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Archive for फ़रवरी 12th, 2011



देश में आजादी के बाद भी काले कानूनों का निर्माण हुआ है चाहे वो पोटा के रूप में हो चाहे एन.डी.पी.एस हो या टाडा। आतंकवाद व माओवाद से निपटने के नाम पर विभिन प्रदेशों में काले कानूनों का निर्माण हुआ है। इन काले कानूनों की एक विशेषता है कि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम व भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता से हट कर इनका विचारण होता है। इसमें कुछ कानूनों में तो यह प्राविधान है कि पुलिस ने अंतर्गत धरा 161 सी.आर.पी.सी के तहत दिया गया बयान या पुलिस के समक्ष किसी भी आत्म स्वीकृति को सजा का आधार बना लिया जाता है। इन कानूनों के तहत यह भी व्यवस्था होती है कि इसमें सभी पुलिस वाले पेशेवर गवाहों की तरह गवाही देते हैं और उसी आधार पर सजा हो जाती है। जैसे एन.डी.पी.एस एक्ट के तहत अधिकांश मामलों में जिस व्यक्ति को जितने दिन जेल में रखना होता है उतनी ही मात्र में मार्फीन या हेरोइन की फर्जी बरामदगी दिखा दी जाती है इसमें भी जमानत आसानी से नहीं मिलती है। सजा, विचारण के पश्चात लगभग तयशुदा होती है। इन वादों में पुलिस की इच्छा ही महत्वपूर्ण है कि वह आपको समाज के अन्दर रखना चाहती है या कारागार में। कई बार ऐसा भी होता है कि पुलिस बेगुनाह नवजवानों को एन.डी.पी.एस एक्ट के तहत हँसते हुए न्यायालय रवाना कर देती है कि जाओ कुछ वर्ष अन्दर रह आओ और ऐसे वादों में न्यायालय के पास पुलिस की बातों को सच मानने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता है। बिनायक सेन के मामले में भी यही हुआ है कि छत्तीसगढ़ के काले कानून के तहत उनका वाद चलाया गया और सजा हुई और अब माननीय उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत अर्जी ख़ारिज कर दी है। अगर आप यह भी कहते हें कि यह सरकार अच्छी नहीं है सरकार बदल दी जाएगी तो काले कानूनों के तहत आप आजीवन कारवास के भागीदार हो जायेंगे लेकिन प्रश्न यह है कि काले कानूनों के तहत हजारो लाखो लोग जेलों में बंद हैं। जनता अपनी समस्याओं से पीड़ित है कौन इन काले कानूनों का विरोध करे। विधि निर्माण करने वाली संस्थाएं संसद व विधान सभाएं अपने में मस्त हैं उनके पास सरकार बचने व सरकार गिराने के अतिरिक्त समय नहीं है। काले कानून बनाते समय यह संस्थाएं उस पर विचार नहीं करती हैं। नौकरशाही द्वारा तैयार ड्राफ्ट को हल्लागुल्ल के बीच कानून की शक्ल दे दी जाती है और फिर वाही नौकरशाही जिसको चाहे आजाद रखे जिसको चाहे निरुद्ध।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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