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Posts Tagged ‘पाकिस्तान’

Indian opposition leader Advani lays flower wreath at mausoleum of Jinnah in Karachi
पाकिस्तान में कहा जाता है कि सिन्धु नदी के स्नान से बेवफाई आ जाती है। लाल कृष्ण अडवानी जब पाकिस्तान यात्रा पर गए तो शायद सिन्धु स्नान कर लिया था, तभी उनको जिन्ना याद आने लगे थे लेकिन अब सिन्धु स्नान का असर कम हो रहा है और भारतीय राजनीति में समन्वय वादी नेता के रूप में अपनी छवि स्थापित करना चाहते हैं। बाबरी मस्जिद ध्वंस के नायक और देश में साम्प्रदायिकता की लहर चलाने वाले अडवानी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं इसी लिए नागपुर मुख्यालय की छुपी हुई रणनीति के तहत गुजरात नरसंहार के नायक नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमन्त्री पद के लिए उछाला गया है जिससे एनडीए के घटक दलों को यह सन्देश जाए कि यदि नरसंहारी प्रधानमंत्री नही चाहते हो तो उनसे कम अडवानी को प्रधानमंत्री का दावेदार मान लो इसी रणनीति के तहत शिवसेना जैसी उग्र हिन्दुवात्वादी पार्टी भी नरेन्द्र मोदी का विरोध कर रही है और अंत में अडवानी को नागपुर मुख्यालय प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाना चाहता है लेकिन सबसे बड़ा खतरा यह है की अडवानी ने अगर पुन: सिन्धु स्नान कर लिया तो देश के साथ कितना वफ़ा करेंगे। इन हिंदुत्व वादियों का इतिहास रहा है मुंह में राम बगल में छुरी।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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कुछ विदेशी शक्तियों की कोशिश है कि भारत, चीन या पाकिस्तान से युद्ध करे और उसकी स्तिथि पाकिस्तान जैसी हो जाए। पाकिस्तान द्वारा उकसावे की कार्यवाहियां अक्सर की जाती है। देश के अन्दर बैठे हुए कथित राष्ट्रवादी तत्व युद्ध की ओर देश को अग्रसर करने की दिशा में ले जाने का प्रयास करते हैं। पाकिस्तान की सेना द्वारा दो भारतीय सैनिको के मारे जाने को लेकर युद्धौन्माद पैदा करने की कोशिश हुई। संसद में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने आह्वाहन किया कि पाकिस्तानी सैनिको के दस सर लाओ जैसे बाजार से भिन्डी और गोभी खरीद कर लाना हो। वहीँ शिवसेना ने परमाणु बम पर धूल जमी होने की बात कही और उसका इस्तेमाल कब होगा और फिर देश में जगह-जगह धरना अनशन प्रदर्शन शुरू हो गए। पाकिस्तान की यह स्तिथि है कि लगभग प्रतिदिन विस्फोट होते हैं। निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं। न्यायपालिका ने कार्यपालिका के प्रमुख का वारंट जारी कर रखा है। कनाडा निवासी पाकिस्तानी मूल का कादरी पाकिस्तानी संसद को घेरे बैठा है। सेना भी अपने दांव में है ऐसी स्तिथियाँ इस देश में विदेशी शक्तियां पैदा करना चाहती हैं जिससे देश आर्थिक रूप से कमजोर हो और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शासन सत्ता संभाली जा सके। बांग्लादेश युद्ध के समय बाजार से नमक से लेकर सभी आवश्यक सामग्रियों का अभाव हो गया था। देश के अन्दर बैठे हुए जमाखोर, मुनाफाखोरों ने खूब जमकर मुनाफा कमाया। जनता का गरीब तबका युद्ध की मार झेल नहीं पाया था। जो लोग राष्ट्रवाद का सबसे ज्यादा दम भरते हैं वही लोग देश में युद्ध के समय जमाखोरी, मुनाफाखोरी में लग जाते हैं। पूंजीवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों का जीवन युद्ध में ही है। शांति उनको कब्रिस्तान की तरफ ले जाती है। पाकिस्तान को इन हरकतों को बंद करने के लिए कुटनीतिक राजनितिक प्रयास किये जाने चाहिए। युद्ध कोई विकल्प ही नहीं है। कारगिल के समय युद्ध हुआ था या घुसपैठियों को मार भगाया गया था। इस बात का स्पष्टीकरण उस समय तथाकथित राष्ट्रवादी ताकतों ने नहीं दिया था जबकि वही लोग सत्तारूढ़ थे और ताबूत घोटाला भी उसी समय में हुआ था।
देश के अन्दर भ्रष्टाचार, धन सम्पदा की लूट करने वाले लोग अपने ही लोग हैं। गरीबों के हिस्से का बहुसंख्यक आबादी का शोषण वही लोग करते हैं। जनता अगर धन-धान्य से भरपूर होगी और विदेशी शक्तियों के हाथ की कठपुतली हमारे लोग नहीं होंगे तो युद्ध करने की आवश्यकता नहीं होगी।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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निमंत्रण
दक्षिण एशियाई देशों मंे अल्पसंख्यकों की स्थिति पर इस्लामाबाद में आयोजित सेमीनार और करांची में कुछ अन्य कार्यक्रमों में भागीदारी करने का निमंत्रण प्राप्त होने पर मैं रोमांंिचत हो उठा। अन्य बातों के अतिरिक्त, मेरे लिए यह ‘‘शत्रु देश‘‘ को व्यक्तिगत तौर पर देखने-समझने का एक मौका था। मैंने पहले यह तय किया कि इस्लामाबाद और करांची के अतिरिक्त, मैं झंग भी जाऊंगा जहां विभाजन की त्रासदी के कुछ ही समय पूर्व मेरा जन्म हुआ था। बाद में मुझे यह पता लगा कि पाकिस्तान का वीजा प्राप्त करना बहुत कठिन है और वहां हर शहर के लिए अलग वीजा दिया जाता है। इसलिए मैंने झंग जाने का इरादा छोड़ दिया और अपनी यात्रा को केवल करांची व इस्लामाबाद तक ही सीमित रखने का फैसला किया। इन दोनों शहरों की यात्रा के लिए मुझे निमंत्रित किया गया था लिहाजा वहां का वीजा प्राप्त करना आसान था।
मैंने अपने जिन भी मित्रों या रिश्तेदारों से अपनी पाकिस्तान यात्रा के संबंध में चर्चा की उन सभी की प्रतिक्रिया एक सी थी। अरे बाप रे, आप पाकिस्तान जा रहे हैं। वहां बहुत सावधान रहिएगा! ऐसा लग रहा था कि लोग यह तो मानते ही हैं कि पाकिस्तान, भारत में होने वाले आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड है बल्कि वे यह भी मानते हैं कि पाकिस्तान में सड़कों पर बंदूक लिए आतंकवादी घूमते रहते हैं और वे जब और जिसे चाहे गोलियों से भून देते हैं। यह भी आम मान्यता है कि पाकिस्तान, भारत का स्थायी शत्रु है क्योंकि उसने भारत के साथ तीन युद्ध लड़े हैं और वहां दर्जनों ऐसे केन्द्र हंै जहां आतंकियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।
इस्लामाबाद
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद मुझे विशुद्ध सरकारी शहर लगा। यहां की आबादी का केवल बहुत छोटा सा हिस्सा ऐसा है जो किसी न किसी सरकारी कार्यालय या एजेन्सी में काम नहीं करता। हमनें शहर के पास की पहाड़ी से मनमोहक रावल झील देखी। यह झील इस्लामाबाद को रावलपिंडी से अलग करती है। इस्लामाबाद में मुझे ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मैं विदेशी धरती पर हूं। चाहे भाषा हो या खानपान या फिर आम लोगों की गर्मजोशी, ऐसा महसूस होता था मानो हम भारत में ही हों।
यह सही है कि दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति अच्छी नहीं है और इस संबंध में कार्यशाला में कई शोधपत्र भी प्रस्तुत किए गए परंतु यह भी उतना ही सच है कि पाकिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ता अत्यंत मुखर हैं और बड़ी हिम्मत और निष्ठा से प्रजातंत्र की मशाल प्रज्जवलित किए हुए हैं।
कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा दिए गए भोज में मुझे पाकिस्तान के मानवाधिकार आंदोलन के कई जाने-माने कार्यकर्ताओं, जिनमें आई. ए. रहमान शामिल थे, से मिलने का मौका मिला। मुझे रहमान साहब की पुस्तक ‘‘पाकिस्तान: नाईदर ए स्टेट, नार ए नेशन‘‘ (पाकिस्तान: न राज्य न राष्ट्र) की प्रति भी मिली। यह पुस्तक पाकिस्तान के मूल चरित्र का गंभीर विश्लेषण और अध्ययन प्रस्तुत करती है। यह देश केवल साम्राज्यवादी साजिश के तहत बना और इसके निर्माण में आम मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं थी। बल्कि अविभाजित भारत के अधिकांश मुसलमान और विशेषकर गरीब मुसलमान, जो कारीगर और किसान थे, पाकिस्तान के निर्माण के खिलाफ थे। भोज में मुझे एक और सुखद अनुभूति हुई। भोजन तो शानदार था ही और बातचीत भी बहुत दिलचस्प हो रही थी, परंतु मेरा ध्यान खींचा वहां गाए जा रहे मेरे प्रिय, पुरानी हिन्दी फिल्मों के गानों ने। यहां तक कि मुझे स्वयं को यह याद दिलाना पड़ा कि मैं भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान में हूं। गायक दल के सदस्यों ने मानो समां ही बांध दिया और उन्होंने एक से बढ़कर एक सुमधुर हिन्दी गीत उतने ही सुमधुर अंदाज मंे प्रस्तुत किए। उस दिन का यह मेरा सबसे आल्हादकारी अनुभव था।
भारत का ‘साफ्ट पावर‘
करांची का अनुभव एकदम अलग था। वहां मैंने पाया कि अलग-अलग समुदाय के सदस्य अपने-अपने मोहल्लों में रहते हैं। तथापि वहां विभिन्न समुदायों के बीच की भौगोलिक दूरियां, भारत में मुसलमानों के अपने मोहल्लों में सिमटने की बढ़ती प्रवृत्ति से भिन्न हंै। करांची की चैड़ी सड़कों और मंथर गति से बहते यातायात ने मुझे पांच दशक पहले के मुंबई की याद दिला दी।
किसी भी शहर के आटो या टैक्सी ड्राईवरों से बातचीत हमें उस शहर के बारे में बहुत कुछ बता सकती है। मेरी टैक्सी का ड्राईवर पेशावर का एक युवक था और वह तालिबानियों से तंग आकर पेशावर छोड़ करांची में बस गया था। अन्य कट्टरपंथियों की तरह, तालिबान भी लोगों पर ड्रेस कोड लाद रहे हैं और उनकी हुक्मउदूली की एकमात्र सजा मौत है। इस युवक ने मुझे बताया कि पहले उसके परिवार में शादियों में लगभग एक हफ्ते तक नाच-गाना चलता था परंतु अब तालिबानियों ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। तालिबानियों के आतंक के कारण बड़ी संख्या में लोग पेशावर छोड़कर करांची और दूसरे शहरों में बस रहे हैं। इस युवक से मेरी उस विषय पर भी चर्चा हुई, जिसे कई लेखक भारत का ‘‘साफ्ट पावर‘‘ कहते हैं। और वह है बालीवुड। इस युवक के लिए बालीवुड के तीनों खान भगवान से कम नहीं हैं। उसने कहा कि शाहरूख खान की टीम की आईपीएल में जीत पर उसने जमकर जश्न मनाया था। उसने मुुझे यह भी बताया कि उसने वैसी ही मूंछें और लंबे बाल रखे थे जैसे कि शाहरूख खान के उनकी फिल्म ‘मंगल पाण्डे‘ में थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि आम पाकिस्तानी हिन्दी फिल्मों और भारतीय संगीत का दीवाना है।
करांची के मलयाली कामरेड
मेरी मुलाकात कई मित्रों से हुई जो पाकिस्तान में प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत करने और भारत के साथ बेहतर संबंधों की कायमी के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से एक हैं केरल के कामरेड बी. एम. कुट्टी। इन्हें कुट्टी साहब कहकर पुकारा जाता है और वे करांची के जाने-माने नागरिक हैं। शहर में होने वाले हर प्रगतिशील आंदोलन और अभियान में उनकी भागीदारी होती है और वे युवाओं को प्रजातांत्रिक समाज और
धर्मनिरपेक्ष राज्य के मूल्यों से परिचित करवाने की मुहिम में दिन-रात एक किए हुए हैं। ये मलयाली सज्जन पिछले 60 सालों से करांची में रह रहे हैं और उनकी आत्मकथा का शीर्षक ‘‘सिक्स डिकेड्स आॅफ एक्साइल: नो रिगरेट्स‘‘ (निर्वासन के छःह दशक: कोई ख्ेाद नहीं) उनके जीवनदर्शन को प्रतिबिंबित करता है। मीडिया, ट्रेड यूनियन और करांची विश्वविद्यालय के कई मित्रों और कामरेडों ने न सिर्फ बड़ी बेबाकी और गर्मजोशी से हम लोगों से बातचीत की बल्कि उन्होंने अपनी इस तीव्र इच्छा को भी खुलकर व्यक्त किया कि पाकिस्तान में जल्द से जल्द सेना अपनी बैरकों में वापिस जाए और आम नागरिक एक प्रजातांत्रिक सरकार के जरिए अपनी महत्वाकांक्षाओं, विचारों और इच्छाओं को स्वर दे सकें।
इस्लाम किसी राज्य का आधार हो सकता है, इसे गलत साबित करता है पाकिस्तान का मुहाजिर कौमी मूवमेंट जिसे भारत छोड़कर पाकिस्तान में बसे कई मुसलमानों का समर्थन प्राप्त है। उन्हें पाकिस्तान में उनके वाजिब हक नहीं मिले और अब वे इतने संगठित हो गए हैं कि पाकिस्तान की सीनेट और बड़े-बड़े व्यावासायिक कारपोरेशनों में उनका प्रतिनिधित्व है। करांची का प्रसिद्ध प्रेस क्लब सेना के दबाव के बावजूद अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रख सका है और समय-समय पर विभिन्न विवादास्पद विषयों पर भाषण देने के लिए विद्वानों को आमंत्रित करता रहता है। क्लब के सदस्य इस बात की कतई परवाह नहीं करते कि उनके कई आयोजनों के विषय, शासकों को बिल्कुल नहीं भाते। करांची प्रेस क्लब ने हमारी यात्रा के दौरान ‘‘सांझी विरासत: एक से सपने‘‘ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया था जिसमें पाकिस्तान और भारत की सांझा सांस्कृतिक विरासत पर जोर दिया गया और अत्यंत सकारात्मक ढंग से इन दो तथाकथित शत्रु राष्ट्रों के बीच सहयोग और मित्रता की आवश्यकता को प्रतिपादित किया गया।
-राम पुनियानी

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मुंबई में शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे की तबियत अत्यधिक ख़राब है। प्रदेश सरकार से लेकर भारत सरकार तक चिंतित है कि  कहीं बाला साहेब की मृत्यु न हो जाए और मृत्यु के बाद मुंबई समेत महाराष्ट्र में दंगा फसाद न होने लगे। इस सदी के महानायक तथा बाराबंकी जनपद में जमीन की जालसाजी में लिप्त रहे श्री अमिताभ बच्चन का कुर्ता फाड़ कर मार पिटाई उस वक्त की गयी है जब वह बाला साहेब को देखने उनके निवास गए थे . प्राप्त समाचारों को देखने के बाद यह प्रतीत होता है कि बॉलीवुड के अधिकांश अभिनेता बाला साहेब के स्वास्थ्य को लेकर विशेष रूप से चिंतित हैं। उद्योगपति भी उनको देखने विशेष रूप से जा रहे हैं। इन समाचारों का विश्लेषण करने से यह भी अनुभव होता है कि बाला साहेब की न्यूसेंस वैल्यू की धमक के डर से लोग ज्यादा अपने को व्याकुल दिखा रहे हैं। मुंबई में कर्फ्यू जैसे द्रश्य अगर देखने को मिल रहे हैं तो उसके पीछे डर ही काम कर रहा है।
                     बाला साहेब कभी पाकिस्तान के साथ खेलों के खिलाफ रहे हैं तो कभी उत्तर भारतियों को महाराष्ट्र छोड़ने की धमकी देना, उनका प्रिय कार्य था। उग्र हिन्दुवात्ववादियों की वह पहचान थे। भारतीय समाज में मरणासन्न व्यक्ति को कुछ कहा नहीं जाता है और मरने के बाद भी उस पर टिपण्णी करना भी सभ्यता के खिलाफ माना  जाता है किन्तु इसके बावजूद यह भूला भी नहीं जा सकता है कि हजारों लोगों की हत्याएं जो पूर्णतया निर्दोष थे, महाराष्ट्र में होती रही हैं जो भाषा, प्रान्त, धर्म के नाम पर हुई हैं जिसका श्रेय  हिन्दू ह्रदय सम्राट बाला साहेब को जाता है और उनका डर महाराष्ट्र में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को था। शिव सैनिको का खौफ आज भी है और सरकार की नियत अगर साफ़ नहीं रही तो आगे भी जारी रहेगा। सभी परिस्तिथियों को देखने के बाद विधि का शासन व भारतीय संविधान का अर्थ महाराष्ट्र में शिव सैनिको के आगे नहीं था।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है
लेकिन इन दोनों मुल्कों में अमरीका का डेरा है

ऐड की गंदम खाकर हमने कितने धोके खाए हैं
पूछ न हमने अमरीका के कितने नाज़ उठाए हैं

फिर भी अब तक वादी-ए-गुल को संगीनों ने घेरा है
हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है

खान बहादुर छोड़ना होगा अब तो साथ अँग्रेज़ों का
ता बह गरेबाँ आ पहुँचा है फिर से हाथ अंग्रेज़ों का

मैकमिलन तेरा न हुआ तो कैनेडी कब तेरा है
हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है

ये धरती है असल में प्यारे, मज़दूरों-दहक़ानों की
इस धरती पर चल न सकेगी मरज़ी चंद घरानों की

ज़ुल्म की रात रहेगी कब तक अब नज़दीक सवेरा है
हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है

-हबीब जालिब

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ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आधीन भारत में सत्तारूढ़ अंग्रेजो ने भारतीय प्रजा के साथ जो-जो अत्याचार किये हैं। उनकी कहानियाँ आज भी भारतीय जनमानस में हैं। आदमी को जिन्दा जला देना, बरगद और बड़े-बड़े पेड़ों पर फांसी लगा देना और फिर जनता के ऊपर रौब ग़ालिब करने के लिये उनकी लाशों को महीनो तक टंगे रहने देना, जैसा अपराध अंग्रेज भारतीय जनता के साथ करते थे। इस देश की प्राकृतिक सम्पदा से लूट कर इंग्लैंड ले जाते थे। यहाँ के कुटीर उद्योगों को तबाह करते थे ताकि जनता भूखी और नंगी रहे लेकिन कुछ अंग्रेज चाटुकार अंग्रेजों की प्रशंसा में तरह-तरह के कसीदे गढ़ते रहते हैं। कभी वह कहते हैं कि अंग्रेजों ने भारतीयों को सुसंस्कृत बनाया। पढने लिखने के लिये स्कूल खोले, पोस्ट ऑफिस और तार घर खोले, रेल चलाई आदि आदि। जबकि उनको यह मालूम होना चाहिए। चपरासी और चौकीदार के लिये भारतीय लोगों की जरूरत है तो उन्होंने उनको शिक्षित करने के लिये स्कूल खोले। अपनी डाक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्र से शीघ्र पहुँचाने के लिये डाक एवं तार घर की स्थापना की। कच्चा माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये तथा सेना को त्वरित कार्यवाई के लिये रेल चलाई। हाँ इन चीजों का खर्चा निकलने के लिये इनको व्यावसायिक भी बनाया जिससे लाभ भी हुआ। लार्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद को 2 फरवरी 1835 को संबोधित करते हुए कहा था कि भारतीय समाज व्यवस्था को नष्ट करना आवश्यक है अन्यथा अंग्रेजी राज्य कायम नहीं रखा जा सकता है। भारतीय व्यवस्था उच्च कोटि की है इस सन्दर्भ में उनके दिए गए भाषण का सारांश प्रस्तुत किया जा रहा है-

I have travelled across the length and breadth of India and have not seen one person who is beggar, who is thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spritual and cultural heritage. And, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation.
किन्तु इस भाषण की पुष्टि नहीं हो पा रही है। भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा चुनाव २००९ के घोषणा पत्र में भी इस भाषण का उल्लेख किया गया था।

अंग्रेजों ने इस देश को स्थायी रूप से हिन्दू मुसलमान समस्या, हिंदी उर्दू विवाद, भारत का विभाजन उपहार स्वरूप दिया था। उसके बाद भी अगर अंग्रेज भक्तों की आँखें नहीं खुलती हैं तो उनको खोला भी नहीं जा सकता है चाटुकारिता उनका स्वभाव है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि अमरीकी सेनाएं दक्षिणी एशिया के देशों में पाकिस्‍तान के अलावा भारत, श्रीलंका, बांग्‍लादेश, नेपाल के अलावा मालदीव में भी मौजूद हैं। पेंटागन के शीर्ष कमांडर ने खुलासा किया है कि भारत में अमरीकी सेना के खास दस्‍ते की तैनाती की गई है। चीन, भारत, उत्तरी कोरिया और अंतरराष्ट्रीय खतरों से निपटने के लिए बनाया गया है। यह कमांड पहले तो खतरे को अपने तरीके से रोकने की कोशिश करता है। लेकिन अगर तब भी बात नहीं बनी तो एशिया प्रशांत इलाके में बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई के लिए हमेशा तैयार रहता है।

भारत गुट निरपेक्ष आन्दोलन का अध्यक्ष और नेता भी रहा है। छोटे-छोटे जन गणों की आशा का संचार केंद्र रहा है। पता नहीं कब भारत अमेरिकी साम्राज्यवाद का पिट्ठू हो गया है। जैसे बहरीन से लेकर तमाम सारे छोटे छोटे देशों में अमरीकियों ने जेलखाने सी.आई.ए के अड्डे, सैनिक अड्डे बना कर उनकी संप्रभुता का हनन कर लिया है। यह उसी तरह का खतरा है जैसे विधिक अधिकार पत्र के द्वारा सर टामस रो को मुग़लकालीन भारत में व्यापार करने की अनुमति मिली थी और अंत में तिगडम ताल करके भारत को ब्रिटिश आधीन भारत के रूप में परिवर्तित कर दिया था। अभी मालदीव में जो परिवर्तन हुए हैं इस समाचार के आने के बाद यह पुष्टि होती है कि वहां के सत्ता परिवर्तन में अमेरिकी साम्राज्यवादियों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हाथ जरूर है।
हमारे देश में तो अमरीकी साम्राज्यवादियों के पैसे से पलने वाले एन.जी.ओ से लेकर राजनीतिक दल तक हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ दल में इतना नैतिक साहस भी नहीं था कि वह खुलेआम इस कृत्य को जनता के बीच में ले जाती।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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