राष्ट्रपति भवन में थोड़ी देर बाद मैंने उन्हें अपनी टेबल की ओर आता देखा। मई घबरा गयी और कुछ नर्वस हो गयी। तब तक नेहरूजी मेरे पास आ पहुंचे। इतने नजदीक देखकर मुझे कुछ सूझ नही रहा था। मैं खड़ी हो गयी। वे काफी वरिष्ठ थे लेकिन उनकी उम्र से उनके व्यक्तित्व पर तब तक कोई असर नहीं पड़ा था। उनके साथ उनका कोई असिस्टेंट भी चल रहा था। मेरी ओर देखने के बाद प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा। उसने जल्दी से अंग्रेजी में उन्हें कहा, “शी इज एन एमपी”ज वाइफ फ्रॉम एम.पी।” मुझे आज तक नहीं पता कि उस व्यक्ति को ये कैसे पता था। पर ये सुनकर नेहरूजी ने कुछ क्षण मुझे अपलक देखा और फिर आँखों में प्रश्न लाकर पूछा, “होमी दाजी?” मैंने “हाँ” में सर हिलाया लेकिन मैं क्या बताऊँ कि मेरी हालत क्या हो रही थी। नेहरूजी द्वारा पहचान लिये जाने से बहुत ख़ुशी तो हो ही रही थी लेकिन पता नहीं क्यों, शर्म भी बहुत आ रही थी।
मेरा सर हिलाना था कि नेहरूजी ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और बोले, “ही इज ए ब्रिलियंट बॉय।” उस वक्त दाजी सबसे काम उम्र के सांसद थे। फिर नेहरु जी बोले, “पता नहीं ये लड़का कहाँ-कहाँ से चीजें ढूंढ कर लाता है और हमसे पार्लियामेंट में इतने सवाल करता है कि हमें मुश्किल हो जाती है। तुम जरा उसकी लगाम खींचकर उसे घर में ही रखा करो ताकि हमें थोडा आराम रहे। हम रोज ये सोचकर सदन में जाते हैं कि पता नहीं आज दाजी क्या पूछेगा।” नेहरु जी के मजाकिया लहजे ने मेरी घबराहट कुछ कम कर दी। मैंने भी सम्मान से जवाब दिया, “सर, संसद बेलगाम न हो जाए, इसके लिये मैंने उनकी लगाम छोड़ दी है।” यह सुनते ही नेहरूजी ठहाका मारकर हँसे और मेरी पीठ थपथपाकर अपने साथ वाले व्यक्ति से बोले, “देखो, ये तो दाजी से भी दो कदम आगे है।” कहकर वे आगे बढ़ने लगे। मैंने उन्हें नमस्कार किया। वे तीन-चार कदम आगे चलकर रुके और वापस आकर बोले, ” अगर वह मेरी पार्टी में आ जाए तो मैं उसे चीफ मिनिस्टर बना सकता हूँ।” मैं एकदम हडबडा गयी। फिर मुंह से निकला, “सर , एक ईमानदार और समर्पित कम्युनिस्ट वहां कांग्रेस में कैसे काम कर सकता है? वह जहाँ है, वहीँ ठीक है। उसे वहीँ रहने दीजिये।” कह तो दिया लेकिन मन में बहुत घबराहट भी हुई। इतने महान, विद्वान और देशभक्त व्यक्ति को उसकी पार्टी के बारे में ऐसा कहना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था। पर अब क्या। अब तो बात निकल गयी। लेकिन नेहरूजी की बात ही कुछ और थी। उन्होंने हँसते हुए मेरी पीठ पर एक बुजुर्ग की तरह हाथ फेरा और चले गए।
यह बात पेरिन दाजी की किताब “यादों की रौशनी में” संपादक विनीत तिवारी से साभार लिया गया है।
Posts Tagged ‘होमी दाजी’
स्वप्नदर्शी नेहरु ने कांग्रेस में शामिल होने के लिये मुख्यमंत्री पद देने की बात कही थी
Posted in लोकसंघर्ष सुमन, tagged नेहरु, पेरिन दाजी, मध्य प्रदेश, विनीत तिवारी, सांसद, होमी दाजी on फ़रवरी 29, 2012| Leave a Comment »
पंडित नेहरु और सार्वजानिक क्षेत्र में धोखाधड़ी
Posted in loksangharsha, tagged पेरिन दाजी, भेल, मध्य प्रदेश, विनीत तिवारी, सांसद, होमी दाजी on फ़रवरी 25, 2012| Leave a Comment »
सार्वजानिक क्षेत्र के बारे में भी बहुत संक्षेप में कुछ कहना जरूरी है। सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रम हमारी नयी विकसित होती अर्थव्यवस्था की मॉस-पेशियों हैं। बेशक ये ठीक ही कहा गया कि वे ही समाजवाद नहीं हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वे हमारी उम्मीदें हैं। और हमारे सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रम भला कैसे चलाये जा रहे हैं ? उन्हें चलाने की जिम्मेदारी सेवानिवृत्त हो चुके, नाकाबिल अधिकारीयों को दी हुई है। जो अधिकारी किसी भी अन्य विभाग के लिये नाकाबिल समझे जाते हैं उन्हें सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रबंधक पद के लिये पूरी तरह काबिल मान जाता है। और ये अधिकारी इस प्रबंधन का पूरा सत्यानाश करते हैं।
श्रीमान, मै पूरे विश्वास और जिम्मेदारी के साथ आपको बता रहा हूँ कि इन अधिकारीयों ने खुद प्रधानमंत्री का मखौल बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
कुछ ही महीनो पहले प्रधानमंत्री जी खूब जोर-शोर के साथ भोपाल में बिजली की मोटरों का भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (भेल) में उत्पादन का उद्घाटन करने आये थे। मै दावे के साथ कह रहा हूँ कि जो भोपाल भेल में बना बताया गया, उसमें कोई पुर्जा, कोई हिस्सा, यहाँ तक कि एक कील तक भी भोपाल में बनी हुई नहीं थी। लेकिन चूँकि वक्त पर काम ख़त्म दिखाना था इसलिए ये बदमाशी की गयी। सम्बंधित अधिकारीयों को साबित करना था कि उन्होंने दिए हुए वक्त में काम पूरा कर दिया वर्ना उनकी नौकरी चली जाती।
इसलिए इंग्लैंड में बनी हुई मोटरें लायी गयीं और उन्हें सिर्फ भोपाल हैवी इलेक्ट्रिकल्स में पेंट किया गया, उन पर रातों-रात लेबल बदला गया ताकि वे भोपाल में बनी दिखाई जा सकें और वहीँ मोटरें प्रधानमंत्री जी को दिखाई गयी जिनका उन्होंने अगले दिन जोरदार गाजे-बाजे के साथ उद्घाटन किया।
जिन कर्मचारियों ने रात में उन मोटरों को पेंट किया था, उन्ही कर्मचारियों को प्रधानमंत्री जी ने ये भाषण भी दिया कि उन्हें इन मशीनों को भोपाल में बनाये जाने पर गर्व है। वे कर्मचारी मुंह छिपाकर कनखियों से एक-दूसरे को देखते हुए हंस रहे थे और अधिकारीयों पर भी। मै ये घटना पूरी जिम्मेदारी के साथ बयान कर रहा हूँ।
पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स भोपाल का उद्घाटन 6 नवम्बर 1960 को भोपाल में किया था उसके बाद कम्युनिस्ट सांसद होमी दाजी ने संसद के अन्दर उक्त भाषण दिया था। यह भाषण पेरिन दाजी की किताब “यादों की रौशनी में” संपादक विनीत तिवारी से साभार लिया गया है।
चुनाव में पूंजीपतियों के रुपयों का प्रयोग सबसे पहले कांग्रेस ने शुरू किया
Posted in loksangharsha, tagged पेरिन दाजी, बिरला, मध्य प्रदेश, विनीत तिवारी, सेठी, होमी दाजी on फ़रवरी 24, 2012| Leave a Comment »
मध्य प्रदेश से कम्युनिस्ट सांसद होमी दाजी को चुनाव न जीतने देने के लिये बिरला जी ने जमकर रुपया कांग्रेसी उम्मीदवार के ऊपर खर्च किया था। बिरला जी ने टेबल पर गुस्से में मुट्ठी ठोककर कहा कि मै देखता हूँ अब दाजी कैसे संसद में आता है। दाजी को लोकसभा चुनाव न जीतने देने के लिये पूंजीपतियों की पैसों की पोटलियाँ खुल गयीं। उसके पहले तक चुनाव में पैसों का ऐसा दखल नहीं होता था। दाजी के सामने कांग्रेस की तरफ से प्रकाश चन्द्र सेठी थे। उन्होंने दोनों हाथों से बिरला का पैसा बांटा। चुनाव के समय, जब हम गाँवों में प्रचार के लिये जाते थे तो गाँव की भोली-भाली, अनपढ़ महिलाएं कहती थी कि पंजे वाले लोग हमें एक-एक साडी, एक-एक शराब की बोतल और 10 किलो गेंहू दे गए हैं।
संसद में होमी दाजी ने कहा था कि मेरे प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश से बदल कर सरकार बिरला प्रदेश क्यों नहीं रख देती ?
मुख्यमंत्री का बेटा, वित्तमंत्री का बेटा, मुख्य सचिव का बेटा, मुख्य सचिव की पत्नी का भाई, सचिव का भाई-ये सब बिरला के कर्मचारी हैं। और ये सब किसी तकनीकी पद के लिये नहीं नियुक्त किये गए हैं। ये सब उनके जन संपर्क अधिकारी (पी.आर.ओ) हैं जिनका एक मात्र काम मध्य प्रदेश के सचिवालय के चक्कर लगाना और कंपनी के लिये लाइसेंस और लीज हासिल करना है।
यह तथ्य हैं कि मतदाताओं की खरीद फरोख्त का कार्य सबसे पहले कांग्रेस ने ही प्रारंभ किया था और उसके बाद जैसे-जैसे देश का विकास हुआ। उद्योगपति बढे उन्होंने अपने हितों के लिये विभिन्न राजनितिक दलों को खरीद कर चुनाव लड़ाने लगे।
लाल रंग से लिखे गए वाक्य पेरिन दाजी द्वारा लिखित तथा विनीत तिवारी द्वारा सम्पादित “यादों की रौशनी में” से साभार लिये गए हैं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !