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Archive for अक्टूबर 21st, 2009

यहाँ हर मुस्लिम को अपने भारतीय होने और उसके नाते सभी समान अधिकार पाने की उम्मीद रखनी चाहिए। अगर हम उसके मन में यह भावना नही जगा पाते तो हम अपने देश और विरासत दोनों के लिए अपात्र हैं।

-राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगाने
वाले भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल

सुमन
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जब कभी आप किसी सच्चाई की तलाश करना चाहते है तो यह जरूरी है कि आप उसके प्रचलित और लोकप्रिय अर्थ से हटकर सोचने की कोशिश करें । साम्प्रदायिकता की परिभाषा आज नए सिरे से करने की जरूरत है। समाज का एक वर्ग जब किसी चीज की परिभाषा एक तरह से करना शुरू कर देता है तब हम उसी दिशा में सोचने लगते है । अगर दस-पाँच पीढियों से हमारा परिवार हिन्दुस्तान में रह रहा है तो मैं उतना ही राष्ट्रीय हूँ जितने की आप। फिर क्या जरूरी है कि आप मुझे अपनाएंगे जब मैं आपके कानो में राष्ट्रीयता का झुनझुना बजाऊं । यदि मैं सांप्रदायिक हूँ तो आप मुझसे ज्यादा सांप्रदायिक हैं, जिन्होंने मुझे सांप्रदायिक बनाया ।

-गुलशेरखान शानी

विनोद दास की ‘बतरस’ से साभार

सुमन
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