प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने आईबीएन 7 से बातचीत करते हुए कहा कि जब कभी दिल्ली, बम्बई या बंगलुरु में बम विस्फोट होता है तो कुछ ही घंटो के अन्दर लगभग सभी चैनल एक खास तरह की न्यूज़ दिखाना शुरू कर देते हैं जैसे कि एक ईमेल या एसएमएस आया जिसमें इंडियन मुजाहिद्दीन ने जिम्मेदारी ली या जैश-ऐ-मोहम्मद ने जिम्मेदारी ली या फिर हरकत उल जेहाद या कोई मुस्लिम नाम ने जिम्मेदारी ली. यह किसी शरारती व्यक्ति की भी हरकत हो सकती है लेकिन इसे टी वी चैनल और उसके अगले दिन प्रिंट मीडिया में दिखाना, मीडिया एक स्थापित तरीके से यह कहना चाहती है कि सभी मुस्लिम आतंकी हैं या बम फेकने वाले हैं या शैतानी हैं।
सभी धर्मो के 99% लोग शरीफ लोग हैं। मुझे लगता है कि यह मीडिया का जानबूझ कर उठाया गया कदम है जिससे लोग धर्म के आधार पर बँट जाएँ. यह बात राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध है।
बम विस्फोट के कुछ ही घंटो के अन्दर एसएमएस और ईमेल के आधार पर आप मुसलमानों को शैतान की छवि में दिखाने लगते हैं. इस बात का क्या मतलब है ?
Archive for फ़रवरी, 2013
मुसलमानों को शैतान की छवि में दिखाने लगते हैं
Posted in loksangharsha, tagged इंडियन मुजाहिद्दीन, जस्टिस मार्कंडेय काटजू, बम विस्फोट on फ़रवरी 24, 2013| 1 Comment »
महामहिम का भी नाम हेलीकाप्टर घोटाले में आया
Posted in loksangharsha, tagged एनडीए, घोटाला, प्रणव मुख़र्जी, राहुल गाँधी, सुमन लोकसंघर्ष, हेलीकाप्टर on फ़रवरी 16, 2013| Leave a Comment »
देश के राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणव मुख़र्जी का नाम हेलीकाप्टर घोटाले में आया है। अगस्ता वेस्टलैंड से 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टरों की खरीद में रक्षा मंत्रालय की सफाई से यूपीए सरकार को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। अब तक इस मामले में कांग्रेस और यूपीए एनडीए सरकार पर आरोप लगाकर अपना पल्ला झाड़ रही थी लेकिन गुरुवार को रक्षा मंत्रालय ने 3546 करोड़ रुपये की इस डील की जो फैक्टशीट जारी की है उसके मुताबिक सौदे पर मुहर सन् 2005 में लगी जब प्रणव मुखर्जी रक्षा मंत्री हुआ करते थे। डील के फाइनल होने के समय एसपी त्यागी एयर चीफ मार्शल, पूर्व आईपीएस अधिकारी व एसपीजी के मुखिया बीवी वांचू और एमके नारायणन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे।
एनडीए सरकार से लेकर यूपीए सरकार घोटालेबाजों की सरकार रही है। करोडो-करोड़ रुपये के घोटाले हुए हैं और किसी भी घोटाले का न्यायिक विचारण फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में नहीं हो रहा है। व्यक्तिगत अपराधों की सुनवाई फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट्स में होती है लेकिन बड़े-बड़े घोटालों का विचारण फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट्स में नहीं होता है। इस घोटाले में राहुल गाँधी के परम मित्र कनिष्क सिंह का भी नाम आया है। इसके अतिरिक्त यह राजनेता राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाखो-लाख करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाते रहते हैं जो घोटाले ही होते हैं। पूर्व वित्त मंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री व वर्तमान देश के राष्ट्रपति महामहिम के सम्बन्ध में जनचर्चा के अनुसार धीरू भाई अम्बानी को लाभ पहुँचाने के लिए देश के बजट की नीतियाँ उन्ही अनुरूप तय होती थी जिससे अम्बानी ग्रुप को फायदा हो।
देश के अन्दर अब स्तिथि यह हो गयी है कि कोई भी खरीद अगर होती है तो उसमें घोटाला जरूर होता है। जैसे सरकारी नौकरियों में कोई भी भर्ती होती है तो उसमें भी बगैर घोटाले के भर्ती संभव ही नहीं हो पाती है। राजनेता व राज्य की मशीनरी भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी हुई है कुछ दिन शोर-शराबा होता है और फिर सब खामोश। अधिकारी व राजनेता दण्डित नहीं हो पाते हैं। सफेदपोश अपराधियों को दण्डित करने के लिए लचर कानूनी व्यवस्था भी है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
सलेक्टिव जस्टिस
Posted in loksangharsha, tagged अजमल कस्साब, अफज़ल गुरू, शमशाद इलाही शम्स on फ़रवरी 14, 2013| Leave a Comment »
‘सलेक्टिव जस्टिस’ सांप्रदायिक राज्य की पहचान है, लोकतांत्रिक न्याय व्यवस्था की नहीं
शमशाद इलाही ”शम्स“पहले अजमल कस्साब नवम्बर 21 (2012) अभी अफज़ल गुरू ( फरवरी 9,2013) को भारतीय राज्य द्वारा दी गयी फाँसियाँ राज्य के उत्तरोत्तर ‘हिन्दू चरित्र’ को ही प्रतिस्थापित करती हैं न कि क़ानून के किसी विधि सम्मत राज्य को। न्याय ‘चूज़ एंड पिक’ के ज़रिये स्थापित नहीं होता, उसके लिए कानूनों का समान रूप से सभी अपराधियों पर लागू होना पहली शर्त है। मंद से मंद बुद्धि व्यक्ति भी वर्तमान सरकार की मंशा को भाँप सकता है। दोनों फाँसियाँ सिर्फ न्याय का विषय नहीं बल्कि उन्हें एक राजनैतिक फैसले की तरह देश के अवाम के सामने रखा गया जिसके अपने लक्ष्य और उद्देश्य हैं।
यदि देश में न्याय नाम कि कोई चीज होती तो ठीक इसी तरह कई दरिंदो को 1984 में दिल्ली के हुए सिख नरसंहार के मामले में फाँसियाँ दी जा चुकी होतीं, लेकिन वो न केवल ज़िंदा है बल्कि आज़ाद भी हैं। गुजरात के दंगो के लिए नरेंद्र मोदी पर उन्ही धाराओं के तहत मुक़दमा चलता जिनके तहत अफ़ज़ल गुरू को फांसी दी गयी और उसका हश्र भी वही होना चाहिए था, लेकिन नहीं यह अपराधी न केवल खुला है बल्कि चीफ मिनिस्टर गुजरात है। अभी वह देश का भावी प्रधानमंत्री बताया जा रहा है। प्रज्ञा ठाकुर और असीमानंद जो हिन्दुत्व आतंकवाद के प्रतीक बने हुए हैं, जिनके कुकृत्यों के कारण दर्जनों बेक़सूर मुसलमान अब भी जेलों में सड़ रहे हैं, उन्हें मानवता के प्रति अपराध जैसे आरोपों के तहत फाँसी देने में कोई न्यायप्रिय सरकार/ राज्य कभी देरी नहीं करता।।। लेकिन नहीं। इस प्रकार के अनन्त उदाहरणों से ये बात आगे कही जा सकती है।
आज देश को फाँसियों की जिस बयार से सुसज्जित किया जा रहा है, राजनीति को केन्द्र में रख कर जो ‘सलेक्टिव न्याय’ के निर्णय लिए जा रहे हैं उससे जो प्रतिध्वनि और ऊर्जा निकल रही है वह बेहद नकारात्मक है जिसकी आँच में न लोकतंत्र सुरक्षित रह पायेगा और न उसके चार स्तम्भ जिसमें पुलिस/ न्याय व्यवस्था पहले ही ढह चुकी है। मैं अगर देश के ढाँचे, उसके संविधान उसकी व्यवस्था से अगर असहमत हूँ, तब उसके द्वारा निर्णयों पर कैसे सहमति व्यक्त कर सकता हूँ ? जाहिर है, मौजूदा हकूमत अपने राजनीतिक स्वार्थों के हित में, अपने ढाँचे और संविधान के अनुरूप ही कोई निर्णय लेगी। कश्मीर एक राजनैतिक प्रश्न है जिसे राजनीतिक रूप से हल किये बिना समस्या हल न होगी। एक अफज़ल गुरु दस और गुरु घंटालो को पैदा करेगा। एक कस्साब को मारने से कोई ये नहीं कह सकता कि दूसरा कस्साब अभी उसी फैक्ट्री में बनना बंद हो गया हो जहाँ खुद उसका निर्माण हुआ था?
एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जिसे बेहूदा छद्म देशभक्ति की नुमाइश के चलते सामने ही नहीं लाया जा रहा और न उस पर तवज्जो दी जा रही है; वह यह कि आज़ाद भारत में अभी तक 3000 से 4300 (सही आँकड़ा मानवाधिकार संगठनों के पास भी नहीं है) लोगो को फांसी दी जा चुकी है, इतनी बड़ी संख्या इस नतीजे पर पहुँचने के लिए काफी है कि फाँसी लगाना या जान से मारना किसी अपराध की पुनरावृत्ति रोकने में समर्थ नहीं है। दुनिया में जिन देशों के समाजों ने अपने आतंरिक अंतर्विरोध काफी हद तक हल कर लिए हैं, वहाँ का समाज फाँसी मुक्त हो चुका है। भारतीय राज्य अभी इन तथ्यों को जाँचने और परखने की न तो योग्यता रखता है और न वह इतना सक्षम है, इसी कारण अभी बर्बर युग के कानूनों का मिश्रण उसके संविधान में मौजूद है।
-शमशाद इलाही शम्स
साभार
http://hastakshep.com/
क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे ?
Posted in loksangharsha, tagged नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सुमन लोकसंघर्ष on फ़रवरी 8, 2013| Leave a Comment »
कभी नहीं, जो लोग सांप्रदायिक आधार पर प्रधानमंत्री पद पर नरेन्द्र मोदी को पदासीन देखना चाहते हैं। उनको इस देश की सीमाओं की जानकारी नही है। गुजरात में जो नरसंहार हुआ है, उसके बाद भी अगर कोई इस धर्म निरपेक्ष भारत में यह सोचता है कि उग्र हिन्दुवत्व का प्रतीक नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हो जायेगा तो यह उनका दिवा स्वप्न है। मोदी को विकास पुरुष का प्रमाणपत्र टाटा और अम्बानी सहित बड़े-बड़े उद्योगपति दे रहे हैं। उनके द्वारा स्थापित मीडिया नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष की छवि बनाने में लगा हुआ है। गुजरात में खेत मजदूरों, किसानो, फैक्ट्री मजदूरों की हालत बाद से बदतर होती जा रही है। मल्टी नेशनल भारतीय कंपनियों को जो रियायतें दी जा रही हैं। श्रम कानूनों का गला घोटा जा रहा है। उससे आम जनता वाकिफ है और अगर गुजरात का यह तबका मोदी के समर्थन में होता तो गुजरात में अधिकांश सीटें मोदी को मिली होती। भारतीय जनता पार्टी कुछ प्रदेशों की ही पार्टी है। सम्पूर्ण भारत में उसकी कोई पकड़ नहीं है। इनके नेतागण आपस में नित्य लड़ते झगड़ते रहते हैं। भ्रष्टाचार में इनके नेतागण उसी तरीके से लिप्त हैं जिस तरह से कांग्रेस के नेतागण। बंगारू लक्ष्मण से लेकर नितिन गडकरी तक यह लोग बड़े बेइज्जत होकर राजनीति के गलियारे से वापस गए हैं। जर्मन नाजीवादी विचारधारा से लैस इस पार्टी को कभी भी बहुमत नहीं मिलना है। दुनिया की साम्राज्यवादी ताकतों के प्रतिनिधि यूरोपियन यूनियन या अमरीका चाहे जितनी कोशिश करे कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाएँ लेकिन बन नहीं पाएंगे। विदेशी ताकतें मोदी के लिए लोबिंग शुरू कर दी है। इस सम्बन्ध में इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि 7 जनवरी को दिल्ली में जर्मन राजदूत एम. स्टेनर के घर पर यूरोपियन यूनियन के देशों के राजदूत नरेंद्र मोदी से लंच पर मिले थे। इसके 15 दिन पहले ही मोदी लगातार चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। लंच के दौरान राजदूतों ने 2002 के दंगों के बारे में सरकार की कथित निष्क्रियता को लेकर मोदी से सवाल भी किए। बकौल स्टेनर मोदी ने उन लोगों को भरोसा दिलाया कि गुजरात में अब कभी दंगे नहीं होंगे। जर्मन राजदूत ने यह भी कहा कि मोदी भारतीय राजनीति में बड़ी हस्ती हैं। इस मीटिंग के दौरान मोदी ने राजदूतों को धैर्य के साथ सुना और गवर्नेंस के अपने मॉडल के बारे में बताया।
आर्थिक विकास का मोदी माडल मात्र इतना है कि उद्योगपतियों को हर संभव मदद करके उनके मुनाफे को लाखो गुना बढ़ने में मदद करना है। दंगे, फसाद कराकर आप भारतीय जनमानस का दिल नही जीत सकते हैं जब तक मजदूरों किसानो के सम्बन्ध में आपके पास सोच होगी तो देश का विकास होना संभव नही है। किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। खेत मजदूर, बुनकर, शिल्पकार भुखमरी के रास्ते पर हैं। कारखानों में काम के घंटे 8 से ज्यादा बढ़ा दिए गए हैं। भारतीय जनता पार्टी के पास इन तबको के बारे में कोई सोच नहीं है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
आतंकी संगठनों का इस्लामी नामकरण
Posted in loksangharsha, tagged भारत, मुसलमान, राजेन्द्र सच्चर, सुमन लोकसंघर्ष on फ़रवरी 6, 2013| Leave a Comment »
संसार के दूसरे सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश भारत में मुसलमानों की स्थिति आजादी के 65 वर्ष बाद भी अति दयनीय है। बहुत अधिक बताने की जरूरत नहीं, केन्द्र सरकार द्वारा मुसलमानों के हालात का जायजा लेने के लिए गठित की गई राजेन्द्र सच्चर कमेटी के अनुसार वर्तमान समय में मुसलमानों की आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति दलितों से भी गयी गुजरी हो चुकी है।
मुसलमान ऐसी स्थिति में क्यों पहुँचे और इन्हें इस गर्त में डालने के पीछे किन शक्तियों का हाथ है?यदि इन प्रश्नों के उत्तर का आकलन किया जाए तो हम पाते है कि आज़ादी के बाद जब देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान की उत्पत्ति धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देकर की गई तो भारत के प्रति अपनी वफ़ादारी जता कर बाकी बचे मुसलमानों को संकीर्ण विचार धारा वाली शक्तियों ने सदैव इस मानसिक स्थित में डुबो कर रखा कि मुसलमानों के कारण ही देश का विभाजन हुआ और वह मुस्लिम कौम, जिसके पूर्वजों ने सबसे पहले देश की स्वाधीनता 1857 के संग्राम में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ा या और हजारों मुसलमानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी शासकों की मजबूत हुकूमत की चूलें हिला दी थीं, हीन भावना का शिकार हो गई, वह यह सोचने पर मजबूर हो गई कि उनकी देश के प्रति आस्था व देश भक्ति को सशंकित नजरों से देखा जाता है।
कहा तो यह जाता रहा है कि मुसलमान कौम से अपने को अलग रखकर देश में रहता है परन्तु वास्तविकता यह है कि मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद कर तथा उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने वाले उनके हर कदम पर अनेक बाधाएँ उत्पन्न कर उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया गया कि वे अपने बच्चों को केवल धार्मिक शिक्षा देकर हाथ का हुनर सिखाएँ और दुनियाबी शिक्षा से अपने बच्चों को दूर रखें जहाँ उनके बच्चों को हिन्दुत्ववादी विचारधारा के अध्ययन करने पर मजबूर किया जाता है। हिन्दू कट्टर पंथी सोच के समर्थन में मुस्लिम कट्टर पंथियों की संकीर्ण विचारों से प्रभावित मुसलमानों के एक बड़े तबके के चलते मुसलमान नवीन शिक्षा से काफी पिछड़कर देश में मात्र कारीगर, दस्तकार या शिल्पकार बनकर रह गया। वहीं दूसरी ओर जमींदारी विनाश अधिनियम 1952 के पश्चात अधिकांश मुसलमानों के हाथ से खेती योग्य भूमि भी जाती रही। भूमिहीनों को सरकार की ओर से यहाँ भूमि वितरण में भी मुसलमानों को हिस्सा नहीं दिया गया। तो जिन मुसलमानों के पास हाथ का हुनर नहीं था उनका जीवन केवल मेहनत मजदूरी पर ही आकर निर्भर हो गया।
फिर सोने पर सुहागा यह रहा कि देश में लाखों की तादाद में साम्प्रदायिक दंगे कराकर मुसलमानों द्वारा मेहनत मजदूरी से अर्जित की जाने वाली धन सम्पदा को सरेआम लूटा गया और इस लूट में सैनिक बलों ने भी अपनी सहभागिता की। देश के विभाजन में जितनी जनहानि मुसलमानों की साम्प्रदायिक हिंसा से नहीं हुई थी उतनी आजादी के बाद देश में मुसलमानों का कत्ले आम करके की गई। साम्प्रदायिक दंगा कराने के लिए नए बहाने तलाशे गए। कभी भारत-पाक युद्ध को लेकर, तो कभी भारत-पाक हाकी व क्रिकेट मैच को लेकर कभी कब्रिस्तान को लेकर तो कभी गौकशी को लेकर तो कभी मन्दिर-मस्जिद विवाद को लेकर।
नब्बे के दशक के प्रारम्भ में जब देश में आर्थिक सुधारों की बयार बही और साथ ही विदेशी पूँजी निवेश के साथ कार्पोरेट सेक्टर की कम्पनियों के द्वारा प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों के दरवाजे देश के नौजवानों के लिए खुले तो अपनी काबलियत के बल पर मुस्लिम नवयुवकों ने भी नौकरियाँ प्रारम्भ कीं और जो मुस्लिम युवक अपना कैरियर खाड़ी के देशों में तलाशते थे वह अब देश के आईटी हब हैदराबाद, बैंगलोर, गुड़गांव, नोयडा और दिल्ली में नौकरियों से लग गए। उन्हें आर्थिक उन्नति के रास्तों पर आगे बढ़ते देख उ.प्र., बिहार आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा बंगाल आदि के मुस्लिम नवयुवक उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित हुए और बी. टेक, एम.टेक, एम.बी.ए. जैसे कोर्सों में मुसलमानों की भागीदारी बढ़ी।
मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में होते सुधार से दुर्भावना रखने वाली शक्तियों ने अपनी रणनीति में परिवर्तन कर 21वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षो से देश में आतंकवाद की घटनाओं में इजाफा करना प्रारम्भ कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप देश के कोने-कोने मे बम विस्फोटों से दर्जनों निर्दोषों की जानें गई। हर विस्फोेट के पश्चात् देश की गुप्तचर एजेंसियों, कथित राष्ट्रीय मीडिया एवं पुलिस की जाँच एजेंसियों के गठजोड़ ने नित्य नए आतंकी संगठनों का इस्लामी नामकरण करके सैकड़ों मुसलमानों को बगैर किसी साक्ष्य व दोषारोपण के जेलों में कभी टांडा तो कभी मकोका जैसे विशेष आतंकी विरोधी कानून लगा कर देश द्रोहिता का तमगा उनके गले में लटका कर ठूँस दिया। देश की राजधानी में बाटला हाउस एन्काउन्टर में तीन शिक्षित मुस्लिम युवकों को आतंकवादी करार देकर गोलियों से छलनी कर दिया गया। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसके बाद उन बच्चों के गृह जनपदों से कोई मुसलमान यह हिम्मत न कर सका कि उच्च शिक्षा के लिए अपने बच्चों को अपने से दूर भेजकर उनके सुन्दर भविष्य की कामना करें।
मुसलमानों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करने में कोई भी राजनैतिक दल किसी से भी पीछे नहीं रहा यदि केन्द्र में सत्ता के शिखर पर बैठी कांग्रेस के शासित राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा व आतंकवाद के नाम पर निर्दोषों को जेल भेजने का क्रम जारी रहा तो मुसलमानों के लिए हमदर्दी का दम भरने वाले मुलायम सिंह व मायावती की हुकूमतों में भी यह क्रम जारी रहा है। मायावती के कार्यकाल में तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, सज्जादुर्रहमान, मो0 अख्तर, आफताब आलम अंसारी, शहाबुद्दीन, जंग बहादुर खान, मो0 शरीफ, गुलाब खान, कौसर फारूकी, फहीम अरशद अंसारी, मो0 याकूब, नासिर हुसैन, जलालुद्दीन, नौशाद, मो0 अली अकबर हुसैन, शेख मुख्तार, अजीजुर्रहमान और नूर इस्लाम को आतंकवादी घटनाओं या गतिविधियों में लिप्त करार देकर जेल भेजा गया तो वहीं मुलायम सिंह या अखिलेश यादव सरकार भी मुसलमानों को नुकसान पहुँचाने में किसी से पीछे नहीं रही और मौजूदा सपा सरकार में प्रायोजित तरीके से सरकारी मशीनरी के संरक्षण में साम्प्रदायिक दंगे कराए गए, जमकर मुसलमानों की सम्पत्तियों को लूटा गया। बाद में मुसलमानों पर ही साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप मढ़कर उन्हें जेलों में भेजा गया। मायावती के शासनकाल में हुए कचेहरी बम विस्फोटों के आरोप में झूठे फंसाए गए आरोपी तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी के लिए गठित आर.डी. निमेष कमीशन की रिपोर्ट यदि मायावती ने नहीं जगजाहिर की तो मुलायम के पुत्र अखिलेश यादव की सरकार भी निमेष कमीशन की रिपोर्ट मीडिया में लीक हो जाने के पश्चात भी छुपाए बैठी हुई है। जिसमें तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद को दोषमुक्त करार दिया गया है।
देश की एकता एवं अखण्डता की रक्षा के लिए इस देश के बहुधर्मीय, बहुजातीय, बहुभाषीय स्वरूप को बरकरार रखा जाना आवश्यक है किन्तु साम्राज्यवादी ताकतों के इशारे पर सभी कट्टरपंथी तत्व साँझी संस्कृति-साँझी विरासत को नुकसान पहुँचाकर देश की एकता को कमजोर कर रहे हैं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !