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Archive for नवम्बर 29th, 2010



कोई भी हिन्दुस्तानी जो स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को सम्मान देता है उसके लिए यह कितने दुःख और कष्ट की बात हो सकती है कि आरएसएस अंग्रेजों के विरुद्ध प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को अच्छी निगाह से नहीं देखता था। श्री गुरूजी ने शहीदी परंपरा पर अपने मौलिक विचारों को इस तरह रखा है:

नि:संदेह ऐसे व्यक्ति जो अपने आप को बलिदान कर देते हैं और उनका जीवन दर्शन प्रमुखत: पौरुषपूर्ण है। वे सर्वसाधारण व्यक्तियों से, जो कि चुपचाप भाग्य के आगे समर्पण कर देते हैं और भयभीत और अकर्मण्य बने रहते हैं, बहुत ऊँचे हैं। फिर भी हमने ऐसे व्यक्तियों को समाज के सामने आदर्श के रूप में नहीं रखा है। हमने बलिदान को महानता का सर्वोच्च बिंदु, जिसकी मनुष्य आकांक्षा करे, नहीं माना है। क्योंकि, अंतत: वे अपना उद्देश्य प्राप्त करने में असफल हुए और असफलता का अर्थ है कि उनमें कोई गंभीर त्रुटी थी।

यक़ीनन यही कारण है कि आरएसएस के इतिहास में उनका एक भी कार्यकर्ता अंग्रेज शासकों के खिलाफ संघर्ष करते हुए शहीद नहीं हुआ।

-आरआरएस को पहचानें किताब से साभार

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