सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी कौसर बी की हत्या की जो असलियत सामने आई है, उसे जान कर संविधान और उस पर आधारित कानून के राज में आस्था रखने वाले नागरिकों का दिल दहल जाना स्वाभाविक है। पुलिस के आला अफसरों ने अंडरवल्र्ड के गुंडों को मात करने वाले अंदाज में दोनों की हत्या की और उसे मुठभंेड़ प्रचारित कर दिया। यह सब राज्य सरकार के गृह राज्यमंत्री अमित शाह की सरपरस्ती और आदेश पर हुआ। अमित शाह गुजरात के मुख्यमंत्री के चहेते हैं। चार्जशीट में शाह पर हत्या के साथ अपहरण, जबरन वसूली, बंधक बनाने, सबूत मिटाने आदि के आरोप हैं। 26 नवंबर 2005 को गुजरात पुलिस ने सोहराबुद्दीन को मुठभंेड़ में मार गिराने का जो दावा किया था, उसकी हकीकत का रोंगटे खड़ा कर देने वाला ब्यौरा प्रेस में आ चुका है। सोहराबुद्दीन की हत्या के बाद उसकी पत्नी कौसर बी और घटना के चश्मदीद गवाह तुलसी प्रजापति को भी पुलिस ने मार दिया। सामने आए ब्यौरे से यह साफ है कि भाजपा के कथन में अगर फर्जी मुठभेंड़ में मारा गया सोहराबुद्दीन ‘आतंकवादी’ था तो अमित शाह उसके भी उस्ताद हैं। इस सारे खुलासे के बाद कोई नादान ही यह विश्वास करेगा कि पूरे प्रकरण में नरेंद्र मोदी की मिलीभगत नहीं थी।
पुलिस और गृहमंत्री के इस कृत्य पर किसी भी मुख्यमंत्री को चिंतित और शर्मसार होना चाहिए था। लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री को न चिंता है, न शर्म। पार्टी हाईकमान के दबाव में उन्होंने अमित शाह से इस्तीफा तो दिलवाया लेकिन साथ ही उन्हें पूरी तरह पाक साफ और कानून का पालन करने वाला भला नागरिक बताया। उनके मुताबिक सीबीआई ने कांग्रेस के कहने पर अमित शाह के खिलाफ मामला गढ़ा है। जाहिर है, मोदी की नजर में अमित शाह के अलावा वे चैदह पुलिस अधिकारी और अन्य आरोपी भी निर्दोष हैं जिनके खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की है।
नरेंद्र मोदी सीबीआई की जाँच के मामले को हिन्दू बनाम मुसलमान और केंद्र बनाम गुजरात राज्य बनाने में लगे हैं। अपने संविधान और भारत विरोधी भाषणबाजी में वे गुजरात की अस्मिता के साथ गंाधी और पटेल जैसे नेताओं को खींच कर लाते हैं। नरेंद्र मोदी के इस रवैये को उनकी पार्टी भाजपा का पूरा समर्थन प्राप्त है। भाजपा हाई कमान ने अमित शाह के इस्तीफे का दबाव इसलिए बनाया ताकि संसद के बाहर और संसद में वह कांग्रेस पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगा सके। हालाँकि सभी जानते हैं कि इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को यह मामला सौंपा था और 31 जुलाई तक चार्जशीट दाखिल करने का आदेश दिया था। भाजपा ने सीबीआई के दुरुपयोग का सवाल तब नहीं उठाया था, क्योंकि उसे विश्वास था कि अमित शाह की संलिप्तता के सारे सबूत नष्ट कर दिए गए हैं और पुलिस वालों में कोई सरकारी मुखबिर नहीं बनेगा। नरेंद्र मोदी पर पार्टी का पूरा विश्वास रहता ही है।
अपनी प्रतिक्रिया में नरेंद्र मोदी ने अफजल गुरु की फाँसी के मामले को उठा कर एक बार फिर साफ कर दिया है कि कांग्रेस अगर मुस्लिम वोटों की राजनीति खेलती है तो वे हिंदू वोटों की राजनीति के खुले खिलाड़ी हैं। दरअसल, मोदी के मुँह खून लग चुका है। 2002 में सांप्रदायिक उन्माद जनित हिंसा का नेतृत्व करने के बावजूद वे दो बार चुनाव जीत चुके हैं। हालाँकि उनकी संलिप्तता का अनेकशः पूरा खुलासा हो चुका है, वे जानते हैं देश में उनके प्रशंसकों की कमी नहीं है। इस आशय के लेख अखबारों और पत्रिकाओं में छपते हैं कि मोदी को ‘नरसंहार पुरुष’ के रूप में देखना बंद कर, ‘विकास पुरुष’ के रूप में देखा जाना चाहिए। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नजर में नरेंद्र मोदी का बड़ा महत्व है। उनके नव उदारवादी एजेंडे को परवान चढ़ाने में जो भी काम आता है, उनका परम प्रिय होता है। भले ही वह सांप्रदायिक फासीवादी, भ्रष्टाचारी, झूठा और मक्कार हो।
मोदी की तारीफ में लेख लिखने वाले टिप्पणीकार और उनकी प्रशंसा करने वाले प्रधानमंत्री हालाँकि यह नहीं बताते कि आखिर गुजरात में ऐसा कौन-सा विकास हो गया है जिसके एवज में वे संविधान और मानवता तक को लात मारने के लिए तैयार हैं? क्या वहाँ गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और बीमारी खत्म हो गईं है? जाहिर है, गुजरात में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। न ही आगे हो सकता है। हाँ, विकास की आड़ में साम्प्रदायिक फासीवाद बढ़ता जाता है और एक दिन उस हिन्दू नागरिक समाज को भी उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी जो इस बीच नरेंद्र मोदी का पक्षधर बना हुआ है।
-प्रेम सिंह
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