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Archive for मार्च, 2015

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उसके सहयोगी संगठन धर्म जागरण मंच ने इन दिनों देश में धर्म परिवर्तन कराए जाने का एक अभियान छेड़ रखा है। कहीं मुस्लिम तो कहीं ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को बीपीएल कार्ड बनावाए जाने अथवा नकद पैसे देकर उनका धर्म परिवर्तन कराए जाने की मुहिम को यह ‘घर वापसी’ का नाम दे रहे हैं। घर वापसी के इन योजनाकारों द्वारा यह बताया जा रहा है कि चूंकि हज़ारों वर्ष पूर्व भारत में रहने वाले मुसलमानों व ईसाईयों के पूर्वजों  द्वारा हिंदू धर्म त्यागकर इस्लाम व ईसाई धर्म स्वीकार किया गया था। लिहाज़ा अब इनके वंशजों की अपने ही मूल धर्म अर्थात् हिंदू धर्म में वापसी होनी चाहिए।  प्रोपेगंडा के तौर पर इन्होंने देश में कई स्थानों पर हवन आदि कर कुछ ऐसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जिनके बारे में यह प्रचारित किया गया कि यह ‘घर वापसी’ के कार्यक्रम थे जिनमें सैकड़ों मुस्लिम परिवारों के सदस्यों ने पुन: हिंदू धर्म अपनाया। हालांकि बाद में इस कार्यक्रम में कथित रूप से ‘घर वापसी’ करने वाले कई लोगों द्वारा यह भी बताया गया कि उन्हें किस प्रकार नकद धनराशि का लालच देकर व उनके बीपीएल के पीले कार्ड बनवाने का भरोसा दिलाकर उन्हें हिंदू बनने तथा हवन में बैठने के लिए तैयार किया गया। हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एजेंडों को राजनैतिक जामा पहनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद इस प्रकार की और भी कई सांप्रदायिकतापूर्ण विवादित बातें सुनाई दे रही हैं। परंतु धर्म परिवर्तन अथवा उनके शब्दों में ‘घर वापसी’ जैसे मुद्दे ने भारतीय मुसलमानों व ईसाईयों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि धर्मनिरपेक्ष संविधान पर संचालित होने वाली देश की सत्ता का चेहरा क्या अब धर्मनिरपेक्षता से अलग हटकर हिंदुत्ववादी होने जा रहा है? या फिर इस तरह की बातें प्रचारित करने के पीछे केवल यही मकसद है कि ऐसे विवादित बयान देकर तथा सांप्रदायिकता का वातावरण कायम रखकर देश के हिंदू मतों का ध्रुवीकरण कर सत्ता में स्थायी रूप से बने रहने के उपाय सुनिश्चित किए जा सकें?

घर वापसी के नायकों द्वारा कहा जा रहा है कि छठी शताब्दी के बाद भारत में आक्रमणकारी मुगल शासकों द्वारा बड़े पैमाने पर भय फैलाकर धर्म परिवर्तन कराया गया। यदि इनकी बातों को सही मान भी लिया जाए तो भी क्या हज़ारों वर्ष पूर्व आज के मुसलमानों के पूर्वजों द्वारा जो धर्म परिवर्तन किया गया था आज उनके वंशज अपने पूर्वजों के फैसलों का पश्चाताप करते हुए पुन: हिंदू धर्म में वापस जाने की कल्पना कर सकते हैं? इस विषय को और आसानी से समझने के लिए हमें वर्तमान सांसारिक जीवन के कुछ उदाहरणों से रूबरू होना पड़ेगा। मिसाल के तौर पर यदि किसी गांव का कोई व्यक्ति शहर में जाकर किसी कारोबार या नौकरी के माध्यम से अपना जीवकोपार्जन करता है और वह शहर में ही रहकर अपने बच्चो  की परवरिश,उसकी पढ़ाई-लिखाई करता है तथा उसे शहरी संस्कार देता है तो क्या भविष्य में उस शहर में परवरिश पाने वाले उसके बच्चो अपने पिता के स्थाई निवास यानी उसके गांव से कोई लगाव रखेंगे? ज़ाहिर है आज देश में करोड़ों परिवार ऐसे हैं जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए गांवों से शहरों की ओर आए और वहीं बस गए। परिवार का वह बुज़ुर्ग भले ही अपने अंतिम समय में अपने गांव वापस क्यों न चला जाए परंतु उसकी अगली पीढ़ी शहर में ही रहकर अपना जीवन बसर करना मुनासिब समझती है। सिर्फ इसलिए कि उसके संस्कार शहरी हैं। इसी प्रकार जो भारतीय लोग विदेशों में जा बसते हैं और वहीं उनके बच्चो पैदा होते हैं वे बच्चो भारत में आकर रहना व बसना कतई पसंद नहीं करते। क्योंकि उनके संस्कार विदेशी हैं। एक विवाहित महिला अपने विवाह पूर्व के संस्कार नहीं छोडऩा चाहती क्योंकि उसका पालन-पोषण युवावस्था तक उसके अपने मायके में हुआ होता है। उसे वहीं के संस्कार अच्छे लगते हैं। इसी प्रकार गांव के बुज़ुर्गों को कभी-कभार किसी कारणवश शहर आना पड़े तो उन्हें शहर की तेज़रफ्तार  जि़ंदगी,यहां का शोर-शराबा,प्रदूषण,अफरा-तफरी का माहौल यह सब रास नहीं आता। क्योंकि उनके संस्कार गांव के शांतिपूर्ण,प्रदूषणमुक्त व परस्पर सहयोग व सद्भाव के हैं।

सवाल यह है कि जब बीस-पच्चीस  और सौ साल के संस्कारों को और वह भी सांसारिक जीवन के संस्कारों को आप बदल नहीं सकते फिर आज सैकड़ों और हज़ारों वर्ष पूर्व विरासत में मिले धार्मिक संस्कारों को कैसे बदला जा सकता है? और वह भी ऐसे धार्मिक संस्कार जिनकी घुट्टी प्रत्येक धर्म के माता-पिता द्वारा अपने बच्चो को पैदा होते ही पिलानी शुरु कर दी जाती हो? शहर में रहने वाले किसी जीन्सधारी युवक से यदि आप कहें कि वह अपने दादा की तरह लुंगी या धोती पहनने लगे तो क्या वह युवक उस लिबास को धारण कर सकेगा? कतई नहीं। क्या आज बच्चो को स्लेट व तख्ती  पर पुन: पढ़ाया जा सकता है? हरगिज़ नहीं। कहने का तात्पर्य यह कि समाज का कोई भी वर्ग पीछे मुड़कर न तो देखना पसंद करता है और न ही इसकी कोई ज़रूरत है। फिर आखिर  घर वापसी के नाम पर धर्म परिवर्तन कराए जाने के पाखंड का मकसद यदि सत्ता पर नियंत्रण नहीं तो और क्या है? इसी घर वापसी से जुड़ा एक और सवाल घर वापसी के इन योजनाकारों से यह भी है कि आखिर इसकी सीमाएं निर्धारित करने का अधिकार किसको किसने दिया? क्या सिर्फ मुसलमानों और ईसाईयों की ही घर वापसी से हिंदू धर्म का उत्थान हो जाएगा? आखिर सिख धर्म भी तो हिंदू धर्म की ही एक शाखा  है। सिखों के पहले गुरु नानक देव जी के पिता कालू राम जी भी तो हिंदू ही थे? फिर आखिर सिखों की घर वापसी कराए जाने का साहस क्यों नहीं किया जाता? महात्मा बुद्ध भी हिंदू परिवार में जन्मे थे। आज उनके करोड़ों अनुयायी बौद्ध धर्म का अनुसरण करते दिखाई दे रहे हैं। कई देशों में बौद्ध धर्म के लोग बहुसंख्या  में हैं। क्या यह सांस्कृतिक राष्ट्रवादी उनकी घरवापसी के भी प्रयास कभी करेंगे? चलिए यह बातें तो फिर भी सैकड़ों साल पुरानी हो चुकी हैं। परंतु अभी कुछ ही दशक पूर्व संघ के मुख्यालय नागपुर के ही एक विशाल पार्क में बाबासाहब डा0 भीमराव अंबेडकर के लाखों समर्थकों द्वारा हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया गया था। क्या उनकी घर वापसी भी कराई जाएगी? और एक सवाल यह भी कि क्या सिख धर्म की उत्पत्ति,बौद्ध धर्म का अस्तित्व में आना, देश के लाखों दलितों द्वारा बौद्ध धर्म में शामिल होना इस सब के पीछे भी क्या किसी आक्रांता मु$गल शासक की तलवार का योगदान था? क्या इन लोगों ने भी भयवश या लालचवश इन गैर हिंदू धर्मों का दामन थामा था?

कुल मिलाकर घर वापसी के नाम पर छेड़ी गई यह मुहिम महज़ एक प्रोपेगंडा रूपी राजनैतिक मुहिम है जो हिंदू धर्म के सीधे-सादे व शरीफ लोगों के बीच में स्वयं को हिंदू धर्म का शुभचिंतक जताने व चेताने के लिए छेड़ी गई है। कभी इन्हें पांच व दस बच्चो  पैदा कर हिंदू धर्म को बचाने जैसी भावनात्मक अपील कर इन को जागृत करने के नाम पर स्वयं को हिंदू धर्म का हितैषी दिखाने का प्रयास किया जाता है तो कभी मुसलमानों के चार पत्नियां व चालीस बच्चो होने जैसे झूठी अफवाहें फैलाकर हिंदू धर्म के लोगों में अपनी पैठ मज़बूत की जाती है। आश्यर्च की बात तो यह है कि हिंदुत्व का दंभ भरने वाले इन्हीं तथाकथित हिंदुत्ववादी नेताओं में ऐसे कई नेता मिलेंगे जिनके बेटों व बेटियों ने मुस्लिम परिवारों में शादियां रचा रखी हैं। गोया व्यक्तिगत रूप से तो यह अपना पारिवारिक वातावरण सौहाद्र्रपूर्ण रखना चाहते हैं जबकि मात्र हिंदू वोट बैंक की खातिर समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करने में लगे रहते हैं। अन्यथा यदि इनका मिशन घर वापसी वास्तव में हिंदू धर्म के कल्याण अथवा हिंदू हितों के लिए उठाया गया कदम होता तो इन्हें अपने इस मिशन की शुरुआत गऱीब मुसलमानों अथवा ईसाईयों को पैसों की लालच देकर या उनके पीले कार्ड बनवाने की बात करके नहीं बल्कि सबसे पहले इन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय मंत्रियों नजमा हेपतुल्ला,मुख़्तार  अब्बास नकवी तथा शाहनवाज़ हुसैन जैसे पार्टी नेता की तथाकथित ‘घर वापसी’ कराकर करनी चाहिए न कि गरीबों के बीच अपना पाखंडपूर्ण ‘घर वापसी’ का दुष्प्रचार करके? देश के लोगों को ऐसे दुष्प्रचारों से सचेत रहने की ज़रूरत है। देश का तथा देश के सभी धर्मों व समुदाय के लोगों का कल्याण तथा राष्ट्र की प्रगति इसी में निहित है कि सभी देशवासी मिलजुल कर रहें,एक-दूसरे के धर्मों व उनकी धार्मिक भावनाओं तथा उनके धार्मिक रीति-रिवाजों का सम्मान करें। घर वापसी जैसे ढोंग तथा नाटक से किसी को भयभीत होने या घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह मुहिम हकीकत से कोसों दूर है। और इस मुहिम को महज़ एक फसाना अथवा राजनीति से परिपूर्ण स्क्रिप्ट ही समझा जाना चाहिए।

-तनवीर जाफरी

 

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कोल्हापुर के साबरमल इलाके में 16 फरवरी, सोमवार की सुबह भाकपा महाराष्ट्र के पूर्व राज्य सचिव, केन्द्रीय कन्ट्रोल कमीशन के सचिव और राष्ट्रीय परिषद सदस्य
इस हमले का महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में जोरदार विरोध हुआ और समाज के सभी तबकों से आने वाले जाने माने लोगों एवं बुद्धिजीवियों ने इस हमले की निंदा की। समाज ghoshna patra1के प्रबुद्ध लोगों ने इसे प्रगतिशील विचारों पर हमला बताते हुए इसकी ना केवल कड़े शब्दों में निन्दा की बल्कि महाराष्ट्र और देश में स्वतंत्र, प्रगतिशील और जन समर्थक विचारों वाले लोगों पर बढ़ रही हमले की इन घटनाओं को महाराष्ट्र और देश के लिए एक खतरे की घण्टी बताया।
बुद्धिजीवियों ने इस घटना में सरकार की संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाते हुए धर्मान्ध एवं सांप्रदायिक शक्तियों के बढ़ते हुए आतंक को रेखांकित किया और इस घटना पर गंभीर चिंता व्यक्त की। विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना था कि जिन शक्तियों ने नरेन्द्र दाभोलकर जैसे तर्कशील विचारक के विचारों को खत्म करने की कोशिश की, इस हमले के पीछे भी उन्ही शक्तियों का हाथ है। इसे पूरे सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली घटना बताते हुए अनेक प्रबुद्धजनों ने कहा कि गोविंद पानसरे अंधश्रद्धा उन्मूलन, सामाजिक न्याय और जनपक्षीय सवालों के लिए और सांप्रदायिकता के खिलाफ आजीवन लड़ने वाले व्यक्ति हैं और वर्तमान दौर में ऐसे संघर्षशील व्यक्ति पर हमले का अर्थ जनपक्षीय संघर्ष और जनवादी एवं धर्मनिरपेक्ष परंपरा पर हमला है। हाॅल ही में पानसरे जन विरोधी टोल टैक्स के खिलाफ अभियान चला रहे थे जिसके लिए उन्हे कईं बार धमकियाँ भी मिली थीं। इसके अलावा दो दिन पहले ही पानसरे ने एक कार्यक्रम में गांधी के हत्यारे गोड्से और उनका समर्थन करने वाले लोगों की कड़े शब्दों में निन्दा की थी। कार्यक्रम के बाद एक टीवी चैनल को दिये गए साक्षात्कार में उन्होंने पुरजोर शब्दों में प्रतिक्रियावादी आतंक की निन्दा करते हुए कहा था कि जो लोग तर्क का जवाब तर्क से नहीं दे सकते हैं वे ही तर्क का जवाब गोली से देते हैं और अंत में वे भी ऐसे ही किसी उन्मादी द्वारा चलाई गई गोली का शिकार हो गए। इसके अतिरिक्त पानसरे हेमंत करकरे की हत्या पर उनके द्वारा किए गए कुछ खुलासों को लेकर भी दक्षिणपंथियों के निशाने पर थे। राज्य सरकार इस पूरी घटना को केवल उनके टोल टैक्स अभियान से जोड़कर दुनिया के सामने पेश कर रही है। परंतु उसी राज्य में राज ठाकरे ने टोल टैक्स के खिलाफ अभियान चलाया और उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत और कई अन्य राज्यों में विभिन्न लोग ऐसे आंदोलनों की अगुवाई कर चुके हैं लेकिन उन पर कोई ऐसे हमले नहीं हुए। दरअसल यह उन दक्षिणपंथी आतंकवादियों की करतूत है जिनका सच हेमंत करकरे ने उजागर किया था और जिन्होंने दाभोलकर की हत्या की और अभी तक आजाद घूम रहे हैं।
कामरेड गोविंद पानसरे के द्वारा दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ चलाए जा रहे अथक अभियानों के कारण ही वे हमेशा प्रतिक्रियावादी संगठनों के निशाने पर रहे हैं। इन घोर दक्षिणपंथी ताकतों और कारपोरेट लूट के बीच व्यावसायिक गठजोड़ भी जगजाहिर है और इस हमले को देखते हुए दोनों के बीच साजिशपूर्ण गठजोड़ से भी इंकार नही किया जा सकता है। इस हमले की विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं ने कड़ी निन्दा की है। एनसीपी के नेता शरद पवार ने हमले पर नाराजगी जाहिर करते हुए हमलावरों को तुरंत पकड़ने की माँग की। पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चैहान ने इसे दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा धर्मनिरपेक्षता और जनवाद पर हमला बताया। इस घटना के बाद महाराष्ट्र और देशभर में प्रगतिशील लोगों में गुस्सा फूट पड़ा और हमले के विरोध में जगह जगह पर प्रदर्शन हुए।
इस हमले के विरोध में स्वतःस्फूर्त तरीके से पूरा कोल्हापुर शहर बंद हो गया हजारों की भीड़ सड़कों पर उतर आई। 16 फरवरी को कामरेड पानसरे पर हुए हमले के विरोध से फूटे आक्रोश और प्रतिरोध आंदोलनों के साथ ही हिंदुत्ववादी संगठनों पर रोक की मांग से पूरी महाराष्ट्र सरकार हिल उठी है। 16 फरवरी को जहाँ कोल्हापुर बंद हो गया और लोग सड़कों पर उतर आए और लोगों ने गृहमंत्री का घेराव किया तो वहीं 17 फरवरी को भी इस हमले के विरोध में पूरा शहर विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए मानो सड़क पर उतर गया था। लडेंगे-जीतेंगे का नारा लिखे कामरेड गोविंद पानसरे की तस्वीर हाथों में लिए हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरे लोगों से नगर का सारा जन जीवन ही मानो अस्त व्यस्त हो गया था। इसी प्रकार के प्रदर्शन महाराष्ट्र और देश के अन्य नगरों में भी हुए। मुम्बई में कम से कम तीन स्थानों पर वाम जनवादी दलों और जन संगठनों से जुड़े हुए लोगों ने सड़कों को जाम किया और भाजपा और संघी सरकार के विरोध में नारेबाजी की।
औरंगाबाद
औरंगाबाद में पैठण गेट पर प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के बाद जिलाधिकारी कार्यालय पर मोर्चा निकाला गया। इस प्रदर्शन में भाकपा के राज्य सचिव भालचंद्र कांगो, राम बाहेती, बुद्धिनाथ बराल, माकपा के पंडित मुंडे, सीटू के उद्धव भवलकर, भारिपा-बहुजन महासंघ के अविनाश डोलस, एड.बी.एच. गायकवाड, एड. रमेश भाई खंडागले, पंडितराव तुपे, पैंथर्स रिपब्लिकन पार्टी के नेता गंगाधर गाडे, आप के साथी सुभाष लोमटे, एड. नरेंद्र कापड़िया, उमाकांत राठौड, अभय टाकसाल, मधुकर खिल्लारे, विनोद फरकाडे., अशफाक सलामी, जयश्री गायकवाड़ समेत सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल थे।
पुणे
कम्युनिस्ट पार्टी नेता गोविंद पानसरे और उनकी पत्नी पर हुए हमले के खिलाफ विभिन्न संगठनों ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। इसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल ने जिलाधिकारी सौरभ राव को ज्ञापन सौंपा।
फड़णवीस सरकार मुर्दाबाद, हम सब पानसरे, अपराधियों का सर्मथन करने वाली पुलिस हाय-हाय, जैसे नारों के साथ कार्यकर्ताओं ने पानसरे पर हमले का विरोध जताया। इस दौरान अजीत अभयंकर, सुनिति सुर, प्रा. म. ना. कांबले, अनूप अवस्थी, विठ्ठल सातव, अलका जोशी, किरण मोघे, मुक्ता मनोहर, विद्या बाल, किशोर ढमाले, मनीषा गुप्ते, संतोष म्हस्के, तृप्ति देसाई आदि मौजूद थे। अभ्यंकर ने बताया कि 19 फरवरी को शाम 5 बजे मंडई से रैली निकालकर हमले का विरोध किया जाएगा। इस वक्त गोविंद पानसरे की ‘शिवाजी कोण होता‘ पुस्तक की स्क्रीनिंग भी की जाएगी।
गोविंद पानसरे पर हुए हमले के विरोध में पूरे महाराष्ट्र में लोगों में गुस्सा फूट पड़ा है और वे सड़कों पर उतर आए सोलापुर, औरंगाबाद, नान्देड़, बीड़, पुणे, नागपुर, अहमदनगर, मुम्बई, नासिक शहर और देहात के अलावा महाराष्ट्र का कोई भी जिला ऐसा नहीं था जहाँ पर इस हमले का प्रतिकार नहीं किया गया हो। कामरेड गोविंद पानसरे पर हमले के विरोध में पूरा कोल्हापुर शहर मानो ठप्प ही हो गया था। शहर में जब महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री पानसरे और उनकी पत्नी उमा पानसरे का हालचाल लेने पहँुचे तो हमले के कारण गुस्साए हजारों लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इसके अलावा केरल से लेकर जम्मू कश्मीर तक देश के विभिन्न राज्यों में अनेक जन संगठनों ने बयानों द्वारा अथवा सड़क पर उतरकर इस हमले की तीव्र निन्दा की। दिल्ली
गोविन्द पानसरे पर हुए जानलेवा हमले के खिलाफ पूरे देश में एआईएसएफ द्वारा प्रतिरोध जारी है। इस सिलसिले में महाराष्ट्र सरकार का पुतला फूँककर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने प्रतिरोध में एक कड़ी जोड़ी। इसके अलावा एआईएसएफ, एआईवायएफ और भाकपा सहित कई अन्य वाम संगठनों ने दिल्ली के महाराष्ट्र सदन पर प्रदर्शन कर अपने गुस्से का इजहार किया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व विश्वजीत कुमार, अमित कुमार, संजीव कुमार राणा, अमीक जमई एवं आनन्द शर्मा ने किया।
पानसरे की मृत्यु की खबर प्राप्त होने के बाद फिर से लोगों का आक्रोश फूट पड़ा और दिल्ली से लेकर केरल तक विरोध प्रदर्शनों की मानो झड़ी ही लग गई। एआईएसएफ और एआईवायएफ ने नई दिल्ली के नार्थ ब्लाॅक में गृहमंत्रालय पर प्रदर्शन किया जहाँ से उन्हें गिरफ्तार करके संसद मार्ग थाने भेज दिया गया था।
गोविंद पानसरे व उनकी पत्नी उमा पानसरे पर अज्ञात बंदूकधारियों ने जानलेवा हमला किया। चार दिनों तक जीवन और मृत्यु के बीच जूझते कामरेड गोविंद पानसरे की 20 तारीख को मृत्यु हो गई। हमले के दो दिन बाद जब ऐसा लग रहा था कि पानसरे मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेंगे तो अचानक आस्तर आधार अस्पताल के डाॅक्टरों ने उन्हें आगे के इलाज के लिए मुम्बई के ब्रीच कैंडी अस्पताल ले जाने का फैसला किया। पानसरे को हवाई एम्बुलेंस के द्वारा मुम्बई के ब्रीच कैंडी अस्पताल ले जाया गया। पंरतु मुम्बई पहुँचने पर भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी और एक सांप्रदायिक फासिस्ट हमले में जनवाद और धर्मनिरपेक्षता के लिए लड़ने वाला एक अथक योद्धा शहीद हो गया।
-महेश राठी
मोबाइल: 0989153484
लोकसंघर्ष पत्रिका मार्च 2015 में प्रकाशित

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