भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने खेत कानूनों पर केंद्र पर हमला किया, लाल किले का उल्लंघन कड़ी सुरक्षा के बीच भाजपा साजिस कर्ताओं को लाल किले तक पहुंचने के पीछे एक साजिश का आरोप लगाते हुए, रेड्डी ने कहा कि केंद्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के नाम पर आंदोलन को दबाने की कोशिश कर रहा है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव सुरवाराम सुधाकर रेड्डी शनिवार को मखदूम भवन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार के लिए एक ही रास्ता है कि वह तीन “कृषि विरोधी कानूनों”, और “मजदूर विरोधी, सार्वजनिक बिजली कानूनों” को निरस्त करे और किसानों को दिल्ली की सीमाओं से वापस जाने के लिए राजी करे।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने शनिवार को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक घटनाओं पर चर्चा के लिए हैदराबाद में अपनी राष्ट्रीय परिषद की बैठक आयोजित की। बैठक को संबोधित करने के बाद, भाकपा महासचिव डी राजा बीमार पड़ गए और उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। पार्टी सूत्रों ने कहा कि उन्हें निर्जलीकरण और रक्त शर्करा के स्तर में गिरावट का सामना करना पड़ा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव सुरवाराम सुधाकर रेड्डी ने राजा की अनुपस्थिति में मीडिया को संबोधित किया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव डी राजा ने संबोधित किया मखदूम भवन में राष्ट्रीय परिषद की बैठक शनिवार को हैदराबाद में पार्टी ने आरोप लगाया कि कोविद -19 के प्रसार को रोकने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी “बुरी तरह विफल” थे। पार्टी ने मांग की कि केंद्र को उन लोगों को आर्थिक सहायता देनी चाहिए जो चल रहे बजट सत्र में प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों जैसे महामारी से प्रभावित थे।
सुधाकर रेड्डी ने गणतंत्र दिवस पर कड़ी सुरक्षा के बीच किसानों को लाल किले तक पहुंचने की अनुमति देने के पीछे एक साजिश का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के नाम पर आंदोलन को दबाने की कोशिश कर रहा है। “मीडिया को किसने सूचित किया कि किसान सुबह 11 बजे के निर्धारित समय के बजाय सुबह 6 बजे रैली निकालेंगे? सिंघू सीमा की अपेक्षा सभी सीमाओं से किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने की अनुमति थी। ट्रैक्टर रैली को एक लाख ट्रैक्टरों के साथ आयोजित किया गया था, लेकिन किसी भी राष्ट्रीय मीडिया ने इसका प्रसारण नहीं किया, जबकि वे केवल अप्रिय घटनाओं का प्रसारण करते हैं, ”रेड्डी ने कहा। संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बारे में बात करते हुए, रेड्डी ने कहा कि ट्रम्प की चुनाव में पराजय लोकतंत्र के लिए एक राहत थी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने शनिवार को केंद्र सरकार से किसानों की मांग के अनुरूप तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपील की और कहा कि आगे बढ़ने का केवल यही एक रास्ता है। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि सरकार मुद्दे को बातचीत के माध्यम से सुलझाए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम मांग करते हैं कि सरकार तीनों कृषि कानूनों और बिजली क्षेत्र संबंधी कानून को वापस ले जैसा कि किसान मांग कर रहे हैं और आगे बढ़ने का केवल यही एक रास्ता है। हमारी पार्टी का मानना है कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने रहे किसानों को हटाया नहीं जाना चाहिए।’’
रेड्डी हैदराबाद में आयोजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में चर्चा को लेकर जानकारी दे रहे थे। उन्होंने 26 जनवरी की हिंसा के संबंध में सत्तारूढ़ भाजपा पर आंदोलन को कमजोर करने के लिए साजिश रचने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘सिंघू के अलावा अन्य सीमाओं से दिल्ली शहर में ट्रैक्टरों को जाने दिया गया। जब 6,000 पुलिसकर्मी और अन्य सुरक्षा बल तैनात थे तो ट्रैक्टर लालकिले तक कैसे पहुंचे? उन्होंने झंडे कैसे फहराये? यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि ये सभी एक साजिश है?’’ उन्होंने दावा किया कि इसका खुलासा तब हुआ जब किसान नेताओं ने साजिश उजागर की।
के.टी.के. थंगमणि संक्षेप में ‘के.टी.के.’ के नाम से जाने जाते थे। वे मद्रास प्रेसिडेंसी और बाद में तमिलनाडु में पार्टी और मजदूर आंदोलनों के महारथी थे। उनका जन्म 19 मई 1914 को मद्रास प्रेसिडेंसी के मदुरई जिले केथिरूमंगलम में हुआ। उनके पिता का नाम कुलै ̧या नाडर और माता का कलिअम्मल था। पिता बहुत धनवानथेः वे रैली इंडिया लिमिटेड नामक एक ब्रिटिश कंपनी की ओर से जावा;इंडोनेशिया से आयात की जाने वाली चीनी के एकमात्र वितरक थे। इसके अलावा उनकी दो कपड़ा मिलें थीं,एक थिरूमंगलम में और दूसरी थेनी जिले में।
शिक्षा-
‘के.टी.के’ ने अपनी स्कूली शिक्षा के.एस.आर. विद्यालय, तिरूमंगलम में पूरी की। इसके बाद उन्होंने 1935में गणित में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर केबी.ए. ;ऑनर्स किया। उसी वर्ष वे उच्चतर शिक्षा के लिए इंगलैंड चले गए। लंदन यूनिवर्सिटी से उन्होंने मिडल टेम्पल लॉ कॉलेज से अप्रैल 1940में बार-एट-लॉ की डिग्री प्राप्त हो गई।इंग्लैंड मेंः
मार्क्सवाद का प्रभाव
लंदन में पढ़ाई के दौरान ‘‘के.टी.के’ का संपर्क कई सारे उन भारतीय विद्यार्थियों से हुआ जो आगे चलकर महत्वपूर्ण कम्युनिस्ट और आजादी के बाद भारत के नेता बने। इनमें शामिल थे, एन.के. कृष्णन, पार्वती कृष्णन,इंद्रजीत गुप्त, ज्योति बसु, निखिल चक्रवर्ती, मोहन कुमार मंगलम, इंदिरागांधी, फिरोज गांधी, डा. ए.के. सेन,इ.।उस वक्त एन.के. कृष्णन ‘इंडियन मजलिस’ के संगठन मंत्री थे। यह भारतीय विद्यार्थियों का संगठन था। के.टी.के इसमें सक्रिय हो गए। जल्द ही वे मार्क्सवाद की ओर आकर्षित होने लगे।थंगमणि उस मीटिंग में उपस्थित थे जिसेमं माइकेल ओ’ डायर की हत्या हुई। यह घटना 13 मार्च 1940 की है जब ऊधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में ओ’डायर पर गोलियां चलाईं जिसे के.टी.के ने अपनी लाखों से देखा। माइकेल ओ’डायर उस वक्त पंजाब के गवर्नर थे जब अप्रैल 1919में जनरल डायर की देख रेख में जालियांवाला गोलीकांड किया गया जिसमें सैकड़ों लोग गोलियों से भून दिए गए थे।इससे पहले के.टी.के की मुलाकात नेता सुभाष चन्द्र बोस से डबलिन, आयरलैंड में हुई। बोस 1935-38 के दौरान योरप के दौरे पर थे। उन्हें लंदन नहीं जाने दिया गया था।
भारत वापसी
बार-एट-लॉ मिलने के बाद थंगमणि भारत लौट आए और जून1940 में मद्रास हाईकोर्ट में वकील बन गए। ‘के.टी.के’ बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे हॉकी के बहुत ही अच्छे खिलाड़ी थे। वे मद्रास प्रेसिडेंसी में‘आत्म-सम्मान आंदोलन में भी सक्रिय रहे।इस बीच सी.पी. अधिथानर ने, जो सिंगापुर में कानून की प्रैक्टिस कर रहे थे, के.टी.के को सिंगापुर बुलाया। वहां के.टी.के ने प्रैक्टिस शुरू कर दी और वहां डेढ़ साल से भी अधिक रहे। उनकी शादी ए. रामास्वामी नाडार की पुत्री बहिअम्मल के साथ 31 अक्टूबर1941 को हुई। नाडार सिंगापुर में एक धनी उद्यमी और उद्योगपति थे।इस बीच के.टी.के मलाया की कम्युनिस्ट पार्टी के सम्पर्क में आए।उनके कम्युनिस्ट विचार अधिक गहरे हुए। 1942 में सिंगापुर पर जापानी सेना ने बमबारी शुरू कर दी।फलस्वरूप थंगमणि, उनकी पत्नी और आधिथानर को सिंगापुर छोड़ मद्रास वापस आना पड़ा।सिंगापुर निवास के दौरान के.टी.के की मुलाकात वियतनाम के भावी नेता हो ची मिन्ह के साथ हुई। आगे जब सफल क्रांति के बाद हो ची मिन्ह वियतनाम के प्रमुख के रूप में भारत आए तो उनकी मुलाकात फिर के.टी.के से हुई।इस बीच 1942 का आंदोलन समूचे भारत में फैल गया। मद्रास प्रेसीडेंसी में भी आंदोलन फैल गया।तिरूनववेली, रामनाथ पुरम, मदुरई तथा अन्य स्थानों पर कांग्रेस के तथा अन्य स्वयंसेवकों ने आंदोलन किए और गिरफ्तारियां दीं। कुलशेखर नपट्टिनम;तिरूनलवेली में कांग्रेस के स्वयंसेवकों एवं पुलिस के बीच झड़पें हुई। अंग्रेज पुलिस अफसर डब्ल्यू लोन ने गोलियां चलाई जिससे झडपें तेज हो गईं और लोन मारा गया। इसकी हत्या का दोष का शी राजन और राजगोपालन पर डाला गया।के.टी.के ने उनका मुकदमा अपने हाथों में लिया। यह एक ऐतिहासिक मुकदमा बन गया। दोनों अभियुक्तों को जिला कोर्ट और हाई कोर्ट ने फांसीकी सजा सुनाई। प्रसिद्ध कम्युनिस्ट एडवोकेट ए. रामचंद्र ने भी यह केस लड़ा।प्रीवी काउंसिल के सामने दूसरी अपील की गई। उस जमाने में सुप्रीमकोर्ट नहीं हुआ करता था। सुप्रसिद्ध ब्रिटिश कम्युनिस्ट वकील डी.एन. प्रिट से के.टी.के थंगमणि ने सम्पर्क किया और प्रिट ने केस लड़ा। केस काफी कठिनाइयों के बीच लड़ा गया। मद्रास प्रेसिडेंसी में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ने मिलजुलकर उन दोनों की रिहाई के सवाल पर संघर्ष किया।आखिर कार फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।यह बहुत बड़ी सफलता थी जो लंबी और कठिन लड़ाई के बाद हासिल की जा सकी। के.टी.के ने 1942 से 1946तक प्रैक्टिस थी।
ट्रेड यूनियन आंदोलन में
के.टी.के थंगमणि 1943 मेंकम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे पहले ही ट्रेड यूनियन आंदोलन में सक्रिय हो चुके थे। उनकी मुलाकात कांग्रेस के सुप्रसिसिद्ध नेता, तमिल विद्वानऔर टी यू नेता थिरू वी.का. तथा अन्य से हुई। उन्होंने सिंगारवेलु की देखरेख में मजदूरों में सक्रिय कार्य किया।के.टी.के ने मदुरई में बस ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन की स्थापना की। वे टी.वी.एस. बस ट्रांसपोर्ट यूनियन और एस.आर.वी.एस. बस ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे। यूनियन के कामों के दौरान वे कई बार गिरफ्तार हुए। साथ ही उन्होंने सफाई कर्मचारियों की भी यूनियन बनाई। इसके अलावा उन्होंने कपड़ा और हैंडलूम मजदूरों के बीच भी काम किया।ये मजदूर आजाद हिन्द फौज और रॉयल इंडियन नेवी के नौ सैनिकों के समर्थन में भी उतरे।1945 में मदुरई में मद्रास प्रादेशिक ट्रेड यूनियन कांग्रेस ;एटक से सम्बद्ध का सम्मेलन हुआ। इसकी स्वागत समिति के अध्यक्ष के.टी.के थंगमणि थे। 1946 में उन्होंने एस.आर.वी.एस. की हड़ताल का नेतृत्व किया। अंग्रेज सुपरिटेंड्ट ऑफ पुलिस ने के.टी.के से हड़ताल न करवाने की अपील की। के.टी.के ने जवाब में कहा कि वे खुद इंगलैंड में अपनी आंखों से ब्रिटिश मजदूर वर्ग के लड़ाकू संघर्ष देख चुके हैं। पीछे हटने का सवाल ही नहीं था। उन्हें गिरफ्तार कर तीन महीनेकी जेल की सजा दी गई।1948 में वे फिर एस आर वी हड़ताल में गिरफ्तार कर लिए गए। इस बार उन्हें 4 साल की सजा मिली और 1952 में ही छूट पाए। उन्होंने पोर्ट एंड डॉक ;बंदरगाह मजदूरों के बीच भी काम किया। उन्हें मजदूर वर्ग के सर्वोच्च नेता एस.ए. डांगे तथा ए.एस.के. अ ̧यंगर, कल्याणसुंदरम एवं अन्य के साथ काम करने का मौका मिला।
एफ.एस.यू. का गठन
1943 में मद्रास प्रेसिडेंसी में‘फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन’ ;एस.एस.यू. अर्थात सोवियत संघ के मित्र नामक संगठन की स्थापना की गई। आजादी के बाद यही संगठन ‘इस्कस’बन गया। सुप्रसिद्ध कांग्रेस नेता एवं तमिल विद्वान थिरू वी. कल्याण सुंदरम इसके प्रथम अध्यक्ष एवं के.बालदंडा युधम सचिव चुने गए। मदुरई में 1943 में इसका प्रथम अधिवेशन आयेजित किया गया। इसकी स्वागत समिति के अध्यक्ष के.टी.के थंगमणि बनाए गए। इसमें कम्युनिस्टों एवं कांग्रेसियों ने संयुक्त रूप से हिस्सा लिया। एक कला एवं फोटो प्रदर्शनी भी आयोजित की गई जिसका उद्घाटन मदुरई जिला एवं सेशन्स जज एस.ए.पी. अ ̧यर ने किया। सम्मेलन में 10 हजार से भी अधिक लोग शामिल हुए।
मदुरई षडयंत्र केस
दिसंबर 1946 में के.टी.केथंगमणि को 135 अन्य कम्युनिस्टों के साथ सुप्रसिद्ध ‘मदुरई षडयंत्र केस’ में गिरफ्तार कर लिया गया। अन्य गिरफ्तार नेताओं में पी. माणिकम, पी.राममूर्ति, शांतिलाल, सुबै ̧या, एस.कृष्णमूर्ति, इत्यादि थे।लेकिन वे सभी भारत की आजादी से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को बिना मुकदमे के रिहा कर दिए गए। मदुरई की एक आम सभा में उनका भारी स्वागत किया गया।
‘बी.टी.आर.’ काल
फरवरी-मार्च 1948 में सम्पन्न भाकपा की दूसरी पार्टी कांग्रेस;कलकत्ता के लिए के.टी.के प्रतिनिधि चुने गए लेकिन वे इसमें शामिल नहीं हो पाए। वे 30 जनवरी 1948 को ही टीवीएस और एस आर वी एस ट्रांसपोर्ट कम्पनियों में हड़ताल के सिलसिले मेंगिरफ्तार कर लिए गए।1948 में इस पार्टी कांग्रेस से कुछ पहले से ही वाम-संकीर्णतावादी दुस्साहसिक ‘बीटीआर’ लाइन हावी हो गई। मद्रास प्रदेश की पार्टी को इससे भारी नुकसान उठाना पड़ा। के.टी.के तथा 134 अन्य पार्टी नेता गिरफ्तार कर वेल्लोर जेल में बंद कर दिए गए। इनमें ए एस के अ ̧यंगर,गोपालन तथा अन्य शामिल थें11 फरवरी 1950 को सेलम डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल जेल में पुलिस द्वारा गोलीकांड में 22 कम्युनिस्ट मारे गए। उस वक्त ‘बीटीआर’ लाइन के तहत जेल में ‘वर्ग-संघर्ष’ चलाने की नीति से भी कई अनावश्यक घटनाएं घटीं जिनसे पार्टी को जान-माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा। पुलिस और अधिकारियों का रूख दमनकारी था सो अलग। के.टी.के तथा अन्य साथियों ने वेल्लोर जेल में 26 दिनों तक भूख हड़ताल थी। पुलिस ने अमानवीय लाठीचार्ज किया जिसमें के.टी.के बाएं हाथ और पैर में फ्रैक्चर हो गया।उन्हें 1952 के प्रथम सप्ताह में रिहा कर दिया गया। पार्टी ने उन्हें ट्रेडयूनियन आंदोलन की देखभाल करने का जिम्मा दिया और वे मद्रास में एटककार्यालय से काम करने लगे।
चुनावों में हिस्सेदारी
थंगमणि पार्टी द्वारा 1952 के आम चुनावों में मदुरई लोकसभा सीट सेखड़े किए गए। वे मात्र कुछ सौ वोटों से ही हार गए। उन्हें फिर 1957 के चुनावों में उसी सीट से खड़ा किया गया। इस बार वे लोकसभा के लिए चुन लिए गए। संसद में उन्हांने प्रभावशाली और सक्रिय वक्ता के रूप में अपना स्थान बनाया। उन्होंने संसद में मजदूरों और किसानों की समस्याएं विशेष तौर पर उठाई। वे प्रथम सांसद थे जिन्होंने ‘प्रश्नकाल’ का विशेष सदुपयोग कियाः उन्होंने जनता के एक हजार से भी अधिक प्रश्न उठाए। उन्होंने पब्लिक सेक्टर और राष्ट्रीयकरण के मसलों पर खास ध्यान दिलाया। ट्रांसपोर्ट मजदूरों के नेता होने के नाते उन्होंने मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट, 1961 को पास कराने में विशेष भूमिका निभाई। उन्होंने 1957 में बीजिंग ;उस वक्त पीकिंग में सम्पन्न डब्ल्यू एफ टी यू के सम्मेलन में भाग लिया। 1961 में उन्होंने अजय घोष, भूपेश गुप्ता तथा अन्यके साथ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और माओ त्से तुग के साथ बातचीत करने भाकपा प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में चीन की यात्रा की। जब थंगमणि दिल्ली में थे तो प्रधानमंत्री नेहरू ने उनसे योजना कमिशन की समितियों में काम करने का अनुरोध किया। इस प्रकार वे एक साल काम करते रहे।1971 में के.टी.के तमिलनाडु विधानसभा में मदुरई से चुने गए। 1971से 76 के बीच उन्होंने विधानसभा ामें जनता की आवाज जोरदार तरीके से उठाई। तमिलनाडु एटक के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या महासचिव की हैसियत से 50 वर्षों से भी अधिक काम करते रहे। वे कई वर्षों तक एटक के उपाध्यक्ष रहे। उनकी 80वें जन्मदिन के अवसर पर तमिलनाडु की पार्टी और एटक ने विशेष ‘सुवेनर’ ;विशेष अंक प्रकाशित किया। हीरेन मुखर्जी ने उनका जीवन गांधीवादी आदर्शों पर चला बताया। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपने अंतिम वर्ष उन्होंने राज्य पार्टी हेडक्वार्टर ‘बालन इल्लम’ में बिताए। के.टी.के. थंगमणि की मृत्यु वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर 2001 को हो गई।
पुचलपल्ली सुंदुरै ̧या का जन्म 1मई1913 को अलगनी पाडु ;वर्तमान विडावलूर मंडल नल्लोर जिला,आंध्रप्रदेश में हुआ था। उनका मूलनाम पुचलपल्ली सुंदररमी रेड्डी था। वे एक सामंत परिवार के थे। उनके पास 50 एकड़ सिर्फ धान की ही खेती थी। माता का नाम शेषम्मा था। अछूतों के प्रश्न पर उनका गांव वालों से झगड़ा होने लगा। दो वर्षोंं तक गांव के स्कूलमें तेलुगू पढ़ी। फिर बहनोई के साथ रहने लगे। इस बीच पिता की मृत्यु होगई। वे बहनोई की बदली के साथनयी जगह जाने लगे। मद्रास पहुंचकर तीन वर्ष पढ़ाई की, 1929 में एन्टें्रस पास किया और लायोला कॉलेज में भर्ती हो गए। तेलुगू रामायण प्रेम से पढ़ रखी थी। 1924 आते-आते राष्ट्रीय साहित्य और राष्ट्रीय अंदोलन का चस्का लग गया। फिर 1925 से उन्होंने गांधी साहित्य को खूब पढ़ा,फिर रामतीर्थ, विवेकानंद, तिलक, योग,इ. पढ़ा। 1927 में मद्रास में कांग्रेस अधिवेशन आयोजित किया गया जो उन्हें देखने को मिला जिससे उनमें राष्ट्रीय भावनाएं जगाने में सहायता मिली। 1928 में साइमन कमीशन जब मद्रास आया तो सुंदरै ̧या ने विरोध प्रदर्शनों में जमकर भाग लिया।कॉलेज में वे गणित, रसायन और भौतिक शास्त्र के विद्यार्थी थे लेकिन साथ ही राजनीति और अर्थशास्त्र भी पढ़ा करते। 1930 में गांधी जी के आवाहन पर नमक-आंदोलन में शामिल हो गए। वे आंदोलन के ‘सोदर समिति’के केंद्र पश्चिम गोदावरी चले गए। वे नमक सत्याग्रह के दो सौ स्वयंसेवकों के कप्तान बना दिए गए। फिर कॉलेज छोड़कर गांव चले गए। गांव में देखा कि खेत मजदूरों को बहुत कम मजदूरी मिलती है। उन्होंने मांग की कि मजदूरी चौगुनी बढ़ाई जाए। चारों ओर आंदोलन छिड़ गया।17 वर्ष की उम्र में उन्हें ‘कैदी बाल स्कूल’’ में गिरफ्तार कर तंजौर भेज दिया गया। जेल में सोवियत रूसके बारे में पुस्तकें पढ़ने का मौका मिला।वहां उन्होंने हिन्दी भी पढ़ी। खराब बर्ताव का विरोध करने के लिए साथियों के साथ भूख-हड़ताल भी की।
अमीर हैदर खान से मुलाकात
गांधी-इरविन समझौते के बाद;1931 उन्हें जेल से रिहा किया गया। पहले बंगलौर और फिर मदास पहुंच गए। वहां अमीर हैदर खान तथा अन्य कई कम्युनिस्टो एवं सोशलिस्टों के साथ मुलाकात हुई। इनमें सिंगारवेलु, घाटे तथा कई अन्य शामिल थे। वे कम्युनिस्ट विचारधारा की ओर झुकने लगे।इस बीच गांव लौटकर अछूतों और खेतिहर मजदूरों को संगठित करना शुरू किया। अछूतों को कुएं पर जाने नहीं दिया जाता था। कुछ दर्जन युवाओं को संगठित कर उन्होंने कुएं पर जाने का अधिकार छीना। इसके अलावा खेतिहर मजदूरों के लिए सहकारी दुकान बनाई।साक्षरता अभियान के लिए स्कूल,पाठशाला और पुस्तकालय खोला।वे दक्षिण में घाटे के सहायक के रूप में काम करने लगे।कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय1934 में सी.एस.पी.की स्थापना हुई। कम्युनिस्ट पार्टी के लोग सी.एस..पी. तथा कांग्रेस में काम करने लगे। पार्टी के काम से मलाबार गए जहां उनकी ई.एम.एस. से मुलाकात हुई। वे उन्हें सी.एस.पी. में ले आए और वे धीरे-घीरे कम्युनिस्ट पार्टी की ओर आने लगे। ई.एम.एस. कांग्रेस में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगे।1936 में आंध्र की सी.एल.पी.में कम्युनिस्टों का वर्चस्व था, कांग्रेस में भी अच्छा प्रभाव था। 1937 मेंउन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल की सजा हुई लेकिन आंध्र में कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने के बाद चार महीनों बाद ही छोड़ दिया गया।1937 में ही वे आंध्र सी.एस.पी. के सचिव बनाए गए। युवाओं के राजनैतिक प्रशिक्षण के लिए कोत्थपटनम् में ग्रीष्म स्कूल संगठित किया गया।घाटे लिखते है कि 1934 में मद्रास पहुंचने पर वे कम्युनिस्ट गुरुप के प्रमुख साथियों से मिले जिनमें आंध्र से सुंदरै ̧या, मद्रास से ‘ए.एस.के.’ एवं अन्य साथी थे।सुंदरै ̧या ने मद्रास तथा आंध्र क्षेत्रमें‘लेबर प्रोटेक्शन लीग’ के गठन में सहायता की . उनके साथ सिंगारवेलु,ए.एस.के., अमीर हैदर तथा अन्य साथी भी थे।सुंदरै ̧या, घाटे तथा अन्य साथियों की कोशिशों से केरल से कृष्ण पिल्लै,ई.एम.एस. तथा अन्य साथी सी.एस.पी से भाक.पा. में शामिल हो गए। सज्जाद जहीर, दिनकर मेहता, ई.एम.एस. तथा सोली बाटलीवाला सी.एस.पी. की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी थे।1939 में भा.क.पा. पर पाबंदी लगा दी गई। सुंदरै ̧या समेत बहुत सारे नेता अंडरग्राउंड चले गए। एक बार सुंदरै ̧या को पुलिस से बचने केलिए पचास मील भागना पड़ा था। इसक्षेत्र में गैर-कानूनी पार्टी का खुला अखबार ‘स्वतंत्र भारत’ छपता था, तीनह जार प्रतियों में। आंध्र पार्टी ‘प्रजाशक्ति’ साप्ताहिक प्रकाशित किया करती थी जो 10 हजार से भी अधिक छपता था। वह डेढ़ हजार गांवों तक पहुंचती थी। सुंदरै ̧या जननेताऔर किसान के रूप में उभर रहे थे।1936 में वे अखिल भारतीय किसान सभा के पदाधिकारी चुने गए।1934 में पी. सुंदरै ̧या को भा.क.पा. की केंद्र समिति ;सी.सी का सदस्य बनाया गया। 1936 में घाटे और सुंदरै ̧या की देखरेख में तमिलनाडु पार्टी इकाई की स्थापना की गई। उस वक्त वह मद्रास प्रेसिडेन्सी का हिस्सा था। उन्होंने ए.एस.के
अयंगर,जीवानंदन, बी.श्रीनिवासन राव, एस.वी. घाटे, इ. के साथ काम किया।1943 में भाकपा की प्रथम पार्टी कांग्रेस ;बंबई में सुंदरै ̧या फिर से केंद्रीय समिति में चुने गए।तेलंगाना सशस्त्र विद्रोह,1946-50निजाम के हैदराबाद रजवाड़े में सामंती संबंधों एवं अत्याचारों का पूरा बोलाबाला था। विशेषकर उसके तेलंगाना क्षेत्र में सामंत विरोधी संघर्ष तेजी से सशस्त्र संघर्ष का रूप धारणकर रहा था। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में आंध्र महासभा के गठन से किसानों,खासकर गरीब किसानों औरखेत-मजदूरों का संघर्ष तेज हो गया।महासभा एक प्रकार का व्यापक संयुक्त मोर्चा था जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी।पार्टी ने केंद्रीय नेतृत्व से संपर्क किया और कॉ. पी.सी. जोशी तथा अन्य नेताओं से बातचीत की। पी.सी. जोशी ने सशस्त्र संघर्ष छेड़ने की अनुमति दे दी। यह सामंत-विरोधी, निजाम -विरोधी संघर्ष था। इसके अलावा यह निजामके हैदराबाद रजवाड़े के खिलाफ थाजो भारत की आजादी को मान्यता नहीं दे रहा था और स्वतंत्र होना चाहता था। कुल मिलाकर यह एक व्यापक सामंत विरोधी मोर्चा था।पी. सुंदरै ̧या तेलंगाना संघर्ष के नेताओं में थे। अन्य नेताओं में सी.राजेश्वर राव, रावी नारायण रेड्डी,बद्दम यल्ला रेड्डी, के.एल. महेंद्रा, इ.थे। इस संघर्ष के दौरान करीब 2500 गांव आजाद किए गए और हजारों भूमिहीनों में जमीनें बांटी गई। ये ‘मुक्तक्षेत्र’ जिन्हें स्थापित करने का मुख्य श्रेय कम्युनिस्ट पार्टी को जाता है।‘बी.टी.आर. लाइन’,1948-50जैसा कि सुविदित है 1948 की दूसरी पार्टी कांग्रेस से कुछ पहले ही पार्टी पर संकीर्णतावादी दुस्साहिक लाइन हावी हो गई जो संपूर्ण पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हुई। 13 सितंबर1948 को तब स्थिति गुणात्मक रूपसे बदल गई जब भारतीय फौजें हैदराबाद रजवाड़े में प्रवेश कर गई।निजाम का मंत्रिमंडल गिरफ्तार कर लिया गया और निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया। एक नई सरकार का गठन हुआ और हैदराबाद भारत में मिल गया।भूमि सुधारों का कार्य भी आरंभ हो गया। इस कर्रवाई के फलस्वरूप तेलंगाना सशस्त्र आंदोलन में फूट पड़ गई।किसानों का बड़ा हिस्सा संघर्ष से अलग हो गया। उन्हें अब सशस्त्र संघर्ष की आवश्यकता नहीं रही। कम्युनिस्ट किसानों से अलग-थलग पड़ने लगे और उन्हें जंगलों का सहारा लेना पड़ा।‘बी.टी.आर. लाइन’ तेलंगाना संघर्षको ‘भारतीय क्रांति’ के अभिन्न अंग केरूप में देखती थी। इसलिए उसने भारतीय फौजों के प्रवेश के बाद संघर्ष तेज करने का आत्मघाती रूखअ पनाया। अब भारतीय पुलिस और फौज से भिंड़त होने लगी जिससे आखिरकार संघर्ष की भारी नुकसान उठाते हुए पराजय हो गई। इस प्रकार1948-50 का दौर तेलंगाना संघर्ष के पीछे हटने और पराजय का दौर था। छापेमार दस्तों को गांवों को छोड़ जंगलों की शरण लेनी पड़ी।‘आंध्र लाइन’1948-50 मे अपनाई गई सशस्त्र संघर्ष में भी दो लाइनें थींःहथियारबंद विद्रोह और छापेमार युद्ध की लाइनें। इन्हें ‘रूसी’ और चीनी’नमूने की सशस्त्र लाइनें भी कहा जाता था। अधिकतर आंध्र के साथ चीनी किस्म के छापेमार युद्ध के हिमायती थे। इनमें सुंरदै ̧या, सी. राजेश्वर राव तथा अन्य थे। बी.टी.आर. देशव्यापी जनविद्रोह ;रूसी तरीका के हिमायती थे।1950 में बी.टी.आर. को अपने पद से हटा दिए जाने के बाद उसपर कुछ महीनों के लिए ‘आंध्र लाइन’ हावी हो गई। सी. राजेश्वर राव भा.क.पा. के महामंत्री बनाए गए। वे गुरिल्ला युद्धके हिमायती थे। नई केंद्रीय समिति और पॉलिट ब्यूरो में सुंदरै या भी शामिल कर लिए गए। वे ‘बी.टी.आर. लाइन’के आलोचक थे लेकिन सशस्त्र संघर्ष के समर्थक। कुछ ही महीनों के बाद ‘सी.आर. की जगह अजय घोष महासचिव बनाए गए और सशस्त्र संघर्ष की लाइन छोड़ दी गई तथा पार्टी देश की मुख्यधारा में शामिल हो गई।सुंदरैया तेलंगाना कमेटी के इंचार्ज बने जो आंध्र पी.सी. से अलग थी। 1952 के आम चुनावों के बाद सुंदरै ̧या मद्रास से राज्य सभा के लिए चुने गए। वे कम्युनिस्ट ग्रुप के नेता चुने गए। वे तीन बार आंध्र प्रदेश असेम्बली मेंचुने गए। वे काफी समय तक भा.क.पा. की केंद्रीय समिति और पॉलिट ब्यूरो के सदस्य बने रहे। 1958 में अमृतसर पार्टी कांग्रेस में वे केंद्रीय कार्यकारिणी और सेक्रेटारिएट में चुने गऐ।सुंदरै ̧या प्रथम पार्टी कांग्रेस में केंद्रीय समिति में चुने गए, फिर 1948 में।फिर वे 1950 में पॉलिट ब्यूरो में आए और 1954 और 1956 में भी।भा.क.पा. ;मार्क्सवादी में शामिल1964 में पार्टी में फूट और भा.क.पा.सी.पी.एम.के गठन केबाद पी. सुंदरै ̧या सी.पी.एम. में चले गए वे आरंभ से ही अर्थात 1964 से ही भा.क.पा. ;मार्क्सवादी के महासचिव बनाए गए।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के महासचिव पद से इस्तीफा
1976 में सुंदरै ̧या ने सी.पी.एम. के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया।इसके कारणों का विस्तृत वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक माइ रेजिग्जेशन ;मेराइस्तीफा1991नामक पुस्तक में दिया है।दिनांक 22 अगस्त 1975 के केंद्रीय समिति के नाम अपने पत्र में उन्होंने विस्तार से उन कारणों की चर्चा की जिनके कारण आगे उन्होंने महासचिव पद से इस्तीफा दिया। इन कारणों मे जे.पी. आंदोलन में जनसंघ/आर.एस.एस. का साथ देने का विरोध, जनसंगठनों संबंधी कार्यनीति-गत मतभेदों, केंद्रीय नेतृत्वकारी इकाइयों की कार्यशैली, इ. संबंधी मतभेदों की चर्चा की। सुंदरै ̧या के मतभेदों की जड़ें 1948-50 के ‘बी.टी.आर.दौर’ में जाती हैं जब सशस्त्र समाजवादी क्रांति का नारा दिया गया था। उस वक्त भी वे बी.टी.आर. लाइन से पूरी तरह सहमत नहीं थे और बाद में अधिक दूर चले गए। बाद में उन्होंने पूंजीवादी जनतांत्रिक प्रक्रिया और उसकी संभावनाओं को अधिक महत्व दिया। उन्होंने हमेशा ही आर.एस.एस.-जनसंघ ;बाद में भाजपा की ओर से सांप्रदायिक-फासिज्मके खतरे से बार-बार ध्यान खींचा और इस बिंदु पर कोई समझौता नहीं किया।सुंदरै ̧या 1951 के पार्टी कार्यक्रम तथा ‘नीतिगत वक्तव्य’ के हिमायती थे।उनकी शिकायत थी कि बिना सलाह या बहस के इन दस्तावेजों में 1964 के बाद अनावश्यक परिवर्तन किए गए। वे भारतीय विशेषताओं पर अधिकाधिक जोर देने लगे थे।वे नई टेक्नोलॉजी का विरोध करने के भी खिलाफ थे। उन्होंने ट्रेड यूनियनसे कहा कि सिर्फ बेरोजगारी बढ़ने को कारण बता कर नई तकनीकों का विरोध नहीं किया जा सकता। हमें टेक्नोलॉजी -विरोधी होने की छवि नहीं बनानी चाहिए।अपने पद से इस्तीफा देने के बाद पी. सुंदरै ̧या आंदोलन की स्थिति से काफी निराश रहे। उनकी मृत्यु 19 मई 1985 को हो गई।
बाराबंकी। मोदी की किसान विरोधी नीतियों के कारण हरियाणा में ढाई घण्टे तक पुलिस ने आंसू गैस के गोले किसानों पर दागे किसानों को लाठियों से बुरी तरह से पीटा गया, यह बात आल इण्डिया किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने बिशुनपुर में किसान आन्दोलन में शहीद किसानों की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अंगे्रजी सरकार को भी मोदी सरकार ने अत्याचार में पीछे छोड़ दिया है, किसान सभा के जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि सरकार किसान नेताओं का दमन कर रही है झूठे मुकदमें लिख रही है, लेकिन देश के किसान पीछे हटने वाले नहीं है, आन्दोलन जारी रहेगा। किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि मोदी सरकार अडानी अम्बानी के हाथों किसानों की जमीनों को देना चाहती है, इसीलिए किसानों के लिए तीन नये कानूनों का निर्माण किया है, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव बृजमोहन वर्मा ने कहा कि पार्टी के किसान नेताओं के ऊपर फर्जी मुकदमें कायम किये जा रहे हैं, हद तो यहां तक हो गई है कि मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में किसान नेताओं के ऊपर गुण्डा एक्ट के मुकदमें कायम किये गये हैं सरकार दमन पर उतारू है, हम किसान आन्दोलन से पीछे हटने वाले नहीं हैं। श्रद्धांजलि सभा को किसान नेता महेन्द्र यादव, दीपक वर्मा ने भी सम्बांधित किया, श्रद्धांजलि सभा में अलाउद्दीन अली, अमर सिंह प्रधान, श्याम सिंह, राहुल पाण्डेय, अंकुल तिवारी, अंशुमान तिवारी, रामू रावत, श्यामू रावत, राजेश सिंह, विष्णु त्रिपाठी आदि प्रमुख लोग मौजूद थे।
बाराबंकी। इस शीत लहर में खुली सड़क पर लाखों किसान बैठे हैं, लेकिन अडानी-अम्बानी के मोह के कारण मोदी सरकार किसानों की मांग को नहीं मान रही है, यह बात आॅल इण्डिया किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने ककरहिया गांव में किसान आन्दोलन में शहीद किसानों की श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि सरकार आम जनता की नहीं है बल्कि अडानी और अम्बानी की सरकार है। किसान सभा के जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि किसान शक्ति के आगे सरकार को झुकना होगा अन्यथा मोदी सरकार के लिए किसान आन्दोलन उनकी विदाई का आन्दोलन होगा। जिला उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि प्रदेश सरकार किसान नेताओं के ऊपर फर्जी मुकदमें कायम कर रही है। जनपद में भी हम लोगों के ऊ मुकदमें कायम किये गये हैं, लेकिन हम लोग डरने वाले नहीं हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव बृजमोहन वर्मा ने कहा कि हमारी पार्टी किसानों के साथ है, और आन्दोलन में हमेशा सक्रिय रहेगी, पार्टी के जिला सह सचिव शिव दर्शन वर्मा ने कहा कि जनपद में किसानों का धान आठ-नौ सौ रूपये प्रति कुन्टल बिक रहा है और सरकार धान खरीद का नाटक कर रही है। सभा का आयोजन आॅल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के जिलाध्यक्ष महेन्द्र यादव ने किया था। जनसभा में मुनेश्वर बक्स, श्याम सिंह, अंकुल वर्मा, राम नरेश माती, गिरीश चन्द्र, विष्णु त्रिपाठी, डाॅ0 अलाउद्दीन, यशवंत सिंह आदि प्रमुख किसान नेता मौजूद थे।