गोपाल मुकुंद ;बालाजी हुद्दार की कहानी किसी रहस्य-रोमांच कथा से कम नहीं है। उनका जीवन रोमांचकारी था और वे पहले तो आर.एस.एस. के ‘सरकार्यवाह’’ रहे, फिर स्पेन में फासिस्ट विरोधी गृहयुद्ध में लड़े और लौट कर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए! गोपाल मुकुंद का जन्म 1902 में मांडला ;अब मध्यप्रदेश में हुआ था। गोपाल को 4 वर्ष की उम्र में नागपुर लाया गया जहां उधोजी नामक एक ब्राह्मण महिला ने उसे गोद लिया। गोपाल ने नागपुर के मौरिस कॉलेज से ग्रेज्यूएशन किया और फिर गर्ल्स मिशन स्कुल में पढ़ाने लगे। 1920 में वह विद्यार्थी नेता भी बन गए।
हुद्दार के आरंभिक जीवन के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता है। उनकी पत्नी का नाम मनोरमा था।हुद्दार ने अपना राजनैतिक जीवन हिन्दू महासभा से आरंभ किया। जल्द ही, 1925 में आर.एस.एस. की स्थापना की गई। डॉ. हेडगेवार ने जिन थोड़े-से लोगों को स्थापना के लिए चुना उनमें बालाजी हुद्दार भी थे। जल्द ही वे आर.एस.एस. के ‘‘सरकार्यवाह’’;महासचिव बनाए गए। साथ ही हुद्दार हिन्दू महासभा और आर.एस.एस. के सुप्रसिद्ध नेता डॉ. बी.एस. मुंजे के भी काफी नजदीक थे।आर.एस.एस. से मोह भंग जल्द ही हुद्दार का आर.एस.एस.से मोहभंग होने लगा। वे अवश्य इसके सरकार्यवाह थे लेकिन इसके हिन्दू सांप्रदायिक संकीर्ण विचारों से अलग होने लगे। उन्होंने पाया कि इस नामपर आर.एस.एस. स्वयं को ब्रिटिश-विरोधी स्वतंत्रता आंदोलन से अलग रखे हुए है। हुद्दार की कांग्रेस के प्रति भी सहानुभूति बढ़ने लगी।वे क्रांतिकारी आंदोलनों की ओर आकर्षित होने लगे। उनका संपर्क बंगाल के क्रांतिकारी संगठन युगांतर से हुआ। बालाघाट में 1931 में उन्हें शस्त्रास्त्र इकट्ठा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। वह कांड ‘बालाघाट षड्यंत्र केस’ के नाम से जाना जाताहै। उन्हें 1935 में रिहा किया। रिहा होने पर अपने कुछ सहयोगियों के साथ उन्होंने सावधान नामक साप्ताहिक पत्रिका का नागपुर से प्रकाशन आरंभ किया। आर.एस.एस. से उनकी दूरी और भी बढ़ गई। इस बीच उनकी रूचि पत्रकारिता और सैनिक विज्ञान में बढ़ गईं। वे अधिक जानकारी लेना चाहते थे इसलिए इंगलैंड जाने का निर्णय लिया।भवानी शंकर नियोगी ऐसे जरूरतमंद लोगों की निस्वार्थ सहायता किया करते। उन्होंने हुद्दार को 1000/ रु. दिए। अन्य मित्रों ने भी सहायता की और हुद्दार इंगलैंड के लिए चल पड़े और इस प्रकार एक असाधारण जीवन-यात्रा का प्रारंभ हुआ।
इंगलैंड में

जब बालाजी हुद्दार इंगलैंड पहुंचे तो उस वक्त योरप समूचे विश्व के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं से गुजर रहा था। इटली में मुसोलिनी पहले ही सत्ता में आ चुका था। हिटलर और उसकी नाजी पार्टी जर्मनी में 1933 में सत्ता में आ गईं समूचे योरूप और विश्व के लिए खतरनाक समय आ पहुंचा। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एक ;एमआइ 5 हुद्दार की गतिविधियों पर गहरी नजर रखे हुए थी। उनका सारा पत्राचार और कई दस्तावेज उसके हाथ पहुंच रहा था। उनकी रिपोर्टोंं के अनुसार हुद्दार ब्रिटिश सेना में संपर्क बनकर भारत में उनके कैंटोनमेंट्स पर हमला करने की योजना में शामिल थे।बालाजी हुद्दार ने भारत लौटकर आजादी के संघर्ष में हिस्सा लेने का फैसला कर लिया।
स्पेन के गृहयुद्ध ;1937-39 में
हुद्दार आजकल स्पेन के गृहयुद्ध के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण युद्ध था। 1936 के आम चुनावों में स्पेन और फ्रांस में पॉपुलर फ्रंट ;जन-मोर्चा की सरकारें बनीं। इससे फासिज्म को रोकने में सहायता मिली। स्पेन में प्रगतिशील,जनवादी और वाम दलों की सरकार बनी और स्पेन रिपब्लिकन ;गणतांत्रिक स्पेन कहलाया। लेकिन स्पेन के फासिस्ट और विद्रोही जनरल फ्रांसिस्को फ्रांको ने सशस्त्र क्रांतिकारी के जरिए गणतांत्रिक सरकार गिराने का अभियान शुरू कर दिया। स्पेन में गृहयुद्ध आरंभ हो गया। इटली और जर्मनी ने जनरल फ्रांको की सक्रिय सैनिक सहायता की। भूमध्यसागर के तटीय देशों, अफ्रीकी किनारों से मोरक्कन, स्पेनी, इटालियन, जर्मन,इ. फौजें स्पेन में उतारी जाने लगीं।तुमुल युद् धछिड़ गया जिसमेंआखिरकार गणतांत्रिक स्पेनी सरकारकी 1939 में पराजय हो गई। जनरल फ्रांको ने स्पेन पर कब्जा कर लिया।रिपब्लिकन स्पेन के समर्थन में सारे योरप और विश्व में एकजुटता आंदोलन छिड़ गया। इतना ही नहीं, स्पेन में लड़ने के लिए विभिन्न देशों में स्वयंसेवक भर्ती किए जाने लगे। लोग,खासकर युवा और बुद्ध जीवी स्पेन में लड़ने के लिए आगे आए। इसके परिणाम स्वरूप ‘‘इंटरनेशनल ब्रिगेड’’;अंतर्राष्ट्रीय दस्तों का गठन किया जाने लगा।महान विश्व हस्तियों ने समर्थन कियाः अल्बर्ट आंइस्टीन, अर्नेस्ट हेमिंगवे, आंद्रे माल्रो, जोलियो क्यूरी,ज्यॉर्जी दिमित्रोव तथा अन्य। कई ब्रिटिश व अन्य देशों के कम्युनिस्ट एवं दूसरे लोग स्पेन में लड़ते हुए मारे गए, जैसेसुप्रसिद्ध लेखक क्रिस्टोफर कॉडवेल,राल्फ फॉक्स, इ.।इन घटनाओं में स्पेन के समर्थनमें जवाहरलाल नेहरू की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही। वे उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष थे।सितंबर 1936 से ही विभिन्न देशों से स्वयंसेवक स्पेन पहुंचने लगे थे। सारी दुनिया से 32 हजार से अधिक स्वयंसेवक फ्रांको से लड़ने स्पेन पहुंचे। इनमें छह भारतीय भी थे। इटली की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता लुईगी लोन्गो अभियान का संयोजन अंतर्राष्ट्रीय ब्रिगेडों के कमिसार-जनरलके रूप में कर रहे थे।
अंतर्राष्ट्रीय ब्रिगेडः हुद्दार स्पेन में
इन घटनाओं का बालाजी हुद्दारपर गहरा प्रभाव पड़ा। वे लंदन में कम्युनिस्टों की सभाओं में जाने लगे। अलाव कई सारी फासिस्ट-विरोधी सभाओं और बैठकों में उन्होंने भाग लिया। ब्रिटेन में संयुक्त राष्ट्रीय कमिटिका गठन हुआ जिसकी अध्यक्ष एथॉलकी ड्यूचेस थीं। इसमें एंगलिकन चर्चभी शामिल हुआ।ब्रिटेन से 200 से भी अधिकवालंटियर स्पेन जाने को तैयार हो गए।सरकार ने उनके रास्ते में बाधाएं खड़ीकरने की कोशिशें कीं। इसलिए उन्हेंकाफी घूमकर जाना पड़ता था।बालाजी हुद्दार भी इनमें शामिल होगए। उनके अलावा पांच अन्य भारतीयभी थेः सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट साहित्यकार मुल्कराज आनंद, तीन डॉक्टरः अटल मेनहन लाल, अ ̧यूब अहमद खान नक्शबंदी, और मैनुएल रोचा पिन्टो तथा एक विद्यार्थी रामास्वामी वीरप्पन। मेनहन लाल कनाड़ा से आए।नॉर्मन बेथ्यून के साथ स्पेन में हो लिए।फिर वे उनके साथ चीन चले गए और जापानी फौजों से लड़ाई में भाग लिया।वे चीन में ही बस गए और वहीं 71वर्ष की आयु में 1957 में मौत हो गई।नक्शबंदी 1947 के बाद लाहौरके मेयो हॉस्पिटल में ऑर्थोपीडिक्स केप्रथम प्रोफेसर बने।बालाजी हुद्दार 16 अक्टूबर1937 को स्पेन पहुंचे। उन्हें बड़ी हीकठिन और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से जानापड़ा। पहले वे फ्रांस पहुंचे और फिरपाइरीनीज पहाड़ों की श्रेणियां पार करकेस्पेन पहुंचे। उन्होंने अल्बासीट नामकस्थान पर ‘जॉन स्मिथ’ के रूप में अपनानाम लिखाया। कई देशों में ऐसे स्वयंसेवक बनने पर पाबंदी थी। वहां कई ‘जॉन स्मिथ’ थे। हुद्दारको पहचानने के लिए उन्हें ‘ईराकियन जॉन’ कहा जाने लगा।हुद्दार की बटालियन का नामसुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता सकलत वालाके नाम पर ‘‘सकलतवाला बटालियन’रखा गया। उसने कई लड़ाइयों में भागलिया। उन्हें ‘‘अब्राहम लिंकन ब्रिगेड’का हिस्सा बनाया गया जिसमें कईअमरीकी, बाल्कन और फ्रैंको-बेल्जियमभी थे।स्पेनी संघर्ष के समर्थन मेंसकलतवाला की 18 वर्षीय पुत्री सेहराने ‘‘स्पेन-भारत संध्या’ का आयोजन मार्च 1937 में लंदन में किया। इसेभारत-स्पेन समिति ने आयोजित कियाथा। जवाहरलाल नेहरू भी इसमें शामिल हुए। नेहरू ने रिपब्किलन स्पेन के पक्ष में जोरदार संघर्ष छेड़ दिया। वे स्पेनके मोर्चे पर जनरल लिस्टर के हेडक्वार्टर भी गए और कैटलोनिया के राष्ट्रपति लूइस काम्पानिस से मिले। इंदिरा गांधी भी उनके साथ थीं। हुद्दार 11 फरवरी 1938 को उत्तरी स्पेनके टाराजोना नामक स्थान पर ट्रेनिंग के लिए गए। उन्हें बार्सिलोना से 100मील दक्षिण कैटालोनिया में गैन्डे सानामक स्थान में पंद्रहवीं ब्रिगेड में वहां के बचाव की लड़ाई में लगाया गया।नेहरू और कृष्ण मेनन ने उन्हें तब संबोधित किया जब वे एब्रो नदी पार करने की तैयारियां कर रहे थे। इससे पहले नेहरू ने स्पेनी कम्युनिस्ट पार्टी की अध्यक्ष डोलोरिस इबासरी के साथ मिलकर स्पेन की सहायता की और एक रैली को संबोधित किया।
हुद्दार की गिरफ्तारी
जब उनकी बटालियन बार्सिलेनाकी ओर पीछे हट रही थी, तब हुद्दारऔर कई अन्य लड़ाकुओं को फ्रांकोकी फौजों ने पकड़ लिया। वे यु(बंदीबना लिए गए। उन्हें पकड़कर ‘‘सानपेड्रो दे कार्देना’ नामक स्थान पर बंदीके रूप में रखा गया। उनके साथ रहनेवाले एक अन्य बंदी इवोर हिकमैनउन्हें ‘इराकिना मित्र’ कहा करते। हुद्दार बंदीगृह में हाथ देखकर भविष्य बताने वाले के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इसका उल्लेख उनके सेल में एक अन्य बंदी कार्ल गेजर ने किया है।हुद्दार कैदियों को भारत की आजादी के आंदोलन, गांधी और नेहरू के बारे में बताया करते और लेक्चर भी दिया करते।
ब्रिटिश सरकार पर ब्रिटिश ब्रिगेड के कैदियों के छुड़ाने का दबाव बढ़ने लगा। फलस्वरूप बातचीत करने एक टीम स्पेन गई। इसमें एक रिटायर्ड कर्नल भी थे जिनका बेटा भी उन कैदियों में एक था। जब ये कर्नल कैम्प गए तो उनकी मुलाकात एक ‘जॉन स्मिथ’ से हुई जो भारतीय लग रहे थे। उन्होंने उनसे लगातार पूछताछ की। आखिर कार इस जॉन स्मिथ ने मान लिया कि वे वास्तव में बालाजी हुद्दार हैं। वहां दिलचस्प बात यह है कि ये कर्नल कभी नागपुर के पास काम्टी के कैन्टोनमेंट के कमांडर रह चुके थे! फिर क्या था?! दोनों कैदियों के बीच नागपुर के बारे में खूब बातें हुईं। उन्होंने हुद्दार की रिहाई के लिए सारा जोर लगा दिया। इस स्पेनी जेल में अंतर्राष्ट्रीय वाद पूरे जोरों पर था! रिहा होने पर हुद्दार ब्रिटेन वापस आ गये। 12 नवंबर 1928 को इंडियन स्वराज लीग ने लंदन के एसेक्स हॉल में इंटरनेशनल ब्रिगेड के सदस्यों के स्वागत के लिए एक आम सभा की। इसमें मुख्य अतिथि गोपाल मुकुंद हुद्दार थे।आमंत्रण पत्र पर उन्हें ‘एकमात्र भारतीय’ बताया गया। मीटिंग की अध्यक्षतासुप्रसिब्रिटिश सरकार पर ब्रिटिश ब्रिगेड के कैदियों के छुड़ाने का दबाव बढ़नेलगा। फलस्वरूप बातचीत करने एक टीम स्पेन गई। इसमें एक रिटायर्ड कर्नलभी थे जिनका बेटा भी उन कैदियों में एक था। जब ये कर्नल कैम्प गए तो उनकीमुलाकात एक ‘जॉन स्मिथ’ से हुई जो भारतीय लग रहे थे। उन्होंने उनसेलगातार पूछताछ की। आखिरकार इस जॉन स्मिथ ने मान लिया कि वे वास्तव मेंबालाजी हुद्दार हैं।वहां दिलचस्प बात यह है कि ये कर्नल कभी नागपुर के पास काम्टी केकैन्टोनमेंट के कमांडर रह चुके थे! फिर क्या था?! दोनों कैदियों के बीच नागपुरके बारे में खूब बातें हुईं। उन्होंने हुद्दार की रिहाई के लिए सारा जोर लगा दिया।इस स्पेनी जेल में अंतर्राष्ट्रीयवाद पूरे जोरों पर था!रिहा होने पर हुद्दार ब्रिटेन वापस आ गये। 12 नवंबर 1928 को इंडियनस्वराज लीग ने लंदन के एसेक्स हॉल में इंटरनेशनल ब्रिगेड के सदस्यों केस्वागत के लिए एक आम सभा की। इसमें मुख्य अतिथि गोपाल मुकुंद हुद्दार थे।आमंत्रण पत्र पर उन्हें ‘एकमात्र भारतीय’ बताया गया। मीटिंग की अध्यक्षतासुप्रसि( ब्रिटिश कम्युनिस्ट नेता रजनी पाम दत्त ;आरपीडीद्ध ने की।भारत वापसीएक महीने बाद बालाजी हुद्दार बंबई वापस आ गए। बंदरगाह पर उनकाभारी स्वागत हुआ जिसमें भारी संख्या में मजदूर भी पहुंचे। कई यूनियनों तथाकांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने उनके सम्मान में आम सभाएं आयोजित कीं। स्पेन मेंअपने अनुभवों और फासिज्म-विरोधी एवं मार्क्सवादी विचारधारा के प्रभाव में वेकम्युनिस्ट पार्टी के काफी नजदीक आ गए। वे औपचारिक रूप से 1940 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे नागपुर में पार्टी कार्य में लग गए।वे द्वन्द्वात्मक एवं ऐतिहासिक भौतिकवाद तथा स्पेनी गृहयुब्रिटिश सरकार पर ब्रिटिश ब्रिगेड के कैदियों के छुड़ाने का दबाव बढ़नेलगा। फलस्वरूप बातचीत करने एक टीम स्पेन गई। इसमें एक रिटायर्ड कर्नलभी थे जिनका बेटा भी उन कैदियों में एक था। जब ये कर्नल कैम्प गए तो उनकीमुलाकात एक ‘जॉन स्मिथ’ से हुई जो भारतीय लग रहे थे। उन्होंने उनसेलगातार पूछताछ की। आखिरकार इस जॉन स्मिथ ने मान लिया कि वे वास्तव मेंबालाजी हुद्दार हैं।वहां दिलचस्प बात यह है कि ये कर्नल कभी नागपुर के पास काम्टी केकैन्टोनमेंट के कमांडर रह चुके थे! फिर क्या था?! दोनों कैदियों के बीच नागपुरके बारे में खूब बातें हुईं। उन्होंने हुद्दार की रिहाई के लिए सारा जोर लगा दिया।इस स्पेनी जेल में अंतर्राष्ट्रीयवाद पूरे जोरों पर था!रिहा होने पर हुद्दार ब्रिटेन वापस आ गये। 12 नवंबर 1928 को इंडियनस्वराज लीग ने लंदन के एसेक्स हॉल में इंटरनेशनल ब्रिगेड के सदस्यों केस्वागत के लिए एक आम सभा की। इसमें मुख्य अतिथि गोपाल मुकुंद हुद्दार थे।आमंत्रण पत्र पर उन्हें ‘एकमात्र भारतीय’ बताया गया। मीटिंग की अध्यक्षतासुप्रसिब्रिटिश सरकार पर ब्रिटिश ब्रिगेड के कैदियों के छुड़ाने का दबाव बढ़नेलगा। फलस्वरूप बातचीत करने एक टीम स्पेन गई। इसमें एक रिटायर्ड कर्नलभी थे जिनका बेटा भी उन कैदियों में एक था। जब ये कर्नल कैम्प गए तो उनकीमुलाकात एक ‘जॉन स्मिथ’ से हुई जो भारतीय लग रहे थे। उन्होंने उनसेलगातार पूछताछ की। आखिरकार इस जॉन स्मिथ ने मान लिया कि वे वास्तव मेंबालाजी हुद्दार हैं।वहां दिलचस्प बात यह है कि ये कर्नल कभी नागपुर के पास काम्टी केकैन्टोनमेंट के कमांडर रह चुके थे! फिर क्या था?! दोनों कैदियों के बीच नागपुरके बारे में खूब बातें हुईं। उन्होंने हुद्दार की रिहाई के लिए सारा जोर लगा दिया।इस स्पेनी जेल में अंतर्राष्ट्रीयवाद पूरे जोरों पर था!रिहा होने पर हुद्दार ब्रिटेन वापस आ गये। 12 नवंबर 1928 को इंडियनस्वराज लीग ने लंदन के एसेक्स हॉल में इंटरनेशनल ब्रिगेड के सदस्यों केस्वागत के लिए एक आम सभा की। इसमें मुख्य अतिथि गोपाल मुकुंद हुद्दार थे।आमंत्रण पत्र पर उन्हें ‘एकमात्र भारतीय’ बताया गया। मीटिंग की अध्यक्षतासुप्रसि( ब्रिटिश कम्युनिस्ट नेता रजनी पाम दत्त ;आरपीडीद्ध ने की।भारत वापसीएक महीने बाद बालाजी हुद्दार बंबई वापस आ गए। बंदरगाह पर उनकाभारी स्वागत हुआ जिसमें भारी संख्या में मजदूर भी पहुंचे। कई यूनियनों तथाकांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने उनके सम्मान में आम सभाएं आयोजित कीं। स्पेन मेंअपने अनुभवों और फासिज्म-विरोधी एवं मार्क्सवादी विचारधारा के प्रभाव में वेकम्युनिस्ट पार्टी के काफी नजदीक आ गए। वे औपचारिक रूप से 1940 मेंभारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे नागपुर में पार्टी कार्य में लग गए।वे द्वन्द्वात्मक एवं ऐतिहासिक भौतिकवाद तथा स्पेनी गृहयु( पर लेक्चर दियाकरते।1952 के बाद कई कारणों से वे सक्रिय राजनीति से दूर जाने लगे। फिर भी वे पार्टी के साथ बने रहे। 1972 में कॉ.ए.बी. बर्धन के एक मित्र बर्लिन गएजहां उनकी मुलाकात इंटरनेशनल ब्रिगेड के एक जर्मन से हुई। उस जर्मन ने हुद्दार को याद किया और उनके लिए एक मेडल तथा ‘थालमन बटालियन’ का चिन्ह हुद्दार के लिए दिया। ;अर्न्स्ट थालमन जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव थे जिन्हें हिटलर के यातना-शिविर में गोली मार दी गई थी । वे मित्र कॉ. बर्धन तक मेडल इ. ले आए। इन्हें कॉ. बर्धन ने स्वयं हुद्दार तक पहुंचा दिया। गोपाल मुकुंद हुद्दार की मृत्यु 1981 में हो गई।