उत्तर प्रदेश में राज्य निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है कि वह स्वतन्त्र व निष्पक्ष पंचायत चुनाव संपन्न कराये किन्तु वह अपनी जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ साबित हो रहा है। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशा निर्देश सत्तारूढ़ दल को मदद तथा विपक्षियों का उत्पीडन करने में मददगार हो रहे हें। प्रदेश में 16 जनपदों में जिला पंचायत अध्यक्ष पद हेतु एक ही प्रत्याशियों ने नामांकन किये हैं। जिसका सीधा अर्थ है कि इन जिलों में निर्वाचन आयोग के तहत काम कर रहे प्रशासन ने सत्तारूढ़ दल के एजेंट की भूमिका निभाई है। बाराबंकी जनपद में कानून और व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर प्रशासन ने सभी विपक्षी प्रत्याशियों के घरों में छपे डाले जिला पंचायत अध्यक्ष के बाद क्षेत्र प्रमुख के भी प्रत्याशियों के घरों में भी छापे डाले गए उनके लाईसेन्सी आर्म्स पुलिस जबर्दस्ती उठा ले गयी और कुछ जगहों पर छापेमारी दल ने नगदी भी लूटी है। प्रशासन का कहना है कि सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी के खिलाफ अगर चुनाव लड़ोगे तो नेस्तानबूत कर दिए जाओगे। मतदातों के ऊपर प्रशासन की मदद से नाजायज दबाव भी डाले जा रहे हैं। सरकारी मशीनरी राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार न चल कर सत्तारूढ़ दल के इशारे पर काम कर रही है। सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों ने अधिकांश जिला पंचायत सदस्यों को सरकारी मशीनरी के सहारे अपने कब्जे में ले लिया है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त राजेन्द्र भौनवाल ने एक आदेश यह भी जारी किया है कि जिला मजिस्टेट अपने-अपने जिलों में जिला पंचायत सदस्यों की बैठक बुलाएं इससे यह होगा की विपक्षी जिला पंचायत सदस्य जिनको राज्य मशीनरी ढूंढ नहीं पायी है उनको सरकारी मशीनरी सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों के कब्जे में करा देगी।
राज्य निर्वाचन आयोग सरकारी मशीनरी की निष्पक्षता को बनाये रखने में असमर्थ साबित हुआ है इसके पूर्व के पंचायतों के चुनाव में सरकारी मशीनरी ने उस समय के सत्तारूढ़ दल के अनुरूप पंचायत चुनाव कराये हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि पंचायत चुनाव का ड्रामा छोड़ कर सत्तारूढ़ दल के सदस्यों को सीधे नामित कर दें जिससे सरकारी धन व जनता का धन की बचत होगी।
सुमन
लो क सं घ र्ष !