उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव चल रहे हैं। तीन चरणों में मतदान पूरा हो चुका है। चौथे चरण का मतदान 25 अक्टूबर को होना है। इन चुनावों की मुख्य विशेषता यह है कि मंत्रियों के पूरे के पूरे परिवार चुनाव मैदान में हैं। चुनाव से जुड़े हुए अधिकारीयों कर्मचारियों के परिवार के लोग चुनाव मैदान में होने के कारण चुनाव आचार संहिता का कोई अर्थ नहीं रह गया है। चुनाव आचार संहिता का उपयोग विपक्षी प्रत्याशियों के उत्पीडन के लिए किया जा रहा है। प्रशासनिक गुंडागर्दी का यह आलम है कि लोगों की मोटरसाइकिलों तक पंचर कर दी जा रही हैं। मतदाताओं की जबरदस्त पिटाई की जा रही है। उसके बावजूद भी चुनावी हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। वहीँ प्रत्याशी मतदाताओं को दारु-मुर्गा, साड़ी, सहित तमाम तरह की घूस मतदाताओं को दे रहे हैं।
लोकतान्त्रिक व्यवस्था के पतन की तस्वीर इन चुनावों में दिखाई दे रही है। यदि सरकारी चुनाव मशीनरी निष्पक्ष तरीके से कार्य करे तो काफी हद तक लोकतान्त्रिक व व्यवस्थित तरीके से चुनाव संपन्न कराया जा सकता है। अन्यथा इस तरह से चुने गए उमीदवार सिर्फ घोटाला करने के अतिरिक्त कुछ करते नहीं हैं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
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