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Archive for मार्च, 2021

बाराबंकीः भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने के लिए मुखबिर राज समाप्त कर किसान मजदूरों का राज स्थापित करना होगा अखिल भारतीय नौजवान सभा द्वारा आयोजित शहीद दिवस के अवसर पर श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य परिषद सदस्य अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि भगत सिंह शोषण विहीन मजदूर किसान राज चाहते थे, वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव बृजमोहन वर्मा ने कहा कि अगर आज भगत सिंह होते तो वर्तमान किसान मजदूर विरोधी सरकार उन्हे पुनः जीवित फांसी पर लटका देती है’’ भगत सिंह को फांसी कराने में इन्ही तत्वों का हाथ था। पार्टी के जिला सहसचिव शिवदर्शन वर्मा ने कहा कि किसान आन्दोलन चल रहा है, मजदूर आन्दोलन चल रहा है सरकार चुनाव लड़ने में व्यस्त है। चुनाव मंे मोदी की लहर नहीं है लेकिन कार्पोरेट सेक्टर की धन की लहर है।
किसाना सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि किसान आन्दोलन तय करेगा कि किसानों के हालात सुधरंगे या नहीं है। इसलिए आवश्यक है कि किसानों मंे आन्दोलन को हम सब मदद कर भगत सिंह के सपनों को सरकार करें। 

श्रद्धांजलि सभा मेें  धीरेन्द्र कुमार यादव, रमेश कुमार सच्चिदानन्द, संदीप तिवारी, राम दुलारे यादव, लवकुश वर्मा, योेगेन्द सिंह, महेन्द्र यादव, राजकुमार दीपक वर्मा, आशीष शुक्ला, राजेन्द्र सिंह राणा, मो0 फदीर, धर्मेन्द्र, दिग्विजय सिंह, कुलदीप यादव, मुनेश्वर प्रसाद गोस्वामी, विनोद यादव, गिरीश चन्द्र तथा श्याम सिंह आदि प्रमुख लोग थे।
श्रद्धांजलि सभा का संचालन किसान सभा के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने किया सभा में प्रारम्भ मंे सभी लोगों ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू के चित्रों पर माल्यापर्ण कर श्रद्धांजलि दी।

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 loksabha elections 2019 bjp is full confident with pm narendra modi but  also has worried with sp and bsp alliance - मिशन 2019: बीजेपी को पीएम मोदी  पर पूरा भरोसा, लेकिन इस                     मोदी बंगाल में कहते हैं अपराध है, अपराधी हैं, लेकिन जेल में नहीं है, माफिया हैं, घुसपैठिया हैं लेकिन खुलेआम घूम रहे हैं। सिंडिकेट है, स्कैम है, लेकिन कार्यवाही नहीं होती है, मोदी भूल जाते हैं कि भाजपा शासित , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्यों में स्थित बद से बदतर है, लेकिन मोदी प्रधानमंत्री के बजाए संघ के प्रचारक की भूमिका में ही बने रहते हैं, पार्टी में अपराध की स्थिति यह है कि दो सांसदों ने बड़े नेताओं के दबाव के कारण आत्महत्या कर ली है, तमाम सारे लोग सत्तारूढ दल के पोर्न स्टार को भी फेल कर रहे हैं, उनके ब्लू फिल्म के वीडियो वायरल हो रहे हैं, तमाम सारे नेता- उपनेता सेक्स उद्योग के व्यापारी होने के कारण पकड़े गये हैं यहां तक कि मध्य प्रदेश के एक मंत्री राघव साहब अप्रकृतिक यौन सम्बंध बनाते हुए जब वीडियो वायरल हुआ तब उनको मजबूरी में इस्तीफा दे देना पड़ा था।
    सावरकर, गोलवरकर, हेड गवारकर व महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को प्रेरणा स्रोत मानकर संघ प्रचारक उनके नाम पर वोट नहीं मांगते हैं, शैतान -साधू की भूमिका में दाढ़ी रखकर आजादी के महानायक पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद जैसे महान व्यक्तियों का मुखौटा लगाकर वोट मांगते हैं।
    हिटलर या मुसोलिनी के रक्त पिपाशु के यह भक्तगण कभी भी जनता के बीच में इनका नाम नहीं लेते हैं, लेकिन हिटलर के प्रचारमंत्री गोविल्स का अनुशरण करते हुए हर वक्त एक झूठ को हजारों  बार सुमिरनी लेकर जाप करते हुए मिलते हैं। हाँ लेकिन यह भी है कि हिटलर की मन की बात की तरह यह भी मन की बात करते हैं, लेकिन दूसरों की मन की बात सुनना यह पसंद नहीं करते हैं।
    मोदी बंगाल में या राज्यों में आम चुनाव में गैस, पेट्रोलियम पदार्थों या महंगाई की चर्चा नहीं करते हैं न ही देश के कल कारखानों को बेचने की बात ही करते हैं, मोदी बंगाल के चुनाव में एक प्रधानमंत्री के रूप में संघ का प्रचार अभियान चला रहे हैं, और जनता के करोड़ों रूपये खर्च कर गोविल्स के झूठ को प्रचारित कर रहे हैं चाहे बंगाल हो या तमिलनाडु हर जगह केन्द्र सरकार के मंत्री और प्रधानमंत्री स्वयं सरकारी खर्चों व सुरक्षा व्यवस्था का उपयोग कर जनता को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। बंगाल में प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस व वामदलों के निष्कासित लोगों की खरीद फरोख्त कर प्रत्याशी बना रहे है, हद तो यहां तक हो गई है कि चार सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए बाध्य किया है, नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की भूमिका में कभी होते ही नहीं है हमेशा वह संघ के प्रचारक के रूप में ही होते हैं, यह देश का दुर्भाग्य है कि गलत बयानी करने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री है। 

-रणधीर सिंह सुमन

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मोदी सरकार से मुक्ति दिलाना ही असली देशभक्ति है. दिल्ली बॉर्डर पर सैकड़ों किसानों की मृत्यु हो चुकी है. ऐसी कसाई सरकार इस देश में कभी नहीं रही है. अंग्रेजों के जुल्मों को इस सरकार ने पीछे छोड़ दिया है.

  यह बात किसान सभा के प्रांतीय उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने मोहम्मदपुर गाँव में किसानों की श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी, पुर्तगाली, फ़्रांसिसी व डच उपनिवेशकों ने ऐसे अत्याचार किसानों के ऊपर नहीं किये हैं जितना यह सरकार कर रही है. किसान आन्दोलन के कारण पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा के चुनावों में संघी गिरोह पूरी तरह से चुनाव हार जायेगा.   
 संयुक्त किसान मोर्चा के नेता यादवेन्द्र प्रताप सिंह एडवोकेट ने किसानों से अपील की कि पंचायत चुनाव में कमल छाप समर्थक कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं जीतना चाहिए यही किसानों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी. 
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव कामरेड बृजमोहन वर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी गाँव-गाँव किसान आन्दोलन के समर्थन में किसानों को जागरूक करेगी. वहीँ, किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि किसानों से हर गाँव से दिल्ली बॉर्डर पर पांच-पांच किसान भेजकर किसान आन्दोलन का समर्थन करना चाहिए.
किसान सभा के जिला अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि वह किसान आन्दोलन के लिए जान भी दे सकते हैं और आखिरी सांस तक किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए आन्दोलनरत रहेंगे. वहीँ,सामाजिक कार्यकर्ता व क्षेत्र में जनप्रिय मौलाना मेराज अहमद कमर ने कहा कि चाँद पूरी दुनिया को रौशनी देता है लेकिन एक स्तिथि ऐसी आती है कि चाँद नहीं निकलता है सितारे जुगनू की तरह से चमकते हैं. आज देश में सितारे जुगनू की तरह चमक रहे हैं जो किसी का भला नही कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि वह दिल्ली में किसानों के समर्थन में एक माह विभिन्न आन्दोलन स्थलों पर रहकर आये हैं, किसानों का उत्साह बढ़ाने की जरूरत है.  

श्रद्धांजलि सभा का संचालन डॉ अलाउद्दीन ने किया, अध्यक्षता मौलाना मेराज अहमद कमर ने की. सभा में अधिवक्ता श्याम सिंह, मुनेश्वर बक्श, कमरुद्दीन अंसारी, जसीम अंसारी, कमलेश मौर्या, रेहान मलिक, अली काजिम खान, हमीदुल्लाह शेख, मौलाना गयासुद्दीन फलाही, डॉ रईस सिद्दीकी, राम खेलावन यादव पूर्व प्रधान, जगदीश मौर्या पूर्व प्रधान, अय्यूब अंसारी प्रधान, मोहम्मद सलीम, चन्द्रिका प्रसाद यादव पूर्व प्रमुख, लईक पूर्व प्रधान सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे.

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गिरफ्तार हुईं कल्पना

 कल्पना दत्त (बाद में कल्पना जोशी )का जन्म 27 जुलाई 1913 को श्रीपुर, बोउल खाली उपजिला, चटगांव जिला, बंगाल प्रदेश ;अब बांग्लादेश में हुआ था। श्रीपुर मात्र 300 घरों का छोटा-सा गांव था। उनका परिवार पुरातनपंथी
परम्परावादी विचारों का बड़ा जमींदार परिवार था। कल्पना के पिता विनोद बिहारी दत्त थे और माता का नाम
शोभना देवी। परिवार शिक्षित था और इसके सदस्य बाद में स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ गए।

शिक्षा और राजनैतिक सक्रियता

 कल्पना की आरंभिक शिक्षा घर पर हुई। उसके बाद उसे डॉ. खास्तगीर बालिका हाई स्कूल में दाखिल करा दिया गया। यह स्कूल परिवार के ही कुछ सदस्यों ने स्थापित किया था। कल्पना पढ़ाई में बड़ी तेज थी और हमेशा अव्वल आया करती। उसने सुप्रसिद्ध  बंगला पुस्तक ‘‘पथेर दाबी’ पढ़ ली, साथ ही कन्हाईलाल तथा कई क्रांतिकारियों की जीवनियां भी पढ़ीं। उसक दो चाचा गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। इसका
उस पर बड़ा असर पड़ा। कल्पना को विज्ञान का बड़ा शौक था। महान वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय को वह अपना आदर्श मानती थी। कल्पना संस्कृत और गणित में भी बहुत तेज थी।
समय के साथ उसके परिवार में राजनैतिक मतभेद पैदा हो गए। गांधी जी चटगांव आए और इस परिवार की
कपड़े की दुकान पर बंग लक्ष्मी मिल्स के स्वदेशी कपड़े रख गए। परिवार की कई स्त्रियां गांधी का ‘दर्शन’ करने
गईं, यहां तक अपने गहने तक उन्हें दान कर आईं।
कल्पना ने 1929 में चटगांव से मैट्रिक पास किया। उसी वर्ष वहां एक विद्यार्थी सम्मेलन आयोजित किया गया
जिसमें कल्पना ने अपने चाचा की सहायता से भाषण भी दिया। चटगांव के नौजवान क्रांतिकारी संगठनों में
संगठित होने लगे। उसके एक सदस्य पूर्णेन्दु दस्तीदार कल्पना के घर आने-जाने लगे। कल्पना धीरे-धीरे
प्रशिक्षित होने लगी।
कल्पना ने कलकत्ता के बेथ्यून कॉलेज में भर्ती ले ली। उसके विषय थे भौतिक शास्त्र, गणित और वनस्पति
शास्त्र। साथ ही उसने व्यायाम, बोटिंग, इ. भी सीखी। उसने हिन्दी और फ्रेंच का भी अध्ययन किया। जल्द ही उसका संपर्क सूर्यसेन, अनंत सिंह, गणेश घोष तथा अन्य प्रसिद्ध  क्रांतिकारियों से हुआ।
उसने लाठी, छुरा, इत्यादि चलाने में ट्रेनिंग पाई।
कल्पना ने अप्रैल 1930 में जवाहरलाल नेहरू की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए बेथ्यून कॉलेज मे हड़ताल संगठित की। कॉलेज की महिला प्रिंसिपल ने विद्यार्थियों से दुर्व्यवहार किया। बाद में प्रिंसिपल को माफी मांगनी पड़ी।
कल्पना दत्त ’छात्री संघ’ ;गर्ल स्टूडेंट ऐसोसिएशनमें शामिल हो गई। यह एक अति-क्रांतिकारी संगठन था
जिसमें बीना दास और प्रीतिलता व द्देदार जैसी क्रांतिकारी छात्राएं शामिल थीं।
चटगांव शस्त्रागार पर हमला
क्रांतिकारी युवाओं ने 18 अप्रैल 1931 को चटगांव के ब्रिटिश शस्त्रागार पर हमला कर दिया। इस खबर ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया। खबर तेजी से फैल गई। कल्पना जल्द से जल्द चटगांव चली जाना चाहती थी लेकिन उसे कॉलेज से ट्रांसफर नहीं मिल रहा था। काफी समय बर्बाद हो गया जिसका उसकी पढ़ाई पर असर पड़ा। वह प्राइवेट छात्र के रूप में परीक्षा में बैठी। उसका सेंटर चटगांव में ही पड़ा। कल्पना ने चटगांव कॉलेज में बी.एस.सी. में एडमिशन ले लिया।
वह क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए अधीर हो रही थी। उसने पिस्तौल तथा अन्य हथियारों की ट्रेनिंग लेना अधिक सक्रियता से लेना शुरू कर दिया। अपने मैट्रिक के दिनों मे कल्पना एक कम्युनिस्ट साथी के संपर्क में आ चुकी थी जिसका नाम था सुरभा दत्त। इससे उसके विचार बनने लगे थे। कल्पना ने अनन्त सिंह को, जो क्रांतिकारी दल के नेताओं में से एक थे, दल में शामिल होने पर मजबूर कर दिया। उसे रेलवे लाइन उड़ाने के
ग्रुप में शामिल कर लिया गया। इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के सूर्य सेन ने कल्पना दत्त को कलकत्ते से एसिड, रसायन तथा अन्य सामग्री का इंतजाम करने के लिए कहा। कल्पना खुद यह सारा सामान ले आई। वह विस्फोटक तैयार करने की विशेषज्ञ बन गई। उसे ‘एक्शन स्क्वाड’ में शामिल कर लिया गया।
जेल को बम से उड़ने की पहली कोशिश असफल रही। जेल में दिनेश गुप्ता और रामकृष्ण बिस्वास को फांसी
दी जाने वाली थी। कल्पना को 17 दिसंबर 1932 को चटगांव के पहाड़ तली में स्थित योरपियन क्लब के पास से गिरफ्तार कर लिया गया। वह पुरुष वेश में घूम रही थी। इसके एक सप्ताह बाद ही प्रीतिलता वद्देदार
के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने क्लब पर हमला कर दिया। यह हमला जलालाबाद के उस नरंसहार के बदले
में था जिसमें ब्रिटिश सैनिकों ने कई युवाओं की हत्या कर दी थी। प्रीतिलता गंभीर रूप से घायल हो गई और पकड़े
जाने से बचने के लिए उसने सायनाड खाकर आत्महत्या कर ली। प्रीतिलता कल्पना दत्त की सहपाठिनी और
क्रांतिकारी दल में सहयोगिनी थी। पुलिस ने कल्पना को उक्त कांड में फंसाने की कोशिश की लेकिन सबूतों
के अभाव में उसे जमानत पर छोड़ दिया गया। उसे अपने घर में बंदी बनाकर चारों ओर पुलिस का पहरा
बिठा दिया गया। उसे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।
फिर भी कल्पना मौका पाते ही घर से भाग निकली। उनके पिता को काम से निकाल दिया गया और घर पर
छापा मारकर सारा सामान जब्त कर लिया गया।
कल्पना और सूर्यदा

सूर्यसेन किसी तरह रात और दिन में छिपते तथा भागते रहे और पुलिस के जाल से बचते रहे। इसी दौरान वह पुलिस फायरिंग में घायल हो गई। वह और मणिन्द्र दत्त पूरे दो घंटे एक तालाब के पानी में छिपे रहें। फिर भी वह भागती गई। आखिरकार उसे चटगांव के पास समुद्री किनारे एक छोटे-से कस्बे से गिरफ्तार कर लिया गया।
कल्पना और कई अन्य साथियों को पकड़कर पुलिस ले गई। एक पुलिस अफसर ने उसे थप्पड़ मारा। इस पर
वहां उपस्थित फौजी कमांडर ने थप्पड़ मारने वाले को डांटते हुए कहाः ‘‘उसे उचित सम्मान दो।’’ कल्पना पुलिस
और फौजी अधिकारियों के बीच बड़ी लोकप्रिय हो गई।
सूर्यसेन और तारकेश्वर दस्तीदार को फांसी की सजा सुनाई गई जबकि कल्पना दत्त को आजन्म कारावास की
सजा मिली। विशेष ट्रिब्यूनल जज ने कहा कि वह सिर्फ 18 वर्ष की थी। उसे अंडमान में काला पानी की सजा
के लिए भेजा जाने वाला था लेकिन महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने हस्तक्षेप कर रुकवा दिया। उसे पहले तो हिजली
और राजशाही जेलों में भेजा गया, फिर सितंबर 1934 से अक्टूबर1935 तक मेदिनीपुर जेल में रखा गया। फिर
दिनाजपुर जेल और उसके बाद मेदिनीपुर जेल में वापस लाया गया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
कल्पना दत्त और अन्य कैदियों की रिहाई के लिए आंदोलन जोर पकड़ता गया तथा सरकार पर दबाव बढ़ता
गया। 1938-39 में कैदियों की रिहाई का आंदोलन तेज हो गया। इसके अलावा गांधीजी और टैगोर ने भी दबाव
बनाया। फलस्वरूप कल्पना दत्त तथा कई अन्य को 1 मई 1939 को रिहा कर दिया गया।
रिहाई के बाद कल्पना को रविन्द्रनाथ टैगोर की ओर से पत्र मिला। इसमें उन्होंने कल्पना को उसके भविष्य के कर्तव्यों का ध्यान दिलाते हुए उसे आशीर्वाद दिया।
कल्पना के अधिकतर साथी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो चुके थे। अभी कल्पना पशोपेश में थी। वह वेदान्त
और गीता के आध्यात्मिक प्रभाव में भी थी। साथ ही उसे कम्युनिस्टों के विचार जरा ज्यादा ही सिधान्तिक लगते थे। उसे महसूस हो रहा था कि ‘जनता के बीच’ काम होना चाहिए। कोई भी कॉलेज कल्पना दत्त को एडमिशन देने
को तैयार नहीं था। आखिरकार उसने 1940 में बी.ए. पास किया ओर एम. ए.;गणित में एडमिशन लिया।
1940-41 में उसे फिर ‘गृह-बंदी’ में रखा गया वापस कलकत्ता लौटकर उसने ‘अध्ययनमंडली’ का गठन किया। साथ ही हस्तलिखित पत्रिका ‘पथेय’ निकालना शुरू किया। उसने लगभग सौ सदस्यों वाली एक नारी समिति भी गठित की।
उसने ‘रात-दिन’ स्कूल स्थापित किए। उसने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान चटगांव पर जापानियों द्वारा बमबारी के दौरान रक्षा-उपायों संबंधी काम किया। इस संदर्भ में उसने महिला आत्मरक्षा समिति’ के गठन में भाग लिया। इस बीच वह दो बार टाइफायड से गंभीर रूप से बीमार हुई।
कल्पना को अब जनता के बीच काम करने के कई अवसर मिले। उसने संथाल मजदूरों, आदिवासियों, सफाई
श्रमिकों, धोबियों, इ. तबकों के बीच, उनकी झुग्गियों में जाकर बहुत सक्रियतासे काम किया। इसके अलावा उसने
1943 के बंगाल में पड़े महा-अकाल में बड़ा काम किया। उसे किसान सभा में भी काम करने का मौका मिला।
कलकत्ता में उसने ट्रामवे तथा अन्य मजदूरों के बीच सक्रिय काम किया।
वह ट्रामवे वर्कर्स यूनियन के ऑफिस में होलटाइमर बन गईं।
इन कार्योंं के दौरान कल्पना दत्त कम्युनिस्ट पार्टी के काफी नजदीक आ गईं। उन्हें 1942 में, जब वे
टाइफायड से बीमार थीं, सूचना दीगई कि उन्हें भा.क.पा. का सदस्य बना लिया गया है।
दिसंबर 1942 में कल्पना पार्टी स्कूल में भर्ती होने बंबई गईं। वहां उनकी मुलाकात पार्टी के महासचिव पी.सी. जोशी से हुई। उन्हें प्रादेशिक स्तर पर पार्टी संगठनकर्ता बनाया गया।
उनकी चार बहनें भी पार्टी की सदस्य बन गईं। अगस्त 1943 में पी.सीजोशी और कल्पना दत्त की शादी हो गई।
कल्पना जोशी ने कई जनसंघर्षोंं का नेतृत्व किया और कई अन्य में भाग लिया। इनमें से एक था जनवरी 1946 में चटगांव के पाटिया में हड़तालें और प्रदर्शन। यह ब्रिटिश सिपाहियों द्वारा किए गए अत्याचारों के विरोध में था। कल्पना और उसके साथियों ने इनका नेतृत्व किया।
1946 में कल्पना जोशी ने भाक. पा. उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान सभा के लिए चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

कल्पना जोशी 1948 में अंडरग्राउंड चली गईं। 1951 में जब पार्टी पर से पाबंदी हटाई गई तो उन्हें वित्तीय एवं राजनैतिक कारणों से नौकरी करनी पड़ गई। उन्हें प्रो. पी.सीमहालनोबिस के तहत इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीच्यूट में काम मिल गया। उन्होंने मुख्यतः नेशनल सैम्पल सर्वे ;एन.एस.एस. में काम किया। वे इंस्टीच्यूट ऑफ स्टडीज इन रश्शियन लैंग्वेज की संस्थापक-डाइरेक्टर भी थीं। उन्होंने ‘चिटगांग आर्मरीरेडर्सःरेमिनिसेन्सेज’ ;चटगांव शस्त्रगार कांड के साथियों के संस्मरण नाम से आत्म-कथात्मक पुस्तक भी लिखी। इसे अंग्रेजी में पी.सी. जोशी और निखिल चक्रवर्ती ने अनूदित किया। जोशी ने इसकी भूमिका भी लिखी। कल्पना ने लिखाः ‘‘हमें अपने स्कूली दिनों में अपने भविष्य का कोई खाका स्पष्ट नहीं था। और तब झांसीं की रानी की कहानी ने हमें प्रेरित कर दिया।’’ कल्पना दत्त जोशी की मृत्यु 5 फरवरी 1995 को हो गई।

-अनिल राजिमवाले

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बाराबंकी। कुंवर उमेश सिंह विधि व्यवस्था के स्वर्णिम युग के स्वर्णिम व्यक्तित्व के स्वामी थे विधि के क्षेत्र को उन्होंने समृद्धि किया आज जरूरत इस बात की है कि विधि व्यवसाय को पुनः नई ऊचांईयों पर ले जाने की जरूरत है इसलिए अधिवक्ता कुंवर उमेश सिंह के चरित्र को अपनाना पड़ेगा।
यह विचार इण्डियन एसोसिएशन आॅफ लायर्स के राष्ट्रीय महासचिव वाई0एस0 लोहित ने गांधी भवन में आयोजित स्मृति सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारी न्याय व्यवस्था में जो कमियां आयी है वह व्यवस्थागत है जिनको दूर किया जाना आवश्यक है।


स्मृति सभा को जिला बार एसोसिएशन बाराबंकी एलडर्स कमेटी के अध्यक्ष अधिवक्ता जुबेर अंसारी ने कहा कि ‘‘कुंवर उमेश सिंह सटीक जिरह व बहस करते थे विधि विशेषज्ञ के साथ-साथ वह तीर अंदाजी के भी शौकीन थे।’’
सुप्रसिद्ध खिलाड़ी हाजी सलाउद्दीन ने कुंवर उमेश सिंह के खेल प्रेम को उजागर किया इन्कलाब के ब्योरो चीफ सुप्रसिद्ध पत्रकार मो0 तारिक खान ने कहा कि ‘‘अधिवक्ता कुंवर उमेश सिंह से हमारे पारिवारिक सम्बन्ध थे और वह गुणों के खान थे।’’
स्मृति सभा को उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मुस्तफा खान श्याम सुन्दर दीक्षित, विनय दास, डाॅ0 एस0एम0 हैदर, अनिल निगम, बलराम पाण्डेय, उपेन्द्र सिंह, पंकज अवस्थी, अरविन्द वर्मा, बृजमोहन वर्मा, नरेन्द्र वर्मा पूर्व महामंत्री, हुमायू नईम खान, पंडित राजनाथ शर्मा आदि ने सम्बोधित किया। बृजेश कुमार दीक्षित पूर्व अध्यक्ष, सुरेन्द्र प्रताप सिंह ‘बब्बन’, विजय प्रताप सिंह, पुष्पेन्द्र सिंह, निर्मल वर्मा, नीरज वर्मा, गिरीश चन्द्र, भूपेन्द्र पाल सिंह, राजेन्द्र बहादुर सिंह, श्याम सिंह, राजकुमार सिंह, नरेन्द्र वर्मा, अंकुल वर्मा, गौरी रस्तोगी, प्रवीण कुमार, शिवदर्शन वर्मा, मो0 कदीर, अंशुलता मिश्रा, अशोक कुमार वर्मा मो मोहतसिम व चन्द्र शेखर आदि प्रमुख लोग थे। सभी लोगों ने उनके चित्र पर मल्यार्पण भी किया।
स्मृति सभा की अध्यक्षता पवन कुमार वैश्य, संचालन विभव मिश्रा तथा आयोजन रणधीर सिंह सुमन ने किया था ।

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