गाँधी के सपनो का यह भारत, यही स्वराज्य का मूल मन्त्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
तिरसठ बरसों बाद आज भी, गाँवों की तस्वीर वही है।
दैन्य निराशा और दबंग की, अब भी जागीर वही है॥
पड़ी हुई आज पांवों में अब भी वही गुलामी की जंजीरें।
आज भी वही घिसई बुद्धू के झोपड़ियों की तस्वीरें॥
प्रजातंत्र यह नहीं शोषकोंसामंतो का राजतन्त्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
विधवा, वृद्ध, अपंग महिलाएं घर-घर जाकर भीख मांगती।
चूल्हा, चौका, बर्तन करके किसी तरह लाज ढ़ाँपती॥
भूख मिटाने के खातिर झुग्गी- झोपड़ियों की बालाएं।
जिस्मों का सौदा करती, ईमान बेचती ललनाएं॥
हंसी उड़ाते तुम जनता की कहते हो यह प्रजातंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
नेता अधिकारी हड़प रहे मजदूर किसानो का हिस्सा।
आज भी वही प्रेमचंद के सवा सेर गेंहू का किस्सा॥
धूर्त महाजन सूदखोर मिल कर जनता को लूट रहे,
क्या खाएं, क्या ब्याज चुकाएं, उन्हें पसीने छूट रहे॥
मनमोहन प्योर आँखें खोलो देखो कैसा लूट तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
निर्दयी निरंकुश पुलिस जब जहाँ जिसकी चाहे हत्या कर दे।
हत्यारों की सहयोगी बन हत्या को आत्महत्या कह दे॥
निर्दोषों को मार गिराए जितने चाहे तमगे ले ले।
मंत्रियों की गिनती ही क्या न्यायलय से पंगे ले ले।
कार्यपालिका न्यायपालिका पर भी भारी पुलिसतंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
असहायों अल्पसंख्यकों के सीने पर कहीं गोलियां चलती॥
गिरिजाघर कहीं मस्जिदें जलती, कहीं मकान दुकानें जलती।
गुंडे, पुलिस, राजनेता आतंक मचाएं आग लगायें।
स्वयं, प्रदेश के राज्य मंत्री जनता की हत्या करवाएं।
जिसकी लाठी भैंस उसी की, लगता है यह लठ्ठ तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
महँगाई की मारी जनता क्या खाए, सर कहाँ छिपाए।
भूखे बच्चों को देख बिलखता जाकर कहाँ डूब मर जाए॥
संवेदन शून्य सरकारें सब नीरो की वंशी बजा रहीं
जनता को निगल रही महँगाई देख तनिक न लजा रहीं॥
इसी विकास पर तुम्हें गर्व है यही तुम्हारा अर्थ तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
फुटपाथों कचेहरियों में सर्दी गर्मी में पालिश करते।
नन्हे अबोध मुरझाये चेहरे तुम अंधों को नहीं दीखते॥
भूख कुपोषण बीमारी से यहाँ करोडो बच्चे मरते॥
तुमको लाज नहीं आती निशदिन छप्पन भोग भोगते॥
गांधीवादी अभिनेताओं बतलाओ यह प्रजा तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
संघर्ष करे जो न्याय के लिए उसको तुम विद्रोही कह दो।
स्वाधिकार के लिए लड़े जो उसको देश द्रोही कह दो॥
क्या इसी स्वतंत्रता के खातिर लाखों ने प्राण गंवाए।
जेलों में चक्की पीसी, अपमान सहे, सर्वस्व लुटाये॥
स्वदेश वासियों को छलना ही क्या प्रजा तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
भोपाल वासियों की लाशों पर अब तक रोटी रहे सेंकते।
घुट-घुट कर मरते गैस पीड़ितों को तुम टुकड़े रहे फेंकते॥
हत्यारे एंडरसन को सम्मान सहित स्वदेश भिजवाये।
लाखों हुए अपंग, हजारों मरे तनिक तुम नहीं लजाये॥
साम्राज्यवादियों के दासों क्या यही तुम्हारा न्यायतंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
-मोहम्मद जमील शास्त्री
बहुत ही उम्दा और सार्थक प्रस्तुती …