Archive for the ‘कविता’ Category
क्या पतन समझ पायेगा…
Posted in कविता, गीत चंदेल on सितम्बर 4, 2009| Leave a Comment »
या सुंदर केवल आशा…
Posted in कविता, गीत चंदेल on सितम्बर 4, 2009| Leave a Comment »

आशा का सम्बल सुंदर,
या सुंदर केवल आशा ।
विभ्रमित विश्व में पल–पल ,
लघु जीवन की प्रत्याशा॥
रंग मंच का मर्म कर्म है,
कहीं यवनिका पतन नही ।
अभिनय है सीमा रेखा,
कहीं विमोहित नयन नही॥
सत् भी विश्व असत भी है,
पाप पुण्य ही हेतु बना।
कर्म मुक्ति पाथेय यहाँ,
स्वर्ग नर्क का सेतु बना ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही‘
यह रीती-नीति जगपति की…
Posted in कविता, गीत चंदेल on सितम्बर 2, 2009| Leave a Comment »

है व्यर्थ आस ऋतुपति की ।
छलना भी मोहमयी है,
यह रीती–नीति जगपति की॥
आंसू का क्रम ही क्रम है,
यह सत्य शेष सब भ्रम है ।
वेदना बनी चिर संगिनी,
सुख का तो चलता क्रम है॥
उद्वेलित जीवन मग में,
बढ़ चलना धीरे–धीरे ।
प्रणय, मधुर, मुस्कान, मिलन,
भर लेना मोती–हीरे ॥
–डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही‘
छायानट का सम्मोहन…
Posted in कविता, गीत चंदेल on अगस्त 29, 2009| Leave a Comment »
लघुतम जीवन का अर्पण…
Posted in कविता, गीत चंदेल on अगस्त 26, 2009| Leave a Comment »
ह्रदय-उपवन में एक बार ,प्रिय ! ……..
Posted in कविता on अगस्त 25, 2009| Leave a Comment »
ह्रदय–उपवन में एक बार ,प्रिय ! अब तो आ जाते॥
प्रतिक्षण रही निहार, अश्रुपूरित में आँखें राहें।
मधुर मिलन को लालायित ये विह्वल व्याकुल बाहें ॥
दुःख भरी प्रेम की नगरी में, कुछ मधुर रागिनी गाते।
ह्रदय–उपवन में एक बार , प्रिय ! अब तो आ जाते ॥
इस निर्जन उपवन में भी, करते कुछ रोज बसेरा ।
यहीं डाल देते प्रियवर ! मम उर में अपना डेरा॥
करते हम तन – मन न्योछावर ,जीवन – धन – दान लुटाते ।
ह्रदय – उपवन में, एक बार, प्रिय ! अब तो आ जाते।
सेज सजाकर तुम्हें सुलाते , निशदिन सेवा करते।
इक टक पलकें खोल, नयन भर तुमको देखा करते ॥
निज व्यथित नयन – वारिधि में, प्रिय ! स्नान कराते ।
ह्रदय उपवन में एक बार , प्रिय ! अबतो आ जाते ॥
अब पलक –पाँवडे राहो में , नयनो के बिछा दिए है।
पग–पग पर हमने प्राणों के, दीपक भी जला दिए है॥
शून्य – शिखर जीवन – पथ हे, मंगलमय इसे बनाते ।
ह्रदय – उपवन में एक बार, प्रिय! अब तो आ जाते ॥
कट न सकेंगी तुम बिन , जीवन की लम्बी राहें ।
रुक न सकेंगी तुम बिन , दुःख– दर्द भरी ये आहें॥
निर्जीव व्यथित मम उर में , आशा का दीप जलाते ।
ह्रदय उपवन में एक बार, प्रिय ! अब तो आ जाते॥
खुले रहेंगे सजल नयन , तृष्णा का अंत न होगा।
मधुर–मिलन जीवन , एक बार भी यदि न होगा॥
विनती है यही तन–मन की, श्वासों में आ बस जाते।
ह्रदय–उपवन में एक बार–प्रिय ! अब तो आ जाते॥
–मोहम्मद जमील शास्त्री
लालच की रक्तिम आँखें…
Posted in कविता, गीत चंदेल on अगस्त 25, 2009| Leave a Comment »
भृकुटी छल बल से गहरी।
असत रंगे दोनों कपोल ,
मन में मालिन्य भरा है ,
‘स्व‘ तक संसार है सीमित ।
संसृति विकास अवरोधी ,
कलि कलुष असार असीमित ॥
सव रस छलना आँचल में ,
कल्पना तीत सम्मोहन।
सम्बन्ध तिरोहित होते ,
क्रूरता करे आरोहन
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल “राही“
इर्ष्या से अधर सजाये….
Posted in कविता, गीत चंदेल on अगस्त 23, 2009| Leave a Comment »
प्रहरी मुझको कर डाला…
Posted in कविता, गीत चंदेल on जून 21, 2009| 3 Comments »
अवधी भाषा में सवैये
Posted in अम्बर, कविता on जून 21, 2009| 2 Comments »
श्रम के बलु ते भरी जाँय जहाँ गगरी -गागर ,बखरी बखरा ।
खरिहान के बीच म ऐसु लगे जस स्वर्ग जमीन प है उतरा ।
ढेबरी के उजेरे मा पंडित जी जहँ बांची रहे पतरी पन्तर।
पहिचानौ हमार है गांव उहै जहाँ द्वारे धरे छ्परी – छपरा॥
निमिया के तरे बड़वार कुआँ दरवज्जे पे बैल मुंडेरी पे लौकी।
रस गन्ना म डारा जमावा मिलै तरकारी मिली कडू तेल मा छौंकी ।
पटवारी के हाथ म खेतु बंधे परधान के हाथ म थाना व चौकी ।
बुढऊ कै मजाल कि नाही करैं जब ज्यावें का आवे बुलावे क नौकी॥
अउर पंचो! हमरे गाव के प्रेम सदभाव कै पाक झलक दे्खयो-
अजिया केरे नाम लिखाये गए संस्कार के गीत व किस्सा कहानी ।
हिलिकई मिलिकै सब साथ रहैं बस मुखिया एक पचास परानी।
हियाँ दंगा -फसाद न दयाखा कबो समुहै सुकुल समुहै किरमानी।
अठिलाये कई पाँव हुवें ठिठुकई जहाँ खैंचत गौरी गडारी से पानी॥
हियाँ दूध मा पानी परे न कबो सब खाय-मोटे बने धमधूसर ।
भुइयां है पसीना से सिंची परी अब ढूंढें न पैहो कहूं तुम उसर।
नजरें कहूँ और निशाना कहूँ मुल गाली से जात न मुसर।
मुखडा भवजाई क ऐसा लगे जस चाँद जमीन पै दुसर ॥
-अम्बरीष चन्द्र वर्मा ”अम्बर”