Feeds:
पोस्ट
टिप्पणियाँ

Archive for दिसम्बर 9th, 2010


हमें भी इन्साफ चाहिए

उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने माननीय उच्चतम न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर कर हाईकोर्ट के प्रति सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी टिप्पणियों को हटाने की मांग की है। प्रदेश की सबसे बड़ी अदालत के प्रति माननीय उच्चतम न्यायलय ने कई भ्रष्टाचार से सम्बंधित कई अहम् टिप्पणियां की थी। जिसमें यह कहा गया था कि न्यायधीशों के बेटे वहीँ वकालत कर करोडो रुपये की परिसंपत्तियां बना रहे हैं, वहां कुछ सड़ने की बू आ रही है। वहीँ इलाहाबाद बार एशोसिएशन ने टिप्पणियों के प्रति अपना अघोषित समर्थन भी व्यक्त किया है। सामान्यत: कहीं न कहीं पारदर्शिता न होने के कारण भ्रष्टाचार की बू आम जन भी महसूस करते हैं। वकालत के व्यवसाय में ज्ञान व तर्क दूर कर चेहरा देख कर फैसला करने के मामले अक्सर देखे जाते हैं।
ज्ञातव्य है कि बहराइच जनपद के एक मामले में उच्च न्यायलय इलाहाबाद ने क्षेत्राधिकार न होने के बाद भी अंतरिम आदेश पारित कर दिए थे जिसको उच्च न्यायलय इलाहाबाद की खंडपीठ लखनऊ ने आदेश को स्थगित कर दिया था। उसके विरुद्ध रजा नाम के व्यक्ति ने माननीय उच्चतम न्यायलय में एस.एल.पी दाखिल की थी। जिसपर माननीय उच्चतम न्यायालय ने भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में गंभीर टिप्पणिया की थी।
जिस भी देश में आम जनता न्याय पाने में असमर्थ रहती है वहां पर अव्यवस्था का दौर प्रारंभ होता है। इस समय देश में आम जन अपने को न्याय पाने में असमर्थ महसूस कर रहा है। इसलिए अव्यवस्था का दौर जारी है। माननीय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों की नियुक्ति व महाभियोग दोनों जटिल प्रक्रियाएं हैं। पंच परमेश्वर की कुर्सी पर बैठ कर उनके सम्बन्ध में भ्रष्टाचार की शिकायत आना ही शर्मनाक है लेकिन आये दिन परस्पर विरोधी निर्णय न्याय की गरिमा को बढ़ा नहीं रहे हैं। समीक्षा याचिका प्रदेश की सबसे बड़ी न्यायालय ने किया है लेकिन जरूरत इस बात की थी कि समीक्षा याचिका दाखिल करने से पूर्व बहुत सारी चीजों को चुस्त दुरुस्त कर दिया जाता तो शायद टिप्पणियां स्वयं ही प्रभावहीन हो जातीं। अभी तक नारा था न्याय चला निर्धन से मिलने शायद अब यह नारा हो जाए न्याय चला अब न्याय मांगने।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

Read Full Post »