष्ट्र में साक्ष्य पाये जाने की उम्मीद होती है तो उस साक्ष्य को ग्रहण करने का अधिकार भी हमारे देश की विवेचना करने वाली एजेन्सी को हैय लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हुआ, घटना घटित होती है भारत में, विवेचना करती है अमेरिका की एफ0बी0आई0। प्रक्रिया को ताक पर रखकर घटना की चश्मदीद गवाह बतायी जाने वाली अनीता उदैया को एफ0बी0आई0 उठा ले जाती है अमेरिका और फिर वापस छोड़ जाती है लेकिन हमारे देश की सार्वभौमिकता इतनी बड़ी घटना पर चुप्पी साध लेती है। सम्प्रभुता एक अवयव है, देश का सरकार दूसरा अवयव है उसी का, भूमि और आबादी भी उसी के अवयव हैं लेकिन हमारी सम्प्रभुता को समाप्त करके देश को अपंग किया जाता है फिर भी हमारा एक अवयव जिसको सरकार के नाम से जानते हैं चुप्पी साध लेता है, फिर क्या करे ये भूभाग जिसके पास जु़बान नहीं है और आबादी जिसके हम अंग हैं डर के मारे उसकी जु़बान पर ताला लग जाता है। हम भी पाकिस्तान की तरह निरिह हैं क्योंकि जिस भाषा में पाकिस्तान हमसे बात करता है हम उसकी ही भाषा में उससे बात करते हैं बल्कि पाकिस्तान दुराग्रही होता है जिसको हम चरित्रगत नहीं कर पाते हैं और पाकिस्तान की भांति हम भी अमेरिकी साम्राज्य के सामने झुके रहते हैं, कभी-कभी हल्की सी आवाज़ इन्साफ के लिए बाहर आती है जैसाकि अभी ओबामा के साथ की गई मुलाकात में हमारे प्रधानमंत्री की आवाज बाहर आयी लेकिन फिर भी हम मजबूर हैं साम्राज्यवाद के समक्ष।
वाह रे पाकिस्तान! घटना तुम्हारे नागरिक हमारे घर में घुसकर कारित करें और फिर भी तुम उन्हें अपने घर ले जाने की जिद पर अड़े हुए हो। फहीम अरशद अन्सारी को किस कारण से तुम अपने देश ले जाना चाहते हो यह समझ से परे लगता है क्योंकि वह तुम्हारे देश का नागरिक भी नहीं है, वह नागरिक तो है भारत का। उसके खिलाफ तुम्हारे पास कोई मुकदमा भी नहीं है तो किस आधार पर तुम उसे ले जाना चाहते हो। यह फहीम अरशद अन्सारी तो 10.02.2008 को 00ः10 बजे रामपुर में उ0प्र0 एस0टी0एफ0 के हाथों गिरफ्तार होना दिखाया गया है और उसके पास से तमाम चीजों के अलावा मुम्बई के नौ नक्शे लाइनदार कागज पर कलम से बनाये हुए और एक सादे कागज पर पेंसिल से बनाये हुए बरामद किया जाना दिखाया गया है। 10.02.2008 को रामपुर में बरामद किये गये नक्शों के आधार पर मुम्बई की घटना में भी उसे जोड़ दिया गया और कहा गया कि उसने घटना कारित करने के लिए नक्शे उपलब्ध कराये जबकि वह नक्शे मुकदमा अपराध संख्या-210/08 अन्तर्गत धारा 420/467/468/471/121ए थाना कोतवाली रामपुर में रखा गया और उसी नक्शे के आधार पर बाद में मुम्बई में भी फहीम अरशद अन्सारी और सबाउद्दीन को अभियुक्त बनाया गया और वहां उनके विरूद्ध परीक्षण हुआ। उस नक्शे को मुम्बई की घटना से जोड़ने के लिए फहीम अन्सारी को तथाकथित रूप से जानने वाले एक गवाह नारूद्दीन महबूब शेख़ को अभियोग पक्ष द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसने न्यायालय में अपने बयान में कहा है कि जनवरी, 2008 में वह काठमाण्डू घूमने गया था जहां अचानक उसकी मुलाकात फहीम अरशद अन्सारी से हुई जिसे वह बचपन से जानता था। मुलाकात पर फहीम अरशद अन्सारी उसे अपने कमरे पर ले गया और कमरे में उसने सबाउद्दीन से परिचित कराया जिसने फहीम अरशद अन्सारी से पूछा कि क्या फहीम ने लकवी द्वारा सौंपा काम पूरा कर लिया, जिस पर फहीम ने अपने बैग से कागज निकालकर सबाउद्दीन को सौंपा और सबाउद्दीन को कागज देते वक्त कागज नीचे गिर गया जिसको गवाह ने नक्शे बताये हैं। नक्शों को देखकर महबूब शेख़ ने फहीम से पूछा भी कि क्या उसने नक्शे बनाने का कारोबार शुरू कर दिया है जिसका जवाब फहीम ने नहीं दिया लेकिन सबाउद्दीन ने कहा कि उसके कुछ दोस्त पाकिस्तान से आने वाले हैं दोस्तों को जरूरत है, जिसपर महबूब शेख़ ने कहा कि नक्शे तो आसानी से प्राप्य हैं फिर उसे नक्शे तैयार करने की क्या जरूरत पड़ी, जिस पर सबाउद्दीन ने बताया कि बाजार में मिलने वाले नक्शों में सभी सूचना सही नहीं होती, इसलिए सही सूचना प्राप्त करने के उद्देश्य से यह नक्शे तैयार कराये गये हैं। इस प्रकार वह नक्शे जिनके आधार पर मुम्बई पर आतंकवादी हमला होना बताया जाता है काठमाण्डू में फहीम अरशद अन्सारी द्वारा सबाउद्दीन को जनवरी, 2008 में सौंप देने के बाद फिर उसी के पास से 10.02.2008 को कैसे बरामद हुए और फिर बरामद होने के बाद एस0टी0एफ0 के पास और एस0टी0एफ0 द्वारा न्यायालय में दाखिल कर देने के बाद न्यायालय की कस्टडी में रहते हुए मुम्बई आतंकवादी घटना में कैसे प्रयोग में लाये गये, यह सवाल जवाब तलब हैं और इनका जवाब न होते हुए भी पाकिस्तान हठधर्मी कर रहा है, फहीम अरशद अन्सारी को अपनी हिरासत में लेने की, जो जायज़ नहीं है और किसी भी आधार पर भारत के दोषियों को ले जाने का अधिकार पाकिस्तान को नहीं प्राप्त है।
मोहम्मद शुऐब एडवोकेट
कानून के रक्षक ही भक्षक बन गए हैं
Posted in loksangharsha on अप्रैल 19, 2010| 1 Comment »
उत्तर प्रदेश में कानून के रक्षक पुलिस विभाग के लोग आये दिन थानों में बने यातना गृहों में लोगों को इतनी यातनाएं देते हैं कि मौत हो जाती है। कल सीतापुर व एटा जनपद में पुलिस हिरासत में दो व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। थानों का प्रभारी अधिकारी उपनिरीक्षक होता है और कोतवाली का इंचार्ज निरीक्षक होता है। इन थानों की व्यवस्था देखने के लिए पुलिस उपाधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पुलिस उप महानिरीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक और अंत में पुलिस महानिदेशक होता है। इन थानों को उप जिला मजिस्टेट जिला मजिस्टेट कमिश्नर, डिप्टी सचिव गृह, संयुक्त सचिव गृह व प्रमुख सचिव गृह होता है। सरकार स्तर पर गृहमंत्री व मुख्यमंत्री होते हैं। इतनी लम्बी चौड़ी कतार निरीक्षण करती रहती है जिसका खर्चा अरबों रुपये होता है और इसके बाद भी पुलिस हिरासत में मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। पुलिस की स्तिथि संगठित अपराधी गिरोहों जैसी हो गयी है। आम आदमी थाने जाने में कतराता है वहीँ अपराधियों की सैरगाह थाना होता है। थानों के परंपरागत अपराध से स्थायी मद से आये होती है जिसका बंटवारा ऊपर से नीचे तक होता है। लोकतान्त्रिक समाज बनाये रखने के लिए आज सख्त जरूरत है कि कानून के रक्षकों द्वारा किये जा रहे अपराधों पर नियंत्रण किया जाए।
ब्लॉग उत्सव 2010
Posted in loksangharsha on अप्रैल 19, 2010| Leave a Comment »
सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,
सादर प्रणाम,
आज दिनांक १९.०४.२०१० को ब्लोगोत्सव-२०१० के अंतर्गत प्रकाशित पोस्ट का लिंक
ब्लोगोत्सव-२०१० : मिले सुर मेरा तुम्हारा
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_18.html
ब्लोगोत्सव-२०१० तीसरे दिन के कार्यक्रम में आपका स्वागत है
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_6687.html
ब्लोगोत्सव-२०१० : मैंने देखा है बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_5630.html
ब्लोगोत्सव-२०१० : आईये अब ज़रा काव्य की ओर मुड़ते हैं
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_19.html
कविता में छिपे दर्द को महसूस करने के लिए आईये चलते हैं….
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_4681.html
ब्लोगोत्सव-२०१० : आईये अब काव्य पाठ का आनंद लेते हैं
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_6274.html
श्रेष्ठ पोस्ट श्रृंखला के अंतर्गत आज श्री रवि रतलामी का आलेख
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_1325.html
ब्लोगोत्सव-२०१० :आज के कार्यक्रम की सम्पन्नता
http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_8952.html
हिन्दी ब्लोगिंग ने एक उत्तेजक वातावरण का निर्माण किया है : शकील सिद्दीकी
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_19.html
प्रश्नों के आईने में….(एक संस्मरण )
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_7315.html
निर्मला कपिला की चार कविताएँ
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_3005.html
ओम आर्य की दो कविताएँ
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_3556.html
सुनिए श्री अनुराग शर्मा की कविता -“गड़बड़झाला” उनकी आवाज़ में
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_5367.html
पहला सुख निरोगी काया : अलका सर्वत मिश्रा
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_4663.html
उत्सव गीत : चिट्ठाकारी में नया इतिहास रचने आए हैं
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_3684.html
हिन्दी हैं हम ……हिन्दी हमारी शान है !
http://shabd.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_19.html
अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।
-सुमन
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जहां बाजू सिमटते हैं, वहीं सय्याद होता है।
Posted in loksangharsha on अप्रैल 18, 2010| Leave a Comment »
डा0 इकबाल ने कभी अपनी एक कविता की पंक्ति में कहा था कि यूनान, मिस्र, रोम सभी मिट गये लेकिन हिन्दुस्तान का नामो निशान अब भी बाकी है। आज की बात अगर कही जाय तो सच यह है कि हम में उभरने की संभावनायें देखकर अनेक देश हम को मिटाने के लिये तरह-तरह की चालें चल रहे हैं।
पड़ोस के और दूर के देश भी कभी खुलकर और कभी छुपकर हम पर वार करते हैं। पड़ोस की दास्तान मालूम ही है, पाकिस्तान से कई युद्ध भी हुए, कई बार सुलह हुई, ताशकन्द और शिमला में बाते हुई, आगरा में कोशिश हुई, लाहौर बस यात्रा की गई लेकिन बात वहीं की वहीं रही। तिब्बत तथा दलाई लामा को लेकर चीन से खटापटी जो 1962 से शुरू हुई अब भी किसी न किसी रूप में जारी है। श्रीलंका से भी तमिलों व शान्ति सेना को लेकर दिलों में सफाई नहीं आ सकी। बंगला देश से कभी बनती है कभी घुसपैठ और पानी को लेकर बात बिगड़ जाती है। नेपाल हमारा मित्र था लेकिन प्रचण्ड को लेकर तनाव गले की हड्डी बना।
अब दूर के कुछ देशों की बात करते हैं, नेहरू के जमाने में अरबों से अच्छी निभ रही थी फिर इस्राईल से पैंगे बढ़ी, सम्बंधों में वह बात नहीं रह गई। ईरान हमारा पुराना और पक्का मित्र था, परन्तु इस रास्ते पर हम कभी एक कद़म चुपके से आगे रखते हैं तो अमेरिकी दबाव में दो कदम पीछे पिछड़ने पर मजबूर हो जाते है।
पश्चिमी शाक्तियों ने हमको ही नहीं पूरी दुनिया को उंगलियों पर नचाया है, पहले इंगलैण्ड आगे था, अब नेतृत्व अमेरिका के हाथ में है। यह सब बातें जो मैं कह रहा हूँ शंकाए या अशंकायें नहीं है न ही नकारात्मक सोच है और न ‘स्काई इज़ फालिंग’ जैसी कोई बात है। इन बातों के स्पष्ट प्रमाण है। पुरानी बातों के लिये इतिहास की किताबें देखिये। नई और सामाजिक बातों के लिये आजकल के अखबार ही काफी है। विदेशी हस्तक्षेप अन्याय और सीनाजोरी के बस कुछ छोटे छोटे उदाहरणों पर ध्यान दीजिये-
यह बात आश्चर्य जनक भी है और दुखद भी कि विदेशी अपने यहाँ भी हम पर जुल्म करते हैं और हमारे देश में आकर भी हमारे सीने पर मूंग दलते हैं-एक तरफ़ ऑस्ट्रेलिया में सौ से अधिक भारतीयों पर जानलेवा हमले हुए, दूसरी तरफ हमारी शराफ़त देखियें कि राजा जी पार्क में ढाई सौ से अधिक विदेशियों ने दुगड्डा स्रोत में काफी दिन पूर्व घुसपैठ कर के पूरा एक गांव ही बसा लिया था, मीडिया की पहल पर पार्क निदेशक रसाईली ने बड़ी मुश्किल से क्षेत्र को समझा बुझाकर खाली कराया।
हस्तक्षेप की तीसरी घटना पुरूलिया में हथियार गिराने की है। 1995 का यह मामला अब तक हल न हो सका, डेनमार्क के नागरिक नील्स हाल्क्स नें पाचं रूसियों और एक ब्रिटिश नागरिक के साथ मिलकर यह घटना अंजाम दी थी। प्रत्यर्पण का वादा तब ही किया गया जब उल्टे भारत ही से कुछ शर्तें मनवाई गई, पहली यह कि उसे सज़ाये मौत नहीं दी जायेगी, दूसरी यह कि बुलाये जाने पर उसे फिर डेनमार्क भेज दिया जायेगा।
अब सब से ताज़ी घटना हेडली से सम्बंधित है-सभी को मालूम है कि पाकिस्तान प्रायोजित मुम्बई की दर्दनाक आतंकी हमले की योजना बनाने में उसका बड़ा रोल था और हमले से पूर्व यह अमरीकी नागरिक भारत के कई शहरों में आया गया तथा रहा था। यद्यपि अमेरिका आतंकवाद को मिटाने में भारत को सहायता देने के बराबर जबानी दावे करता है परन्तु हेडली के प्रत्यर्पण की बात जाने दीजिये केवल पूछताछ करने तक की इजाजत नहीं दे रहा है। भारत की जांच टीम तो एक बार अमेरिका गई भी परन्तु बैरंग लौटा दी गई। जो बात विदेश सचिव या विदेश मंत्री स्तर पर तय हो जाना चाहिये थी, वह इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि उसके हल करने की याचना मनमोहन सिंह को ओबामा से उस समय करना पड़ी जब वह परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में भाग लेने के लिये अमेरिका गये।
सारांश यह है कि सरकारें हमेशा जनता को यही आभास देती है कि गलती दूसरों की है, जनता भी बिना सोचे सरकारी ढोल पर थिरकने लगती है, यदि कोई अपने देश की आलोचना करे तो उसकी देश भक्ति खतरे में पड़ती है। उक्त सभी मामलों में हमारी गलतियां कम नहीं है, हमारी नीतियों में बहुत छेद है। बहरहाल यह समझना चाहिये कि-
-डा0 एस0एम0 हैदर
ब्लॉग उत्सव 2010
Posted in loksangharsha on अप्रैल 17, 2010| Leave a Comment »
सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,
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अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य: जब चूहे बोलेंगे खूब राज खोलेंगे http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_5781.html
गिरीश पंकज के व्यंग्य:हम तो मूरख जनम के http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_9722.html
श्री समीर लाल जी बता रहे हैं “उड़न तश्तरी” की लोकप्रियता का राज…….. http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_4903.html
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हमें गर्व है हिंदी के इस प्रहरी पर http://shabd.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_17.html
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ब्लोगोत्सव-२०१० यानी सामूहिक सद्भाव का सार्वजनिक प्रदर्शन http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_16.html
अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।
-सुमन
loksangharsha.blogspot.com
किसी मज़लूम के खून की बू आती है
Posted in loksangharsha on अप्रैल 17, 2010| 1 Comment »
हर तरफ दहशत है सन्नाटा है
जबाँ के नाम पर कौम को बाँटा है
अपनी अना कि खातिर इसने मुद्दत से
मासूमो को कमजोरो को कटा है
तुम्हे तो राज हमारे सरो से मिलता है
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है
किसान कह के हकारत से देखने वाले
तुम्हे अनाज तो हमारे घरों से मिलता है
हमारा देश करप्शन की लौ में जलता है
धर्म हर रोज नया एक-एक निकलता है,
पुलिस गरीब को जेलों में डाल देती है,
मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है
तुम्हारे अज्म में नफरत की बू आती है
नज्मों नसक से दूर वहशत की बू आती है,
हाकिमे वक्त तेरी तलवार की फ़ल्यों से
किसी मज़लूम के खून की बू आती है
तारिक कासमी
उन्नाव जिला कारागार से