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Archive for अगस्त, 2010


घाघरा नदी का गोंडा-बाराबंकी बोर्डर पर बना परसावल तटबंध टूट गया। परसावल, रायपुर, मांझा, कमियार, पसका, बांसगांव में अचानक तटबंध टूटने के कारण सैकड़ो लोग बह गए, करोडो रुपये की संपत्ति बर्बाद हो गयी पालतू जानवरों का कोई पुरसाहाल नहीं रहा। सरकार ने तीन अभियंताओ को निलंबित कर अपने को सुरक्षित कर लिया।
प्रतिवर्ष घाघरा नदी के किनारे बने तटबंधो की मरम्मत का कार्य सिचाई विभाग देखता है। मरम्मत करने के नाम पर करोडो रुपये के पत्थर कागजों पर नदी के किनारे लगा दिए जाते हैं और मिटटी बालू की बोरियों से उसको मजबूती प्रदान की जाती है और प्रतिवर्ष कोई न कोई तटबंध टूटता है और हजारों लोगों के परिवार बर्बाद हो जाते हैं। बाराबंकी जनपद में पहले सूखा होता है जिसका भी इन्तजार जिला प्रशासन बेसब्री से करता है और लाखों करोडो रुपयों का गोलमाल हो जाता है। फिर शुरू होता है बाढ़ की विनाशलीला जिसमें भी अधिकारियो और कर्मचारियों की लाटरी खुल जाती है। बाढ़ पीड़ितों की मदद जमीनी स्तर पर नहीं हो पाती है और कागजों पर मदद दर्ज होती रहती है। फिर अप्रैल माह से खेल शुरू होता है नदी के तटबंध आदि की मरम्मत का कार्य जिसमें बाढ़ की विनाशलीला की पृष्ठभूमि छिपी होती है। ये अधिकारी अभियंता जनता का भला नहीं कर सकते हैं यह सब निश्चित रूप से यमराज के दूत के रूप में ही कार्य करते हैं।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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सितबर माह में बाबरी मस्जिद प्रकरण में माननीय उच्च न्यायलय, इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ का फैसला आने वाला है। उस फैसले के मद्देनजर हिन्दुवत्व वादी संगठनो के नेता व कार्यकर्ता जगह-जगह धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए प्रष्टभूमि तैयार कर रहे हैं। धार्मिक उन्माद वाले भाषण भी दिए जा रहे हैं। सरकार द्वारा अघोषित युद्ध की तैयारी की जा रही है किन्तु सरकार ऐसे संगठनो के ऊपर अंकुश लगाने की बजाये प्रशय जयादा दे रही है।
गृहमंत्री चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद की बात कहकर वास्तविक खतरे की ओर इंगित किया था लेकिन जैसे ही हिन्दुवत्व वादी संगठनो के भोपू बजने शुरू हुए कि कांग्रेस ने पैंतरा बदला और जनार्दन द्विवेदी ने स्पष्टीकरण दिया कि भगवा आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं होती है। यह बात वस्तुस्तिथि के विपरीत है शाखाओं से लेकर हिन्दुवत्व वादी शिक्षण संस्थान देश के धर्म-निरपेक्ष स्वरूप को न मान कर धर्म विशेष का देश बनाने की बात करते हैं तब वह दूसरे धर्मो के प्रति अपमानजनक और निंदा कारक और धार्मिक विद्वेष फ़ैलाने वाली बातें करते हैं।
चुनाव में लाभ हानि के आधार पर जब वस्तु स्तिथियों का मूल्यांकन होता है। तब समाज के विभिन्न वर्गों के साथ न्याय नहीं हो पाता है। जरूरत इस बात की है कि कैंसर बन गए जैसे मुद्दों का हल होना अतिआवश्यक है। जब सभी तरह के प्रयास असफल हो जाते हैं तब न्यायपालिका अपना काम करना शुरू करती है लेकिन धार्मिक उन्माद वाले संगठन पहले से ही उद्घोषणा करने लगते हैं, यह मुद्दा न्यायपालिका तय नहीं करेगी। तब कोई विकल्प शेष नहीं बचता है। प्रगति की तरफ यदि हम नहीं बढ़ रहे हैं तो उसका भी मुख्य कारण है कि हम छोटी-छोटी चीजों में आज भी उलझे हुए हैं।
आज जरूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर एक नए भारत के निर्माण की तरफ अग्रसर हों जिसमें जाति धर्म के आधार पर निर्णय न हो।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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उत्तर प्रदेश की जेलों में जेल व्यवस्था को सुधारने के लिए आए दिन जिला मजिस्टे्ट, पुलिस अधिकारी छापे डालते रहते हैं। न्यायिक अधिकारी गण जिसने आदेश से जेल में बंदियों को रखा जाता है। वह भी बराबर निरीक्षण का कार्य करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त कारागार विभाग के अधिकारी मानवाधिकार आयोग तथा विभिन्न उच्चाधिकार समीतियों के लोग भी निरीक्षण करते रहते हैं लेकिन इन सभी को जेल में निरीक्षण के दौरान कोई भी भ्रष्टाचार नहीं दिखाई देता है। इस मामले में सभी साहबगण आँखों से सूरदास हो जाते हैं। जेल में रहने के लिए कैदियों को सादाहरण तरीके से 5 हजार रुपये प्रति माह खर्च करना होता है। जेल के अन्दर खेती व रसोई में कार्य करने से बचने के लिए 120 रुपये प्रति सप्ताह देने होते हैं। रात में पहरा देने से बचने के लिए 300 रुपये, मुलाकात करने के लिए 50 रुपये अगर बीमार हैं तो 100 रुपये सामान्य खाना खाने के लिए 30 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। मुलाकात में मिले खाने-पीने के सामान में भी हिस्सा देना पड़ता है।
जेल में बीडी, सिगरेट, अफीम, गांजा, चरस आदि नशीले पदार्थों के अतिरिक्त रेट हैं। यह सभी सामान भी जेल में उपलब्ध होता है। जेल में साहब लोगों के आए दिन मुआयने का क्या मतलब है।
मेरा यह सब लिखने का बस इतना मतलब है कि कारागार जैसी जगह पर बंद रहने के लिए भी इतनी तरह की घूस देनी पड़ती है तो सामाजिक जीवन में आप कितनी तरह की घूस अदा करते हैं उसका आकलन करने की जरूरत है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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बेनामी” ने

अगर भगवा आतंकवाद आ भी गया है तो क्‍या हुआ । तुमने कसर कौन छी छोडी थी जो अब हिन्‍दू कसर छोडे । जिस दिन हिन्‍दू आतंकवाद सच में आ गया, समझ लो तुम जैसों की खटिया खडी हो गई । बडे आये भगवा आतंकवाद बताने वाले । इन कमीने विधर्मियों ने हिन्‍दुओं के सामने रास्‍ता ही कौन सा छोडा है ,
हमारे घर में घुसकर कोई हरामी बस हाँथ उठा कर जोर से उपर देखकर चिल्‍ला दे तो हो गया हमारा घर उसका इबादतगाह ।
कितने हिन्‍दू बेचारे पाक में जानवरों से भी बदतर जीवन जी रहे हैं पर उनकी तो नहीं कहेगा कोई । उधर देखने के पहले ही आंखें फूट जाती हैं तुम सब की ।
अब वहाँ हिन्‍दू अल्‍पसंख्‍यक हैं तो इसलिये उनकी गलती और यहाँ वो बहुसंख्‍यक हैं तो भी इनकी ही गलती । वाह क्‍या दोगलेपन वाली बात कही है ।
एक बाबरी के गिर जाने पर सब हरमकट्ट बवाल काट रहे हैं , हिन्‍दू आतंकवाद बता रहे हैं और बांग्लादेश, पाकिस्‍तान , अफगानिस्‍तान और अन्‍य कई मुगलदेशों में प्राचीन हिन्‍दू मंदिर गिरा दिये गये उनके लिये सब भडुए मर गये हैं, किसी को भी इसपर कुछ नहीं कहना है ।
बहुत अच्‍छा हो अगर इसबार भी कोई ऐसा ही किसी आक्रांता द्वारा बनवाया हुआ इमारत तोड दिया जाए और फिर बवाल हो जाये ।
हम जानते हैं अभी कई कमीने मेरी इस टिप्‍पणी पर मरने वाले हैं, पर एक हाँथ से कभी ताली बजी है क्‍या, अगर ये बद्तमीज हमें कुछ भी कहने का अधिकार रखते हैं तो हम भी बोलेंगे, मुह खोलकर और दिल खोलकर बोलेंगे ।
बडे आये भगवा आतंकवाद बताने वाले
तेरे जैसे ही लोगों की वजह से और हिन्‍दू मुस्लिम दंगे होते हैं । तु इसका सबसे बडा जिम्‍मेदार है ।
तुझे तेरा खुदा भी माफ नहीं कर पाएगा ।

२५ अगस्त २०१० ६:४५ अपराह्न

<span title=बेनामी”> बेनामी ने कहा…
अबे नीचे वाले नीच बेनामी
तेरे तो पहले से ही डंडा पडा हुआ है तू क्‍या डंडा डालेगा ।
और आने तो दे 15 सितम्‍बर, एक-एक हिजडों के डंडा पड जाऐगा ।
फिर से एक गोधरा हो जायेगा ।
और लग तो रहा है जल्‍दी ही भारत के कुछ राज्‍य हिजडा विहीन होने वाले हैं ।

२६ अगस्त २०१० ११:३३ पूर्वाह्न

लोकसंघर्ष की पोस्ट क्या है भगवा आतंकवाद पर बेनामी जी की कुछ रटी रटाई टिप्पणिया प्राप्त हुई है जो अक्सर चिट्ठाकार जगत में अक्सर दिखाई देती हैं। सबसे पहले उन्होंने यह अपना सवाल उठाया कि हिन्दू आतंकवाद आ जायेगा तो माफ़ कीजियेगा तो हिन्दू आतंकवाद कोई चीज नहीं होगी। हिन्दुवात्व का आतंकवाद होगा जो एक वर्तमान समय में अमेरिकन साम्राज्यवाद द्वारा पोषित राजनैतिक विचारधारा है। कुछ चिट्ठाकार जगत के लोग सेकुलर गिरोहों का नाम लेते हैं। धर्म आदमी की आस्था और विश्वास की चीज है आस्था और विश्वास का जो लोग चौराहे के ऊपर प्रदर्शन करते हैं वह लोग कभी धार्मिक नहीं होते हैं वह लोग देश की एकता और अखंडता को तोड़ने के लिए धर्म को सड़क पर लाते हैं और फिर लूट पाट करते हैं यह लोग अक्सर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हितों की अनदेखी की बात करते हैं। पाकिस्तान अमेरिका का चमचा देश है हमारा देश गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेता रहा है और अब आप जैसे लोगों की बदौलत अमेरिका की चमचागिरी में लग रहा है। अपने ही देश में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख अल्पसंख्यकों का नरसंहार आप ही जैसी विचारधारा के लोगों किया था। चाहे हिन्दुवात्व का आतंकवाद चाहे सिख आतंकवाद हो या इस्लामिक आतंकवाद उसका जनक अमेरिका है। पाकिस्तान या और कोई मुस्लिम देश वह अपने को इस्लामिक देश कहते हैं और हम धर्मनिरपेक्ष देश हैं। हमारी संस्कृति हमारी प्रष्टभूमि अलग है।
और आप तो बेनामी हैं परदे में रहना आपकी आदत है आजादी की लड़ाई में भी आप ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ थे लेकिन हिन्दुवात्व का पर्दा था टिपण्णी बॉक्स में आप बेनामी हैं। सामाजिक जीवन में आप ब्रिटिश साम्राज्यवाद के एजेंट हैं। हमको अच्छा लगेगा कि पर्दा उतारकर जरा सामने तो आओ छलिये ।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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जर्मन नाजीवादी विचारधारा से ओत-प्रोत हमारे देश के हिन्दुवत्व वादी संगठन द्वारा आतंक फैलाने की कार्यवाहियों को भगवा आतंकवाद कहते हैं। नादेड से लेकर मालेगाँव, मक्का मस्जिद, दिल्ली के बम धमाके, मडगांव, कानपुर में भगवा आतंकवादियों ने बम विस्फोट कर के आतंक फैलाने का काम किया काफी लोग मारे भी गए। लोकसंघर्ष ब्लॉग ने इस विषय पर कई बार जब लिखा तो भगवा अतंकवादियो के पिट्ठू ब्लोगर्स ने गालियाँ तक लिखी।
आज भारत सरकार ने भी मान लिया है कि देश में अशांति फ़ैलाने के लिए भगवा आतंकवाद सक्रिय है, जिसके ऊपर ध्यान देने की जरूरत है। राज्यों के पुलिस महानिदेशकों की तीन दिवसीय बैठक को संबोधित करते हुए गृह मंत्री श्री चिदंबरम ने कहा कि देश में भगवा आतंकवाद भी है। इस समय अमेरिकन साम्राज्यवादी शक्तियां इस देश कि एकता और अखंडता को तहस नहस करने के लिए धार्मिक उन्माद फैला कर गृह युद्ध की स्तिथि पैदा करना चाहती हैं । इस देश में हिन्दुवत्व वादी लोग अमेरिकन साम्राज्यवादियो के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं।
सितम्बर माह में उत्तर प्रदेश में बाबरी मस्जिद प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायलय का फैसला आने वाला है हिन्दुवत्व वादी विचारधारा के मानने वाले भगवा आतंकवादी भारी पैमाने पर अशांति फ़ैलाने के लिए जुगाली करना शुरू कर दिए हैं। चिट्ठा जगत में भी भगवा आतंकियों के प्रतिनिधि अर्धसत्यों व अफवाहों का सहारा लेकर उन्माद फैलाने की चेष्ठा में लगे हुए हैं।
भारत एक बहुजातीय, बहुभाषीय, बहुधर्मीय देश है। इसकी एकता और अखंडता सबको मिलकर चलने में ही है जो भी इन सब मुद्दों को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश करते हैं वह लोग निश्चित रूप से देश की एकता और अखंडता को कमजोर करते हैं और साम्राज्यवादी मंसूबों का चाहे-अनचाहे हथकंडा बन जाते हैं।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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एम.सी हो, बी.सी हो – यस सर और अंत में जय हिंद सर की तर्ज पर चलता है उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग। उच्च अधिकारी निरीक्षक तक के फील्ड में काम करने वाले सहस और शौर्य का प्रदर्शन करने वाले निरीक्षक स्तर तक के कर्मचारियों से रोज यही व्यव्हार करते हैं। जिससे निरीक्षक स्तर के पुलिस कर्मचारी विभिन्न प्रकार के मानसिक अवसादों से घिर जाते हैं। कभी-कभी अवसाद निराशा उपनिरीक्षको को आत्महत्या कर लेने पर मजबूर कर देती है। अभी हाल में सीतापुर जनपद के सदर चौकी इंचार्ज़ जितेन्द्र पाण्डेय गोली मार कर आत्महत्या कर ली है।
प्रदेश में पुलिस विभाग ने प्रशासनिक अफसर अनुशासन के नाम पर विभागीय कर्मचारियों से बहुत ही अपमानजनक व पीड़ादायक व्यवहार करते हैं जिससे पढ़े लिखे जाबांज नवजवान कुंठाग्रस्त हो जाते हैं। अपने उच्च अधिकारियो से गन्दी-गन्दी गालियाँ खा कर उनके कार्यालय से निकलते ही व अपनी सारी कुंठा सामने पड़े हुए व्यक्ति पर निकालते हैं ।
आज जरूरत इस बात की है कि पुलिस बल के ढांचे को अत्याधुनिक व लोकतान्त्रिक तरीके से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। पुलिस उच्चाधिकारियों को लोकतान्त्रिक तरीका व बात व्यवहार सिखाने की सख्त आवश्यकता है। अंग्रेजो द्वारा बनाये गए पुलिस रेगुलेशन एक्ट व सर्विस रूल्स के आधार पर ही पुलिस विभाग संचालित होता है। आजादी से पूर्व सभी उच्च पदों पर सभी उच्च पदों पर अंग्रेज पुलिस उच्च अधिकारी होते थे और निचले स्तर के कर्मचारी भारतीय होते थे। अंग्रेज भारतीय कर्मचारियों को इंडियन डॉग या मंकी कहकर संबोधित करता था। अगर आजादी के बाद पुलिस विभाग के व्यवस्था गत ढांचे को परिवर्तित किया गया होता तो तमाम सारी बुराइयों से विभाग व समाज बचा रहता ।
जब सामान्य नागरिक किसी पुलिस कर्मचारी के सामने खड़ा होता है तो बात-बात में उसकी एम.सी- बी.सी होती है और वही जब कर्मचारी अपने अधिकारियो के सामने खड़ा होता है तो उसकी एम.सी- बी.सी होती रहती है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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रविवार को ईष्टकोष्ठ एक्सप्रेस तथा ई एम यू लोकल ट्रेन हावड़ा-खड़गपुर अनुमंडल के सांकरेल में एक ही पटरी पर दौड़ती आ गयी लेकिन चालक की त्वरित कार्यवाई से एक बड़ी दुर्घटना टल गयी। यदि दुर्घटना हो गयी होती और सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गयी होती तो रेल मंत्री ममता बनर्जी को अपने विरोधी राजनीतिक दलों पर यह तोहमत लगा चुकी होती की इसमें उनका हाथ है। देश के सार्वजानिक क्षेत्र का सबसे बड़ा उद्योग रेलवे जिसकी मंत्री हैं सुश्री ममता बनर्जी जिनके पास एक मात्र कार्य है कि किसी भी तरीके से बंगाल के अन्दर वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका जाए उनके पास रेलवे का कार्य देखने का वक्त नहीं है। पांच अधिकारी दिल्ली से रेल की विभिन्न फाइलें लेकर कलकत्ता हवाई जहाज से जातें हैं और वहां जल्दी-जल्दी उनकी मंजूरी लेकर दिल्ली वापस आते हैं। रेलवे के तीन अफसरों के विमान के किराये के मद में 11 लाख 23 हजार 550 रुपये भुगतान किया गया है। वस्तुस्तिथि यह है कि रेल विभाग के पास मंत्री होने के बावजूद कार्य न देखने के कारण ताबड़तोड़ दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। विभिन्न परियोजनाओ पर कार्य नहीं हो पा रहा है। बजट के समय उद्घोषित ट्रेनों को संचालित नहीं किया जा रहा है।
सुश्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार कि मजबूरियों का लाभ उठा कर रेल मंत्री बनी बैठी हैं। प्रधानमंत्री तक उनका कुछ कर नहीं सकते हैं। तमाम सारी विचित्र स्तिथियों के साथ ममता बनर्जी का दावा है कि उनके मंत्रालय का प्रदर्शन 50 वर्षों में सबसे शानदार है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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धर्म से सम्बन्ध त्योहार होली, ईद या क्रिसमस आदि हों अथवा राष्ट्रीय पर्व हों, सभी के मानने का मूल उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है, आडम्बर एवँ ढोंग का पक्ष अब सर्वोपर है।
स्वतंत्रता दिवस आया भी गया भी, ऐसा लगा कि बस लकीर पीट रहे हैं। प्रत्येक स्थान पर वही भाषण-बाजी, जो बहुत समय से होती आ रही है। रिश्वतखोर एवँ भ्रष्ट अफ़सर भी और मातहत भी, नेता भी और जनता भी, एक पक्ष, भाषण देता है, दूसरा सुनता है, अफ़सर नेता मंत्री कड़े अन्दाज़ में श्रोताओं को ईमानदारी की सीख देते हैं, श्रोता मन ही मन मुस्काता है। दूसरे दिन फिर दोनो पक्ष एक दूसरे से रिश्वत का हिसाब किताब करते हैं, बजट को ‘यूटीलाइज़‘ करने के तौर तरीक़ों पर विचार-मर्श करते हैं।
संविधान, नियम, क़ायदे चाहे जितने अच्छे बन जाए उनका कुछ भी प्रभाव उस समय तक नहीं पड़ सकता जब तक देश के नागरिक ज़िम्मेदार नहीं बनते। शिक्षा, टेक्नालाजी आदि से भौतिक सुख तो हासिल हो सकते हैं परन्तु नैतिक परिवर्तन या व्यवस्था परिवर्तन न तो हो सकते हैं, न हो रहे हैं।
इस संबंध में प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद के एक पत्र दिनाँक 13 जनवरी 1950 के कुछ अंशों पर ध्यान दीजिए, जो उन्हों नें संविधान सभा को प्रेषित किया गया था। वे कहते हैं- ‘‘कोई भी संविधान चाहे वह कितना ही सुन्दर, सुव्यवस्थित और सुदृढ़ क्यों न बनाया गया हो, यदि उसको चलाने वाले सच्चे, निस्प्रह, निस्वीथ देश और राष्ट्र के सेवक न हों तो संविधान कुछ भी नहीं कर सकता। संविधान निर्जीव वस्तु है। उस में मनुष्य जान डालता है, और अगर मनुष्य खोटा हो तो अच्छे संविधान को भी बुरे काम में लगा सकता है। और यदि मनुष्य अच्छा है तो आर्दश संविधान न होने पर भी वह सेवा का काम उस से निकाल सकता है।‘‘
अब जिन लोेगों के हाथ में शासन, प्रशासन एवं प्रबंघन की लगाम है और जिनके कृत्यों का प्रभाव दूर-दूर तक पहुँचता है, उनकी क्या स्थिति इस समय चल रही है, उसका अन्दाज़ा कार्मिक मंत्रालय की एक ताज़ा सर्वेक्षण रिर्पोट से कीजिए, जो हैदराबाद की संस्था ‘सेंटर फार गुड गवर्नेंस‘ के सहयोग से आई है। इस सर्वेक्षण के तहत आई0ए0एस0, आई0एफ़0एस0, आई0पी0एस0, आई0आर0एस0 और छह अन्य केन्द्रीय के 4808 अधिकारियों से सवाल पूछे गए जो गुप्त रक्खे गए हैं।
अस्सी फीसदी अधिकारी इस बात से सहमत थे कि राजनेता भ्रष्टाचार में इस कारण सफ़ल हो जाते हैं क्यों कि सिविल सेवा के अधिकारी उनका साथ देने को हमेशा तत्पर रहते हैं। यह भी स्वीकार किया कि अक्सर ये दंड पाने से बच जाते हैं। इन्हीं को सब से अच्छी पोस्टिंग मिलती है। ईमानदार अधिकारियों को निराधार शिकायतों के बूते परेशान किया जाता है। डा0 राजेन्द्र प्रसाद की भाषा मंे यही ‘खोटे‘ लोग हैं।
अब तसवीर का दूसरा रूख भी देखिए, इस रेगिस्तान में कहीं-कहीं फूल भी खिले हुए हैं। अभी-अभी एक पूर्व विधायक एवँ पूर्व मंत्री लमेहटा जिला फतेहपुर के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे श्री जागेश्वर प्रसाद के सरल जीवन का हाल भावे के सम्पर्क में आए और तीस हज़ार एकड़ भूमि एकत्र करके गरीबों को दान करा दी। ये 20 साल विधायक एवँ 5 वर्ष राम नरेश यादव के मंत्री मण्डल में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे। इनकी सादगी का हाल ये है कि शहर के देवीगंज मोहल्ले की तंग गली में एक बग़ैर प्लास्टर की कोठरी में रहते हैं, इनके पास सायकिल तक नहीं है। दो धोती कुर्ते, एक जोड़ी जूता कुछ और ज़रूरी सामान और कागज़ पत्तर इनकी ग्रहस्थी हैं। अस्सी की उम्र में भी जन सेवा का जज़्बर है, कहीं किसी का काम हो तुरन्त चल पड़ते हैं। इस उम्र में भी खेती किसानी का काम खुद करते है। उनका यह ढ़ंग मजबूरी वश नहीं स्वप्रेरित है, जिस से वे संतुष्ट हैं।
काश ऐसे लोग होते तो देश की अनेक समस्यायें ख़ुद सख़ुद हल हो जातीं, इस त्यागी को मैं सलाम करता हूँ, जो इस भ्रष्टाचार के माहौल में ज़रा भी विचलित नहीं हुए-
हवा चल रही है, दिया जल रहा हैI
डा0 एस0एम0 हैदर

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(“क्लास कास्ट रिजर्वेशन एंड स्ट्रगल अंगेस्ट कास्टिज्म” किताब का दूसरा संस्करण इस सप्ताह आने वाला है। किताब के लेखक ए.बी. बर्धन ने दूसरे संस्करण की प्रस्तावना लिखी है जो कुछ उन मुद्दों के बारे में है जिन पर जाति आधारित जनगणना सहित जाति और वर्ग को लेकर अभी बहस चल रही है। हम इस प्रस्तावना को छाप रहे हैं जिससे इन मुद्दों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दृष्टिकोण को समझने में मदद मिलेगी – संपादक)
“क्लास कास्ट रिजर्वेशन एंड स्ट्रग्ल अंगेंस्ट कास्टिज्म” किताब पहले 1990 में प्रकाशित हुई थी। इनमें उन लेखों एवं दस्तावेजों को शामिल किया गया है जो 1980 के दशक में लिखे गये थे जबकि मंडल कमीशन की सिफारिशों के आने और वी.पी. सिंह सरकार द्वारा उन पर अमल की घोषणा से पहले और बाद में आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में जबर्दस्त बहस और आंदोलन चला था।
इन लेखों और दस्तावेजों में न केवल आरक्षण एवं मंडल आयोग की सिफारिशों और उनको लागू करने के जटिल मुद्दों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया बल्कि वर्ग, जाति आरक्षण और जातिवाद के विरूद्ध संघर्ष के बारे में तथा जातियों को समाप्त करने और अन्यायपूर्ण जाति प्रथा को मिटाने के बारे में सैद्धांतिक पक्ष को पेश करने का प्रयास किया गया। ये सभी प्रश्न आज भी, अधिक नहीं तो समान रूप से, प्रासंगिक बने हुए हैं। वे देश के राजनीति एवं सामाजिक एजेंडे से गायब नहीं हो गये हैं। इसलिए हम सब किताब का दूसरा संस्करण निकाल रहे हैं जो आशा है उपयोगी साबित होगा।
जाति आधारित जनगणना की मांग की गयी है तथा यह मांग संसद के समक्ष है। हमने इस विषय पर अपने दृष्टिकोण के साथ पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिन्दर सच्चर के एक लेख को भी शामिल किया है।
लोगों की बहुपक्षीय सामाजिक पहचान है- जैसे वर्ग पहचान, जाति पहचान, धार्मिक पहचान, भाषाई पहचान, एथनिक पहचान (नृजातीय पहचान) और अन्य। यहां हम खासकर हमारे बहुसंख्यक लोगों की वर्ग पहचान और जाति पहचान की बात करेंगे। मार्क्सवादी होने के नाते हमने हमेंशा भारत में वर्गों एवं जातियों दोनों के अस्तित्व के सामाजिक यथार्थ को स्वीकार किया है।
लेकिन यह सच है कि हमने हमेशा अपने आंदोलनों और संघर्षों के आधार के रूप में वर्ग पहचान पर ही जोर दिया है। यह उनकी जाति पहचान को लगभग अलग रखकर किया गया है। अक्सर यह चूक हो जाती कि मजदूर वर्ग एवं मेहनतकश किसानों की एकता को उनके जाति भेदों की अनदेखी करके हासिल करना और उसे बनाये रखना कठिन होता है।
यह वर्ग भेद शोषक वर्गो में, चाहे वे पूंजीपति हों या जमींदार कोई भूमिका अदा नहीं करता है, लेकिन विभिन कारणों से, यह जातिभेद शोषित वर्गाें में, उन्हें एकताबद्ध करने में कभी-कभी बाधा उत्पन्न करता है या कुछ कठिनाइयां पैदा करता है।
शहर और देहात में जो लोग आर्थिक रूप से शोषित वर्ग के होते हैं, उसके साथ ही साथ वे आमतौर पर सबसे ज्यादा सामाजिक रूप से भी शोषित जातियों के लोग होते हैं। वे राजनीतिक रूप से भी सबसे अधिक वंचित वर्ग हैं।
इसलिए मेहनतकश जनता के बीच एकता कायम करने तथा शोषकों के खिलाफ वर्ग संघर्ष विकसित करने के दौरान यह जरूरी है कि सभी प्रकार के जाति भेदभावों एवं शत्रुता का दृढ़ता से विरोध किया जाये और दलितों तथा तथाकथित निम्न जातियों के खिलाफ होने वाले हर तरह के अत्याचार एवं अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया जाये और जातिवाद के खिलाफ सतत वैचारिक, राजनीतिक एवं व्यवहारिक संघर्ष चलाया जाये। ये सभी संघर्ष के विभिन्न पहलू हैं।
इन सभी को सकारात्मक कार्रवाई के साथ एक साथ जोड़ना होगा ताकि नीचे के तबकों को, जो अब तक समाज के शोषित, वंचित एवं पिछड़े तबके रहे हैं तथाकथित उच्च वर्गांे के बराबर लाया जा सके। ऐसे संघर्ष एवं जातियों को समाप्त करने तथा जाति प्रथा को मिटाने के संघर्ष के बीच एक द्वंद्वात्मक आंतरिक संबंध है। इसी वास्ते तो आरक्षण है, जो सकारात्मक कार्रवाई का एक तरीका है। लेकिन केवल यही एक अकेला तरीका नहीं है। सकारात्मक कार्रवाई के कई अन्य तरीके हैं जिनमें भूमि सुधार, कमजोर एवं वंचित वर्गांे के नीचे से ऊपर तक सशक्तीकरण शामिल हैं। बुर्जुआ सरकार का जमींदारों एवं बड़े भूस्वामियों के साथ संबंध है, वह उन तरीकों को कभी नहीं लागू करेगी। इसके लिए संयुक्त संघर्ष एवं सक्रिय हस्तक्षेप जरूरी है।
सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रवर्तक यह अच्छी तरह समझते थे। इसलिए वे मजबूत आधार तैयार कर सके और अनेक क्षेत्रों एवं राज्यों में इन मजबूत आधारों के निर्माण में उन्होंने दलित और पिछड़ी जातियों को अपने साथ लामबंद किया। उन्होंने उचित ही कमजोर वर्गों के आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष को उनकी आकांक्षाओं तथा सामाजिक न्याय, गरिमा और बराबरी के लिए संघर्ष के साथ जोड़ा। लेकिन बाद के वर्षों में खामियों के कारण तथा हमारी समझदारी और व्यवहार में विफलता से दलितों एवं पिछड़ी जातियों पर आधारित पार्टियों को उनका शोषण करने और सामाजिक न्याय के नाम पर उनकी खास-खास मांगों को आगे बढ़ाने का मौका मिला। इस प्रकार उन पार्टियों ने कुछ राज्यों में हमारे जनाधार का क्षरण किया। उदाहरण के लिए बिहार में जहां राज्य पार्टी अपेक्षाकृत मजबूत थी तथा उत्तर प्रदेश एवं अन्य जगह में भी, ये पार्टियां इन तबकों के कुछ हिस्से को कम्युनिस्ट प्रभाव से हटाकार अपनी ओर लाने और उन्हें अपना वोट बैंक बनाने में सफल रही हैं।
उनका यह दावा कितना सच है कि वे सामाजिक न्याय की पार्टियां हैं या वे दलितों एवं पिछड़ी जातियों की भलाई के लिए लड़ रही हैं, भूमि सुधार के मुद्दे पर इनमें से अधिकांश पार्टियों के नेतृत्व के रवैये से पता चल जाता है कि वे कहां खड़े हैं। उदाहरण के लिए वे बिहार में भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों का विरोध करने के लिए एकजुट हो गये हैं। आयोग ने भूमिहीनों को अतिरिक्त भूमि का वितरण करने, जिनके पास मकान नहीं है ऐसे खेत मजदूर परिवारों को मकान बनाने के लिए 10 डिसमिल जमीन देने, बटाईदारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने आदि की सिफारिशें की हैं। इन कदमों से सबसे गरीब लोगों तथा उनमें से सबसे पिछड़ों को भला होता है और उन्हें अपने जीवन में सुरक्षा एवं गरिमा प्राप्त होती है। ये वही लोग हैं जो दलित और अत्यंत पिछड़ी जाति के हैं। पर जाति पर आधारित पार्टियां इन सिफारिशों का विरोध कर रही हैं। जब भूमि सुधार की बात आती है तो इन जाति आधारित पार्टियों का यह दावा निरर्थक साबित होता है कि वे सामाजिक न्याय के लिए काम कर रही हैं।
खाप पंचायतेें और तथाकथित “ऑनर किलिंग” केवल सगोत्र विवाह के खिलाफ नहीं है बल्कि वे ऐसी मिश्रित जातियों के विवाह के भी खिलाफ है जिसमें निम्न जाति का एक पार्टनर ऊंची जाति के पार्टनर के साथ शादी करता है। ये खासतौर पर घिनौने किस्म की सोच-विचार कर की गयी हत्याएं हैं। सख्त कार्रवाई करके इन्हें खत्म करने की जरूरत है।
आरक्षण न केवल सरकारी और अर्धसरकारी नौकरियों के लिए लागू है बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों की नौकरियों के लिए भी लागू है। सरकार अब सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के निजीकरण की ताबड़तोड़ कोशिश कर रही है। इससे आरक्षित श्रेणियों के लिए उपलब्ध रोजगार प्रभावित होंगे। इसलिए निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग पूरी तरह न्यायोचित है, हालांकि कुछ मामलों में वैध एवं खास कारणों से छूट हो सकती है।
इस समय यह बहस चल रही है कि 2010 की जनगणना में क्या जाति की गणना को शामिल किया जाना चाहिए या नहीं। क्या ऐसा करना संविधान की भावना के विपरीत नहीं होगा? इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह सवाल उठता है कि क्या इससे जात-पात की भावना को फिर से हवा नहीं मिलेगी तथा जातिवाद के खिलाफ लड़ने और उसे समाप्त करने के लिए हमारे प्रयास कमजोर नहीं होंगे?
जाति एक सामाजिक यथार्थ है। इसके अस्तित्व से इंकार करके इससे बचा नहीं जा सकता। हम देख चुके हैं कि भारतीय समाज में जाति प्रथा का कितना बुरा प्रभाव पड़ा है। अनुसूचित जातियों, जिन्हें अछूत माना जाता है, के अलावा सामाजिक एवं शैक्षिणक रूप से पिछड़े वर्गों के निर्धारण में निम्न जातियों को ऐसे समूहों एवं वर्गों के रूप में रखना पड़ा जिनकी स्पष्ट पहचान हो सके। 1931 की जनगणना के आधार पर यह अनुमान लगाया गया था कि ये अन्य पिछड़े वर्ग, ओबीसी करीब 52 प्रतिशत हैं। उन्हें 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया ताकि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत को पार न कर जाये।
लेकिन अनेक अदालतों में यह सवाल उठाया गया है कि इस आंकड़े पर कैसे पहंुचा गया। इसलिए यह उपयोगी रहेगा कि ताजा जनगणना करके हम किसी आंकड़े पर पहुंचे। इन वर्गों के कल्याण के लिए बनायी जाने वाली अनेक योजनाएं भी ताजा आंकड़ों पर आधारित की जा सकती हैं।
लेकिन जाति आंकड़ों में हेरफेर करने और लाभ पाने या समाज में बेहतर हैसियत प्राप्त करने के उद्देश्य से जनगणना के समय जाति को बदलकर बताने-इन दो खतरों से हमें सावधान रहना होगा।
केवल ओबीसी के रूप में गणना नहीं हो सकती क्योंकि सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधारपर किस जाति को इसमें शामिल किया जाये, किसको नहीं, यह एक खुला प्रश्न है।
लोगों का एक बड़ा हिस्सा है जो जाति या यहां तक कि धर्म के आधार पर अपनी पहचान नहीं कराना चाहता। जनगणना के दौरान इन लोगों को अधिकार है कि वे अपनी जाति या धर्म बताने से इंकार कर सकते हैं। इस वर्ग की संख्या बढ़ रही है और इसे नोट किया जाना चाहिए। निश्चय ही आज जाति एक राजनीतिक मुद्दा बन गयी है। यह खतरा है कि जाति आधारित जनगणना में ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें जाति पहचान राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में अन्य तमाम बातों पर हावी हो जाये तथा अन्य की तुलना में किसी जाति भेद एवं जाति द्वेष बढ़ाने के लिए किया जाये। राजनीतिक नेतृत्व एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसके प्रति सावधान रहना होगा। हमारा उद्देश्य स्पष्ट रहना चाहिए। हम जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज के पक्षधर हैं जो केवल एक पूर्ण विकसित समाजवादी समाज में ही सुनिश्चित हो सकता है। हमें ऐसे क्रांतिकारी बदलाव के लिए संघर्ष करना है, लड़ाई लड़नी है।

– ए.बी.बर्धन
लेखक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हैं।

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महफ़िल जश्न है हर शख्स यहाँ शादाँ है।
मुफलिसी सह के भी किस्मत पे अपनी नाजाँ है॥
अब गुलामी नहीं अंग्रेज की, आजाद हैं हम।
हम हैं मसरूर सभी और यहाँ शाद हैं हम॥
हुस्न इस देश का अंग्रेजो ने मिटा डाला।
खिरमने मेल मुहब्बत को भी जला डाला॥
चलो कि अज्म करें और इक जसारत हम।
मिटा दें मिल के सभी नफरतों अदावत हम॥
अब कभी मुंबई, गुजरात न होने पाए।
अब कभी जुल्म की बरसात न होने पाए॥
आ की चिंगारिए रंजिश को बुझा डालें हम।
मुफलिसी बेकसी आतंक मिटा डालें हम॥
कोई राधा , कोई मरयम, न अब जलने पाए।
जुल्म की कोख में आतंक न पलने पाए॥
गोरे अय्यारों की हम पॉलिसी मिटा डालें।
एक आदर्श वतन अपना हम बना डालें॥

डॉक्टर मोहमद तारिक कासमी
उन्नाव जिला कारागार से

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