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Archive for नवम्बर 23rd, 2010

आरएसएस की सोच! इतनी अमानवीय…? अंतिम भाग

१ पुरुषों को अपनी स्त्रियों को सदैव रात-दिन अपने वश में रखना चाहिए।

२ स्त्री को बाल्यावस्था में पिता, युवावस्था में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र रक्षा करते हैं और वह उनके अधीन ही रहती है और उसे अधीन ही बने रहना चाहिए, एक स्त्री कभी भी स्वतंत्र योग्य नहीं है।

३ बिगड़ने के छोटे से अवसर से भी स्त्रियों को प्रयत्नपूर्वक और कठोरता से बचाना चाहिए, क्योंकि न बचाने से बिगड़ी स्त्रियाँ दोनों (पिता और पति) के कुलों को कलंकित करती है।

४ सभी जातियों के लोगों के लिए स्त्री पर नियंत्रण रखना उत्तम धर्म के रूप में जरूरी है। यह देखकर दुर्बल पतियों को भी अपनी स्त्रियों को वश में रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

५ ये स्त्रियाँ न तो पुरुष के रूप का और न ही उसकी आयु का विचार करती हैं। यही कारण है कि पुरुष को पाते ही ये उससे भोग के लिए प्रस्तुत हो जाती है चाहे वह कुरूप हों या सुन्दर।

६ स्वभाव से ही परपुरुषों पर रीझने वाली चंचल चित्त वाली और स्नेह रहित होने से स्त्रियाँ यत्नपूर्वक रक्षित होने पर भी पतियों को धोखा दे सकती हैं।

७ मनु के अनुसार ब्रह्माजी ने निम्नलिखित प्रवित्तियां सहज स्वभाव के रूप में स्त्रियों में पाई हैं- उत्तम शैय्या और अलंकारों के उपभोग का मोह, काम-क्रोध, टेढ़ापन, ईर्ष्या द्रोह और घूमना-फिरना तथा सज-धजकर दूसरों को दिखाना।

८ स्त्रियों के जातकर्म एवं नामकर्म आदि संस्कारों में वेद मन्त्रों का उच्चारण नहीं करना चाहिए। यही शास्त्र की मर्यादा है क्योंकि स्त्रियों में ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग की क्षमता का अभाव ( अर्थात सही न देखने, सुनने, बोलने वाली) है।

क्रमश:
-आरएसएस को पहचानें किताब से साभार

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आरएसएस की सोच! इतनी अमानवीय…? भाग 3

1) अनादि ब्रम्ह ने लोक कल्याण एवं सम्रद्धि के लिए अपने मुख, बांह, जांघ तथा चरणों से क्रमश: ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र उत्पन्न किया।

2) भगवान ने शूद्र वर्ण के लोगों के लिए एक ही कर्तव्य-कर्म निर्धारित किया है-तीनो अन्य वर्णों की निर्विकार भाव से सेवा करना।

3) शूद्र यदि द्विजातियों- ब्राहमण क्षत्रिय और वैश्य को गाली देता है तो उसकी जीभ काट लेनी चाहिए क्योंकि नीच जाति का होने से वह इसी सजा का अधिकारी है।

4) शूद्र द्वारा अहंकारवश ब्राहमणों को धर्मोपदेश देने का दुस्साहस करने पर राजा को उसके मुंह एवं कान में गरम तेल डाल देना चाहिए।

5) शूद्र द्वारा अहंकारवश उपेक्षा से द्विजातियों के नाम एवं जाति उच्चारण करने पर उसके मुंह में दस ऊँगली लोहे की जलती कील थोक देनी चाहिए।

6) यदि वह द्विजाति के किसी व्यक्ति पर जिस अंग से प्रहार करता है, उसका वह अंग काट डाला जाना चाहिए, यही मनु की शिक्षा है। यदि लाठी उठाकर आक्रमण करता है तो उसका हाथ काट लेना चाहिए और यदि वह क्रुद्ध होकर पैर से प्रहार करता है तो उसके पैर काट डालना चाहिए।

8) उच्च वर्ग के लोगों के साथ बैठने की इच्छा रखने वाले शूद्र की कमर को दाग करके उसे वहां से निकाल भगाना चाहिए अथवा उसके नितम्ब को इस तरह से कटवा देना चाहिए जिससे वह न मर सके और न जिये।

9) अहंकारवश नीच व्यक्ति द्वारा उच्चजाति पर थूकने पर राजा को उसके होंठ, पेशाब करने पर लिंग एवं हवा छोड़ने पर गुदा कटवा देना चाहिए।

10) शूद्र द्वारा अहंकारवश मार डालने के उद्देश्य से द्विजाति के किसी व्यक्ति के केशों, पैरों, दाढ़ी, गर्दन तथा अंडकोष पकड़ने वाले हाथों को बिना सोचे-समझे ही कटवा डालना चाहिए।

क्रमश:
-आरएसएस को पहचानें किताब से साभार

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