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Archive for मार्च, 2014

mjatour
गोविल्स के प्रचार में फंसा मीडिया नायक मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर। जब राजीव गांधी की तूती बोलती थी तो उनकी जय जयकार और जब मीडिया ने एक भ्रामक हिन्दुवत्व की लहर भारतीय समाज में पैदा की तो उस भ्रम को फैलाने का कार्य करने वाले उसी भ्रम में एम जे अकबर साहब दिग्भ्रमित होकर फंस गए। उनका सारा इतिहास का ज्ञान सामर्थ्य नमो नमो करने के लिए समर्पित हो गया है उदारवादी नीतियों के चलते अपनी सुख सुविधाओं को बरक़रार रखने के लिए पतन की कोई सीमा रेखा इस घटना के बाद नहीं रेह जाती है। यह ऐतिहासिक सत्य भी है कि अवसरवादी बुद्धिजीवी अपनी सुख सुविधाओं के लिए कुछ भी कर सकता है। जिसका प्रत्यक्ष उद्धरण यह है. एम जे अकबर कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं. वे बिहार के किशनगंज से दो बार सांसद रहे हैं. साथ ही वे राजीव गांधी के प्रवक्ता भी रहे हैं. वे इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटोरियल डॉयरेक्टर भी रहे हैं. अकबर ने कहा, ‘‘यह हमारा कर्तव्य है कि हम देश की आवाज के साथ आवाज मिलाएं और देश को फिर से पटरी पर लाने के मिशन में जुट जाएं. मैं भाजपा के साथ काम करने को तत्पर हूं.’’ इसी तरह की बातें जब वह राजीव गांधी के प्रवक्ता थे तब कहा करते थे। असल में तथाकथित बड़े पत्रकार सत्ता के प्रतिस्ठानों में और कॉर्पोरेट सेक्टर के बीच में मीडिएटर का काम करते हैं और मीडिएट होने के बाद वह स्वयं भी देश की सेवा में सीधे सीधे उतर पड़ते हैं। यह कोई भी आश्चर्य की बात नही है।
भाजपा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संगठन है जो नागपुर मुख्यालय से संचालित होता है। जर्मन नाजीवादी विचारधारा से ओत प्रोत संगठन है। विश्व का कॉर्पोरेट सेक्टर अपनी पूरी ताकत के साथ भारत के ऊपर फासिस्ट वादी ताकतों का कब्ज़ा कराना चाहता है। जिससे यहाँ के प्राकृतिक संसाधनो का उपयोग कर अकूत मुनाफा कमाया जा सके। भाजपा में बाराबंकी से लेकर बाड़मेर तक और नागपुर मुख्यालय से लेकर झंडे वालान तक कुर्सी के लिए मारपीट हो रही है , मान मनौव्वल हो रही है। चुनाव हुए नहीं हैं , प्रधानमंत्री , उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री के पद बाटें जा रहे हैं . जगदम्बिका पाल से लेकर सत्यपाल महाराज, रिटायर्ड जनरल-कर्नल से लेकर वरिष्ठ नौकरशाह पुलिस अधिकारी पत्रकार गिरोह बनाकर देश सेवा अर्थात लुटाई में हिस्सेदारी के लिए अपनी नीति, विचार त्याग सबको तिलांजलि देकर रातों रात अपनी निष्ठाएं और आस्थाएं बदल रहे हैं। उसके बाद भी सरकार फासिस्टों की नहीं बनेगी।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महात्मा गांधी की हत्या की थी।संघ इस आरोप को बेबुनियाद बता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि महात्मा गांधी की हत्या में संघ का अप्रत्यक्ष हाथ था। हत्या का फैसला कोई प्रस्ताव पारित करके नहीं किया गया था परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि संघ व हिन्दू महासभा के कुछ प्रमुख नेताओं को यह जानकारी थी कि महात्मा गांधी की हत्या होने वाली है। यह आरोप कि संघ को ज्ञात था कि महात्मा गांधी की हत्या होने वाली है, तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने लगाया था। पत्र में पटेल ने लिखा था ‘‘उसके (आर.एस.एस.) सभी नेताओं के भाषण साम्प्रदायिक जहर से भरे रहते थे। उन जहरीले भाषणों के चलते देश में ऐसा वातावरण बना जिससे यह बड़ी त्रासदी (गांधी जी की हत्या) घटी। हत्या के बाद संघ के स्वयंसेवकों ने खुशियां मनाईं और मिठाई बांटी।’’
पटेल ने इस पत्र की कापी जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष और हिन्दू महासभा नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी को भी भेजी थी। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर को एक पत्र लिखासंदेह नहीं कि नाथूराम गोडसे, जिसने गांधीजी की हत्या की थी, वे संघ के सदस्य रहे थे। उन्हें बौद्धिक प्रचारक का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। उनके भाई गोपाल गोडसे लिखते हैं कि ‘‘नाथूराम गोडसे ने अदालत को बताया था कि उन्होंने 1934 में संघ छोड़ दिया था परंतु वास्तविकता यह है कि उन्होंने (नाथूराम गोडसे) संघ को कभी नहीं छोड़ा’’ गोपाल गोडसे के इस कथन से स्पष्ट होता है कि वे उस समय भी संघ से जुड़े थे जब उन्होंने गांधी की हत्या की थी।
गोडसे की वास्तविक स्थिति के बारे में आउटलुक पत्रिका ने सरसंघचालक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह से एक साक्षात्कार में पूछा था। राजेन्द्र सिंह ने उत्तर दिया था कि ‘‘नाथूराम गोडसे अखंड भारत का सपना देखता था। उसका इरादा ठीक था परंतु उसने जो तरीका अपनाया वह गलत था।’’
संघ ने कभी भी नाथूराम गोडसे से अपना संबंध नहीं तोड़ा। इसके ठीक विपरीत, संघ उसके विचारों को प्रचारित करता रहा है। संघ वर्षों तक नाथूराम गोडसे और उनके भाई की किताबों के विज्ञापन अपने साप्ताहिक समाचारपत्र आर्गनाईजर में छापता रहा है। जैसे दिनांक अक्टूबर 5, 1997 के संस्करण में रीडेबल अटरेक्टिव न्यू बुक्स शीर्षक से विज्ञापन छपा था। इन किताबों में नाथूराम गोडसे की किताब ‘‘मे इट प्लीज युअर आनर’’ और गोपाल गोडसे की किताब ‘‘गांधीज मर्डर एंड आफ्टर’’ शामिल हैं। इस तरह के विज्ञापन समय-समय पर छपते रहे हैं।
सरदार पटेल ने, जिन्हें नरेन्द्र मोदी और संघ अपना हीरो मानता है, गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया था। 4 फरवरी 1948 को प्रतिबंध लगाया गया था। ‘भारत सरकार ने 2 फरवरी को अपनी घोषणा में कहा है कि उसने (भारत सरकार) उन सभी विद्वेश कारी तथा हिंसक शक्तियों को जड़मूल से नष्ट कर देने का निष्चय किया है, जो राष्ट्र की स्वतत्रंता को खतरे में डालकर उसके उज्जवल नाम पर कलंक लगा रही हैं। उसी नीति के अनुसार, चीफ कमिश्नरों के अधीनस्थ सब प्रदेशों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अवैध घोषित करने का निर्णय भारत सरकार ने कर लिया है। गवर्नरों के अधीन राज्यों में भी इसी ढंग की योजना जारी की जा रही है।’’ सरकारी विज्ञप्ति में आगे कहा गया: ‘‘संघ के स्वयंसेवक अनुचित कार्य भी करते रहे हैं। देश के विभिन्न भागों में उसके सदस्य व्यक्तिगत रूप से आगजनी, लूटमार, डाके, हत्याएं तथा लुकछिप कर श स्त्र, गोला और बारूद संग्रह करने जैसी हिंसक कार्यवाहियां कर रहे हैं। यह भी देखा गया है कि ये लोग पर्चे भी बांटते हैं, जिनसे जनता को आतंकवादी मार्गों का अवलंबन करने, बंदूकें एकत्र करने तथा सरकार के बारे में असंतोश फैला कर सेना और पुलिस में उपद्रव कराने की प्रेरणा दी जाती है।’’
सरकारी आदेश में वे अन्य कारण भी गिनवाए गये जिनके चलते आरएसएस पर प्रतिबंध लगाना जरूरी हो गया था। इस संदर्भ में जानने लायक एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया तब देश के गृहमंत्री सरदार पटेल ही थे, जिनको आरएसएस कांग्रेस में अपना प्रिय नेता मानती थी और आज भी मानती है। सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या में आरएसएस की भूमिका के बारे में स्वयं गोलवलकर को एक पत्र के माध्यम से जो कुछ लिखा था वह भी पढ़ने लायक है। सरदार पटेल ने 19.9.1948 के अपने पत्र में लिखा, ‘‘हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक प्रश्न है पर उनकी मुसीबतों का बदला, निहत्थे व लाचार औरतों, बच्चों व आदमियों से लेना दूसरा प्रष्न है…उन्होंने कांग्रेस का विरोध करके और इस कठोरता से कि न व्यक्तित्व का ख्याल, न सभ्यता व शिष्टता का ध्यान, जनता में एक प्रकार की बेचैनी पैदा कर दी थी। इनकी सारी स्पीचिज सांप्रदायिक विष से भरी थीं। हिन्दुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा के प्रबन्ध करने के लिए यह आवश्यक न था कि वह जहर फैले। इस जहर का फल अन्त में यही हुआ कि गांधी जी की अमूल्य जान की कुर्बानी देश को सहनी पड़ी और सरकार व जनता की सहानुभूति जरा भी आरएसएस के साथ नहीं रही, बल्कि उनके खिलाफ हो गयी। उनकी मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया था और मिठाई बांटी, उस से यह विरोध और बढ़ गया और सरकार को इस हालत में आरएसएस के खिलाफ कार्यवाही करना जरूरी ही था।
‘‘तब से अब 6 महीने से ज्यादा हो गए। हम लोगों की आशा थी कि इतने वक्त के बाद सोचविचार कर के आरएसएस वाले सीधे रास्ते पर आ जाएंगे। परन्तु मेरे पास जो रिपोर्ट आती हैं उनसे यही विदित होता है कि पुरानी कार्यवाहियों को नई जान देने का प्रयत्न किया जा रहा है।’’
प्रतिबंध लगने के बाद संघ की गतिविधियां ठप्प हो गईं। इसके बाद संघ द्वारा प्रतिबंध उठाने के लिए अथक प्रयास किए गए। अपने प्रयासों के दौरान गोलवलकर ने पटेल को अनेक पत्र लिखे। परन्तु पटेल ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि प्रतिबंध उठाने के अनुरोध पर उसी समय विचार किया जाएगा जब संघ उसके संविधान का प्रारूप पेश करे।
14 नवंबर 1948 को गृह मंत्रालय की ओर से एक विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि गोलवलकर प्रतिबंध उठवाना तो चाहते हैं परंतु संघ अपने स्वरूप और गतिविधियों में किसी प्रकार का सुधार करने को तैयार नहीं है। पटेल ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी को लिखे एक पत्र में कहा कि संघ की गतिविधियों से देश को खतरा है। वे वास्तव में राष्ट्रविरोधी हैं। बाद में संघ ने अपने संविधान का प्रारूप पटेल को भेजा। इस प्रारूप में संघ ने यह स्पष्ट प्रावधान किया कि संघ, राजनीति में हिस्सा नहीं लेगा और अपनी गतिविधियों को सांस्कृतिक क्षेत्र तक सीमित रखेगा। यह आश्वासन देने के बावजूद, संघ अब सीधे राजनीति में भाग ले रहा है। इस तरह वह पटेल को दिए गए आश्वासन के ठीक विपरीत कार्य कर रहा है। आज भी संघ जिन उद्देश्यों के लिए काम कर रहा है वे उस संविधान के विरूद्ध हैं जिसके द्वारा हमारे राष्ट्र की सभी प्रकार की गतिविधियों का संचालन होता है।
-एल.एस. हरदेनिया

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उत्तर प्रदेश में कीर्तिवर्धन सिंह सपा छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। बड़े माफिया डॉन ब्रजभूषण शरण सिंह भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार उनके समर्थकों के द्वारा घोषित किया जा चुका है। एक दिनी पूर्व मुख्यमंत्री जगदम्बिका पाल के भाजपा में जाने कि सम्भावना व्यक्त कि जा रही है . आने वाले दिनों में लग रहा है कि सुशील सिंह, बृजेश सिंह, धनन्जय सिंह आदि भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं और यह सब लोग नए सामंतवाद के प्रतीक हैं लोकतंत्र में इनके कार्यकलापों को देखते हुए लगता है कि इनका उसमें विश्वास ही नहीं है। कीर्तिवर्धन सिंह के पिता राजा आनंद सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे , भाजपा के लिए कार्य करने के कारन बर्खास्त कर दिए गए , निकट भविष्य में और भी कई क्षत्रिय मंत्री अपने मंत्री पद को छोड़ते हुए भाजपा में जा सकते हैं जो नमो को प्रधानमंत्री बनने में रोड़ा अटकाने का काम करेंगे। नमो प्रधानमंत्री बनने के लिए बेताब हैं। उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा क्षत्रिय शिरोमणि ठाकुर राजनाथ सिंह भी हो सकते हैं कि सारे सामंत अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ इकठ्ठा हो जायेंगे तो निश्चित रूप से लोकतंत्र की बजाये सामंतवाद अपने नए रूप में आ सकता है। भाजपा का ब्राह्मणवादी नेतृत्व अब अपने को असहज महसूस करने लगा है जो आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की इस टिपण्णी से परलक्षित होता है कि उन्होंने संघ के प्रचारकों से कहा कि उनका काम ‘नमो-नमो’ करना नहीं है। भागवत ने प्रचारकों को सलाह दी है कि वे व्यक्ति-केन्द्रित प्रचार अभियान का हिस्सा न बनें। संघ ने भाजपा को नसीहत दी है कि पार्टी के नाराज नेताओं से सख्ती से न निपटा जाए। इस समय यह सोचने का वक्त नहीं है कि कौन जीतेगा और कौन सरकार बनाएगा, बल्कि यह समय इस बात को सोचने का है कि कौन जीतना नहीं चाहिए।
यह टिप्पणी भारतीय जनता पार्टी के ऊपर ब्राह्मणवादी पकड़ की कमजोरी को दर्शाती है। उत्तर प्रदेश भाजपा के अंदर ही अंदर ठाकुर वर्सेज ब्राह्मण की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। संघ का लोकतंत्र में विश्वास न होना और अधिनायकवादी ब्राह्माडवत्व को जो चुनौती मिल रही है। वह वैचारिक संघर्षपूर्ण स्तिथि में संगठन को ला खड़ा किया है।
अब मतदाताओं को तय करना है कि देश में लोकतंत्र रहेगा या अधिनायकवादियों का अधिनायक।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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आज बाराबंकी कचेहरी में एक साहब आये और उन्होंने कहा कि मोदी जब सामान्य ज्ञान या इतिहास के ऊपर बोलते हैं तो वह गलत हो जाता है तो आप बताओ कि नरेंद्र मोदी कितना पढ़ा लिखा है ? मुझे कोई उत्तर नही सूझा साथ में दो पत्रकार भी बैठे हुए थे उनको भी यह जानकारी नहीं थी कि नरेंद्र मोदी ने स्कूल का मुंह देखा है या नही। फिर क्या था वह साहब कहने लगे कि भाई कुछ लोग देश का प्रधानमंत्री बनाने जा रहे हैं और आप लोगों को यह भी जानकारी नही हो पायी हैं कि मोदी पढ़ा लिखा है या साक्षर है। फिर उन्होंने हम लोगों के ऊपर धौंस ज़माने के लिए कहा कि मोदी जब कभी-कभी इंग्लिश के वाक्यांश का
प्रयोग करता है तो वह भी गलत-शलत होते हैं। उससे बढ़िया अंग्रेजी तो मैं बोल लेता हूँ।
उस शख्स के जाने के बाद मैं सोचने लगा। अगर भगत सिंह के अंडमान जेल में बंद होने की बात हमारे प्राइमरी स्कूल के उस समय के हेड मास्टर पंडित श्याम लाल के सामने कही गयी होती तो बेहया का डंडा पूरे शरीर के ऊपर कितने टूट जाते यह उस छात्र को भी नही मालूम होता। जूनियर हाई स्कूल के अध्यापक राजा राम यादव के सामने पटना में सिकंदर की बात किसी छात्र ने कही होती तो मास्टर साहब चटकना से लेकर उस छात्र के ऊपर पूरी तरह से घूसेबाजी कर दिए होते। यह सब साड़ी ग़लतफहमी मंचासीन कुछ पढ़े लिखे नेताओं और हजारो लोगों कि भीड़ के समक्ष होती रही और किसी भी नेता के मुंह से आह भी नही निकली जैसे कि वह लोग मोदी के व्यक्तिगत नौकर कि भूमिका में हो और बोलने पर नौकरी चले जाने का डर हो। स्मृतियों में खोकर बहुत सारी चीजें याद आने लगी और फिर हंसी।
वास्तव में कुर्सी का प्रेम सब कुछ छीन लेता है। बुद्धि और विवेक भी, मोदी तिरंगा-तिरंगा चिल्लाते हैं , राष्ट्रीय स्वाभिमान की बात करते हैं। उनके साथ बैठे हुए लोगों ने मंच पर जब मोदी गलत उवाच कर रहे होते हैं, तो पढ़े लिखे और संघ के सिद्धांतकार गुरु गोलवलकर , हेड़गवारकर की लिखी हुई किताबों और बातों को भूल जाते हैं। जिस संगठन का इस देश कि जंगे आजादी की लड़ाई से, संविधान से कोई वास्ता नहीं रहा है वह राष्ट्र और तिरंगे की बात प्रधानमंत्री पद का स्वघोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी करता है तो उनको कैसा लगता है।
आज सबसे पहले मोदी को अपनी पढाई लिखाई की जानकारी संपूर्ण राष्ट्र को देनी चाहिए साथ में यह भी बताना चाहिए कि उनकी रैलियों का खर्च कौन उठा रहा है अन्यथा यह समझा जायेगा कि कोई कार्पोरेट सेक्टर या विदेशी शक्ति लाखों करोडो रुपये खर्च कर मोदी को मुखौटा बना कर इस देश को कब्ज़ा करना चाहता है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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