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 बाराबंकी। सरकार किसान की मांग तो मान ले लेकिन सत्तारूढ़ दल ने जो रूपया अडानी अम्बानी से लेकर जिलो-जिलों में बीस-बीस करोड़ की लागत से जिला कार्यालय बनवाए है और लाखों करोड़ रूपये चुनाव में खर्च करके सत्ता हासिल की है उसकी वापसी कैसे हो इसीलिए सरकार किसानों की मांगों को नहीं मान रही है और सम्पत्तियाँ बेचों अभियान चल रही है।
    यह बात दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन के समर्थन में चले रहे गाँधी प्रतिमा के सामने धरना दे रहे किसान सभा के लोगों को सम्बोधित करते हुए प्रान्तीय उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि किसान मजदूर व्यापारी या नब्बे प्रतिशत जनता का रूपया छीनकर सरकार अडानी, अम्बानी को दे रही है। इसी वजह से देश में अव्यवस्था का दौर जारी है।
    किसान सभा के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि किसान आन्दोलन में ज्यादा से ज्यादा किसानों को शामिल होकर अपनी बात करना होगा सरकार चाहती है आन्दोलन हिंसक हो जाय वह नहीं होगा। देश का आन्दोलन सरकार के पतन का कारण होगा।
    भारतीय कम्युनिट पार्टी के जिला सहसचिव डाॅ0 कौसर हुसैन ने कहा कि यह आन्दोलन किसानों के जीवन मरण का आन्दोलन है। सहसचिव शिवदर्शन वर्मा ने कहा कि जनपद में किसानोें की धान की उपज का कोई खरीददार नहीं है। एक हजार रूपये प्रति कुन्तल धान बिक रहा है। किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि आन्दोलन तेज किया जायेगा। सरकार किसानों के खिलाफ कितनी अफवाहें फैलावे जनता अब जुमलेबाजों को समझ रही है।
    धरना सभा को आल इण्डिया स्टूडेन्टस फेडरेशन के महेन्द्र यादव नौजवान सभा के जिला अध्यक्ष आशीष शुक्ला, जिला लाल, दीपक वर्मा, ज्ञानेश्वर वर्मा, गिरीश चन्द्र रामनरेश आदि ने सम्बोधित किया। धरना सभा में प्रमेन्द्र कुमार, मुनेश्वर गोस्वामी, कैलाश चन्द्र, अमर सिंह, सर्वेश कुमार, कुलदीप, बीरेन्द्र कुमार वर्मा आदि लोग मौजूद रहे।

बाराबंकीः मोदी सरकार अडानी, अम्बानी की नौकर सरकार है उन्ही के इशारे पर कृषि क्षेत्र के काले कानून बनाये गए हैं और किसान आन्दोलन की मांगे सरकार नहीं मान रही है, आल इण्डिया किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने किसान सभा द्वारा दिल्ली किसान आन्दोलन कारियों के समर्थन में निकाले गए जलूस को जिलाधिकारी कार्यालय के सामने सम्बोधित करते हुए कहा कि ’’किसान और मजूदर मोदी सरकार को उखाड़ फेकेगा’’ क्योंकि अडानी और अम्बानी को फायदा देने के लिए बनाये गए कानूनों को सरकार रद्द नहीं करने जा रही है। 


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव बृज मोहन वर्मा ने कहा कि किसानांे के समर्थन में आज भारत बंद पूर्णतया सफल है। पार्टी के जिला सह सचिव शिवदर्शन वर्मा ने कहा कि किसान विरोधी तत्वों को जनपद मंे किसानों की धान खरीद का नाटक दिखाई नहीं देता है, जबकि शहर में हजारों ट्रालियों पर लदा धान खड़ा है’ किसान सभा के जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि धान खरीद को लेकर आन्दोलन चलाया जायेगा और इस सरकार की जुमलेबाजी की पोल खोला जायेगा। किसान सभा के जिला उपाध्यक्ष प्रवीन कुमार ने कहा कि सरकार किसानों के जल, जंगल, जमीन अम्बानी और अडानी को बेच देना चाहते हैं।


छाया चैराहे से जलूस पुलिस लाइन चौराहा होते हुए सरकार  विरोधी गगन भेदी नारे लगाते हुए जिलाधिकारी कार्यालय तक गया, जलूस गिरीश चन्द, पवन कुमार, रमेश कुमार, अमान गाजी, आशीष शुक्ला, मनोज कुमार, पवन वर्मा, संदीप तिवारी, महेन्द्र यादव, नैमिष सिंह, अंकित यादव, लव त्रिपाठी, आशीष वर्मा, भूपेन्द्र प्रताप सिंह, ज्ञानेश्वर वर्मा, अमर सिंह गुड्डू, राज कुमार, सहजराम वर्मा आदि प्रमुख किसान नेता थे अंत में राष्ट्रपति को सम्बोधित एक ज्ञापन जिला प्रशासन को दिया।

बाराबंकी। दिल्ली में तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द कराने के लिए चल रहे आन्दोलन के समर्थन में आॅल इण्डिया स्टूडेन्टस फेडरेशन व अखिल भारतीय नौजवान सभा ने जुलूस निकाला।
प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए स्टूडेन्स फेडरेशन के जिलाध्यक्ष महेन्द्र यादव ने कहा कि किसानों के समर्थन में छात्र नौजवान भी आन्दोलन करेंगे और इस देश विरोधी, जनता विरोधी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे। नौजवान सभा के जिलाध्यक्ष आशीष शुक्ला ने सरकार को ललकारते हुए कहा कि यह सरकार किसान मजदूर विरोधी सरकार है, गोदी मीडिया द्वारा हिप्टोनाइज अंध भक्त मतदाताओं द्वारा चुनी गई, अल्पमत की सरकार है, सरकार के मुखिया अडानी, अम्बानी के नौकर की भूमिका में रहते हैं और कार्पोरेट सेक्टर की यह गुलाम सरकार है। अन्त में राष्ट्रपति को सम्बोधित एक ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से दिया गया, जिसकी प्रमुख मांगे किसान विरोधी काले कानूनों को रद्द किया जाये, नई शिक्षा नीति 2020 वापस लिया जाये, भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून बनाया जाये, बिजली कम्पनी विधेयक 2020 तत्काल वापस लिया जाए, श्रम कानूनों में संशोधन वापस लिया जाए तथा फर्जी मुकदमें वापस लिये जाए।
प्रदर्शनकारियों में नौजवान सभा के उपाध्यक्ष संदीप तिवारी, स्टूडेंस फेडरेशन के कोषाध्यक्ष अंकित यादव, दीपक शर्मा, प्रतीक शुक्ला, सचिन वर्मा, अंकुल वर्मा, श्याम सिंह आदि प्रमुख छात्र व नौजवान नेता थे।
प्रदर्शनकारी छाया चैराहे से पुलिस लाइन चौराहे होते हुए पटेल चैराहा से जिलाधिकारी कार्यालय सरकार विरोधी गनन भेंदी नारे लगाते हुए पहुंचे, जहां पर अतिरिक्त जिलाधिकारी संदीप गुप्ता ने ज्ञापन लिया।

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क्या हम कम बातें कर सकते हैं? मोदी के उत्थान में असली भूमिका प्रगतिशील और  धर्मनिरपेक्ष नेतृत्व की है | hastakshep | हस्तक्षेप

मौजूदा किसान आंदोलन की दिशा

प्रेम सिंह

किसान संसार का अन्नदाता है लेकिन आज की व्यवस्था में वह स्वयं प्राय: दाने-दाने को तरस जाता है. उसकी कमाई से कस्बों से लेकर नगरों में लोग फलते-फूलते हैं पर उसके हिस्से में आपदाएं ही आती हैं. सूखे की मार से फसल सूख जाती है. बाढ़ से खेत डूब जाते हैं. लेकिन दोनों से बड़ी आपदा तब आती है जब साल भर की मेहनत से घर आई फसल की कीमत इतनी कम मिलती है कि लागत-खर्च भी नहीं निकलता. … अगर आज किसान बदहाल है तो इसके लिए पूरी तरह सरकारों की किसान-विरोधी नीतियां ही जिम्मेदार हैं जो गावों को उजाड़ कर महानगरों के एक हिस्से को अलकापुरी बनाने में लगी हैं. … देश के पायेदान पर गांव हैं और नगरों के पायेदान पर गांवों से उजाड़े गए लोगों का निवास होता है. (‘खेती-किसानी की नई नीति’, सच्चिदानंद सिन्हा, समाजवादी जन परिषद्, 2004)

पिछले तीन दशकों से देश में शिक्षा से लेकर रक्षा तक, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लेकर छोटे-मंझोले-खुदरा व्यवसाय तक, सरकारी कार्यालयों से लेकर संसद भवन तक और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से लेकर साहित्य-कला-संस्कृति केंद्रों तक को निगम पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत समाहित करने की प्रक्रिया चल रही है. ऐसे में कृषि जैसा विशाल क्षेत्र इस प्रक्रिया के बहार नहीं रह सकता. संवैधानिक समाजवाद की जगह निगम पूंजीवाद की किली गाड़ने वाले मनमोहन सिंह ने बतौर वित्तमंत्री, और बाद में बतौर प्रधानमंत्री, इस प्रक्रिया को शास्त्रीय ढंग से चलाया. विद्वान अर्थशास्त्री और कुछ हद तक आज़ादी के संघर्ष की मंच रही कांग्रेस पार्टी से संबद्ध होने के चलते उनकी आंखें हमेशा खुली रहती थीं. कवि-ह्रदय अटलबिहारी वाजपेयी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में कभी आंखें मीच लेते थे, कभी खोल लेते थे. नरेंद्र मोदी आंख बंद करके निगम पूंजीवाद की प्रक्रिया को अंधी गति प्रदान करने वाले प्रधानमंत्री हैं. वे सत्ता की चौसर पर कारपोरेट घरानों के पक्ष में ब्लाइंड बाजियां खेलते और ताली पीटते हैं. इस रूप में अपनी भूमिका की धमाकेदार घोषणा उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही कर दी थी – कांग्रेस ने 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून में किसानों के पक्ष में कुछ संशोधन किए थे. मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही उन संशोधनों को अध्यादेश लाकर पूंजीपतियों के पक्ष में निरस्त करने की पुरजोर कोशिश की.

केंद्र सरकार द्वारा कोरोना महामारी के समय लाए गए तीन कृषि-संबंधी अध्यादेश – कृषि-उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020, मूल्य का आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश 2020, आवश्यक वस्तु संशोधन अध्यादेश 2020 – उपर्युक्त प्रक्रिया और उसमें मोदी की विशिष्ट भूमिका की संगती में हैं. दरअसल, उपनिवेशवादी व्यवस्था के तहत ही कृषि को योजनाबद्ध ढंग से ईस्ट इंडिया कंपनी/इंग्लैंड के व्यापारिक हितों के अधीन बनाने का काम किया गया था. नतीज़तन, खेती ‘उत्तम’ के दर्जे से गिर कर ‘अधम’ की कोटि में आती चली गई. आज़ादी के बाद भी विकास के लिए कृषि/गांव को उद्योग/शहर का उपनिवेश बना कर रखा गया. हालांकि संविधान में उल्लिखित राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों की रोशनी में समतामूलक समाज कायम करने के संकल्प के चलते उपनिवेशवादी दौर जैसी खुली लूट की छूट नहीं थी. उद्योग (इंडस्ट्री) के मातहत होने के बावजूद कृषि-क्षेत्र ने आर्थिक संकट/मंदी में बार-बार देश की अर्थव्यवस्था को सम्हाला. अब मोदी और उनकी सरकार कृषि को पूरी तरह कारपोरेट घरानों के हवाले करने पर आमादा है. कारपोरेट घराने मुनाफे का कोई भी सौदा नहीं चूकते. नवउदारवादी नीतियों के रहते विशाल कृषि-क्षेत्र उनकी मुनाफे की भूख का शिकार होने के लिए अभिशप्त है.

छोटी पूंजी के छोटे व्यावसाइयों के बल पर पले-बढ़े आरएसएस/भाजपा बड़ी पूंजी की पवित्र गाय की तरह पूजा करने में लगे हैं. मोदी-भागवत नीत आरएसएस/भाजपा ने कारपोरेट घरानों को और कारपोरेट घरानों ने आरएसएस/भाजपा को मालामाल कर दिया है. जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है, वे भ्रम फ़ैलाने में लगे रहते हैं कि वास्तव में कारपोरेट-हित में बनाए गए श्रम और कृषि-कानून मज़दूरों/किसानों को भी मालामाल कर देंगे! बड़ी पूंजी की पूजा का मामला आरएसएस/भाजपा तक सीमित नहीं है. कोई अर्थशास्त्री, राजनेता, यहां तक कि मजदूर/किसान नेता भी अड़ कर यह सच्चाई नहीं कहता कि कारपोरेट घरानों की बड़ी पूंजी राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधनों, कृषि और सस्ते श्रम की लूट का प्रतिफल है. यह लूट उन्होंने देश के शासक-वर्ग की सहमती और सहयोग से की है. फर्क यह है कि पहले कारपोरेट घराने पार्टियों/नेताओं की गोद में बैठने का उद्यम करते थे, अब पार्टी और नेता कारपोरेट घरानों की गोद में बैठ गए हैं. भारत में ‘गोदी मीडिया’ ही नहीं, ‘गोदी राजनीति’ भी अपने चरम पर है.

बड़ी पूंजी की पूजा के नशे की तासीर देखनी हो तो आरएसएस/भाजपा और उसके समर्थकों का व्यवहार देखिए. किसान कहते हैं कृषि-कानून उनके हित में नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री कहते हैं इन कानूनों में किसानों के लिए अधिकार, अवसर और संभावनाओं की भरमार है. किसान खुद के फैसले के तहत महीनों तक कृषि कानूनों के विरोध में धरना-प्रदर्शन करते हैं और ‘दिल्ली चलो’ की घोषणा करके संविधान दिवस (26 नवंबर) के दिन राजधानी में दस्तक देने के लिए कूच करते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री लगातार प्रचार करते हैं कि किसानों को विपक्ष द्वारा भ्रमित किया गया है – ऐसा विपक्ष जिसने 70 सालों तक किसानों के साथ छल किया है. किसानों को प्रतिगामी और मरणोन्मुख तबका तो सैद्धांतिक रूप से कम्युनिस्ट विचारधारा में भी माना जाता है; लेकिन मोदी और उनके अंध-समर्थक उन्हें बिना सोच-समझ रखने वाला प्राणी प्रचारित कर रहे हैं.     

मोदी और उनकी सरकार की शिकायत है कि कृषि-कानूनों के खिलाफ केवल पंजाब के किसान हैं, गोया पंजाब भारत का प्रांत नहीं है. कहना तो यह चाहिए कि पंजाब के किसानों ने अध्यादेश पारित होने के दिन से ही उनके विरोध में आंदोलन करके पूरे देश को रास्ता दिखाया है. पंजाब के किसानों की शायद इस हिमाकत से कुपित होकर उन्हें ‘खालिस्तानी’ बता दिया गया है. देश के संसाधनों/उपक्रमों को कारपोरेट घरानों/बहुराष्ट्रीय कंपनियों को औने-पौने दामों पर बेचने में बिचौलिए की भूमिका निभाने वाला शासक-वर्ग किसान-मंडी के बिचौलियों के बारे में ऐसे बात करता है, गोया वे जघन्य अपराध में लिप्त कोई गुट है! बड़ी पूंजी की पूजा का नशा जब सिर चढ़ कर बोलता है तो हर सिख खालिस्तानी, हर मुसलमान आतंकवादी, हर मानवाधिकार कार्यकर्ता अर्बन नक्सल और हर मोदी-विरोधी पाकिस्तानी नज़र आता है. प्रधानमंत्री का आरोप है कि लोगों के बीच भ्रम और भय फ़ैलाने का नया ट्रेंड देखने में आ रहा हैं. लेकिन उन्हें देखना चाहिए कि उन्होंने खुद पिछले सात सालों से एक अभूतपूर्व ट्रेंड चलाया हुआ है – कारपोरेट-हित के एक के बाद एक तमाम फैसलों का यह शोर मचा कर बचाव करना कि देश में पिछले 65 सालों में कुछ नहीं हुआ.

किसान पुलिस द्वारा लगाए गए विकट अवरोधों, पानी की बौछारों और आंसू गैस का सामना करते हुए संविधान दिवस पर दिल्ली के प्रमुख बॉर्डरों तक पहुंच गए. लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली में नहीं घुसने दिया. दबाव बनने पर केंद्र और दिल्ली सरकारों के बीच बनी सहमति के तहत किसानों को पुलिस के घेरे में बुराड़ी मैदान में जमा होने की अनुमति दी गई. लेकिन तय कार्यक्रम के अनुसार जंतर-मंतर पहुंच कर प्रदर्शन करने की मांग पर अडिग किसानों ने बुराड़ी मैदान में ‘कैद’ होने से इनकार कर दिया. उन्होंने दिल्ली के सिंघु और टीकरी बॉर्डरों पर धरना दिया हुआ है. उधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान कृषि कानूनों के विरोध में गाजीपुर बॉर्डर पर धरना देकर बैठे हैं. सरकार और पंजाब के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच 1 दिसंबर को हुई बातचीत पहले हुई 13 नवंबर की बातचीत की तरह बेनतीजा रही है. अब 3 दिसंबर को फिर बातचीत होगी, जिसकी आगे जारी रहने की उम्मीद है. किसानों ने अपना धरना उठाया नहीं है. वे 6 महीने के राशन के इंतजाम के साथ आए हैं, और अपनी मांगों के पूरा होने से पहले वापस नहीं लौटेंने का संकल्प दोहराते हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दर्ज़ा देने की मांग तो है ही, साथ में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग भी है. आंदोलन की यह खूबी उल्लेखनीय है कि वह पूरी तरह शांतिपूर्ण और शालीन है, और उसके नेता सरकार के साथ बातचीत में भरोसा करने वाले हैं.    

सरकार अभी या आगे चल कर किसानों की मांगें मानेगी या नहीं, यह इस पर निर्भर करेगा कि आंदोलनकारी किसान एक समुचित राजनैतिक चेतना का धरातल हासिल करने के इच्छुक हैं या नहीं. जिस तरह से दुनिया और देश में तेजी से बदलाव आ रहे हैं, खेती से संबद्ध कानूनों, संचालन-तंत्र (लोजिस्टिक्स) और संस्थाओं आदि में बदलाव लाना जरूरी है. आज के भारत में खेती को उद्योग के  ऊपर या समकक्ष स्थापित नहीं किया जा सकता. उसके लिए गांधी के ग्राम-स्वराज और लोहिया के चौखम्भा राज्य की विकेंद्रीकरण पर आधारित अवधारणा पर लौटना होगा. देश का प्रबुद्ध प्रगतिशील तबका ही यह ‘पिछड़ा’ काम हाथ में नहीं लेने देगा. खेती को सेवा-क्षेत्र के बराबर महत्व भी नहीं दिया जा सकता. अभी की स्थिति में इतना ही हो सकता है कि बदलाव संवैधानिक समाजवादी व्यवस्था के तहत हों, न कि निगम पूंजीवादी व्यवस्था के तहत. किसान खुद पहल करके पूरे देश में को-आपरेटिव इकाइयां कायम कर सकते हैं, जहां ताज़ा, गुणवत्ता-युक्त खाद्य सामान उचित दर पर उपलब्ध हो सके. इससे उसकी आमदनी और रोजगार बढ़ेगा. देश भर के किसान संगठन इसमें भूमिका निभा सकते हैं.      

किसान देश का सबसे बड़ा मतदाता समूह है. किसान का वजूद खेत मज़दूरों, जो अधिकांशत: दलित जातियों के होते हैं, और कारीगरों (लोहार, बढ़ई, नाई, धोबी, तेली, जुलाहा आदि) जो अति पिछड़ी जातियों के होते हैं, से मिल कर पूरा होता है. भारत के आदिवासी आदिकिसान भी हैं. खेती से जुड़ी इस विशाल आबादी में महिलाओं की मेहनत पुरुषों से ज्यादा नहीं तो बराबर की होती है. जातिवाद, पुरुष सत्तावाद और छुआछूत की मानसिकता से मुक्त होकर ही किसान निगम पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एकजुट और लंबी लड़ाई लड़ सकता है. आपसी भाई-चारा और सामुदायिकता का विचार/व्यवहार उसे विरासत में मिला हुआ है. निगम पूंजीवादी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए समाज में सांप्रदायिकता का जो ज़हर फैलाया जा रहा है, उसकी काट किसान ही कर सकता है. आज़ादी के संघर्ष में किसान शुरू से ही साम्राज्यवाद-विरोधी चेतना का दुविधा-रहित वाहक था, जबकि सामंत और नवोदित मध्य-वर्ग के ज्यादातर लोग अंत तक दुविधा-ग्रस्त बने रहे. आंदोलन में शरीक कई किसानों के वक्तव्यों से पता चलता है कि वे देश पर कसे जा रहे नव-साम्राज्यवादी शिकंजे के प्रति सचेत हैं. किसानों की यह राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता, संप्रभुता, स्वावलंबन की पुनर्बहाली के लिए जरूरी नव-साम्राज्यवाद विरोधी चेतना का आधार हो सकती है.      

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के शिक्षक हैं)

बाराबंकी। सरकार किसानों की आय दोगुना कर रही है, वहीं भूसा आठ रूपये किलो है और धान नौ रूपये किलो बिक रहा है । मोदी और योगी  किसानों व मजदूरों को उनके तथाकथित विकास के नाम पर आत्महत्या के लिए मजबूर कर रही है। आल इण्डिया किसान सभा द्वारा निकाले गये प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि किसानों को राष्ट्रीय मार्ग पर निकलने से रोकने के लिए सरकार ने सड़कें खोद डाली है, और जगह-जगह पानी की बौछार किसानों पर कर रही है। किसान सभा के जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि किसानों का संघर्ष जारी रहेगा चाहे उसके लिए जो भी कुरबानी देनी पड़े, किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि जनपद में किसानों के धान तौले नहीं जा रहे हैं जिसमें जिला प्रशासन और बड़े व्यापारियों की सांठगांठ है। वही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव बृजमोहन वर्मा ने कहा कि पार्टी किसान संघर्ष के लिए हमेशा मदद करती रही है और आगे भी जारी रहेगी पार्टी के सह सचिव शिव दर्शन वर्मा ने कहा कि यह ऐसी सरकार है कि बुआई के समय खाद का संकट, कीटनाशक दवाईयों का संकट और जब फसल तैयार हो तो उसका कोई खरीददार नहीं होता है और किसान बरबाद हो जाता है। किसान सभा का जुलूस डाॅ0 कौसर हुसैन के नेतृत्व में छाया चैराहे से होते हुए जिलाधिकारी कार्यालय तक गया जहां राष्ट्रपति के नाम सम्बोधित ज्ञापन सौंपा गया, प्रदर्शनकारियों में प्रमुख लोग अंशू लता मिश्रा, नैमिष कुमार सिंह, नीरज वर्मा, स्वप्निल वर्मा, आर्यन वर्मा, मुकेश वर्मा, निर्मल वर्मा, सचिन वर्मा, सुरेश यादव, दलसिंगार, राजकुमार, राम नरेश, राजेश सिंह, आशीष तिवारी, महेन्द्र यादव, प्रतीक शुक्ला आदि लोग रहे।

D. Raja: Age, Biography, Education, Wife, Caste, Net Worth & More - Oneindia

लक्ष्मी विलास बैंक, 94 वर्षीय तमिलनाडु आधारित निजी बैंक पिछले कुछ वर्षों से जेट एयरवेज, रिलिगेयर, कॉक्स और किंग्स, कॉफी डे जैसे ज्ञात डिफाल्टर्स को दिए गए कुप्रबंधन और बुरे ऋण के कारण पिछले कुछ वर्षों से नुकसान कर रहा है, नीरव मोदी, रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस, आदि । भ्रष्ट  शीर्ष अधिकारियों पर कार्रवाई करने के बजाय रिजर्व बैंक ने घोषणा की है कि बैंक सिंगापुर के डीबीएस बैंक को सौंपा जाएगा ।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव डी राजा ने खा कि लक्ष्मी विलास बैंक को न सौंपे विदेशी बैंक को  न सौपें और बैंक के जमाकर्ताओं और ग्राहकों के साथ-साथ बैंक के खुदरा निवेशकों के बड़े हित में बैंक को एक सार्वजनिक क्षेत्र बैंक में विलय करना वांछनीय है जैसा कि अतीत में कई मामलों में किया गया है । विदेशी निवेशकों को खुश करने के लिए सरकार के एजेंडे के विदेशी बैंक स्मैक को बैंक सौंपते हुए । एलवीबी के स्थगन की घोषणा करने के एक घंटे के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक ने डीबीएस बैंक में विलय करने के प्रस्ताव के किया  है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पहले से ही तय किया गया था । इतनी जल्दी क्यों किसी को साफ नहीं होती । सरकार को इस मामले से पूरी तरह पूछताछ करनी चाहिए और डीबीएस बैंक को एलवीबी का सौंपना बंद करना चाहिए ।स्थानीय मुखर और आत्मनिर्भर के बारे में छत के ऊपर से प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री जोर से घोषणा करते रहते हैं । लेकिन वास्तव में वे यही करते हैं । मोदी सरकार की इन देशद्रोही विनाशकारी नीतियों के खिलाफ कामकाजी और किसान लड़ रहे हैं । 26 नवंबर 2020 को आम हड़ताल और किसान आंदोलन भी होगा ।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी  सभी वर्गों से अपील करती है कि इन संघर्षों को एक बड़ी सफल बनाने के लिए पूर्ण एकजुटता और समर्थन करें । निजी क्षेत्र के कर्जदाता लक्ष्मी विलास बैंक (LVB) और सिंगापुर स्थित डीबीएस होल्डिंग्स की भारतीय शाखा के विलय में बैंकिंग क्षेत्र के संगठनों को गड़बड़झाला लग रहा है। बैंक के शेयरधारकों, आम नागरिकों और कई बैंकिंग यूनियन का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक  ने जिस तरह से डीबीएस इंडिया को लक्ष्मी विलास बैंक मुफ्त में देने का फैसला किया है, उसमें कई झोल हो सकते हैं। ऑल इंडिया बैंक इंप्लॉईज एसोसिएशनके महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के नेतृत्व में एलवीबी के डीबीएस इंडिया में विलय की जो प्रक्रिया चल रही है, उसमें बड़ा झोल नजर आ रहा है।  इस विलय को लेकर जिस जल्दबाजी में दिख रहा है, उसमें घोटाले की आशंका भी दिखाई दे रही है। बैंक के एक लाख से अधिक शेयरधारकों को विलय योजना पर प्रतिक्रिया देने के लिए महज तीन दिनों का वक्त दिया गया है।

आरबीआइ ने मंगलवार को कहा कि विलय के अस्तित्व में आने के बाद एलवीबी का परिचालन बंद समझा जाएगा।

 

  • हाजरा बेगम का जन्म 10 दिसंबर 1910को सहारनपुर उ प्र में हुआ था। उनके पिता मुमताजुल्ला खान मेरठ में मैजिस्ट्रेट थे। उनकी माॅ का नाम नातिका बेगम था। परिवार धनी और आधुनिक विचारों का था। उन दोनों के दो लड़के और चार लड़कियां थीं और परिवार के कई सदस्य इंगलैंड रह आए थे।हाजरा की पढ़ाई नौ साल की उम्र तक घर में ही उर्दू, फारसी और अंग्रेजी में हुई। 1918 में इंफ्लुएंजा की महामारी फैल गई। उस वक्त उनके पिता बस्ती में डिप्टी कलेक्टर थे। हाजरा ने खुद अपनी आंखों से नदी को लाशें से पटा हुआ देखा था और कौवों और कुत्तों को लाशें नोचते हुए देखा था।1919 में हाजरा को क्वीन्स काॅलेज, लाहौर में दाखिल करा दिया गया। वह काॅलेज चीफ काॅलेज के समकक्ष था और दोनों ही राजकुमरियों और नवाबजादियों के लिए खुला था। हाजरा का परिवार चूंकि रामपुर नवाब से संबंधित था इसलिए उसे दाखिला मिल गया। हाजरा सभी विषयों में फर्स्ट क्लास आती रही। उसे साहित्य और खेलकूद से बड़ा लगाव था।हाजरा काॅलेज लाइब्रेरी में लगभग सारी किताबें पढ़ गई थी। उसे प्रेमचंद की एक कहानी ‘बूढ़ी काकी’ बड़ी पसंद आई। लेकिन काॅलेज का वातावरण कुलीन और फैशन-पसंद था जहां इस तरह की गतिविधियां खास पसंद नहीं की जाती थीं।1924 में हाजरा नौंवी क्लास में थी। उसी वक्त एक रूसी महिला का व्याख्यान आयोजित किया गया औरछात्राओं केा रोका गया। हाजरा ने पहली बार वहीं ‘बोल्शेविक’ शब्द सुना। व्याख्याता बोल्शेविकों के खिलाफ जहर उगल रही थी। एक बार काॅलेज में ईद की छुट्टी नहीं हुई। इसके खिलाफ हाजरा के नेतृत्व में लड़कियों ने हड़ताल कर दी। सामाजिक सक्रियता का हाजरा का यह पहला अनुभव था। हाजरा पर रविन्द्रनाथ और प्रेमचंद का गहरा प्रभाव पड़ा।हाजरा ने 1926 में मैट्रिक पास किया। 1920 में उसकी मां की मृत्यु हो गई और मैट्रिक पास करने से पहलेसौतेली मां की भी मृत्यु हो गई। भाई-बहनों की देखभाल के लिए उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वह ‘स्त्री-स्वतंत्रत की समर्थक के रूप में प्रसिद्ध होने लगी। वह उर्दू-फारसी में हाजरा बेगम-असाधारण कम्युनिस्ट महिला नेता काफी लिखने लगीं। उसे वह समझ में नहीं आता कि हिन्दू और मुसलमान आपस में लड़ते क्यों हैं क्योंकि वह हिन्दुओं के साथ काफी रह चुकी थी। उसने पर्दा करना छोड़ दिया था। 1928 में हाजरा की शादी पुलिस डिप्टी सुपरिंटेंडेंट अब्दुल जमील खान से हुई। 1931 में हाजरा को एक पुत्र हुआ।राजनीति की ओर झुकाव हाजरा के मामू के लड़के महमूद जफर 7 वर्षों बाद इंगलैंड से लौटे और खादी पोशाक अपना ली। पहले तो हाजरा और अन्य सबों को बड़ा धक्का लगा। महमूमद ने इंगलैंड में खादी और खादी की विचारधारा पूरी तरह अपना ली थी। हाजरा दो महीनों तक महमूद के साथ मसूरी रही औरमहमूद ने आधुनिक राष्ट्रीय और क्रांतिकारी विषयों से हाजरा को पूरी तरह अवगत कराया। हाजरा मेंराष्ट्रीयता की भावनाएं जाग पड़ीं। उसने भी खद्दर की साड़ी पहनना शुरू कर दिया। एक पुलिस अफसर की पत्नी के लिए ऐसा करना बहुत बड़ी बात थी।चारों ओर चर्चा होने लगे। 1931 में चारों ओर ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ तथा अन्य नारे लग रहे थे। सत्याग्रह और जन-आंदोलन हो रहे थे। एक जगह लोग ऐसे नारे लगाते हुए नमक बना रहे थे। हाजरा खुद डी.एस.पी. की कार चला रही थी। उनके मना करने पर भी हाजरा ने कार रोक दी। 1932 में हाजरा पिता के पासमेरठ गई। उस वक्त कम्युनिस्टों पर सुप्रसिद्ध मेरठ षड्यंत्र केस चल रहा था। उनमें एक अभियुक्त थे लेस्टर हचिन्सन। हचिन्सन उसी मकान के दूसरे हिस्से में ठहरे हुए थे। उन्हें जमानत मिल चुकी थी। महमूद और हाजरा के बड़े भाई विलायत से लौटे थे और वहीं थे। पिता के मना करने पर भी हाजरा सबकी बातें सुना करती।हाजरा ने कन्युनिज्म की बातें सुनीं और हचिन्सन और बेन ब्रैडले के बारे में पिता से उलटी बातें सुनीं।मेरठ में एक महिला क्लब में भी दार्शनिक एवं राजनैतिक बातें होने लगीं। गर्मियों में हाजरा देहरादून चली गईं। उसके बाद वह पति के पास लौटने में देर करने लगी। दोनों के जीवन के रास्ते अलग होने लगे। दो-तीन महीनों बाद उसने पति को त्याग दिया।अगस्त 1932 में हाजरा पिता के पास लौट गई। महमूद को छोड़ सभी उसका विरोध कर रहे थे। कुछ समय उसने अलीगढ़ में स्कूल में बच्चों को पढ़ाया। फिर माॅन्टेसरी प्रशिक्षण के लिए इंगलैंड जाना तय किया। 1933 में आधा जेवर बेचकर अपने बच्चों को लेकर वह इंगलैंड पहुंच गई।इंगलैंड में हाजरा हैम्पस्टेड के मांटेसरी काॅलेज में भर्ती हो गई। उनका छोटा भाई भी पोटर््समाउथ में नौसेना प्रशिक्षण ले रहा था। बच्चे को भी स्कूल में दाखिल करा दिया। काॅलेज में कई लड़कियां नाजी अत्याचारों का शिकार देख और सह चुकी थीं। हाजरा को नाजीवाद के बारे में जानकारी मिलने लगी।इंगलैंड पहुंचने के तीसरे दिन ही सज्जद जहीर से मुलाकात हो गई। राजनीति संबंधी बातें हुईं। 1934 मेंबिहार में हुए भूकम्प के लिए राहत-कार्य लंदन में किया। 1934 की गर्मियों में वे सोवियत रूस गईं औरकई सारे शहरों की यात्रा की। वहां चल रहे युगांतकारी परिवर्तनों ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। लंदन में वे‘मार्क्स वादी भारतीय विद्यार्थियों के ग्रुप’ में शामिल हो गई। ग्रेट ब्रिटेन कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने वाले प्रथम भारतीयों मे वे एक थीं। उन्होंने अपना कोर्स दो वर्षों में पूरा किया। वे बहुत आर्थिक तंगी की हालत में वहां रहा करतीं।हाजरा ब्रसेल्स में आयोजित फासिज्म और युद्ध संबंधी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी शामिल हुईं। सम्मेलन में एक बिंदु पर ‘साम्राज्यवाद’ शब्द शामिल नहीं करने पर उन्होंने अपने साथियों के साथ वाॅक-आउट भी किया।वे के.एम. अशरफ, जेड.ए. अहमद और सज्जाद जहीर के साथ भारत लौंटीं। वे 1935 में भारत लौर्टी और उन्होंने लखनऊ के करामत हुसैन मुस्लिम गल्र्स काॅलेज के जूनियर स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। लखनऊ में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में डाॅ. जेड.ए.अहमद आए और पं. नेहरू से मिले। वे हैदराबाद की अपनी नौकरी, काॅलेज में प्रिंसिपल का काम, छोड़कर नेहरू के अनुरोध पर 1936 में इलाहाबाद आ गए। फिर हाजरा भी अपना काम छोड़ इलाहाबाद आ गईं। वे दोनों एक-दूसरे से वर्षों से परिचित थे। उन दोनों ने शादी कर ली और कांग्रेस में सक्रिय काम करने लगे।हाजरा और जेड.ए. अहमद का विवाह सज्जाद जहीर के पिताजी सर सैयद वजीर हसन की कोठी पर हुआ जो लखनऊ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। उर्दू के मशहूर शायर रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’ और डाॅ. अशरफ उपस्थिति रहे।विवाह के बाद चूंकि जेड.ए. अहमद को कांग्रेस दफ्तर से केवल 75/रु. ही मिलते थे इसलिए हाजरा ने एकअंग्रेजी स्कूल में 75/रु. माहवार पर टीचर का काम ले लिया। इस प्रकार उनका काम चलने लगा। हाजरा नेकिसानों और मजदूरों में बहुत काम किया। कांग्रेस ने उन्हें असेम्बली के लिए मुस्लिम महिला चुनाव-क्षेत्र से खड़ा करना चाहा लेकिन हाजरा राजी नहीं हुई। हाजरा ने प्रभा नामक पत्रिका का छह महीने संपादन किया। 1939 में हाजरा के एक पुत्री हुई। जिसका नाम सलीमा था। 1940 में हाजरा बेगम अख्लि भारतीय वीमेन्स काॅेन्फ्रेस ;ए. आई.डब्ल्यू.सी की संगठन मंत्री रहीं।कुछ समय लाहौर और प्रयाग में स्कूल में पढ़ाने का काम करने के बाद वे मजदूरों और किसानों में काम करने लगीं।1936 से वे प्रगतिशील लेखक संघ ;पी.डब्ल्यू.ए.के साथ सक्रिय कार्य करने लगीं। वे ए.आई.डब्ल्यू.सी. मेंनिरंतर सक्रिय रहीं। उन्होंने इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के कुलियों को संगठित कर 1937 मे इलाहाबाद रेलवे कुली यूनियन का गठन किया। उन्होंने कानपुर की महिला मजदूरों, आजमगढ़ की महिला बुनकरों, रायबरेली की किसान महिलाओं तथा अन्य तबकों के बीच  सक्रिय कार्य किया।हाजरा बेगम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फैजपुर ;1936, हरिपुरा ;1938और रामगढ़ ;1940 अधिवेशनों में सक्रिय हिस्सा लिया। 1930 के दशक में उन्होंने किसान और प्रभा नामक पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उन्होंने 1946-47 के दौरान ए.आई.डब्ल्यू.सी. की उर्दू और हिन्दी पत्रिका रोशनी का संपादन भी किया।1940 में हाजरा अपनी बेटी सलीमा को लेकर लाहौर चली गईं। वहीं से पार्टी का गुप्त रूप से काम करने लगीं। पार्टी महासचिव ने उन्हें पंजाब में कम्युनिस्ट पार्टी की संचालिका नियुक्त किया। जब जेड.ए. अहमद को 1940 में देवली कैम्प में बंद कर दिया गया तो एक बार हाजरा अपनी बेटी के साथ उनसे मिलने गईं। बेटी को तो ‘दो मिनट’ मिलने दिया गया लेकिन हाजरा को अंदर नहीं जाने दिया गया।दो मिनट आधा घंटा में बदल गया। सभी कैदी बच्ची को देख बड़े खुश हुए। कई तो फूट-फूट कर रोने लगे।1942 में पंजाब में पेरिन भरूचा तथा हाजरा के नेतृत्व में लड़कियों का एक ग्रुप बनकर तैयार हो गया। पी.सी. जोशी ने उन्हें राजनैतिक शिक्षा देने का काम हाजरा बेगम को सौंपा।हाजरा बेगम 1940 के दशक में पूर्वी उत्तरप्रदेश में सामंती अत्याचारों के खिलाफ महिलाओं के बीच आंदोलन जोर पकड़ने लगा। 1947 में रतनपुरा तथा अन्य इलाकों में महिलाएं लाठी-डंडा लेकर शामिल होने लगीं।इनमें हाजरा बेगम ने रात-दिन मेहनतकरके उन्हें संगठित किया।हाजरा बेगम ने यू.पी. में पार्टी की स्थापना में भी भाग लिया।महिला आत्मरक्षा समिति 1940 के दशक में बंगाल,पंजाब, दिल्ली तथा अन्य स्थानों मे एक महिला जन-संगठन का गठन किया गया जिसक नाम था ‘महिलाआत्मरक्षा समिति’। हाजरा बेगम बताती हैं कि पंजाब महिला आत्मरक्षा लीग सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए खाद्य संकट, सूखा तथा अन्य संकटों के बारे में जन-जागृति पैदा किया करता था।द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यह अभियान विशेष तौर पर तेज हुअ। एक गीत का शीर्षक था ‘ना तेल, ना डिब्बियां, साणु कीं लभेया’ अर्थात् न तेल है और न ही तेल का कनस्तर, हमें क्या मिला? हाजरा बेगम ए.आई.डब्ल्यू.सी में काम किया करती थीं। वह एक बड़ा संगठन था लेकिन वैचारिक रूप से हाजरा बेगम-असाधारण कम्युनिस्ट महिला नेता थी । जल्द ही उसके अंदर विचारधारा का संघर्ष आरंभ हो गया।संगठन कुलीन महिलाओं का संगठन बनता जा रहा था और गरीब तथा निचले तबके की महिलाओं से दूर होता जा रहा था। हाजरा समेत अन्य कम्युनिस्ट महिलाओं ने इसे एक स्वस्थ्य राजनैतिक-वैचरिक दिशा देने का प्रयत्न किया। कम्युनिस्ट पार्टी में जैसा कि हम कह आएं हैं हाजरा ब्रिटेन में ही कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बन चुकी थीं। वापस लौटने पर कुछ ही समय बाद वे और जेड.ए. अहमद दोनों ही पार्टी के पूरावक्ती कार्यकर्ता बन गए। हाजरा इलाहाबाद में सी.एस. पी. ;कांग्रेस सोशिलिस्ट पार्टी में भीकाम करने लगीं। इलाहाबाद की सी.एस.पी. ;कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के युवा नेताओं में हाजरा, अहमद, अशरफ और राममनोहर लोहिया शामिल थे। उस वक्त हाजरा कम्युनिस्ट पार्टी के मुट्ठीभर महिला सदस्यों में थीं। 1949-51 के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी पर पाबंदी लगा दी गई और हाजरा अंडरग्राउंड चली गईं।‘बी.टी.आर.’ लाइन का दौर जेड.ए. अहमद को इस दौर में ‘बी.टी.आर.’ नेतृत्व द्वारा काफी जलील किया गया। उन्हें शारीरिक कामों तक सीमित कर दिया गया। वे खाना पकाने और बर्तन मांजने का काम करने लगे!इतना ही नहीं, ‘बी.टी.आर.’ ने हाजरा बेगम को आदेश दिया कि जेड.ए. अहमद को तलाक दे दो क्योंकि वह सुधारवादी और संशोधनवादी बन गया है! लेकिन दोनों ने यह आदेश मानने से इंकार कर दिया।1952 में उन्होंने विएना में संपन्न विश्व शांति सम्मेलन में हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने 1953 में कोपनहेगन में फेडरेशन के सम्मेलन तथा 1955 में लुसाने में ‘माताओं के विश्व सम्मेलन’ में भाग लिया।एन.एफ.आई.डब्ल्यू. की स्थापना हाजरा बेगम एन.एआई.डब्ल्यू की संस्थापकों में थीं। 1943 में ही उन्होंनेपार्टी नेतृत्व के सामने प्रस्तावित किया था कि पार्टी का एक अलग महिला मोर्चा होना चाहिए। इस प्रश्न पर उनका अन्य कई साथियों से मतभेद था। बंगाल से उन्हें काफी समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि हमारे पास एक अखिल भारतीय महिला संगठन हो जो कम्युनिस्ट महिला संगठन नहीं हो। इसमें मजदूर, किसान, निम्न मध्यवर्ग, टीचरों,तबकों से महिलाएं हों और इस पर रानियों-महारानियों का प्रभुत्व न हो। उन्होंने कहा कि मध्यम वर्गें की महिलाएं मजदूर और कामकाजी महिलाओं की समस्याएं नहीं समझती हैं।कोपनहेगन सम्मेलन की तैयारी के लिए दिल्ली के बंगाली मार्केट में राष्ट्रीय तैयारी सम्मेलन की तैयारी समिति का कार्यालय स्थापित किया गया। 9 मई 1953 को एक राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया। माॅडर्न स्कूल में एक प्रदर्शनी भी लगाई गईं। 25 महिलाओं का एक प्रतिनिधिमंडल चुना गया। वे सभी ‘‘भारत एयरवेज’ से गए, जो एक चार्टर्ड प्लेन पर जिसमें सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था। जो पहले भी हवाई यात्रा कर चुके थे वे भी कलकत्ता से कोपनहेगन की यह यात्रा नहीं भूले। हाजरा बेगम के अनुसार, यात्रा को तीन रातें और दो दिन लगे। हवाई जहाज चिड़िया के समान फुदक रहा था। वह कई सारे शहर होता हुआ गुजरा। इन शहरों से यात्री भर लिए जाते जो कई बार जमीन पर ही सो जाते!प्रतिनिधिमंडल एक सप्ताह पहले ही पहुंच गया। इसलिए उनके रहने का कोई इंतजाम नहीं था। किसी तरह उनका इंतजाम ‘ग्रीष्म स्कूलों’ में किया गया जहां नहाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। सदस्यों को बिना काम के अजीब-सा लग रहा था। सम्मेलन के आयोजकों ने कहा कि आप चिंता क्यों कर रही हैं? आप सभी साड़ियों में है। सारे देश में लोग पूछ रहे हैं कि आप यहां क्यों आई हैं? सम्मेलन प्रचार तो आरंभ हो चुका है!कोपनहेगन कांग्रेस ने ‘‘महिलाओं के अधिकारों संबंधी घोषणा’ स्वीकृत की। इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों का व्यापक दायरा प्रस्तुत किया गया। इनमें काम के अधिकारों, तथा व्यापार, कामकाज, प्रशासन, पुरूषों के साथ बराबरी, इसका विस्तृत वर्णन दिया गया। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने ही सर्वप्रथम कार्यशील महिलाओं समेत भूमि के स्वामित्व की बात शामिल की।वापस लौटने पर एक समन्वय समिति गठित की गई जिसकी हाजरा बेगम और अनुसूया ज्ञानचंद संयोजक थीं और एनी मैस्केरीन अध्यक्ष। इसकी परिणाति अखिल भारतीय महिला सम्मेलन ;कलकत्ता, 4-6 जून 1954 के रूप में हुई। हाजरा बेगम संयुक्त सचिवों में चुनी गई। हाजरा बेगम से 1965 तक एन.एफ.आई.डब्ल्यू के नेतृत्व का हिस्सा रहीं। उन्होंने 1961 में काहिरा में एफ्रो-एशियाई महिला सम्मेलन में भाग लिया।हाजरा बेगम भा.क.पा. की उर्दू केंद्रीय मासिक पत्रिका ‘कम्युनिस्ट जायजा’ की संपादकमंडल में थी। वे दो बार पार्टी की केंद्रीय कंट्रोल कमिशन में चुनी गई। वे संगठन के अनुशासन की पक्की थीं। उन्होंने पार्टी अखबार ‘कौमी जंग’ के लिए भी बहुत लिखा। हाजरा बेगम की मृत्यु 20 जनवरी 2003 को लंबी बीमारी के बाद हो गई।

हमने अभी दो चुनाव नतीजे देखें हैं। एक अमेरिका में निरंकुश जन विरोधी, कारपोरेट समर्थक, नस्लवादी दक्षिणपंथी तानाशाह डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डमोक्रेट जो बाइडेन के हाथों मात। इसे उन सभी दक्षिणपंथी पार्टियों और उनके नेताओं को संदेश देना चाहिए, जो सत्ता हासिल करने के क्रम में लोगों को नस्ल, धर्म, समुदाय और रंग के आधार पर बांटने का प्रयास करते हैं। ट्रंप पर अमेरिकी लोकतंत्र के तीन स्तंभों आजादी, काननू का राज और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बर्बाद करने का आरोप है।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव  डी राजा नेकहा कि दूसरा चुनाव भारतीय राज्य बिहार में हुआ, जहां धर्मनिरपेक्ष, जनवादी ताकतों के एक गठजोड ने सांप्रदायिक विद्वेष, आरएसएस-भाजपा की हिंदुत्व मशीनरी के गठजोड और उनके सहयोगी जदयू को लगभग मात दे दी थी। हालांकि, एनडीए ने नीतीश कुमार, जिन्होने 2020 के विधानसभा को अपने बूट टांगने की घोषणा की थी, को मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपने नियंत्रण वाले सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।दोनों चुनावों ने कईं सबक सिखायें हैं और पूरी दुनिया में खासतौर पर भारत में वाम, जनवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों के लिए अवसरों और चुनौतियों के नये द्वार खोले हैं। इन दो घटनाओं ने उन कईं विद्वानों के मत को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया जिन्होंने विचारधारा और विचारधारा आधारित राजनीति के खत्म होने की घोषणा की थी।अमेरिकी चुनावों के बारे में उल्लेखनीय तथ्य वाम झुकाव वाले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे बर्नी सैंडर्स द्वारा चलाए गए अभियान द्वारा वाम-प्रगतिशील मतदाताओं की लामबंदी था जिसने मिशिगन और जाॅर्जिया जैसे प्रमुख राज्यों में जीत दर्ज कराने के साथ जो बाइडन को राष्ट्रपति पद पर कब्जा करने में मदद की। भारत में, वामपंथियों ने बिहार में महागठबंधन को आवंटित 29 सीटों में से 16 पर जीत हासिल करके अपनी सार्थकता साबित की, हालांकि कई पर्यवेक्षकों ने बताया कि वामपंथियों की सीट का हिस्सा जमीन पर उनकी ताकत और जनसंपर्क से बहुत कम था। यह परिणामों से स्पष्ट हो गया है। फिर भी, वाम दलों, भाकपा, भाकपा ;एमद्ध और भाकपा ;एमएलद्ध ने आरएसएस-भाजपा के सत्ता में आने के गंभीर खतरे के कारण महागठबंधन के साथ गठजोड किया। वामपंथी, धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक ताकतों के साथ दृढता से खड़े रहे।डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका में उनके बडे पद ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर काफी संकट खडा किया और अमेरिका को नस्लीय और वर्गीय आधार पर बांटा। जो बाइडेन की जीत और उनके कार्यक्रम पर डेमोक्रेटस के वामपथियों यथा बर्नी सैंडर्स और अलेक्सेड्रिया ओकासियो काॅर्टेज ने करीबी निगाह रखी। वे बाइडेन प्रशासन पर भी करीबी निगाह रखेंगे। दुनिया आशा करती है कि वे सभी राष्ट्रों की बेहतरी के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय स्थिर व्यवस्था की तरफ जाने के लिए काम करेंगे, जो शान्ति और विकास को सुनिश्चित करेगा।भारत में वामपंथ का कार्यक्रम देश में बेआवाजों, हाशिये पर पडे, दबे कुचलों और मेहनकशों की आवाज बनना है। यह निश्चितता के साथ दावा किया जा सकता है कि जब से आरएसएस-भाजपा गठबंधन ने भारत में सत्ता पर कब्जा किया है, वह वामपंथी ही रहे हैं जिन्होंने उनकी सभी विभाजनकारी, जनविरोधी नीतियों और चालों का विरोध किया और वे लोकप्रिय आंदोलनों का नेतृत्व करते रहे हैं। देश के दलितों और महिलाओं के साथ भेदभाव है, एक समुदाय को राष्ट्र विरोधी की तरह पेश करना अथवा सरकार की किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ वामपंथ ने देश में दक्षिणपंथी सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व किया है और बिहार में वामपंथ का शानदार प्रदर्शन उसी का नतीजा है।इन जीतों ने जनता में वामपंथ से आशाओं में बढोतरी की है। उभरते हुए हालात ने भारत में वामपंथ के सामने कईं चुनौतियां रख दी हैं। जो बाइडेन की जीत और बिहार में महागठबंधन के प्रभावी प्रदर्शन ने दिखा दिया है कि 2008 की वित्तीय मंदी के बाद से उभरे दक्षिणपंथी ताकतों के उभार को रोका जा सकता है यदि प्रगतिशील और जनवादी ताकतें जनता के अधिकारों और लोकतंत्र के सवाल पर एक साथ आयें। यद्यपि, ट्रंप ने बाइडेन को कडी टक्कर दी और भाजपा बिहार में एक प्रमुख ताकत बनकर उभरी है, तो यह कहा जा सकता है कि जनता को सांपद्रायिक, जाति और नस्ल के आधार ध्रुवीकरण और विखंडन को खत्म करने के लिए प्रगतिशील ताकतों को अधिक काम करने की जरूरत है।भारत में कारपोरेट समर्थक भाजपा अपने गठबंधन सहयोगी से अधिक सीटें पाकर और सभी सीटों और क्षेत्रों में अधिक उपस्थिति दर्ज कर अब अखिल भारतीय पार्टी होने का दाव करेगी। हालांकि, यह साफ है कि भाजपा का कार्यक्रम भारतीय गणराज्य को हिंदू राष्ट्र में बदलने का है। वह पहले ही देश में धर्म, क्षेत्र और जातियों और राज्यों के आधार पर विभाजन कर चुकी है।वामपंथ को उत्तर भारत के एक प्रमुख राज्य बिहार में महत्वपूर्ण सीट और वोट में इजाफे के बाद धर्मनिरपेक्ष-जनवादी ताकतों की बडी और व्यापक एकता पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ना केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के धर्मनिरपेक्ष-जनवादी दलों को उनकी विचारधारा और राजनीतिक अवस्थिति का गंभीर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। वे दक्षिणपंथी अथवा दक्षिणपंथी मध्यमार्ग की राह नही ले सकते हैं। यदि वे वाम मध्यमार्गी लाइन नहीं लेते हैं तो भी उन्हें कम से कम मध्यमार्गी स्थिति में ही बने रहना चाहिए। उन्हें उनकी नव उदारवादी आर्थिक नीतियों की अवस्थिति का आत्मावलोकन करना चाहिए जोकि देश को मौजूदा विनाशक स्थिति में ले गयी है और देश को एक मंदी की तरफ धकेल रही है।वामपंथ को स्वतंत्र रूप से और अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों के साथ भी विनाशकारी एजेंडे के खिलाफ उन लोगों द्वारा किए गए विनाश के खिलाफ संघर्ष को तेज करना चाहिए। वामपंथियों का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि वे देश भर में भाजपा की जनविरोधी और ध्रुवीकरण की नीतियों के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलनों को एक साथ लाएं और उन्हें मजबूत करें। वामपंथ को भारतीय राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और जन समर्थक ताकतों को बांधने वाला वह तत्व होना चाहिए जो वर्ग, जाति और लिंग आधारित भेदभाव के खिलाफ अधिक जज्बे और संवेदनशीलता के साथ बढ़ रहा है।

CPI leader atul anjan appeal nitish kumar to left nda | अतुल अंजान ने नीतीश  कुमार से की NDA छोड़ने की अपील, तेजस्वी को दी उन्हें मनाने की सलाह | Hindi  News,

भारतीय जनता पार्टी की ओर से जम्मू कश्मीर के राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियों पर उठाए जा रहे सवालों का आज स्वयं भाजपा को देश को जवाब देने की जरूरत है। भाजपा को देश को बताना होगा कि मुफ्ती महबूबा की पीडीपी पार्टी की सभी नीतियों की जानकारी होने के बावजूद भी उसके साथ सरकार क्यों बनाई। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए भाजपा को देश से माफी मांगनी चाहिए।

यह बातें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा   एक बयान जारी करते हुए कहा कि एक बार फिर भाजपा तिरंगा अभियान की बात कर राज्य में सांप्रदायिक माहौल खड़ा करना चाहती है। महबूबा मुफ्ती के साथ भाजपा के उपमुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर के झंडे को सलामी दे रहे थे और सरकार चला रहे थे, तब उन्हें तथाकथित राष्ट्र विरोध नहीं दिखाई दिया जो आज विपक्ष पर अनर्गल हमला कर रहे हैं। अनजान ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियों को बर्बाद करने में सबसे बड़ा योगदान महबूबा मुफ्ती और भाजपा की मिली जुली सरकार का रहा है। इसी दौर में सबसे ज्यादा आतंकवादी घटनाएं राज्य में हुईं तथा राज्य और केंद्र की सरकार खामोश तमाशाई बनी रही। इन परिस्थितियों में भाजपा को देश से माफी मांगनी चाहिए।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 85वर्षीय नेता कामरेड योगेन्द्र सिंह का निधन हो गया है 2012 में बाराबंकी विधान सभा के  यह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे इनके पिता स्वर्गीय मुनेश्वर बक्श भी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे .पार्टी के राज्य परिषद सदस्य रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि उनके निधन से कम्युनिस्ट पार्टी की अपूर्णीय क्षति हुई है .पार्टी के जिला सचिव ब्रजमोहन वर्मा ने कहा कि वह जीवन भर कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रहे .किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने बताया कि वह माती के किसान आन्दोलन में भी सक्रिय योगदान दिया पार्टी शोकसंतप्त परिवार के प्रति संवेदना एवं एकजुटता व्यक्त करती है