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Archive for दिसम्बर 27th, 2013

इन्सानियत जब शर्मसार हुई

मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में सबसे घिनौनी और मानवता को झकझोर कर रख देने वाली खबर कि इन्सान के रूप में दरिन्दों ने मुस्लिम महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के साथ (जाट समुदाय के लोगों ने) उनके परिवार के सदस्यों के सामने बलात्कार और अभद्रता का व्यवहार किया और उन्हें बन्दी बनाकर रखा। इनमें लिसा़, लांक, बहावड़ी, हसनपुर, मोहम्मदपुर, कुटबा कुटबी, बाग़पत और शामली के बहुत से गाँव प्रमुख हैं।
गाँव लाँक निवासी सलमा पत्नी शहज़ाद ने बताया कि गाँव में हिंसा तो 7 सितम्बर की नंगलामंदौड़ की महापंचायत के बाद से ही शुरू हो गई थी। लगभग रात 8:00 बजे दंगाई हमारे घर में आ गए। मैने अपने पति को वहाँ से भाग जाने के लिए कहा। दंगाइयों ने सबसे पहले तेल डालकर मेरी 4 महीने की बच्ची को जला दिया, फिर मेरे साथ अभद्रता का व्यवहार करने लगे। दंगाइयों में हमारा पड़ोसी कुलदीप और उसके साथ जाट समुदाय के ही अन्य लोग थे। उन्होंने मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया। मैं ऐसी ही हालत में वहाँ से भागी और पूरी रात ईख़ में छुपी रही। सुबह होने पर लोगों ने मुझे वहाँ से निकाला। अब मैं मलकपुरा कैम्प में रह रही हूँ। हमारे गाँव के प्रधान बिल्लू ने हमारी कोई मदद नहीं की। प्रमोद डीलर ने दंगाइयों को मुसलमानों के घर जलाने के लिए तेल दिया। कोई मेडिकल जाँच नहीं हुई। सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने जाँच करने से इन्कार कर दिया था। बच्ची की एफ0आई0आर0 दर्ज हो चुकी है।
लाँक गाँव की ही निवासी वसीला खातून की 12 वर्षीय पुत्री शहनाज़ का सामूहिक बलात्कार कर उस पर तेज़ाब डालकर आग लगा दी। वसीला ने बताया कि दंगाई उनके पड़ोसी जाट और दलित समुदाय के ही थे। जिसमें नीरज कश्यप, संजीव और नीटू ने उसकी बच्ची के साथ बलात्कार किया। घर का सब सामान लूटकर आग लगा दी। उनकी बच्ची तड़प रही थी लेकिन वे वहाँ से अपनी जान बचाकर भागे और हसनपुर पहुँचे। रास्ते में जब बच्चों को भूख लगी तो खाने के लिए बच्चों को मिट्टी दी। इसके बाद उनको मलकपुर भेज दिया गया। जहाँ पर 10 दिन बाद एफ0आई0आर0 दर्ज की गई।
गाँव लिसा़ निवासी 70 वर्षीय असग़री ने हमे बताया कि जब गाँव में दंगा शुरू हो गया तो हम अपना घर छोड़कर भागने लगे तो दंगाई हमारे घर में आ गए उनके हाथों में हथियार थे। दंगाई जाट समुदाय के थे। जिनमें हमारे पड़ोसी मुकेश और आर्यन भी शामिल थे। दंगाइयों ने मेरे नाती उमरदीन को गड़ासे से गला काटकर मार दिया। फिर जब हम जान बचाकर भागे और हमारी बहू वकीला घर पर अकेली रह गई। मोहल्ले के बच्चों ने बाद में हमें बताया कि वकीला डर कर छत की ओर भागी लेकिन दंगाइयों ने उसे पकड़ कर खींच लिया और उसके साथ बलात्कार करने के बाद उसको तीन हिस्सों में काट दिया।
गाँव फुगाना निवासी ख़ुशीर्दा पत्नी नसीम अहमद, ने बताया कि 8 सितम्बर दोपहर 2:00 बजे 68 जाट समुदाय के लोग हाथों में हथियार लिए हमारे घर में आए। उनके साथ हमारे पड़ोसी गौरव, सुभाष, कपिल, उद्देश्य, अमरपाल और रॉकी भी शामिल थे। उन सब ने मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया और मुझसे कहने लगे कि अगर तुमने भागने की कोशिश की तो हम तुम्हें जान से मार डालेंगे। मैं ऐसी ही हालत में वहाँ से भागी। रात 11:30 बजे फोन पर सम्पर्क के ज़रिए मैं अपने पति से जोगिया खेड़ा के जंगल में मिली। थाना फुगाना में हमारी एफ0आई0आर0 दर्ज नहीं की गई। सरकारी अस्पताल गए तो डॉक्टर ने मेडिकल जाँच करने से इन्कार कर दिया। एस0पी0 कल्पना ने कहा कि ’तुम झूठे केस लिए फिरते हो’। इसके बाद से हम जौला गाँव में रह रहे हैं। हमारी एफ0आई0आर0 दर्ज हो चुकी है। फुगाना निवासी फ़हमीदा पत्नी युसुफ़, घर पर अकेली थी। बच्चों को पहले ही बु़ाना भेज दिया था। पति भी घर पर नहीं थे। 8 सितम्बर दोपहर करीब 2:00 बजे जाट और सैनी समुदाय के 6 लोग सचिन, वेदपाल, नेक सिंह सैनी, राजपाल, नरेन्द्र और योगेश ने हमारे घर पर हमला बोल दिया। सभी लोग हमारे मोहल्ले के ही थे। सबके हाथों में हथियार थे। मैं डर कर भागने लगी तो उन्होंने मेरी चोटी खींच ली और फिर मेरे हाथपैर पकड़े और मेरे साथ ज़बरदस्ती करने लगे। उन्होंने सामूहिक रूप से मेरे साथ बलात्कार किया, और मैं बेहोश हो गई। जब मुझे होश आया तो मै अपनी जान बचाकर वहाँ से भागी और मैं लोई गाँव पहुँची। फिर सरकारी अस्पताल गई, डाक्टर ने मेडिकल जाँच करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद जोगिया खेड़ा आई और फिर 15 दिन बाद यहाँ मेरी मेडिकल जाँच हुई। एफ0आई0आर0 दर्ज हो चुकी है।
गाँव फुगाना निवासी शबनम पत्नी शहज़ाद, ने बताया कि जब गाँव में दंगा शुरू हो गया तो प्रधान हरपाल ने मुसलमानों से विनती की कि वे गाँव छोड़कर न जाएँ। 8 सितम्बर की सुबह 45 लोगों ने घर पर हमला किया। उनके हाथों में हथियार थे। अपने पति को मैंने जान बचाकर भाग जाने के लिए कहा। बच्चे और मैं घर पर ही थे। दंगाइयों में राहुल, सुधीर और मोहित भी शामिल थे। सभी दंगाई जाट समुदाय के थे। उन्होंने मेरे बच्चों की नज़रों के सामने ही मेरा सामूहिक रूप से बलात्कार किया। सब सामान लूट लिया, घर जला दिया, कुछ नहीं छोड़ा। हमारे मोहल्ले में 16 घर मुसलमानों के थे, दंगे में सभी घर जला दिए गए। सेना ने हमें वहाँ से निकाला। मेडिकल जाँच नहीं हुई। डाक्टर ने कहा ’शादी शुदा की मेडिकल जाँच नहीं होती’। 15 दिन बाद एफ0आई0आर0 दर्ज हुई। सरकारी मेडिकल जाँच अभी तक नहीं हुई।
गाँव फुगाना की ही 22 वर्षीय फ़रज़ाना पत्नी शकील, ने बताया कि 8 सितम्बर हम अपने घर पर बैठे हुए थे तो शोर की आवाज़ सुनकर मेरे पति बाहर गए, इतने में जाट समुदाय के करीब 5 आदमी हाथों में हथियार लिए हुए हमारे घर में दाखिल हुए। मेरे साथ ज़बरदस्ती करने लगे। उन्होंने मेरे हाथपैर पकड़े और मुझे नीचे गिरा दिया, और सब ने बारीबारी से मेरे साथ बलात्कार किया। उनमें 3 मेरे पड़ौसी बदलू, नीरु और अमरदीप भी शामिल थे। मैं वहाँ से भागकर जोगिया खेड़ा पहुँची। अस्पताल गई तो डॉक्टर ने मेडिकल जाँच करने इन्कार कर दिया। 8 दिन बाद एफ0आई0आर0 दर्ज हुई।
गाँव फुगाना की एक और महिला 22 वर्षीय तस्मीम पत्नी मुस्तकीम ने हमें बताया कि 8 सितम्बर की सुबह 4 आदमी ज़बरदस्ती घर में आए, सबके हाथों में हथियार थे। घर में घुसने के बाद उन्होंने तोड़फोड़ की और फिर मेरे साथ हाथापाई करने लगे। सभी जाट थे। उन चारों ने मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया। मैं सभी को अच्छी तरह से जानती थी। उनके नाम हैं संजीव, रामदीन, रूपेश और पशमिन्दर। इसके बाद रामदीन ने कहा कि डीज़ल ले आओ इनके घर को आग लगा दो। मैं वहाँ से जान बचाकर भागी। मेरे घर के सभी लोग जोगिया खेड़ा में थे। कोई मेडिकल जाँच नहीं हुई, और एफ0आई0आर0 भी दर्ज नहीं है। जोगिया खेड़ा थाने में गई तो पुलिस ने कहा कि अपने थाने जाओ।
न जाने कितनी महिलाओं और लड़कियों को बलात्कार करने के बाद मार दिया गया और न जाने कितनी अभी तक लापता हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल
मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के कस्बों और गाँवों में जब साम्प्रदायिकता का तांडव चल रहा था और चारो ओर हाहाकार और कोहराम मच रहा था। वहीं कुछ ऐसे गाँव भी हैं जहाँ पर हिन्दूमुस्लिम-जाट ने अपने गाँवों में हिंसा न होने देने के लिए पंचायतें कीं। इन गाँवों में से घासीपुरा, हरसौली और निरमानी गाँव का हमने दौरा किया।
सबसे पहले हम निरमानी गाँव पहुँचे 6000 की आबादी वाले इस गाँव में 2000 से ज़्यादा मुसलमान हैं। जिनमें अधिकतर मुस्लिमजाट हैं। हमारी मुलाकात पूर्व सरपंच और पूर्व प्रधान एनुद्दीन से हुईं। उस समय उनकी बैठक पर दोनों समुदायों के 50 लोग बैठे थे। उन्होंने हमें बताया कि, ’’इस गाँव से न तो कोई पलायन हुआ और न ही हिंसा। हाल की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए उनका गला भर आया, उन्होंने बताया कि सच कहूँ तो 7 तारीख़ के झगड़े के बाद मुँह तक खाना नहीं गया। कई दिन रोते रहे, दुःख इस बात का है जाटमुस्लिम भाईचारा क्यों टूटा? हमें साज़िश करके लड़या गया है। शासनप्रशासन की भूमिका और भाजपा की चाल को नई पी़ी समझ नहीं रही है। महापंचायत को उनके हवाले कर दिया गया। उन्होंने कहा, कि हमें किसी से कोई शिकवा नही हमारे जाट भाइयों में क्यों बिगाड़ आया?’’
बु़ाना मार्ग पर ही थोड़ा सा आगे हरसौली गाँव में बलियान खाप के थांबेदार चौधरी तपे सिंह की चौपाल पर हिन्दूमुस्लिम एकत्र थे। क़रीब 15000 आबादी वाले इस गाँव में उनकी संख्या करीब आधीआधी है। यहाँ पर हिन्दू जाट भी हैं ओर मुस्लिम जाट भी हैं। तपे सिंह कहते हैं इस गाँव में हम लोग (जाटमुले जाट) एक दादा की औलाद हैं। दादी दो थीं एक के हम हैं और एक के वे। सन 1947 में भी हमने महापंचायत करके तय कर लिया था कि बाहरी लोगों से ख़ुद निपट लेंगे। इस बार भी पंचायत कर तय कर लिया था कि न फ़साद करेंगे न पलायन होने देंगे। नाम गिनाते हुए कहते हैं कि हमारे दूसरे गाँवों में कहीं झगड़े नहीं हुए। सिफ़र पुरबालियान में फ़साद हुआ। वह हमारा आधा गाँव है। अब कोशिश करेंगे कि जहाँ झगड़े हुए हैं वहाँ कमेटियाँ बना कर दिलों की दूरियाँ कम की जाएँ।
साम्प्रदायिक एकता की मिसाल गाँव ॔घासीपुरा’
मेरठ की ओर क़रीब 11 किमी. चलने के बाद घासीपुरा भी मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले का ही एक गाँव है। इस गाँव ने भी साम्प्रदायिकता की आग को अपनी सरहदों तक नहीं आने दिया। वहाँ पहुँचने पर हमने देखा कि यहाँ हिन्दू मुसलमानों को ाढ़स बँधा रहे थे। सबसे पहले हमारी बात गाँव के बुजुर्ग 62 वर्षीय नेत्रपाल से हुई, उन्होंने कहा, घासीपुरा गाँव में कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि यहाँ के बच्चे अब भी बुज़ुर्गों की बात मानते हैं। नेत्रपाल की बात में दम था।
एक और युवा प्रवीण सिंह ने नेत्रपाल की बात की तस्दीक की, उसने भी बताया कि गाँव के लोगों के मिलनसार होने की वजह यह है कि सभी बुज़ुर्गों की बात मानते हैं।
पास खड़े 49 वर्षीय अफ़ज़ाल ने बताया ’’मैं बचपन से इस गाँव में रह रहा हूँ। यहाँ के लोगों में मोहब्बत है। यही वजह है कि यहाँ से मात्र चारपाँच कि.मी. दूर पुरबालियान में फ़ायरिंग हुई, लेकिन हमें फिर भी कोई डर नहीं है। हमें अपने गाँव के लोगों की मोहब्बत पर पूरा भरोसा है।’’
हिंसा का शिकार हुआ मन्सूरपुर भी घासीपुरा से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर है। यहाँ मौजूद लोगों के चेहरे देखकर यह कहना मुश्किल है कौन हिन्दू है? कौन मुसलमान? घासीपुरा, निरमानी और हरसौली मुजफ़्फ़नगर के शायद अकेले ऐसे गाँव नहीं हैं जहाँ गाँव वाले नफ़रत से आपस में नहीं लड़ रहे हैं। हो सकता है ऐसे और भी गाँव हों। देखना यह है कि अफ़वाहों और नफ़रत के इस जंग में प्रशासन इनका साथ दे पाता है या नहीं। दंगा प्रभावित क्षेत्र
मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के क़रीब 100 गाँव दंगे से बुरी तरह प्रभवित हुए। 54 गाँवों से एक समुदाय के लगभग 50,000 से अधिक लोग हिंसा के बाद पलायन कर गए। 40 से भी ज़्यादा जगहों पर शरणार्थियों को जगह मिली है। छोटी सरकार से बड़ी सरकार तक ज़िले में पहुँचीं, लेकिन अभी तक कोई भी ऐसा ब्लूप्रिन्ट सामने नहीं आया जिससे पलायन कर गए लोगों को वापस उनके गाँव लौटाया जा सके। प्रशासन के स्तर पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हल़फ़नामे के अनुसार मुज़फफ़रनगर के 54 गाँव, शामली ज़िले के 31 और शामली के 23 गाँवों से लोगों ने हिंसा के बाद पलायन किया। लगभग 40 ऐसे गाँव हैं जहाँ से लोग दहशत के चलते घर छोड़कर चले गए। दोनों ज़िलों में 31 जगहों के लोग बड़े दिलवाले निकले और पलायन कर गए लोगों को शरण दी।
मुज़फफ़रनगर : बराल, बावली, सोंठा, बदरखा, किशनपुर, शेरपुर, धनौरा, लोहीरा, बामजोली, बिहारीपुर, माँगोजोली, आलम माजरा, डोंगर, हटाना, शीरी ख़ुर्द, खेड़ा, भोपा, लांक, मन्सूरपुर, खतौली,, शाहपुर बसी, धौलरा, ग़ी, गोड़ा, गोयला, बु़ाना, काकड़ा, सिसौली, कुरावली, खरड़, मोहम्मद पुर, खैनी ग़ी, रामराज सिखरेड़ा, करवा, टिकरी, तगाना, पैरोरी, उमरपुर, बुन्दुखेड़ा, लाख बावड़ी, हरौली गाँव, नागंल, भगवानपुर और मुज़फफरनगर शहर समेत 54 गाँवों में साम्प्रदायिक हिंसा हुई। जिसमें फुगाना, लिहसा़, जौली गंगनहर बहावड़ी और कुटबा कुटबी में सबसे ज़्यादा हिंसा हुई।
शामली : कुरमाली, थानाभवन और शामली शहर समेत शामली ज़िले के 23 गाँव हिंसा की चपेट में आ गए।
मेरठ : मवाना, बहसूमा, निलोहा, हस्तिनापुर में भी हिंसा हुई और मेरठ शहर में अभी भी स्थिति तनाव पूर्ण बनी हुई है।
बाग़पत : छपरौली, बड़ौत और बाग़पत शहर आदि में भी हिंसा हुई।
सहारनपुर : देवबन्द, गंगोह, रामपुर मनिहारान, नागल समेत सहारनपुर शहर में भी हिंसा हुई।
इस साम्प्रदायिक दंगे के परिणाम स्वरूप पिश्चमी उ0प्र0 के मुरादाबाद ज़िले समेत पूर्वी उ0प्र0 में भी तनाव व्याप्त है। हुआ यूँ कि मुरादाबाद हिन्दू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा समुदाय विशोष को लेकर पोस्टर पर प्रतिकूल टिप्पणी से शहर में साम्प्रदायिक तनाव हो गया। पूर्वी उ0प्र0 के कई क्षेत्ऱों से भी साम्प्रदायिक हिंसा की ख़बरें मिलीं। जिसमें बहराइच के दर्जीपुरवा क्षेत्र में रात 10:30 बजे लाउड स्पीकर को लेकर बवाल हो गया जिसमें 24 लोग घायल हो गए। कुशीनगर में शव दफ़न करने को लेकर एक वर्ग लामबन्द हुआ और बनारस के चार भाजपा विधायकों ने 12.9.2013 को उग्र भाषण देते हुए मुज़फ्फरनगर की तरफ़ कूच किया लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया उसके बाद वे अनशन पर बैठ गए।
दंगे में पुलिस की पक्षपात पूर्ण भूमिका के लिए डी.आई.जी. समेत कुछ अधिकारियों को स्थानान्ति्रत किया गया। गृह सचिव कमल सक्सेना के अनुसार, सहारनपुर रेंज में डी.आई.जी. डी.सी. मिश्रा की जगह अशोक मुथा जैन, मुज़फ़्फ़रनगर में एस.एस.पी. सुभाष चन्द्र दुबे की जगह प्रवीण कुमार और शामली के एस.पी. अब्दुल हमीद की जगह अनिल कुमार राय की तैनाती की गई। दंगा भड़काने के आरोप में लगभग 800 लोगों के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया है।
ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के डी.एम. कौशल राज शर्मा ने बताया कि शासन ने कंवाल के अलावा हिंसा में मरे तमाम लोगों को 1010 लाख रुपये, गम्भीर रुप से घायलों को 5050 हज़ार रुपये और घायलों को 2020 हज़ार रुपये देने के आदेश दिए हैं। उन्होंने बताया कि हिंसा में हुए नुकसान का आंकलन कराया जा रहा है। इस नुकसान की मुआवज़ा राशि पीड़ित परिवारों को दी जाएगी। इनमें शाहनवाज़, सचिन और गौरव भी शामिल हैं।
दंगे में हुए कुछ घायल और मृतक
सरकारी आँकड़ों के अनुसार मृतकों की संख्या 5060 है, जबकि कैम्पों में रह रहे प्रत्यक्षदिशर्यों के अनुसार इस साम्प्रदायिक हिंसा में घायलों और मृतकों की संख्या इससे कहीं अधिक है। जिन परिवारों से हमारा सम्पर्क हुआ, और हमने बातचीत की उन परिवारों के मृतकों की सूची अग्रलिखित हैः
सूची मृतक दिनांक07.09.2013 की घटना थाना ’भोपा’

1. सोहनबीर पुत्र कृपाल सिंह, निवासी भोकरहेड़ी, थाना, भोपा, मुजफ्फरनगर।
2. अजय पुत्र करण, निवासी सहमतपुर, थाना भोपा, मुजफ्फरनगर।
3. ब्रजपाल पुत्र हुकम सिंह, निवासी बसेडा़, थाना छपार, मुजफ्फरनगर।
4. नज़र मोहम्मद पुत्र मूसा, निवासी खेड़ी फिरोज़ाबाद, थाना ककरौली, मुजफ्फरनगर।
5. सलमान पुत्र उमर, निवासी तेवड़ा, थाना ककरौली, मुजफ्फरनगर
6. लताफत पुत्र मुस्तफ़ा, निवासी खेड़ी फ़िरोज़ाबाद, थाना ककरौली, मुजफ्फरनगर।
7. मोहम्मद नाज़िम पुत्र मुस्तफ़ा सैफ़ी, निवासी लाक, थाना फुगाना, शामली
सूची मृतक गाँव ’लाक’ दिनांक8.9.2013
1. अबलू लुहार, पट्टी भिटरवल सन्नी वाला
2. कासिम डोम, पट्टी मोघा
3. नसरु धोबी ज़िन्दा जला दिया गया।
4. 9 सितम्बर को एक महिला और उसके बेटे का मृतक शरीर प्रप्त हुआ। 8.9.2013 को ही फुगाना में भी 5 लोगों की हत्या की गई।
5. यामीन धोबी ज़िन्दा जला दिया गया।
6. ताहिर पुत्र गंजा वहीद
7. गंजा वहीद की पुत्रवधु
8. गंजा वहीद का एक और पुत्र
9. मेहरदीन तेली, पट्टी मोघा
मृतक सूची गाँव ’बजीटपुर’ दिनांक8.9.2013
1. यामीन का नाती
2. इकबाल, धोबी
घायल : 1. यामीन 2. कमरुद्दीन
सूची मृतक गाँव ’लिसा़’
दिनांक8.9.2013
1. नब्बू धोबी
2. मन्ज़ूरा
3. सिराजुद्दीन और उसकी पत्नी
4. करमू लुहार और उसकी पत्नी
5. भुट्टू परिवार के 7 सदस्य (जीवाँ धोबी, जीवाँ धोबी की पत्नी, बेटा, और जीवाँ धोबी के 2 नाती)
6. बाटी लुहार, आदि
7. एक ही दिन में 14 लोगों की हत्या की गई और अन्य कई घायल हुए।
8. 8.9.2013 को कुटबा गाँव में 4 लोगों की हत्या की गई।
मृतक सूची गाँव ’बहावड़ी, कुरमाली, खरड और हिंडोली 9.9.2013
1. इकरा पुत्री दिलशाद
2. हसीना पत्नी छज्जू
3. दिलशाद पुत्र छज्जू
4. अज़रा पुत्री आस मोहम्मद
5. ताजुद्दीन
6. शकील धोबी पुत्र जमील अहमद, 40 वर्ष
7. हाफ़िज़ साहेब कारी उमर दराज़
8. जुम्मा पुत्र दीनू को मस्जिद समेत जला दिया गया।
9. सग़ीर मनिहार
गाँव ’लिसा़’ में हुई हिंसा और हत्याओं में संलिप्त असामाजिक तत्वों की सूची
यह सूचना उन व्यक्तियों के द्वारा हमें दी गई जिन परिवारों से लोग घायल हुए और लोगों की मृत्यु हुई
1. सुक्खा पुत्र भूरा
2. अन्जु
3. कपिल पुत्र सतेन्द्र फौजी
4. सुरेन्द्र पुत्र खुब्बी
5. अनुज पुत्र चन्दर
6. बीनू पुत्र शानू
7. तोशी पुत्र महेन्द्र
8. सन्दीप पुत्र जीवन
9. मोनू पुत्र बिजेन्द्र फौजी
10. सुरेन्द्र उर्फ काला पुत्र माँगी
11. बबलू पुत्र श्याम
12. ऋषिपाल
13. सुरेन्द्र पुत्र चाही
14. बाबा हरिकिशन
15. राजेन्द्र मलिक पुत्र बाबा हरिकिशन
16. नीटू पुत्र रतन सिंह
17. बिजेन्द्र मलिक पुत्र बाबा हरिकिशन
18. सीतु पुत्र सत्य प्रकाश
19. सत्य प्रकाश पुत्र घासी
20. नीटु पुत्र नवाब कोडा
21. अमित पुत्र किशन, सुनार
22. विकास पुत्र सुखपाल
23. मिन्डा पुत्र सुखपाल
24. मनीष पुत्र स्वराज
25. चन्द्र पुत्र मिम्बर
26. बिट्टू पुत्र अत्तर सिंह
27. अंकुश पुत्र सतबीर और अन्य।
गाँव ’लाँक’ में हुई हिंसा और हत्याओं में संलिप्त असामाजिक तत्वों की सूची
यह सुचना उन व्यक्तियों के द्वारा हमें दी गई जिन परिवारों से लोग घायल हुए और लोगों की मृत्यु हुई
1. वीरपाल नाई का भतीजा
2. डॉ0 सुखदेव उर्फ डॉ0 काला का बेटा और माँगी लाल का नाती, पट्टी मोघा
3. चिराग पुत्र रामपाल गिरोलिया
4. पुत्र डॉ0 शिव कुमार और अन्य
5. धरमपाल झींवर
6. शौकिन्द्र प्रधान, सहयोगी, हुकम सिंह
7. धीरज पुत्र भोपाल
8. गाँधी पुत्र मास्टर सत्यपाल
9. भारत पुत्र भौंदा और नाती पूर्व प्रधान मेहर सिंह
10. भौंदा पुत्र मेहर सिंह
11. नवभारत
12. ओमपाल, पट्टी सालान
13.कपिल पुत्र ओमपाल सचिव, पट्टी सालान
14. पुत्र, डॉ0 नरेन्द्र पण्डित
15. विनोद उर्फ मांगी जोगी का जमाई
16. चमन पुत्र सोहन
17. निप्पल पुत्र मास्टर रणधीर
18. सुधीर उर्फ बिल्लू प्रधान
19. महाराज सिंह पुत्र भीम सिंह
20. राज सिंह पुत्र भीम सिंह
21. सचिन पुत्र साहब सिंह फ़ौजी, पट्टी
22. साहब सिंह, पट्टी मोघा
23. बब्लू पुत्र सोहनधर
24. दीपक पुत्र मास्टर जसवन्त
25. राहुल मलिक पुत्र राजबीर, पट्टी सालान
प्रशासन की भूमिका
पिछले वर्ष हुए साम्प्रदायिक दंगों कोसीकलाँ, प्रतापग़, बरेली, गाज़ियाबाद और फ़ैज़ाबाद आदि की कड़ुवाहट अभी ख़त्म भी नहीं हो पाई थी कि इन दंगों की कड़ी में हाल ही में मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और मुस्लिमों के बीच साम्प्रदायिक दंगा भड़क उठा। इस दंगे को आज़ाद हिन्दुस्तान में गुजरात के बाद सबसे बड़ा दंगा कहा जा रहा है। इस क्षेत्र में इमेरजेंसी के समय दंगा भड़का था लेकिन उसकी सूरत ऐसी नहीं थी जिसको देखकर मुर्दा दिल भी पसीज जाए। इस साम्प्रदायिक दंगे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मुसलमानों का न कोई मार्गदशर्क है और न ही कोई उनकी सुनने वाला है। राजनैतिक गलियों में मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा जाता है और कुछ नहीं। इस दंगे को आर.एस.एस. की साज़िश बताया जा रहा है, और कुछ लोग इसे सरकार की नाकामी का नाम दे रहे हैं। दंगे में मरने वालों में सबसे अधिक संख्या में मुसलमान हैं विशोष रूप से बुर्जुगों और मुस्लिम लड़कियों को निशाना बनाया गया। जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम है वहाँ खास तौर से मुसलमानों पर हमले हुए। उ0प्र0 सरकार ने मौक़े पर लापरवाही बरती है। यह सब सरकार और प्रशासन की सुस्ती का नतीजा है। प्रशासन ने समय पर कार्यवाही न करके एक बार फिर निष्क्रियता का परिचय दिया है। पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता के चलते साम्प्रदायिक तत्व अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होते जा रहे हैं।
दंगे के दौरान प्रशासन का रवैया
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों को लेकर उ0प्र0 सरकार संदेह के घेरे में है। जब सरकार को इन हालात के बारे में मालूम था तो उन्होंने समय रहते कार्यवाही क्यों नहीं की। यह पहली बार हुआ कि एक के बाद एक मुस्लिम संगठन अखिलेश सरकार हटाने की माँग करने लगे। साम्प्रदायिकता के खेल के दूसरे सिरे पर भा.ज.पा. है जिसे उ0प्र0 जैसे बड़े राज्य में हमेशा किसी ऐसे अवसर की तलाश रहती है। पिछले अवसरों के मुक़ाबले में इस बार फ़र्क सिफ़र इतना है कि यह माहौल बनाकर मुलायम सिंह और इनकी पार्टी की सरकार ने भाजपा को यह अवसर सौग़ात में दे दिया। चौरासी कोसी परिक्रमा की नाकाम कोशिश के बहाने जो भा.ज.पा. नहीं कर पाई वो रास्ता समाजवादी पार्टी ने उसके लिए आसान कर दिया। यही नहीं मुज़फ्फरनगर के इस दंगे ने चौधरी चरण सिंह के समय से बनी मुस्लिम और जाटों की बरसों पुरानी एकता को भी तोड़ दिया। दंगे पहली बार शहर से निकलकर गाँव तक पहुँच गए। दंगों पर अफ़सोस करने वाले भाजपा नेताओं की दबी हुई ख़ुशी उनके चेहरों से देखते ही झलकती है।
भाजपा के सभी नेता अपनी सफ़ाई पेश करने में लगे हैं, और महापंचायत का ठीकरा एक दूसरे के सर पर फोड़ रहे हैं। यह महापंचायत ही मुज़फ़्फ़रनगर के दंगे की जड़ बनी। भाजपा नेताओं ने पंचायत में जाटों को मुसलमानो के ख़िलाफ़ भड़काया। अब यह सभी नेता ख़ुद को बेगुनाह बता रहे हैं और इस महापंचायत को ’’बेटी बचाओ पंचायत’’ का नाम दे रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि ’बेटी बचाओ पंचायत’ में हथियारों की क्या ज़रुरत थी। जो लोग हाथों में लाठी, डंडे और नंगी तलवारें लेकर आए, प्रशासन ने उनको क्यों नहीं रोका और पंचायत में मुसलमानों के खिलाफ़ ज़हर क्यों उगला गया। इन सभी बातों से यह साबित होता है कि यह महापंचायत एक सोची समझी साज़िशके तहत बुलाई गई थी। दंगा भड़काने के इल्ज़ाम में भाजपा के कई बड़े नेता, हुकम सिंह, सुरेश राना, भारतेंदु संगीत सोम, साध्वी प्राची और इनके अलावा चौ0 टिकैत के दोनों बेटे नरेश टिकैत, राकेश टिकैत और हरिन्दर मलिक और ’बहुजन समाज पार्टी’ के नूर सलीम राना और कादिर राना पर भी मुक़द्मा दर्ज किया गया था। इनमें भाजपा के सुरेश राणा और संगीत सिंह सोम को गिरफ़्तार कर लिया गया। संगीत सिंह सोम और भाजपा विधायक सुरेश राणा पर 31 अगस्त और 7 सितम्बर की नंगला मंदौड़ की महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने और हिंसा भड़काने के आरोप में रासुका लगाई गई।
1. पिछले 89 महीनों से ज़िले में साम्प्रदायिक प्रक्रिया के संकेत दिखाई दे रहे थे। लेकिन प्रशासन और राज्य खुफ़िया विभाग ख़तरे का आंकलन करने में विफ़ल रहा या नफ़रत फैलाने में संघ के साथ मिल गया।
2. जब एस0एच0ओ0 फुगाना, एस0एच0ओ0 भौंराकला और एस0एस0पी0 ने कोई जवाब नहीं दिया, तो सहारनपुर रेंज के आयुक्त सेना के साथ गाँव के लिए रवाना हुए। उन्होंने 2000 से अधिक लोगों की जान बचाई।
3. अधिकांश एफ0आई0आर0 नाम से पंजीकृत हो रही हैं, लेकिन आरोपी अभी भी मुक्त घूम रहे हैं।
4. गाँव लिसाड़ के अजीत प्रधान साम्प्रदायिक हिंसा के समय पुलिस के साथ था। वह लगभग 20 एफ0आई0आर0 में नामित किया गया है।
5. इन पुलिस थानों में तैनात अधिकांश पुलिस कर्मियों में जो जाट समुदाय से थे, वे दंगाइयों के साथ मिल गए थे।
6. पुलिस कर्मियों में से अधिकांश अपने व्यवहार में अत्यधिक पक्षपातपूर्ण थे।
7. कई दंगा पीड़ितों ने हमें बताया, पुलिस कर्मियों ने उनसे कहा कि, ’’वे उन्हें नहीं बचा सकते क्योंकि वे मुसलमान हैं।’’
8. स्थानीय पुलिस थानों में तैनात लोग मुसलमानों के खिलाफ़ पक्षपातपूर्ण हैं। जिसके परिणाम स्वरूप थानों में मामले दर्ज नहीं किए जा रहे।
9. घटना के दिन , सुबह से ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थाने में फोन कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने कोई भी प्रतिक्रिया करने से इन्कार कर दिया।
10. पर्याप्त पुलिस व्यवस्था भी परिस्थितियों को सँभाल नहीं सकी, जो कि पिछले 8 से 9 महीनों के लिए विकसित की गई थी।
नारे
1.’’तुमने दो को मारा है, हम सौ
कटवे मारेंगे।’’
2.’’सोनीसोनी लड़कियों के सिन्दूर
भर देंगे, बाकियों को काट देंगे।’’
3.’’ मोदी लाओ, देश बचाओ।’’
4.’’मोदी को लाना है, गोधरा बनाना
है।’’
5.’’देश, बहू और गाय को बचाना
है, तो नरेन्द्र मोदी को लाना है।’’
6’’मुसलमानों का एक स्थान
कब्रिस्तान या पाकिस्तान।’’

-डा0 मोहम्मद आरिफ

क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित

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