गरीब व्यक्ति शायद प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर ले लेकिन उससे आगे पढ़ाने का खर्च आम आदमी बर्दाश्त कर पाने में समर्थ नहीं है। निम्न मध्यम वर्गीय व्यक्ति हाईस्कूल और इण्टर तक अपने बच्चों को पढ़ा पाने में समर्थ हो पाता है, लेकिन उससे ऊंची शिक्षा दिला पाना उसकी सामथ्र्य से बाहर है। उच्च मध्यम श्रेणी का व्यक्ति अपना श्रम बेच पाने में कुछ समर्थ सा दिखता है और यही वर्ग देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार में सहायक सिद्ध होता है क्योंकि यह जाने-अनजाने उच्च और ऊंची पूंजीपति वर्ग दलाली और चाटुकारिता में लगा रहता है। अगर देखा जाए तो यह वर्ग अपनी आय से ज्यादा खर्च करके भी बचत कर लेता है और अपनी आय से ज्यादा खर्च कर बचत कर पाना ही भ्रष्टाचार का धोतक है।
सरकारी कॉलेज नहीं के बराबर रह गये हैं। सहायता प्राप्त कॉलेज इक्का-दुक्का हैं, लेकिन शिक्षण-प्रशिक्षण के कारखानें और दुकाने इतनी ज्यादा खुल गई हैं कि उन्हें खरीदने के लिए होड़ सी लगी रहती है। शिक्षा के इस व्यापार में मांग और पूर्ति का भी सिद्धान्त भी नहीं लागू हो पाता है इसलिए कि पूर्ति कितनी भी बढ़ जाए उसका दर कम नहीं होने को आता और कहीं दर में कमी आती है तो शिक्षा का स्तर घट जाता है और वह केवल इस कारण कि पढ़ाने वाले ही निम्न स्तर के होते हैं।
वाह रे हमारी सरकार, मुफ्त और समान शिक्षा देकर अपने नागरिकों को समान अवसर देने के सिद्धान्त को नकार कर कुछ परिवारों तक शिक्षा को सीमित कर देना चाहती है और देश में केवल तीन वर्ग बनाने की तैयारी कर रही है पहला-शासक वर्ग जिसमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां (अपने देश के औद्योगिक घरानों को मिलाकर), दूसरा तबका पहले तबके का दलाल और सेवक और तीसरा तबका देश की शासित प्रजा। हमारी सरकार अपने देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सिर्फ उद्योग में ही लाकर संतुष्टि नहीं मिली तो उसने शिक्षा जगत में भी विदेश (शैक्षिक बहुराष्ट्रीय कम्पनी) को स्थापित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। इसलिए कि सरकार में शामिल लोग पीढ़ी दर पीढ़ी या तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और दूसरे देशों का दलाल बनकर रहना चाहते हैं या फिर उन्हें आशा है कि वह भी एक दिन उनके साथ सहभागी बनेंगे और फिर शासक कहलाएंगे। यही कारण है कि शिक्षा का व्यापारीकरण किया जाना।
मोहम्मद शुऐब एडवोकेट
loksangharsha.blogspot.com
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