Feeds:
पोस्ट
टिप्पणियाँ

Archive for नवम्बर 2nd, 2011

फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में भी अधिग्रहण किया जा रहा है | बड़ी देशी और अब विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा करोड़ो की संख्या में फैले दुकानदारी के बिक्री बाजार का अधिग्रहण किया जा रहा है | इसके विरोध में संघर्ष करना उन तमाम फुटकर दुकानदारों तथा छोटे व औसत दर्जे के और मझोले स्तर के डीलरो , स्टाकिस्टो जैसे – थोक व्यापारियों के रोज़ी – रोजगार कि आवश्यकता है | उनके जीवन – अस्तित्व की शर्त है |
केन्द्रीय सचिवो कि समिति द्वारा फुटकर दुकानदारी के मल्टी ब्रांड कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को छूट की सिफारिश कर दी गयी है | अभी यह छूट 51 % निवेश के लिए की गयी है | विदेशी निवेश वाले इन रिटेलो स्टोरों को विभिन्न प्रान्तों में खोलने का अधिकार राज्य सरकारों को देने का प्रस्ताव किया गया है | फिर इस प्रस्ताव में मल्टी ब्रांड रिटेल के ताकतवर – माल , शाप से छोटे स्तर के उद्यमों एवं किराना स्टोरों के सुरक्षा के उपाय तय करने व उसे लागू करने का भी अधिकार राज्य सरकार के हाथो में देने का प्रस्ताव किया गया है | सचिव समिति के प्रस्ताव में अभी विदेशी निवेश के रिटेल स्टोरों को 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में खुदरा व्यापार की छूट दी गयी है | इस आधार पर अभी देश के 35 शहरों को इसके लिए उपयुक्त बताया गया है | अभी सचिव समिति के इस निर्णय पर मंत्रीमंडल का निर्णय आना बाकी है | पर इस प्रस्ताव से फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में मल्टी ब्रांड रिटेल व्यापार में विदेशी निवेश को अब सुनिशिचत माना जा रहा है | सचिव समिति के इस प्रस्ताव का कही – कही स्थानीय फुटकर दुकानदारों द्वारा थोड़ा विरोध भी किया गया | पर वह एक – दो दिन में ही खत्म भी हो गया | जबकि देश की बड़ी औद्योगिक एवं वाणीजियक कम्पनियों के राष्ट्र स्तर के ‘ पिक्की ‘ व सी0 आई0 आई0 और रिटेल क्षेत्र में लगी बड़ी भारतीय कम्पनियों ने सचिव समिति के प्रस्ताव का स्वागत किया है | अभी दो – तीन साल पहले स्थानीय स्तर के फुटकर दुकानदारों के संगठनों द्वारा फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में विदेशी ही नही देशी बड़ी कम्पनियों को छूट देने का विरोध किया जा रहा था |फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में बड़ी कम्पनियों के आ जाने से फुटकर दुकानदारों के बिक्री बाज़ार में भारी कटौती के साथ उनकी बर्बादी की चर्चाये भी हो रही हैं | पर धीरे – धीरे यह विरोध मद्धिम पड़ गया | अब यही बाते फुटकर व्यापार में विदेशी निवेश के बारे में भी कही जा रही है और वह गलत भी नही है | इसके वावजूद इस बार उस प्रचार माध्यमो में चर्चा ही बहुत कम है | फिर उसका विरोध तो और भी कम है ऐसा लगता है , जैसे फुटकर दुकानदारों ने जाने या अनजाने में यह मान लिया है की उनके विरोध से कुछ नही होगा | जो सत्ता सरकार चाहेगी , वही होगा | यही असली हार है | संघर्ष में मिली हार बड़ी हार नही होती | क्योंकि उस हार से पराजितो को अपनी कमिया देखने व दूर करने एवं पुन: संघर्ष के जरिये उसे विजय में बदल देने के लिए प्रयास करने की हर सम्भावना मौजूद रहती है | लेकिन बिना संघर्ष के ही हार मान लेने पर तो विजय कदापि सम्भव नही है |किसान भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष में है |ज्यादातर जगहों पर थक – हारकर मुआवजा ले चुके है | जमीन छोड़ चुके हैं |पर उन्होंने अभी संघर्ष नही छोड़ा हैं | इसलिए अब कही – कही उनको जीत भी मिल रही है |उनकी भूमि का अधिग्रहण रदद भी हो रहा है | कल को यह जीत बढ़ सकती है | राष्ट्रव्यापी जीत में बदल सकती है | फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में भी अधिग्रहण किया जा रहा है | बड़ी देशी और अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा करोड़ो की संख्या में फैले दुकानदारी का अधिग्रहण किया जा रहा है | इनके बिक्री बाज़ार का अधिग्रहण भी अधिग्रहण किया जा रहा है | इसके विरोध में संघर्ष करना उन तमाम फुटकर दुकानदारों तथा छोटे व औसत दर्जे के और मझोले स्तर के डीलरो , स्टाकिस्टो जैसे – थोक व्यापारियों के रोजी – रोजगार की आवश्यकता है | उनके जीवन – अस्तित्व की शर्त है | उन्हें किसानो की तरह ही फुटकर दुकानदारी में बड़ी कम्पनियों का विरोध करना ही पड़ेगा | इसी के साथ उन्हें पिछले 20 सालो से लागू होती रही उन वैश्वीकरणवादी , उदारीकरणवादी नीतियों का भी विरोध करना होगा , जिसके अंतर्गत बड़ी कम्पनियों के छूटो , अधिकारों को हर क्षेत्र में बढाया जा रहा है तथा विभिन्न क्षेत्रो में जनसाधारण हिस्सों के छूटो , अधिकारों को खुलेआम काटा – घटाया जा रहा है |इसमें उन्हें देशी बड़ी कम्पनियों को छूट देने के प्रति नर्म और विदेशी निवेश के प्रति ही विरोध में भी बहकने से भी बचना होगा | फुटकर व्यापार के संदर्भ में हम स्पष्ट देख सकते है कि इस क्षेत्र में विदेशी निवेश का अनुमोदन खुद इस देश के बड़े कम्पनियों के संगठन कर रहे है | इसका साफ़ मतलब है इस देश कि बड़ी कम्पनिया यहा के फुटकर दुकानदारों के साथ नही है | बल्कि उनके विरोध में विदेशियों के साथ खड़े है | आम फुटकर दुकानदारों तथा छोटे डीलरो , स्टाकिस्टो को देशी व विदेशी बड़ी कम्पनियों के अधिग्रहण के विरोध में खड़ा होना होगा | इसी तरह से उन्हें फुटकर व्यापार के बारे में बड़ी कम्पनियों के हिमायतियो तथा सरकारों द्वारा चलाए जा रहे तर्को – कुतर्को का भी संगठित रूप में जबाब देने के लिए स्वंय को तैयार करना होगा |

उदाहरण —-(1) उन्हें यह तथ्य जरुर जानना चाहिए कि इस देश में लगभग 4 करोड़ लोगो को इस क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है | ( 2) इस तरह देश के कुल रोजगार का 11% हिस्सा फुटकर दुकानदारी पर टिका हुआ है | इस मामले में यह कृषि के बाद स्वरोजगार का दुसरा बड़ा क्षेत्र है संभवत: 4 करोड़ लोगो के परिवारों कि 20 या 22 करोड़ कि आबादी का जीवन – यापन फुटकर दुकानदारी पर टिका हुआ है | ( 3) खुदरा व्यापार में देश की बड़ी कम्पनियों और अब विदेशी निवेश के लिए यह तर्क भी दिया जाता है कि ‘ फुटकर दुकानदारी के क्षेत्र में बिचौलियों की समाप्ति हो जायेगी | किसान व उत्पादन में लगी अन्य छोटी इकाइयों द्वारा अपना माल , सामान सीधे माल शापिंग माल को दिया जाएगा | जहा से वह सीधे उपभोक्ता के हाथ पहुच जाएगा |’ कोई भी आदमी समझ सकता है कि फुटकर व्यापार अपने आप में बिचौलियागिरी का धंधा है | चाहे वह छोटी दुकानदारी के रूप में हो या फिर माल शाप के रूप में हो | फिर इन सबके साथ डीलरो , स्टाकिस्टो जैसे बिचौलियों का समूह भी खड़ा रहता है | अत: फुटकर दुकानदारी के जरिये बिचौलियागिरी को समाप्त करने का ब्यान भी एक धोखा है |(4)जहा तक किसानो को शापिंग माल में अपना माल बेहतर मूल्य पर बेचने और उपभोक्ता द्वारा सस्ता खरीदने की बात है तो दोनों ही बाते गलत है | फुटकर व्यापार में बड़ी कम्पनियों के आगमन से बहुतेरे फुटकर दुकादारो को अपना माल बेचने और उपभोक्ता द्वारा उन दुकानदारों से मोल भाव कर सौदा लेने की क्षमताओं में गिरावट आ जानी है | क्योंकि अब बाज़ार पर थोड़े से , पर विशालकाय माल शाप के मालिको का एकाधिकार बढ़ जाना है | और किसानो व अन्य उत्पादकों की तथा उपभोक्ताओं की यह मजबूरी बढती जायेगी कि वह बाज़ार पर अधिकार जमाए हुए बड़ी कपनियो के आगे समर्पण कर दे | उसी के निर्देशानुसार चले | ( 5) अभी तक कि बाज़ार व्यवस्था स्थानीय स्तर पर बाज़ार का संतुलन स्थानीय खरीद – बिक्री पर टिका हुआ है | क्योंकि हर आदमी स्थानीय स्तर पर खरीदने के लिए वहा के स्थानीय लोगो के साथ अपना शारीरिक व मानसिक श्रम या अपना माल , सामान बेचता रहा है | लेकिन फुटकर व्यापार में देशी व विदेशी धनाढ्य कम्पनियों के बढ़ते चढ़ते घुसपैठ से अपने स्थानीय लेन- देन के सम्बन्ध व संतुलन में दरकन टूटन का आना निश्चित है |क्योंकि फुटकर दुकानदार केवल स्थानीय स्तर का विक्रेता ही नही है , बल्कि वह स्थानीय स्तर पर उत्पादित मालो , सामानों का खरीदार होने के साथ – साथ शिक्षा , चिकित्सा , न्याय , कानून आदि कि सेवाओं का खरीदार भी होता है | बड़ी कम्पनियों द्वारा फुटकर बाज़ार व्यापार के अधिकाधिक अधिग्रहण के साथ स्थानीय स्तर के खरीद – बिक्री के आपसी संबंधो का भी अधिग्रहण हो जाता है | जिसका परिणाम अन्य क्षेत्र के लोगो के पेशे , धंधे के टूटन के रूप में ही आना निश्चित है |
इसलिए फुटकर दुकानदारी से टूटकर तथा स्थानीय , व्यापारिक , सामाजिक संबंधो से टूटकर स्थानीय फुटकर दुकानदारों में भी संकट का तेज़ी से बढना अनिवार्य एवं अपरिहार्य है |
इसीलिए किसानो की तरह ही फुटकर दुकानदारों को भी अपना स्थानीय समितिया बनाकर देश की बड़ी कम्पनियों द्वारा फुटकर दुकानदारी का किए जा रहे अधिग्रहण के विरुद्ध ,फुटकर दुकानदारी में विदेशी निवेश के विरुद्ध केंद्र सरकार द्वारा बनाये जा रहे कानून के विरुद्ध तथा प्रांतीय व स्थानीय स्तर पर उन्हें दिए जा रहे छूट के विरुद्ध संघर्ष में उतर जाना चाहिए | इसी के साथ उन्हें किसानो , मजदूरों एवं अन्य कारोबारियों के साथ इस घुसपैठ को बढाने वाली वैश्वीकरणवादी नीतियों को खारिज किए जाने के लिए और अपने अस्तित्व कि रक्षा के लिए करो या मरो का नारा बुलंद करके आन्दोलन शुरू कर देना चाहिए |

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

Read Full Post »