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Posts Tagged ‘सरकार’

देवयानी प्रकरण में अमेरिका ने कूटनीतिक संरक्षण को आंशिक रूप से मानते हुए उनको वीजा 1 दे दिया और अपने मुल्क से भगा दिया। जिस पर भारत ने अमेरिकी दूतावास के निदेशक स्तर के अधिकारी को संगीता रिचर्ड के अभिभावकों को अमेरिका ले जाने की प्रक्रिया में सहयोग करने के आरोप में भगा दिया और उसको भागने का समय 48 घंटे का दिया है। देवयानी को 12 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 250,000 अमेरिकी डॉलर के बांड पर रिहा किया गया था। गिरफ्तारी के बाद कपड़े उतारकर देवयानी की तलाशी ली गयी थी और उन्हें नशेड़ियों के साथ रखा गया था जिससे भारत और अमेरिका के बीच तनातनी बढ़ गई। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी राजनयिकों के विशेषाधिकार कम कर दिए।
इस भगाई और भगावा में सबसे रोचक तथ्य यह है कि देवयानी खोबरगड़े के पति व बच्चे अमेरिकी नागरिक हैं। अब आप स्वयं समझ लीजिये की देवयानी साहिबा भारत को किस तरह से राजनयिक व कूटनीतिक तरीके से मजबूत कर रही थी और सबसे अच्छी बात यह भी है कि आदर्श होउसिंग घोटाले में देवयानी खोबरगड़े मौजूद हैं।
अब रही अमेरिका कि बात तो जब अटल बिहारी बाजपेयी के चेहरे के ऊपर बिल क्लिंटन ने वाइन छोड़ दी थी तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कोई विरोध नहीं किया। भारत में इसकी जानकारी काफी समय बाद आयी। रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज को नंगा करके तलाशी ली गयी उस समय कोई विरोध नहीं हुआ और भारत के नागरिकों को बहुत बाद में जानकारी हुई। अपने आज़म खान साहब के साथ क्या-क्या हुआ वह भी पूरी तरीके से देश को बताया नही गया लेकिन जब देवयानी का मामला आया तो विडियो फुटेज से उनकी तलाशी का तरीका सामने आया। हरदीप पूरी, निरुपमा राव के साथ भी बदतमीजियां हुई थी। अब सवाल उठता है कि यह सब होने के बाद आप अमेरिका क्या करने जाते हैं निश्चित रूप से कुछ न कुछ व्यक्तिगत स्तर पर प्राप्ति की कामना अमेरिका यात्रा के लिए यह सब सहने को मजबूर करती है।
अमेरिकियों के साथ आप मान्य का व्यवहार करते हैं जो उनके दूतावासों में होता है। उसको आप नजरअंदाज करते हैं उनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का समर्थन एक हिस्से द्वारा किया जाता है। जब उनका अधिकारी आता है तो वह भारत सरकार के अधिकारीयों के बाद अपने एजेंटों से भी मिलता है। हद तो यहाँ तक हो जाती है कि वह राज्यों के मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत वार्ता भी करता है और आप चुप रहते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि उनको किसी भी विशेषाधिकार विधि के विरुद्ध देने कि जरूरत नहीं है। इससे उनके राष्ट्रविरोधी देशविरोधी गतिविधियों पर तुरंत लगाम लगेगी। अमेरिका कभी भी भारत का स्वाभाविक मित्र नही रहा है और न हो ही सकता है क्यूंकि अमेरिका सम्राज्यवादी मुल्क है और आप साम्राजयवाद पीड़ित। अगर वह एक राजनयिक के साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए यही विकल्प है। विदेशों में तैनात भारतीय अधिकारीयों कि ईमानदारी व सतयनिष्ठा कि भी पहचान करनी चाहिए। अक्सर देखने में यह आया है कि हमारे अधिकारीयों कि निष्ठा देशनिष्ठ न होकर कुछ फायदों के लिए विदेशनिष्ठ हो जाती है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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खेती से खिसकती ज़मीन

हमारी कार्यशील आबादी का 50 फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सा अभी भी खेती के क्षेत्र में ही मौजूद है। इसका यह अर्थ हर्गिज़ नहीं कि इतने लोगों की वहाँ वास्तव में ज़रूरत है। लोग वहाँ हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है। वे वहाँ सरप्लस लेबर हैं जिसके रचनात्मक इस्तेमाल की न योजनाकारों को कोई परवाह है न चिंता। उनके पास या तो वहीं रह कर धीरे-धीरे ख़त्म हो जाने का इंतज़ार रहता है या उन्हें बाहर निकलकर जीवनयापन के किसी साधन की तलाश करनी होती है। खेती के भीतर पर्याप्त आमदनी की संभावनाएँ सिकुड़ती देख सीमांत व मध्यम किसान मजबूरी में खेती से बाहर होते जाते हैं। पहले आंशिक तौर पर, फिर पूरी तरह। उनके पास लंबे समय तक घाटा उठाकर भी खेती करते रहने का आर्थिक आधार नहीं होता। खेती के क्षेत्र के बाहर दूसरे क्षेत्रों में भी उनके लिए कोई जगह नहीं है।
ऐसा नहीं है कि जो लोग खेती करना छोड़ गए तो उनकी जगह कोई और खेती करने लगा। अगर खेती में गुज़र-बसर होती रहती तो जिन्होंने छोड़ी, वे ही क्यों छोड़ते। इसलिए उनके जाने पर अक्सर उनकी ज़मीन भी खेती के उपयोग से बाहर हो जाती है।
भारत में नव उदारवादी नीतियों के चलते जो गुब्बारा अर्थव्यवस्था पिछले दो दशकों में फैली है, उसने एक नए मध्यवर्ग और उपभोक्ता तबक़े को खड़ा किया। यह अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से वित्त और सर्विस सेक्टर पर टिकी है। उत्पादन का प्राथमिक क्षेत्र हेय हो गया है। इसी ने शेयर बाज़ार की सट्टेबाजी को सर्वोपरि बनाया और वही सट्टेबाजी ज़मीन के बाज़ार में भी आई। शहरों के आस-पास की ज़मीनों के दाम बढ़े हैं क्योंकि मध्यवर्ग के पास निवेश के लिए पैसा है। खेती का क्षेत्र काॅर्पोरेट के लिए खोल दिए जाने, कांट्रेक्ट खेती को राज्यों द्वारा बढ़ावा देने से आई.टी.सी., रिलायंस और टाटा जैसी कंपनियों की भी ग्रामीण भारत में सरगर्मियाँ बढी हैं। ज़मीन सबकी निगाहों में सोने से तेज चमक रही है।
नतीजा यह है कि खेती की ज़मीन का बहुत बड़ा हिस्सा चुपचाप खेती के उपयोग से बाहर हो गया है।
कुछ वर्षों पहले हमने देश में अनेक जगहों पर एस0ई0जे़ड0 (सेज़) के विरोध में ज़बर्दस्त आंदोलन देखा था और हममें से अनेक उस आंदोलन के हिस्से भी बने थे। सेज़ के प्रावधान मज़दूर विरोधी थे व उससे खेती की उपजाऊ ज़मीन किसानों से छीनी जा रही थी। अगर भारत सरकार द्वारा ‘फाॅर्मल अप्रूवल’ और ‘इन प्रिंसिपल अप्रूवल’ पाये सारे एसईजेड बन गए तो भी वे कुल 2.1 लाख हेक्टेयर ज़मीन ही ले सकते हैं। जबकि बाज़ार ने किसानों के साथ सौदे करके बिना किसी क़ानून और बिना किसी विरोध के देश की 1 करोड़ 80 लाख हेक्टेयर ज़मीन खेती के उपयोग से बाहर खिसका दी। देश के सारे राज्यों में खेती की ज़मीन में नाटकीय रूप से कमी आई है और उसे रोकने की कोई सजग कोशिश उस सरकार की तरफ़ से नहीं हुई जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी एक क़ानून बना रही है।
-विनीत तिवारी
क्रमश:

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उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण का मतदान शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया है लेकिन इस चुनाव की मुख्य विशेषता यह है कि आयोग ने शांतिपूर्वक चुनाव तो करवा लिए लेकिन मतदाताओं की खरीद फरोख्त को रोक नहीं पाए। कुछ क्षेत्रों में सीधे-सीधे मतदाताओं को एक हजार रुपये की नोट देने के समाचार हैं। चुनाव में प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लोगों ने मेज के नीचे से रुपया लेकर सपा-बसपा-भाजपा को मतदाताओं के सामने पेश किया अन्य पार्टियों जिनके उम्मीदवारों ने या पार्टी स्तर पर रुपये का भुगतान नहीं किया वह पार्टियाँ उनके एजेंडे से गायब ही रहीं। राजनितिक दलों के सिम्बल अख़बारों में प्रकाशित किये गए किन्तु उत्तर प्रदेश में दो राष्ट्रीय पार्टियों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व मर्क्सस्वादी कम्युनिस्ट पार्टी के चुनाव निशान प्रकाशित नहीं किये गए। इसका मुख्य कारण यह है कि इन पार्टियों ने न मेज के ऊपर से और न ही मेज के नीचे से पेमेंट किया।
धर्म गुरुओं ने भी अपनी अपनी निष्ठाएं विभिन्न दलों में व्यक्त की चुनाव में भी उनका भाव तेजी पर रहा लग्जरी गाड़ियाँ, प्रतिदिन का खर्चा तथा विभिन्न प्रकार की सुविधाओं का उपयोग भी इन लोगों ने किया।
चुनाव में मुद्दे गायब थे, चुनाव संपन्न होते ही किसानो की खाद, बीज की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हैं। महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। वोट लेने वाले बहुरूपियों ने सरकार बनाने के लिये साम, दाम, दंड भेद से मत प्राप्त कर लिये हैं, बिजली पानी नदारद है। सरकार चाहे जिसकी बने महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी जैसे मुद्दे हल करने की दिशा में इन राजनीतिक दलों की कोई रूचि नहीं है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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