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Archive for the ‘कविता’ Category

जियरा अकुलाय

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खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

तुम का जानौ मोरि बलमुआ मुनउक चढा बुखार,
घरी घरी पिया तुमहेंक पूंछैं फिरि अचेत होई जायं,

खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

किहें रहो तैं जिनते रिश्ता उई अतने सह्जोर ,
बिटिया कैंहा द्यउखै अइहैं पुनुवासी के भोर,

खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

चढा बुढापा अम्मा केरे बापू भे मजबूर,
खांसि खंखारि होति हैं बेदम गंठिया सेनी चूर,

खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

गिरा दौंगरा ई असाढ़ ख्यातन मां जुटे किसान ,
कौनि मददि अब कीसे मांगी घरमा चुका पिसान,

खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

काहे हमसे मुंह फेरे हो जाय बसेउ परदेश ,
साल बीत तुम घरे न आयेव धरेव फकीरी भेष,

खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

हँसी उडावे पास पड़ोसी रोजू दियैं उपदेश,
चोहल करैं सब मोरि कन्त कब अइहैं अपने देश ,

खबरि उनका देतिऊ पहुंचाय,
विकल तन मन जियरा अकुलाय।

डॉक्टर सुरेश प्रकाश शुक्ल
लखनऊ

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निर्झर सरिता ओ सागर,
का महामिलन अति उत्तम।
मानव मानवता चाहे,
अति कोमल स्पर्श लघुत्तम ॥

समरसता अविरल धारा,
चेतनता स्वयं विलसती।
अति पाप, ताप, हर लेती ,
जीवन्त राग में ढलती ॥

मैं-मेरा औ तू-तेरा,
होवे हम और हमारा ।
आनंद स्वस्तिमय सुंदर,
समरस लघु जीवन सारा ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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द्वयता से क्षिति का रज कण ,
अभिशप्त ग्रहण दिनकर सा।
कोरे षृष्टों पर कालिख ,
ज्यों अंकित कलंक हिमकर सा॥

सम्पूर्ण शून्य को विषमय,
करता है अहम् मनुज का।
दर्शन सतरंगी कुण्ठित,
निष्पादन भाव दनुज का ॥

सरिता आँचल में झरने,
अम्बुधि संगम लघु आशा।
जीवन, जीवन- घन संचित,
चिर मौन हो गई भाषा॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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अरी ! युक्ति तू शाश्वत ,
मोहिनी रूप फिर धर ले ।
अमृत देवो को देकर,
मोहित असुरो को कर ले॥

बुद्धि कभी, चातुर्य कभी,
विधि तू कौशल्य निपुणता।
युग-तपन शांत करने को,
है कैसी आज विवशता ॥

कल्याणी शक्ति अमर ते ,
निज आशा वि्स्तृत कर दो,
वातायन स्वस्ति विखेरे ,
महिमामय करुणा वर दो॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’

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तोड़ना नही सम्भव है,
विधि के विधान की कारा ।
अपराजेय शक्ति है कलि की,
पाकर अवलंब तुम्हारा ॥

श्रृंखला कठिन नियमो की,
विधना भी मुक्त नही है ।
वरदान कवच से धरणी ,
अभिशापित है यक्त नही है॥

हो अजेय शक्ति नतमस्तक ,
पौरुष बल ग्राह्य नही है।
तप संयम मुक्ति विजय श्री ,
रोदन ही भाग्य नही है॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही”

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एन.डी. ए सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने केन्द्रीय विद्यालयों की फीस 4 गुना बढ़ा दी थी , उन्ही के पदचिन्हों पर चलते हुए कपिल सिब्बल ने केन्द्रीय विद्यालयों की फीस 4 गुना बढ़ा दी । इस तरह से कक्षा XI के एक छात्र की फीस 800 रुपये प्रतिमाह हो गई है । बाराबंकी केन्द्रीय विद्यालय में प्रधानाचार्य नही है ।

कक्षा 11 में फिजिक्स , केमिस्ट्री , मैथ्स , इंग्लिश , कंप्यूटर साइंस के विषय है और इन विषयों में से फिजिक्स, मैथ्स , इंग्लिश, कंप्यूटर साइंस के टीचर भाड़े के है । बाराबंकी में अच्छे से अच्छे विद्यालयों की जो फीस है वही फीस केन्द्रीय विद्यालय की हो गई है । विद्यालय में 23092009 से (लगभग सत्र शुरू हुए 3 महीने हो चुके है ) इंग्लिश की पढ़ाई प्रारम्भ हुई है मानव संसाधन विकास मंत्री जी आप उसी तरह काम कर रहे है जिस तरह से मुरली मनोहर जोशी कर रहे थे शिक्षा की गुणवत्ता के ऊपर आप का ध्यान नही है । आप शिक्षा का सरकार के मध्यम से व्यवसाय कर मुनाफा कमाना चाहते है । शिक्षा को शिक्षा बना रहने दीजिये व्यवसाय मत बनाइये और आप इसी तरीके से कार्य करते रहिये जिससे आप के युवराज का प्रधानमंत्री बनने का सपना, सपना ही रह जाएआप माननीय उच्चतम न्यायलय के एडवोकेट रहे है जिनकी फीस लाखो में होती है , उसी हिसाब से आप सोचते है । बाराबंकी जनपद , बाढ़ और सूखे से पीड़ित जनपद हैयहाँ के एक एडवोकेट को 30 रुपये में भी काम करना पड़ता है आप अपनी सोच पूरे देश की स्तिथियों के अनुसार रखिये, उचित है लेकिन इसमें आप का कोई दोष नही है । सभी शशि थरूर है जिनको हवाई जहाज में आदमी नही गाय दिखाई देती है ।

सुमन
लोकसंघर्ष

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अभिलाषा के आँचल में ,
भंडार तृप्ति का भर दो।
मन-मीन नीर क ताल में,
पंकिल न हो यह वर दो॥

रतिधरा छितिज वर मिलना ,
आवश्यक सा लगता है।
या प्रलय प्रकम्पित संसृति,
स्वर सुना सुना लगता है ।

ज्वाला का शीतल होना,
है व्यर्थ आस चिंतन की।
शीतलता ज्वालमयी हो,
कटु आशा परिवर्तन की॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही”

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सागर को संयम दे दो,
या पूरी कर दो आशा।
भाषा को आँखें दे दो,
या आंखों को दे दो भाषा॥

तम तोम बहुत गहरा है,
उसमें कोमलता भर दो।
या फिर प्रकाश कर में,
थोडी श्यामलता भर दो ॥

अति दीन हीन सी काया,
संबंधो की होती जाए ।
काया को कंचन कर दो,
परिरम्भ लुटाती जाए॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही”

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नव पिंगल पराग शतदल,
आशा विराग अभिनन्दन।
नीरवते कारा तोड़ो,
सुन मानस स्वर का क्रंदन॥

माया दिनकर आच्छादित,
अन्तस अवशेष तपोवन।
मानो निर्धन काया का ,
अनुसरण अधीर प्रलोभन॥

ये उल्लास मौन आसक्ति
भ्रम जीवन दीन अधीर।
सुख वैभव प्रकृति त्यागे,
मन चाहे कृतिमय नीर॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही”

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तृष्णा विराट आनंदित,
है नील व्योम सी फैली।
मादक मोहक चिर संगिनी,
ज्यों तामस वृत्ति विषैली॥

वह जननि पाप पुञ्जों की,
फेनिल मणियों की माला ।
उन्मत भ्रमित औ चंचल,
पाकर अंचल की हाला॥

छवि मधुर करे उन्मादित ,
सम्हालूँगा कहता जाए।
तम के अनंत सागर में,
मन डूबा सा उतराए॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही”

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